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बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

नवगीत संजीव 'सलिल'

नवगीत

संजीव 'सलिल'

चीनी दीपक
दियासलाई,
भारत में
करती पहुनाई...

*

सौदा सभी
उधर है.
पटा पड़ा
बाज़ार है.
भूखा मरा
कुम्हार है.
सस्ती बिकती
कार है.

झूठ नहीं सच
मानो भाई.
भारत में
नव उन्नति आयी...

*

दाना है तो
भूख नहीं है.
श्रम का कोई
रसूख नहीं है.
फसल चर रहे
ठूंठ यहीं हैं.
मची हर कहीं
लूट यहीं है.

अंग्रेजी कुलटा
मन भाई.
हिंदी हिंद में
हुई पराई......

*

दड़बों जैसे
सीमेंटी घर.
तुलसी का
चौरा है बेघर.
बिजली-झालर
है घर-घर..
दीपक रहा
गाँव में मर.

शहर-गाँव में
बढ़ती खाई.
जड़ विहीन
नव पीढी आई...

*

8 टिप्‍पणियां:

rajeevji ने कहा…

"navgeet" ki sabse achchhi-pankti"dadbo jaise cementi ghar-tulsi ka chaura hai beghar,bijli-jhalar hai ghar-ghar,dipak raha gaon me mar" isme hi geet ka saar chhipa hai,parampraye bahut pichhe chhut gai hai."Navgeet" prernaspad hai,is geet ke liye meri shubhkamnaye.rajeev saxena,katni.

राकेश सिंह ने कहा…

Rakesh Singh - ने कहा…
सौदा सभी
उधर है.
पटा पड़ा
बाज़ार है.
भूखा मरा
कुम्हार है.
सस्ती बिकती
कार है.

झूठ नहीं सच
मानो भाई.
भारत में
नव उन्नति आयी...

सुन्दर कविता जो हमें जगाने का प्रयास भी करती है ...

October 28, 2009 1:40 PM

मनोज कुमार. ने कहा…

आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलाक्षनाता के साथ बोधगम्य बना दिया है.

रचना दीक्षित ने कहा…

इन पंक्तियों में क्या कुछ कह दिया और सोचने को मजबूर कर दिया है की देशा वाकई आर्थिक रूप से तो उन्नति कर रहा है पर भाषा, संस्कार, अदब, तहजीब में सिर्फ अवनति ही कर रहा है.

*महेंद्रभटनागर ने कहा…

Dr. Mahendra Bhatnagar said...
कविता का व्यंग्य तीखा और असर कारक है।


October 29, 2009 9:14 AM

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Swagat ati sundar

Shanno Aggarwal ने कहा…

क्या तथ्य भरी बात है:
अंग्रेजी कुलटा
मन भाई.
हिंदी हिंद में
हुई पराई......

ऐसा ही मेरा भी कहना है:

कलयुग में सब होता उल्टा
है अंग्रेजी घुस आई कुलटा
झूठ चढ़ा है सच के सर पर
भूल रहे सब अपना कल्चर .

Unknown ने कहा…

अखिलेश के हाईटेक चुनावी रथ से चाचा शिवपाल गायब
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