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नव गीत
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है...
*
तप्त भास्कर,
त्रस्त धरा,
थे पस्त जीव सब.
राहत पाई,
मेघदूत
पावस लाये जब.
ताल-तालियाँ-
नदियाँ बहरीन,
उमंगें जागीं.
फसलें उगीं,
आसें उमगीं,
श्वासें भागीं.
करें प्रकाशित,
सकल जगत को
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है....
*
रमें राम में,
किन्तु शारदा को
मत भूलें.
पैर जमाकर
'सलिल' धरा पर
नभ को छू लें.
किया अमंगल यहाँ-
वहाँ मंगल
हो कैसे?
मिटा विषमता
समता लायें
जैसे-तैसे.
मिटा अमावस,
लायें पूनम
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
नव गीत: हर जगह दीवाली है... acharya sanjiv 'salil',
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
geet,
kutiya ho ya mahal,
navgeet
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर दीवाली की रचना.
abhinav rachna par badhaaee
deep parv ki subhkaamnayen
shyam skha shyam
बहुत अच्छा और सार्थक नवगीत. मानों शब्दों से खेल रहे हों आप और एक-एक शब्द चुनकर पिरोये गए हैं इस नवगीत की माला में.
Rajeevsaxena:
Aadarniya mamaji namste,
deepawali geet bahut achchha laga parv ka saar geet me jhalak raha hai.
badhai
aapka bhanja
rajeev ktni
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