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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

नव गीत: हर जगह दीवाली है... acharya sanjiv 'salil',

*

नव गीत
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है...

*

तप्त भास्कर,
त्रस्त धरा,
थे पस्त जीव सब.
राहत पाई,
मेघदूत
पावस लाये जब.
ताल-तालियाँ-
नदियाँ बहरीन,
उमंगें जागीं.
फसलें उगीं,
आसें उमगीं,
श्वासें भागीं.
करें प्रकाशित,
सकल जगत को
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है....

*

रमें राम में,
किन्तु शारदा को
मत भूलें.
पैर जमाकर
'सलिल' धरा पर
नभ को छू लें.
किया अमंगल यहाँ-
वहाँ मंगल
हो कैसे?
मिटा विषमता
समता लायें
जैसे-तैसे.
मिटा अमावस,
लायें पूनम
खुशहाली है.
कुटिया हो या महल
हर जगह दीवाली है.

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5 टिप्‍पणियां:

Shanno Aggarwal ने कहा…

बहुत सुंदर दीवाली की रचना.

gazalkbahane ने कहा…

abhinav rachna par badhaaee
deep parv ki subhkaamnayen
shyam skha shyam

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छा और सार्थक नवगीत. मानों शब्दों से खेल रहे हों आप और एक-एक शब्द चुनकर पिरोये गए हैं इस नवगीत की माला में.

rajeev ktni ने कहा…

Rajeevsaxena:

Aadarniya mamaji namste,

deepawali geet bahut achchha laga parv ka saar geet me jhalak raha hai.

badhai

aapka bhanja

rajeev ktni

Unknown ने कहा…

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