स्मृति गीत-
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
पूर्वजन्म के
पुण्य फलित
वे,
अनुशासन
मन भाया थे.
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है
भवितव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
शिव-स्तुति
का उच्चारण.
वे राम-नाम
भव-भय तारण.
वे शांति-पति
वे कर्मव्रती.
वे
शुभ मूल्यों के
पारायण.
परसेवा के
अपनेपन के
मंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 23 सितंबर 2009
स्मृति गीत- पितृव्य हमारे नहीं रहे.... आचार्य संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
शोक गीत,
श्री राजबहादुर वर्मा दिवंगत,
स्मृति गीत
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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71 टिप्पणियां:
वे अब स्मरणीय हैं। अनुकरणीय हैं।
वाह..!
आचार्य जी आपका नवगीत बहुत सशक्त है।
बधाई !
आपके पूज्य पिताश्री को मेरी भाव-भीनी श्रद्धाञ्जलि।
aapke pitji ko hamari bhavbhini shrdhhanjli.
मेरी श्रद्धांजली |
ईश्वर शान्ति दें |
अवनीह्स तिवारी
ati sunrdar sradhanjali
September 23, 2009 12:19 PM
BABBA JI!
APKO MERI HARDIK SHRADDHANJALI.
NANA JI!
MERI BHEE SHRADDHANJALI. AAP BAHUT YAA DAATE HO.
आचार्यजी ,
आपके पिताजी को हमारी श्रद्धांजली |
आपके परिजनों और आपको ईश्वर संतुलित और शांत रखें |
यह पीर बड़ी दुःख दायी है,
यह रोम-रोम बस जाती है,
कितने भी बाँचो ज्ञान ग्रन्थ,
पुरवा चलते कसकाती है.
यह प्रकृति नियति का खेल महा,
पत्ते-पत्ते लिख रहा यहाँ
पतझर बसंत के माध्यम से,
यह नियम संचरित कहाँ -कहाँ ?
हम यहीं विवश हो जाते हैं,
और अति निरीह रह जाते हैं.
वह अभी यहाँ थे कहाँ गए?
एक अमित शून्यता पाते हैं.
तुम ज्ञानी-ध्यानी 'सलिल' महा,
तुमको कोइ क्या समझाए?
ज्यों शब्द कोष को मूढ़ जना ही
शब्द कोष कोई दिखलाये?
मैं बहुत संवेदित हूँ, आपके इन क्षणों की गहराई मुझसे अधिक कदाचित ही कोई जाने? मैं यह पीड़ा भोग चुकी हूँ. मैं १२ वर्ष की थी तो पिता और १५ वर्ष की थी तो माँ फिर अकेला भाई, भाभी फिर पति .
ज्वाला मुखी को कितनी बार पिया हैं . जाके पाँव न जाये बिवाई सों क्या जाने पीर पराई. मैं बहुत ही संवेदित, कदाचित आप समझ रहे होंगे .
मृदुल
pran sharma ✆ २:१५ PM
प्रिय सलिल जी,
जान कर अति शोक हुआ कि आपके पिताश्री नहीं रहे.
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.
११:०४ AM
Respected Aacharyaji,
Pranam.
वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
Is yug mein achchi shaili ka deep aap jaisey logon ne prakashit kar rakhkha hai. Padh kar aanand aaya.
Mahavirji ko ko naman.
Aapka Bhai
Dr. Shareef
Ranjana ✆ २:२० PM
आपकी रचनाशीलता ऐसे अभिभूत कर जाया करती है कि अनुभूत उस भाव को अभिव्यक्त पाने योग्य मेरे पास एक भी शब्द नहीं...बस उन्हें पढ़ तो आपके ज्ञान और माता सरस्वती के सम्मुख स्वतः ही मन श्रद्धानत हो जाता है...
आपका लिखा पढ़ सदैव ही मन में आया करता है कि आप जैसे गुरु यदि शिक्षण क्रम में मिले होते तो जीवन की गति ही कुछ और होती...
खैर अब भी आप का आर्शीवाद मिल जाए तो फिर और क्या चाहिए....
रचना के विषय में क्या टिपण्णी करुण.......वह तो बस पढ़ कर गुनने की चीज है...
मेरा सादर नमन स्वीकार करें...
रंजना.
2009/9/23
बहुत ही बढिया कविता......बधाई!!!!!!
प्रणाम आचार्य,
अभी कुछ दिन पहले ही माता जी का सुना था...
और आज पिता के बारे में जान कर बहुत दुःख लगा....
इश्वेर उनकी आत्मा को शान्ति दे ...
उन्हें मोक्ष दे...
यही प्रार्थना है हमारी और हमारे परिवार की...
आचार्य
संजीव सलिल जी
पितृव्य हमारे नही रहे कविता भेजने के लिए धन्यवाद्. कविता दिल को छू गयी. आशा है आगे भी आपकी कवितायेँ मिलती रहेगी.
नारायण
2009/9/22 ६:५२ PM
पिता के विषय में काफी दुखद समाचार आप के मेल से मिला -----
मै परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ की ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे एवं उनके परिजनों को यह असीम दुख सहने की शक्ति देवे /
मत कहिए
पिताश्री नहीं रहे
वे यहीं हैं
मन में हैं वे
मानस में हैं
यादों में हैं
भुला सकते
कभी नहीं
मत कहिए
पिताश्री नहीं रहे।
वे यहीं रहे
वे यहीं रहेंगे
सीख उनकी
सदैव गहेंगे
फिर कैसे कहें
क्यों कहें
पिताश्री नहीं रहे
वे यहीं मिलेंगे
मन में बसेंगे
सीख उनकी
सदैव गहेंगे
बिन यादों के
उनकी कैसे रहेंगे
पिताश्री यहीं हैं
यही रहेंगे
मन में
भावों में
प्राणों में
जीवन आधारों में।
अब यही कहें
सदा सलिल कहें।
Manju Gupta का कहना है कि -
आदरणीय गुरु जी आप के पिता जी के लिए विन्रम श्रद्धाजंली प्रेषित करती हूँ. भगवान उन्हें शान्ति दे
September 23, 2009 5:47 PM
मनोज कुमार का कहना है कि -
आपके दु:ख में हम भी साथ हैं। भगवान दिवंगत आत्मा को शांति दें और आपको इस अपूरनीय क्षति को सहने की शक्ति।
September 23, 2009 7:55 PM
प्रकाश बादल का कहना है कि -
इस दुःख में हम आपको ढांढस बंधाने और आपके पिता श्री की आत्मा शांति के सिवा और क्या कह सकते हैं। इतनी पीड़ा के बाद भी आपकी सक्रियता और रचनात्मकता को साधुवाद !
September 23, 2009 10:30 PM
शोभना चौरे का कहना है कि -
ishvar shrdhhey pitaji ki aatma ko shanti prdan kre .
September 23, 2009 10:43 PM
shanno का कहना है कि -
आदरणीय गुरु जी,
अभी कुछ देर पहले आपके पिता जी के निधन के बारे में जाना, पढ़कर अत्यंत दुख हुआ.
दुख कम नहीं हो पाता है किन्तु उसे कम करने की कोशिश की जा सकती है.
आपको मैं धैर्य ही बंधा सकती हूँ और आपके साथ सच्ची संवेदना की अनुभूति है मेरे मन में.
ईश्वर आपके पिताजी की आत्मा को शांति दे ऐसी प्रार्थना करती हूँ.
काल के निर्मम हाथों से आज तक कोई नहीं बच सका है. यह सोचकर आप अपने मन को धीरज दीजिये.
खोकर पूज्य पिता को, हैं दुख से आप अधीर
मन मेरे है वेदना, जान के आपकी पीर.
दूर चले जाते बहुत, है जिनसे मोह अपार
करे नियति परिहास यह, जग फिर लगता निस्सार.
समय चक्र बढ़ता आगे, है यह जीवन का मूल
बेबस हो काया जभी, बन जाती है तब धूल.
नाते-रिश्ते बनें फिर, दें बीच धार में छोड़
अस्थिर है जीवन बड़ा, ना जग से नाता जोड़.
September 23, 2009 11:29 PM
संजीव जी
इस वेदना की घडी में हम आपके साथ हैं
पिताजी को श्रद्धांजलि...
September 23, 2009 6:59 PM
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' ने कहा…
श्रद्धांजलि
September 23, 2009 7:47 PM
SHRADDHANJALI
Alok Kataria
September 23, 2009 7:47 PM
विनम्र श्रद्धांजलि।
September 23, 2009 7:55 PM
श्रद्धांजलि।
September 23, 2009 8:28 PM
श्रद्धांजलि
September 23, 2009 8:48 PM
दु:खद समाचार है। विनम्र श्रद्धांजली
September 23, 2009 9:10 PM
sradhhanjali
September 23, 2009 10:14 PM
विनम्र श्रद्धांजली
September 23, 2009 10:42 PM
सलिल जी के पिता श्री को विनम्र श्रद्धांजलि!
September 23, 2009 11:24 PM
श्रद्धांजली
September 24, 2009 6:41 AM
मेरी श्रद्धांजली
September 24, 2009 6:49 AM
पिता जी को दु:ख भरे हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना कि भाई श्री संजीव सलिल जी दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करे!
September 24, 2009 7:30 AM
विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
September 24, 2009 8:43 AM
पिता हमारे नहीं रहे
पर पाथेय हमेशा बना रहे
हर उलझन पर उनका ही
उपदेश हमेशा बना रहे।
आचार्य जी के दुख की इस घडी में हम सब शामिल हैं। पिता का चले जाना और स्वयं का अकस्मात ही बड़ा बन जाना, ऐसा लगता है जैसे वीराने में अकेले बिना किसी की अंगुली थामे चल रहे हो। विनम्र श्रद्धांजलि।
September 24, 2009 10:23 AM
संजीवजी के पिता को श्रद्धांजली
September 24, 2009 1:32 PM
September 24, 2009 12:23 AM
आचार्य जी
आपसे दूरभाष पर भी बात हुई, लेकिन हमें दोहे की कक्षा के माध्यम से ही आपका सान्निध्य प्राप्त हुआ था अत: हम सभी आपके विद्यार्थी आपके पारिवारिक अभाव को अनुभव करते हैं। प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि वे आपको शक्ति प्रदान करें और उनके समस्त गुणों को आपके अन्दर समाहित करें। सभी परिवारजनों को भी हमारी संवेदना से अवगत करावें। ओऽम् शान्ति, शान्ति, शान्ति।
September 24, 2009 9:22 AM
२४ सितम्बर २००९ १०:१३ AM को, avinashvachaspati@gmail.com ने लिखा:
प्रियवर सलिल जी, नमस्कार।
आपको पिताजी ब्लॉग से जुड़ने का आमंत्रण भेजा है। वैसे तो यह संकट की घड़ी है पर यह कट जाएगा। अपनी पितृव्य कविता पिताजी पर लगायेंगे तो अच्छा लगेगा।
सादर
श्रद्धांजलि
September 24, 2009 4:09 PM
दु:खद समाचार ...
विनम्र श्रद्धांजलि
September 24, 2009 8:04 PM
गुरु जी को समर्पित -
दिल आज हुआ है दुखी ,
सुनकर दुखद समाचार .
जब -जब अपने बिछुड़ते ,
चक्षु से होती बरसात .
September 24, 2009 6:25 PM
वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
संजीव सलिल जी के पिता के निधन पर श्रध्दा सुमन अर्पित है .
September 24, 2009 10:08 PM
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है nice
September 23, 2009 10:32 PM
Yahee alfaaz maine apne dada -daadee ke liye ek baar likhe the..."bargad kee chaya tale.."
Pitaka saath to kam mila, lekin dada us sthan pe rahe..jabchhaya hatee to yaad aatee rahee wo ghanee chhanv, wo thandak...kadee dhoopme chalte hue..
http://shamasanmaran.blogspot.com
September 24, 2009 11:09 PM
मन के भावों को उकेरती कविता... श्रद्धांजलि
September 25, 2009 2:05 AM
इस नश्वर शरीर को एक दिन संसार से विदा लेनी ही पड़ती है.श्रद्दांजलि अर्पित.....आपकी रचना इतनी ऐसी है की पढ़ कर मन भावुक हो जाता है...
September 25, 2009 9:34 AM
neelam mishra
: aachary ji namaskaar
baht dukh hua jaankar aapke pita ji
ab is duniya me nahi hain
hmaari samvednaayen aapke saath hain
ishwar aapko shkti de is dkh ko jhelne ke liye
sad demise.
Respected Sanjeev Chachaji,
We are deeply saddened and shocked to know about the demise of our very dear and respected Babaji. I can not believe it.
Babaji had always been such an immense source of strength for all of us. His love towards all of us was unparalleled and boundless.
Since the time we all became close in Bilaspur, the profound love and care that we got from respected Dadiji and Babaji has always glowed in our hearts and constantly inspired us.
I always looked up to them for their blessings and guidance. They taught me and all of us so much - not by their words but by their actions and thoughts.
Babaji was a great soul, one of those whom we are rarely blessed to come close to in this world. He guided everyone and always wished everyone well despite the toughest times. I am sure God Almighty would have blessed both Babaji and Dadiji with a place very close to Him.
Still, I feel so much orphaned now, after they have left. May God give you and all of us in the family the strength to bear this irreparable loss.
In prayers and with deepest regards to everyone there at home,
yours affectionately,
Rajiv Malini
Sarvesh and Ratna
शरद कोकास …
संजीव जी के पिताश्री को मै अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ । उनका आशीष हम सभी पर बना रहे यह कामना । -शरद कोकास
September 25, 2009 9:49 AM
रज़िया "राज़" …
आचार्यजी के पिता को मेरी भावभीनी श्रध्धांजली।
आज मेरा मन भी रोने को करता है क्यों? पता है?
मेरे ब्लोग पर पधारें। जवाब आप ही मिल जायेगा।
September 25, 2009 9:58 AM
संजीव जी के पिताश्री को
-
मेरी श्रद्धासुमन अर्पित है.
September 25, 2009 9:59 AM
विनम्र श्रधांजली
September 25, 2009 10:11 AM
Murari Pareek …
उनके आदर्श हमेशां आपके साथ रहेंगे !!
September 25, 2009 5:18 PM
श्रधांजली !!
September 25, 2009 6:21 PM
पिता कहीं नहीं जाते हैं
वे हमारी यादों में
सदा के लिए बस जाते हैं .....
विनम्र श्रद्धांजलि .......
September 25, 2009 8:07 PM
आपके पूज्य पिताश्री को हमारी ओर से
भाव-भीनी विनम्र श्रद्धाञ्जलि!
September 25, 2009 11:03 PM
आचार्य जी!
मौन और निशब्द.
सादर
मुकेश कुमार तिवारी
इस बार साहित्य शिल्पी पर आकर दुखी मन से जा रहा हूं...
September 25, 2009 10:37 PM
गुरु जी,
आपका ह्रदय अपने पिता के अभाव से कितना व्यथित है और उनके लिये कितना बिलख रहा है यह आपके शब्दों की अभिव्यक्ति से ही प्रतीत हो रहा है. संसार की कोई भी वस्तु माता-पिता के अभाव को पूरा नहीं कर पाती है यह दुख मैं भी जानती हूँ. आपके दुःख में हम सभी संवेदनशील हैं और प्रार्थना करते हैं की ईश्वर आपको व सभी परिवारी जनों को पिता के अभाव को झेलने की शक्ति प्रदान करें व पिता श्री की आत्मा को शांति प्राप्त हो.
September 25, 2009 3:43 AM
आचार्य जी,
इस दु:खद अवसर पर हम सब आपके साथ हैं। पीड़ा में निकला आपका एक-एक शब्द दिल में न जाने कितने टीसों को जन्म दे रहा है। भगवान आपके पिताश्री की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।
-विश्व दीपक
September 25, 2009 3:57 PM
आचार्य जी,
आपके पूज्य पिता की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं. आपके दर्द की अनुभूति आपके शब्दों के द्वारा अनुभव कर रहे हैं. इस कठिन समय में हमारी संवेदनाएं आपके साथ हैं.
शोक की घडी में भी आपने अपने कर्तव्य को निभाते हुए, हम सब के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. आपकी कर्तव्य भावना को कोटिशः नमन.
September 25, 2009 8:12 PM
salil ji, aapki kavita ne maa aur pita ji ki yaad dila di. sach mann ko chhu gayee panktiyaa.
drnirupama.blogspot.com
September 26, 2009 4:34 PM
salil ji maa pita ke liye jo shabd likhe aapne mujhey bhav vibhor kar gaye. sach hi likha aapne PAR SEWA KE MANTAVYA HAMMARE NAHI RAHE ASHOK KHATRI
September 26, 2009 8:03 PM
Shanno Aggarwal, UK ✆ मुझे
विवरण दिखाएँ ११:१९ PM (8 मिनट पहले)
आदरणीय गुरु जी,
आपकी ईमेल पाकर एक तरफ हर्ष हुआ और दूसरी तरफ आपके पिता जी के बारे में सोचकर मन अति दुखित है. विधि के विधान को कोई नहीं टाल सकता है. क्या आपके पिता जी बीमार थे पहले से? इस बारे में मैंने अचानक ही कक्षा में आकर जाना था.
और आपके लिखे दशहरे के दोहे बहुत सुंदर हैं. मेरा हार्दिक धन्यबाद स्वीकार कीजिये.
आपके दर्द की अनुभूति से मैंने इस उल्लाल दोहे के बाद एक सोंनेट भी लिखा है:
लेख नहीं विधि का टले, जतन हम कर लें कोई
सुलग उठे अचानक से, पीड़ा ह्रदय में सोई.
शन्नो
A Sonnet
You have recently lost your dearest father
It must have been so agonising to you
Here people come and go and things alter
But we find inner strength to sail through.
The soul departs from this world suddenly
Leaving its loved ones all crying behind
The boundless sorrow then envelopes them
And nothing consoles when people are kind.
Their tears keep flowing and dry up unseen
But the heart aches with tremendous agony
We are nothing but puppets on the screen
Whose strings are held in the hands of destiny.
The cycle of life goes on forever on this earth
The night falls after day and death after birth.
mcgupta44@gmail.com की छवियां हमेशा प्रदर्शित करें
संजीव जी,
आपकी रचना सरल शब्दों में गहन का बोध कराती है.
--ख़लिश
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