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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

आलेख: भारत की राजनीति और गृह योग -प० राजेश कुमार शर्मा

शनि+बुध+सूर्य+शुक्र का योग भारत के राजनैतिक व्यक्तियो कें लिये शुभ नहीं


शनि 9 सितंबर 2009 को रात्री में 12 (24) बजे कन्या राशि में प्रवेश करेगे और 16 सितंबर 2009 को 23बजकर 23 मिनट पर सूर्य कन्या राशि मे प्रवेश कर रहे हैं। 15 सितंबर 2009 को 20बजकर 39मिनट पर सिहं राशि में प्रवेश कर रहे हैं। राशियों का योग सितंबर माह में बनने जा रहा है। यह योग भारत के राजनैतिक व्यक्तियो कें लिये शुभ नहीं हैं अगस्त माह मे भी यह योग बना था जिसके परिणाम स्वरूप देश में चारो ओर प्रत्येक क्षेत्र में आमजनता को महंगाई का सामना करना पडा और राजनैतिक क्षेत्रो मे उठापटक हो गई हैं। वर्तमान में यह योग कुछ न कुछ अशुभ होने के सकेत दे रहा हैं। आम जन भी इस योग के कारण परेशानियों का सामना करेगा। चार राशियों का योग अक्टूबर माह में बन रहा हैं। यह योग अमावस्या को बनरहा हैं। शनि+बुध+सूर्य+शुक्र ये चार ग्रह का योग क्या रगं लायेगा ज्योतिष शास्त्रो में इसयोग को सुभिक्षा-दुभिक्ष योग कहां गया हैं इस वर्ष दीपावली भी शनिवार के दिन पड रहीं हैं यह भी अशुभ सकेत का कारक हैं इस पर ज्यादा लिखा जाना ठिक नहीं है। हम यहां पर शनि के कारण आनेवाली समस्याओ को आपके सामने रख रहें है।

कुंभ राशि को छोड़कर सभी राशियों के लिये यह सुखदायी होगा भारतवर्ष की वृष लग्न की कुंडली में कर्क राशि होने के कारण फिलहाल साढ़े साती का प्रभाव है। बुधवार की मध्यरात्रि को यह प्रभाव समाप्त हो जायेगा, जो देश के साथ देशवासियों के लिये भी शुभ है। कर्क व सिंह राशि वाले लोग पिछले सालो से कष्टों से पीडि़त हैं लेकिन इस बदलाव के बाद उनके कष्टों का स्वत: निवारण होने लगेगा।

शनि के कारण आनेवाली समस्याओ के निवारण

शनि की व्याधियां

आयुर्वेद में वात का स्थान विशेष रूप से अस्थि माना गया है। शनि वात प्रधान रोगों की उत्पत्ति करता है आयुर्वेद में जिन रोगों का कारण वात को बताया गया है उन्हें ही ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभाव से होना बताया गया है। शनि के दुष्प्रभाव से केश, लोम, नख, दंत, जोड़ों आदि में रोग उत्पन्न होता है। आयुर्वेद अनुसार वात विकार से ये स्थितियां उत्पन्न होती हैं।

प्रशमन एवं निदान

ज्योतिष शास्त्र में शनि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए दान आदि बताए गए हैं

माषाश्च तैलं विमलेन्दुनीलं तिल: कुलत्था महिषी च लोहम्।

कृष्णा च धेनु: प्रवदन्ति नूनं दुष्टाय दानं रविनन्दनाय॥

तेलदान, तेलपान, नीलम, लौहधारण आदि उपाय बताए गए हैं, वे ही आयुर्वेद में अष्टांगहृदय में कहे गए हैं। अत: चिकित्सक यदि ज्योतिष शास्त्र का सहयोग लें तो शनि के कारण उत्पन्न होने वाले विकारों को आसानी से पहचान सकते हैं। इस प्रकार शनि से उत्पन्न विकारों की चिकित्सा आसान हो जाएगी।

शनि ग्रह रोग के अतिरिक्त आम व्यवहार में भी बड़ा प्रभावी रहता है लेकिन इसका डरावना चित्र प्रस्तुत किया जाता है जबकि यह शुभफल प्रदान करने वाला ग्रह है। शनि की प्रसन्नता तेलदान, तेल की मालिश करने से, हरी सब्जियों के सेवन एवं दान से, लोहे के पात्रों व उपकरणों के दान से, निर्धन एवं मजदूर लोगों की दुआओं से होती है।

मध्यमा अंगुली को तिल के तेल से भरे लोहे के पात्र में डुबोकर प्रत्येक शनिवार को निम्न शनि मंत्र का 108 जप करें तो शनि के सारे दोष दूर हो जाते हैं तथा मनोकामना पूर्ण हो जाती है। ढैया सा साढ़े साती शनि होने पर भी पूर्ण शुभ फल प्राप्त होता है।

शनि मंत्र : ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।

॥ शनिवार व्रत ॥

आकाशगंगा के सभी ग्रहों में शनि ग्रह का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रकोप होता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दु:खों, विपत्तियों का समावेश करती है। अत: मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करने का विशेष महत्व है।

शनिवार का व्रत कैसे करें?

* ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएँ के जल से स्नान करें।

* तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें।

* लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ।

* फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।

* इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें।

* पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर।

* पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें।

* इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनिदेव की प्रार्थना करें-

शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।

केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव।।

* इसी तरह सात शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए।

* फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।

नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।

छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥

शनि का व्रत करने से लाभ

* शनिवार की पूजा सूर्योदय के समय करने से श्रेष्ठ फल मिलता है।

* शनिवार का व्रत और पूजा करने से शनि के प्रकोप से सुरक्षा के साथ राहु, केतु की कुदृष्टि से भी सुरक्षा होती है।

* मनुष्य की सभी मंगलकामनाएँ सफल होती हैं।

* व्रत करने तथा शनि स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के जीवन में धन, संपत्ति, सामाजिक सम्मान, बुद्धि का विकास और परिवार में पुत्र, पौत्र आदि की प्राप्ति होती है।

प० राजेश कुमार शर्मा भृगु ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र सदर मेरठ 194/14शान्ति कुन्ज निकट रामा फलोर मिल सदर मेरठ कैन्ट

मोबईल न 9359109683 www.bhragujyotish.blogspot.com

2 टिप्‍पणियां:

hem pandey ने कहा…

उपयोगी जानकारी.

anchit nigam ने कहा…

useful article