आज का गीत:
संजीव 'सलिल'
पीले पत्तों की
पौ बारह,
हरियाली रोती...
*
समय चक्र
बेढब आया है,
मग ने
पग को
भटकाया है.
हार तिमिर के हाथ
ज्योत्सना
निज धीरज खोती...
*
नहीं आदमी
पद प्रधान है.
हावी शर पर
अब कमान है.
गजब!
हताशा ही
आशा की फसल
मिली बोती...
*
जुही-चमेली पर
कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को
दुर्गुण ने
जब चाहा
तब बिकवाया.
कंकर को
सहेजकर हमने
फेंक दिए मोती...
*
संजीव 'सलिल'
पीले पत्तों की
पौ बारह,
हरियाली रोती...
*
समय चक्र
बेढब आया है,
मग ने
पग को
भटकाया है.
हार तिमिर के हाथ
ज्योत्सना
निज धीरज खोती...
*
नहीं आदमी
पद प्रधान है.
हावी शर पर
अब कमान है.
गजब!
हताशा ही
आशा की फसल
मिली बोती...
*
जुही-चमेली पर
कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को
दुर्गुण ने
जब चाहा
तब बिकवाया.
कंकर को
सहेजकर हमने
फेंक दिए मोती...
*
9 टिप्पणियां:
वाणी गीत said...
जुही-चमेली पर कैक्टस ने
आरक्षण पाया.
सद्गुण को दुर्गुण ने जब चाहा तब बिकवाया.
कंकर को सहेजकर हमने फेंक दिए मोती...
वर्तमान स्थिति को अच्छी तरह बयान कर दिया है ..!!
29 October, 2009 10:31 PM
संगीता पुरी said...
सटीक रचना !!
29 October, 2009 11:03 PM
Dr. Smt. ajit gupta said...
बहुत ही धारदार रचना। मोती फेंके जा रहे हैं और कंकरों को सहेजा जा रहा है। यही दुर्भाग्य है।
29 October, 2009 11:07 PM
Pandit Kishore Ji said...
ek behatrin rachna
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' said...
Wah vijay bhaaI
30 October, 2009 12:23 AM
BAD FAITH said...
सटीक सुन्दर रचना .
30 October, 2009 2:33 AM
अत्यन्त निर्मल गीत.........
अनुपम गीत
प्यारा गीत
____अभिनन्दन !
जूही चमेली पर कैक्टस ने आरक्षण पाया।
क्या बात है सर।
बहुत उम्दा बहुत बेहतर।
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' ...
Ati sundar ji
एक टिप्पणी भेजें