माँ सरस्वती के द्वादश नाम
माँ सरस्वती के स्तोत्र, मन्त्र, श्लोक का ज्ञान न हो तो श्रद्धा सहित इन १२ नामों का १२ बार जप करना पर्याप्त है-
हंसवाहिनी बुद्धिदायिनी भारती।
गायत्री शारदा सरस्वती तारती।।
ब्रह्मचारिणी वागीश्वरी! भुवनेश्वरी!
चंद्रकांति जगती कुमुदी लो आरती।।
***
शारद वंदना
१ ममता बनर्जी "मंजरी"
हंसवाहिनी शारदे,तुम्हें नमन शतबार।
विद्या के आलोक से,कर दो जग उजियार।।
विद्यादाता तू कहलाती।
अज्ञानी को पथ दिखलाती।।
तेरे दर पर जो भी आए।
वापस खाली हाथ न जाए।।
दासी तेरे द्वार की,करती विनती आज।
हे माते ममतामयी,रख लो मेरी लाज।।
शरण पड़े हम तेरे द्वारे।
झोली भर दो आज हमारे।।
कृपा करो अब मुझपर मैया।
पार लगा दो मेरी नैया।।
सुन लो माते प्रार्थना,सुन लो करुण पुकार।
रोती बिटिया मंजरी,करो आज उद्धार।।
**
२ पंकज भूषण पाठक"प्रियम्
वर दे! माँ भारती तू वर दे
अहम-द्वेष तिमिर मन हर
शील स्नेह सम्मान भर दे।
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।
बाल अबोध सुलभ मन
अविवेक अज्ञान सब हर ले
जड़ मूढ़ अबूझ सरल मन
बुद्धि विवेक विज्ञान कर् दे।
अनगढ़ अनजान अनल मन
सत्य असत्य का ज्ञान भर दे।
नव संचार विचार नव नव मन
नव प्रकाश नव विहान कर दे।
वर दे! माँ भारती तू वर दे।
**
३. देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
जोय माँ सरस्वती............
जोय माँ सरोस्वती,आमरा तोमार सन्तान।
तोमार पूजोर नियमें,आमरा ओज्ञान ।
अंधकारे आछी आमरा,नेई कोनो ज्ञान।
तोमारी कृपाय होबे,आमादेर कोल्याण।
तोमार विनार आवाज़,केड़े नेय ध्यान।
तोमार हातेर बोय,बाडाय आमादेर ज्ञान।
हांस तोमार बाहोन,श्वेत बोस्त्रो पोरिधान।
आमरा चाई तोमार काछे,बुद्धि,विद्यादान।
पद्मासने शोभितो,दाउ एमोन बोरदान।
जीवन काटुक"आनंद"ए,कोरी तोमार गुणोगान।
**
४ अंजुमन 'आरज़ू'
आधार छंद,-पीयूष वर्ष छंद
मापनी 2122 2122 212
सरस्वती वंदना
शारदे यश विद्या बुद्धि ज्ञान दे ।
पर तनिक भी मत हमें अभिमान दे ॥
श्री कलाधारा सुनासा वरप्रदा ।
शारदा ब्राह्मी सुभद्रा श्रीप्रदा ।
भारती त्रिगुणा शिवा वागीश्वरी ।
गोमती कांता परा भुवनेश्वरी ॥1॥
पुण्य इस भारत धरा पर ध्यान दे ॥
शारदे यश विद्या बुद्धि ज्ञान दे ।
पर तनिक भी मत हमें अभिमान दे ॥
ज्ञानमुद्रा पीत विमला मालिनी ।
वैष्णवी भामा रमा सौदामिनी ॥
विंध्यवासा धूम्रलोचनमर्दना।
चित्रमान्यविभूषिता पद्मासना ॥2॥
लोकहित आलोक अंशुमान दे ॥
शारदे यश विद्या बुद्धि ज्ञान दे ।
पर तनिक भी मत हमें अभिमान दे ॥
चंद्रवदना चंद्रलेखविभूषिता ।
ज्ञानमुद्रा अंबिका सुरपूजिता ।
ब्रह्मजाया कालरात्रि स्वरात्मिका ।
चंद्रकांता ब्रह्मविष्णुशिवात्मिका ॥3॥
ज्ञान कितना है न इसका ज्ञान दे ॥
शारदे यश विद्या बुद्धि ज्ञान दे ।
पर तनिक भी मत हमें अभिमान दे ॥
**
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 6 अक्टूबर 2021
सरस्वती द्वादश नाम, सरस्वती वंदना
चिप्पियाँ Labels:
सरस्वती द्वादश नाम,
सरस्वती वंदना
नवगीत
नवगीत
*
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
छायद तरु
नर बना कुल्हाड़ी
खोद रहा अरमान-पहाड़ी
हुआ बस्तियों में जल-प्लावन
मनु! तूने ही बात बिगाड़ी।
अनगिन काटे जंगल तूने
अब तो पौधा नया लगा
*
टेर; नहीं
गौरैया आती
पवन न गाती पुलक प्रभाती
धुआँ; धूल; कोलाहल बेहद
सौंप रहे जहरीली थाती
अय्याशी कचरे की जननी
नाता एक न नेह पगा
*
रिश्तों की
रजाई थी दादी
बब्बा मोटी धूसर खादी
नाना-नानी खेत-तलैया
लगन-परिश्रम से की शादी
सुविधा; भोग-विलास मिले जब
संयम से तब किया दगा
*
रखा काम से
काम काम ने
छोड़ दिया तब सिया-राम ने
रिश्ते रिसती झोपड़िया से
बेच-खरीदी करी दाम ने
नाम हुआ पद; नाम न कोई
संग रहा न हुआ सगा
*
दोष तर्जनी
सबको देती
करती मोह-द्रोह की खेती
संयम; त्याग; योग अंगुलियाँ
कहें; न भूलो चिंतन खेती
भौंरा बना नचाती दुनिया
मन ने तन को 'सलिल' ठगा
***
*
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
छायद तरु
नर बना कुल्हाड़ी
खोद रहा अरमान-पहाड़ी
हुआ बस्तियों में जल-प्लावन
मनु! तूने ही बात बिगाड़ी।
अनगिन काटे जंगल तूने
अब तो पौधा नया लगा
*
टेर; नहीं
गौरैया आती
पवन न गाती पुलक प्रभाती
धुआँ; धूल; कोलाहल बेहद
सौंप रहे जहरीली थाती
अय्याशी कचरे की जननी
नाता एक न नेह पगा
*
रिश्तों की
रजाई थी दादी
बब्बा मोटी धूसर खादी
नाना-नानी खेत-तलैया
लगन-परिश्रम से की शादी
सुविधा; भोग-विलास मिले जब
संयम से तब किया दगा
*
रखा काम से
काम काम ने
छोड़ दिया तब सिया-राम ने
रिश्ते रिसती झोपड़िया से
बेच-खरीदी करी दाम ने
नाम हुआ पद; नाम न कोई
संग रहा न हुआ सगा
*
दोष तर्जनी
सबको देती
करती मोह-द्रोह की खेती
संयम; त्याग; योग अंगुलियाँ
कहें; न भूलो चिंतन खेती
भौंरा बना नचाती दुनिया
मन ने तन को 'सलिल' ठगा
***
चिप्पियाँ Labels:
नवगीत सवेरा
मुक्तक
मुक्तक
मेघ आकर बरसते हैं, अरुण लगता लापता है।
फिक्र क्यों?, करना समय पर क्या कहाँ उसको पता है?
नित्य उगता है, ढले भी पर नहीं शिकवा करे-
नर्म दिल वह, हम कहें कठोर क्या उसकी खता है।।
*
पुष्प सम पुष्पा हमेशा मुस्कुराए
मन मिलन के, वन सृजन के गीत गाए
बहारें आ राह में स्वागत करें नित-
लक्ष्य पग छू कर खुदी को धन्य पाए
*
मित्रों से पाया, दिया मित्रों को उपहार।
'सलिल' नर्मदा जल बना, यह जीवन त्यौहार।।
पाकर संग ब्रजेश को, लगता हुआ नरेंद्र
नव प्रभात संतोष दे, अकलुष हो ब्यौहार।।
*
मेघ आकर बरसते हैं, अरुण लगता लापता है।
फिक्र क्यों?, करना समय पर क्या कहाँ उसको पता है?
नित्य उगता है, ढले भी पर नहीं शिकवा करे-
नर्म दिल वह, हम कहें कठोर क्या उसकी खता है।।
*
पुष्प सम पुष्पा हमेशा मुस्कुराए
मन मिलन के, वन सृजन के गीत गाए
बहारें आ राह में स्वागत करें नित-
लक्ष्य पग छू कर खुदी को धन्य पाए
*
मित्रों से पाया, दिया मित्रों को उपहार।
'सलिल' नर्मदा जल बना, यह जीवन त्यौहार।।
पाकर संग ब्रजेश को, लगता हुआ नरेंद्र
नव प्रभात संतोष दे, अकलुष हो ब्यौहार।।
*
मुक्तक रजनीश
मुक्तक
रजनीश
*
साथ है रजनीश तो फिर छू सकें आकाश मुमकिन।
बाँधते जो तोड़ पाएँ हम सभी वे पाश मुमकिन।।
'सलिल' हो संजीव आओ! प्रदूषण से हम बचाएँ-
दीन हितकारी बने सरकार प्रभु हो काश मुमकिन।।
*
रजनीश
*
साथ है रजनीश तो फिर छू सकें आकाश मुमकिन।
बाँधते जो तोड़ पाएँ हम सभी वे पाश मुमकिन।।
'सलिल' हो संजीव आओ! प्रदूषण से हम बचाएँ-
दीन हितकारी बने सरकार प्रभु हो काश मुमकिन।।
*
प्रभाती
प्रभाती
जागिए गणराज होती भोर
कर रहे पंछी निरंतर शोर
धोइए मुख, कीजिए झट स्नान
जोड़कर कर कर शिवा-शिव ध्यान
योग करिए दूर होंगे रोग
पाइए मोदक लगाएँ भोग
प्रभु! सिखाएँ कोई नूतन छंद
भर सके जग में नवल मकरंद
मातु शारद से कृपा-आशीष
पा सलिल सा मूर्ख बने मनीष
***
जागिए गणराज होती भोर
कर रहे पंछी निरंतर शोर
धोइए मुख, कीजिए झट स्नान
जोड़कर कर कर शिवा-शिव ध्यान
योग करिए दूर होंगे रोग
पाइए मोदक लगाएँ भोग
प्रभु! सिखाएँ कोई नूतन छंद
भर सके जग में नवल मकरंद
मातु शारद से कृपा-आशीष
पा सलिल सा मूर्ख बने मनीष
***
विमर्श मैया की स्वर्ण समाधि
विमर्श
मैया की स्वर्ण समाधि
बचपन में सुना था ईश्वर दीनबंधु है, माँ पतित पावनी हैं।
आजकल मंदिरों के राजप्रासादों की तरह वैभवशाली बनाने और सोने से मढ़ देने की होड़ है।
माँ दुर्गा को स्वर्ण समाधि देने का समाचार विचलित कर गया।
इतिहास साक्षी है देवस्थान अपनी अकूत संपत्ति के कारण ही लूट को शिकार हुए।
मंदिरों की जमीन-जायदाद पुजारियों ने ही खुर्द-बुर्द कर दी।
सनातन धर्म कंकर कंकर में शंकर देखता है।
वैष्णो देवी, विंध्यवासिनी, कामाख्या देवी आदि प्राचीन मंदिरों में पिंड या पिंडियाँ ही विराजमान हैं।
परम शक्ति अमूर्त ऊर्जा है किसी प्रसूतिका गृह में उसका जन्म नहीं होता, किसी श्मशान घाट में उसका दाह भी नहीं किया जा सकता।
थर्मोडायनामिक्स के अनुसार इनर्जी कैन नीदर बी क्रिएटेड नॉर बी डिस्ट्रायड, कैन ओनली बी ट्रांसफार्म्ड।
अर्थात ऊर्जा का निर्माण या विनाश नहीं केवल रूपांतरण संभव है।
ईश्वर तो परम ऊर्जा है, उसकी जयंती मनाएँ तो पुण्यतिथि भी मनानी होगी।
निराकार के साकार रूप की कल्पना अबोध बालकों को अनुभूति कराने हेतु उचित है किंतु मात्र वहीं तक सीमित रह जाना कितना उचित है?
माँ के करोड़ों बच्चे बाढ़ में सर्वस्व गँवा चुके हैं, अर्थ व्यवस्था के असंतुलन से रोजगार का संकट है, सरकारें जनता से सहायता हेतु अपीलें कर रही हैं और उन्हें चुननेवाली जनता का अरबों-खरबों रुपया प्रदर्शन के नाम पर स्वाहा किया जा रहा है।
एक समय प्रधान मंत्री को अनुरोध पर सोमवार अपराह्न भोजन छोड़कर जनता जनार्दन ने सहयोग किया था। आज अनावश्यक साज-सज्जा छोड़ने के लिए भी तैयार न होना कितना उचित है?
क्या सादगीपूर्ण सात्विक पूजन कर अपार राशि से असंख्य वंचितों को सहारा दिया जाना बेहतर न होगा?
संतानों का घर-गृहस्थी नष्ट होते देखकर माँ स्वर्णमंडित होकर प्रसन्न होंगी या रुष्ट?
*
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दुर्गा,
मैया की स्वर्ण समाधि,
विमर्श
दोहा सलिला
दोहा सलिला
प्रात स्वागत
*
स्वाति-सलिल की बूँद से, को सीपी की दरकार।
पानी तब ही ले सके, मोती का आकार।।
*
त्रिगुणात्मकता प्रकृति का, प्राकृत सहज स्वभाव।
एक तत्व भी न्यून तो, रहता शेष अभाव।।
*
छाया छा या शीश पर, कुहरा बरखा घाम।
पड़े झेलना हो सखे!, पल में काम तमाम।।
*
वीतराग मिथलेश पर, जान जानकी मोह।
मौन-शांत कब तक सहें, कहिए विरह-विछोह?
*
बुद्धि विनीता ही रहे, करता ग्यान घमंड।
मन न मुकुल हो सके तो, समझें पाया दंड।।
*
वसुंधरा बिन दे सके, कहें कौन आधार?
पग भू पर रख उड़ नहीं, नभ में खो आधार।।
*
बिंदु बिना रेखा नहीं, मिल गढ़ती हैं चित्र।
सीधी रह मत वक्र हो, रेखा बनकर मित्र।।
*
मंडन-मंडल बिन कहाँ, मंडला गहे महत्व।
नेह नर्मदा नहा ले, मूल यही है तत्व।।
*
नवधा भक्ति न कर्म बिन, आलस करे न लोक।
बिन वेतन मजदूर रवि, दे दिनकर आलोक।।
६-१०-२०१९
***
प्रात स्वागत
*
स्वाति-सलिल की बूँद से, को सीपी की दरकार।
पानी तब ही ले सके, मोती का आकार।।
*
त्रिगुणात्मकता प्रकृति का, प्राकृत सहज स्वभाव।
एक तत्व भी न्यून तो, रहता शेष अभाव।।
*
छाया छा या शीश पर, कुहरा बरखा घाम।
पड़े झेलना हो सखे!, पल में काम तमाम।।
*
वीतराग मिथलेश पर, जान जानकी मोह।
मौन-शांत कब तक सहें, कहिए विरह-विछोह?
*
बुद्धि विनीता ही रहे, करता ग्यान घमंड।
मन न मुकुल हो सके तो, समझें पाया दंड।।
*
वसुंधरा बिन दे सके, कहें कौन आधार?
पग भू पर रख उड़ नहीं, नभ में खो आधार।।
*
बिंदु बिना रेखा नहीं, मिल गढ़ती हैं चित्र।
सीधी रह मत वक्र हो, रेखा बनकर मित्र।।
*
मंडन-मंडल बिन कहाँ, मंडला गहे महत्व।
नेह नर्मदा नहा ले, मूल यही है तत्व।।
*
नवधा भक्ति न कर्म बिन, आलस करे न लोक।
बिन वेतन मजदूर रवि, दे दिनकर आलोक।।
६-१०-२०१९
***
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दोहा सलिला,
सवेरा दोहे
सोमवार, 4 अक्टूबर 2021
भारत को जानें अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच
आदरणीय ममता जी
वंदे भारत-भारती।
"अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" के संबंध में अभी ही भावना सक्सेना जी से जानकारी मिली। मैंने प्रयास किय पर फोन नहीं जुड़ सका।
आपके सारस्वत अनुष्ठान से जुड़कर उसे पूर्ण करना चाहूँगा।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों से भली-भाँति परिचित हूँ। इनमें से किसी भी या सभी के संदर्भ में लेखा कर सकता हूँ।
छंद मेरा प्रिय विषय है। दो दशकों में ५०० से अधिक रचनाकारों को छंद लिखना सिखाया है तथा ३०० से अधिक नए छंद बनाए हैं। चौपाई छंद सरस, सहज और लोकप्रिय छंदों में से एक है। प्रस्तुत हैं सद्य रचित चौपाई-
प्रिय ममता जी नमन आपको। अर्पित शब्दित सुमन आपको।।
अनुष्ठान यह मन को भाया। इसीलिए यह पत्र पठाया।।
कहा भावना जी ने मुझसे। बनूँ सहायक झटपट जिससे।।
चौपाई है छंद मनोहर। कवि-पाठक का मन लेता हर।।
छंद मुझे प्रिय लगा सदा ही। सीख रहा, कुछ लगे सधा भी।।
माँ शारद की कृपा अपरिमित। है सामर्थ्य किंतु मम सीमित।।
तदपि प्रयास निरंतर करता। मन न छंद से किंचित भरता।।
मध्य प्रदेश ह्रदय भारत का। है रमणीक सुहृद मन हरता।।
बसा जबलपुर नगरी में मैं। नदी नर्मदा विमल बही है।।
करें आप भी परिचय किंचित। सुख पाएँ होगा मन प्रमुदित।।
जबलपुर में शुभ प्रभात - (दोहा)
*
रेवा जल में चमकतीं, रवि-किरणें हँस प्रात।
कहतीं गौरीघाट से, शुभ हो तुम्हें प्रभात।।१।।
*
सिद्धघाट पर तप करें, ध्यान लगाकर संत।
शुभप्रभात कर सूर्य ने, कहा साधना-तंत।।२।।
*
खारी घाट करा रहा, भवसागर से पार।
सुप्रभात परमात्म से, आत्मा कहे पुकार।।३।
*
साबुन बिना नहाइए, करें नर्मदा साफ़।
कचरा करना पाप है, मैया करें न माफ़।।४।।
*
मिलें लम्हेटा घाट में, अनगिन शिला-प्रकार।
देख, समझ पढ़िये विगत, आ आगत के द्वार।।५।।
*
है तिलवारा घाट पर, एक्वाडक्ट निहार।
नदी-पाट चीरे नहर, सेतु कराए पार।।६।।
*
शंकर उमा गणेश सँग, पवनपुत्र हनुमान।
देख न झुकना भूलना, हाथ जोड़ मति मान।।७।।
*
पोहा-गरम जलेबियाँ, दूध मलाईदार।
सुप्रभात कह खाइए, कवि हो साझीदार।।८।।
*
धुआँधार-सौन्दर्य को, देखें भाव-विभोर।
सावधान रहिए सतत, फिसल कटे भव-डोर।।९।।
*
गौरीशंकर पूजिए, चौंसठ योगिन सँग।
भोग-योग संयोग ने, कभी बिखेरे रंग।।१०।।
*
नौकायन कर देखिये, संगमरमरी रूप।
शिखर भुज भरे नदी को, है सौन्दर्य अनूप।११।।
*
बहुरंगी चट्टान में, हैं अगणित आकार।
भूलभुलैयाँ भुला दे, कहाँ गई जलधार?।१२।।
*
बंदरकूदनी देख हो, लघुता की अनुभूति।
जब गहराई हो अधिक, करिए शांति प्रतीति।।१३।।
*
कमल, मगर, गज, शेर भी, नहीं रहे अब शेष।
ध्वंस कर रहा है मनुज, सचमुच शोक अशेष।।१४।।
*
मदनमहल अवलोकिए, गा बम्बुलिया आप।
थके? करें विश्राम चल, सुख जाए मन-व्याप।।१५।।
*
शेष आपसे प्रत्युत्तर मिलने पर
शुभाकांक्षी
संजीव
(आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल')
९४२५१८३२४४
salil.sanjiv@gmail.com
divyanarmada.in
+255 787 774 342 Bhawna ने आज 3:36 PM बजे भेजा आपका नम्बर भी भेज दिया

मित्रों नमस्कार,
इस बार "अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" द्वारा भारत के सभी प्रदेशों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को विषय बना कर काव्य अनुष्ठान का आयोजन निश्चित हुआ है।
1. इस "भारत को जानें" परियोजना में हमें सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों पर रचनाएँ लिखनी है। रचनाएँ हिन्दी भाषा में चौपाई छन्द में की जानी हैं।
2. प्रत्येक राज्य पर रचना कार्य हेतु 7 लोगों का चयन किया जाएगा। चयनित रचनाकार निम्नलिखित में से किसी एक आवंटित वर्ग में वर्णित बिन्दुओं पर संबंधित राज्य के विषय में चौपाइयाँ लिखेंगे।
वर्ग 1 जनसांख्यिकी संजीव वर्मा 'सलिल' ९४२५१ ८३२४४
1-राज्य की उत्पत्ति, स्थापना, आधार
2-राजधानी
3-जनसंख्या
4-आर्थिक स्थिति
5-शिक्षा का स्तर
6-धर्म
7-मंडल तथा जिले
8-नगर तथा कस्बे आदि-आदि
वर्ग 2 (संस्कृति, कला, साहित्य )
9 -लोकगीत
10-लोकनृत्य
11-लोकभाषा
12-खानपान
13. व्रत
14-त्यौहार
15 वास्तुकला
16 मूर्तिकला
17 वेशभूषा
18 साहित्य आदि-आदि
वर्ग 3 (उपलब्धियाँ)
19- उत्पादन में प्रमुख
20 प्रमुख व्यवसाय
21. निर्माण में सर्वोपरि
22-स्मारक
23. नई खोज
24.प्रमुख बातें
25. मुख्य उपलब्धियां आदि
वर्ग 4 ( इतिहास) अरविन्द श्रीवास्तव दतिया ९४२५७ २६९०७
26 ऐतिहासिक घटनाएँ
27. मेला ,कुम्भ
28.राजा, महाराजा
29 पौराणिक कथाएँ
30. ऐतिहासिक यात्रा आदि-आदि
वर्ग 5-(प्राकृतिक सौन्दर्य)
31-पशु
32 -पक्षी
33-पुष्प
34-वृक्ष
35- पर्यटन स्थल
36-झीलें
37 नदियां आदि-आदि
वर्ग 6 ( भौगोलिक संरचना) अखिलेश सक्सेना, कासगंज ८४३३० ९८८११
38-बांध
39 समुन्द्र
40-जलवायु
41. प्रदेश की सीमाएं
42 पहाड़ / पठार
43 खनिज
44 मिट्टी आदि-आदि
वर्ग 7 (प्रमुख व्यक्तित्व) रमेश श्रीवास्तव 'चातक' सिवनी
45- खिलाड़ी
46 साहित्यकार
47 संत महात्मा
48- सेनानी
49. नेता
50. अभिनेता
51. गायक
52.नर्तकी
53. चित्रकार आदि-आदि
3. उपर्युक्त 7 रचनाकारों में से किसी एक को राज्य समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। राज्य समन्वयक से निम्नलिखित कार्यों की अपेक्षा है:
क- एक आवंटित वर्ग पर चौपाइयाँ लिखनी
ख- अन्य वर्गों पर रचना हेतु रचनाकारों का डॉ ममता सैनी जी के परामर्श के साथ चयन
ग- उनसे सूचनाओं का आदान प्रदान
घ- उनसे समय पर रचनाओं का एकत्रीकरण करना
ड़- चौपाइयों की छंदबद्धता की जाँच करना और उनमें वर्णित तथ्यों की भी जाँच करना। यदि आवश्यक हो तो सुधार करवाना।
च- सभी रचनाओं को निश्चित समय-सीमा में रचनाकारों की फोटो, नाम और उनके स्थान के उल्लेख के साथ दिए गए गूगल फॉर्म पर अपलोड करना।
4. चौपाइयों के तथ्यों के सत्यापन और सम्पूर्णता सुनिश्चित करने के लिए राज्य विशेष के जानकार से रचना में वर्णित तथ्यों का सत्यापन कराया जाना है। यदि कोई अपूर्णता या त्रुटि हो तो उन्हें सुधारा भी जाना है।
5. जो भी इस आयोजन में तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, राज्य समन्वयक या रचनाकार की भूमिका में योगदान करने के इच्छुक हैं और चौपाई लिखने में पारंगत हैं, वे 10 जून तक नीचे दिए गए google form
https://forms.gle/1ZGcvJpwhNQFZSn8A
को भर कर भेजें और साथ ही आगे की जानकारी के लिए इस कार्यक्रम से संबंधित whatsapp समूह
https://chat.whatsapp.com/B8TzFlta4aWHhHKKBLc8C7
को जरूर जॉइन करें। चयन हेतु प्रविष्टियाँ केवल गूगल फॉर्म के माध्यम से स्वीकार की जाएँगीं।
6. सभी राज्यों के तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, रचनाकारों और समन्वयकों को उन्हीं के राज्य हेतु प्राथमिकता दी जानी है, किन्तु सम्बन्धित राज्य में हिंदी काव्य रचनाकारों की उपलब्धता के आधार पर भी विचार किया जाएगा।
7. इस संग्रह का प्रकाशन किए जाने का प्रस्ताव है और *आशा है इस आयोजन/पुस्तक को विश्व कीर्तिमान का स्थान प्राप्त होगा।*
*इस काव्य संग्रह की पुस्तक को पुस्तकालयों में शामिल कराए जाने का भी प्रयास रहेगा।*
*संग्रह पुस्तक में सभी रचनाकारों के नाम और उनकी फोटो के साथ रचनाएँ प्रकाशित की जानी है, साथ ही तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक और समन्वयकों का उल्लेख भी किया जाएगा।*
8. सभी रचनाकार, समन्वयक और तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक "अन्तरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच" के "भारत को जानें" रचना प्रस्तुति कार्यक्रम में आभासी पटल पर रचनाओं की प्रस्तुति हेतु भी आमंत्रित किए जाएँगे। आप सभी
नीचे दिए गए
नीचे दिए गएhttps://www.facebook.com/groups/189600548966388/?ref=share
लिंक पर क्लिक कर अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच को जॉइन करें।
9- कार्यक्रम के आयोजन या पुस्तक के प्रकाशन के लिए किसी भी व्यक्ति से कोई धनराशि नहीं ली जाएगी और न ही तथ्य सत्यापक एवं त्रुटि सुधारक, समन्वयकों या रचनाकारों को हमारी ओर से किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक या मानदेय ही दिया जाएगा।
डॉ ममता सैनी
संस्थापिका
अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच
तंज़ानिया
चिप्पियाँ Labels:
अंतरराष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच,
भारत को जानें,
ममता सैनी
शब्द संधान * तौलिया
शब्द संधान
*
तौलिया
क्या आप जानते हैं कि #हिंदी शब्द तौलिया तौलिया (= तौलिया) की उत्पत्ति एक #जर्मनिक भाषा में हुई है और इसे #पुर्तगाली के माध्यम से उधार लिया गया था? तौलिया तौलिया पुर्तगाली toalha से है <पुराना पुर्तगाली toalla < Old Occitan toalha < Frankish *þwahila < प्रोटो-जर्मनिक *þwahilō
तौलिया के समकक्ष कुछ हिंदी शब्द गमछा जो संस्कृत से उत्पन्न है। अँगोछा < Sanskrit अङ्गोच्छ। इस संदर्भ में अंग + रखा = अँगरखा, अंगवस्त्र भी विचारणीय है।
*
चिप्पियाँ Labels:
शब्द संधान तौलिया
गया तीर्थ
गया तीर्थ की कथा
ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उस दौरान उनसे असुर कुल में गया नामक असुर की रचना हो गई. गया असुरों के संतान रूप में पैदा नहीं हुआ था इसलिए उसमें आसुरी प्रवृति नहीं थी. वह देवताओं का सम्मान और आराधना करता था।
उसके मन में एक खटका था. वह सोचा करता था कि भले ही वह संत प्रवृति का है लेकिन असुर कुल में पैदा होने के कारण उसे कभी सम्मान नहीं मिलेगा. इसलिए क्यों न अच्छे कर्म से इतना पुण्य अर्जित किया जाए ताकि उसे स्वर्ग मिले।
गयासुर ने कठोर तप से भगवान श्री विष्णुजी को प्रसन्न किया. भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने मांगा- आप मेरे शरीर में वास करें. जो मुझे देखे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएं. वह जीव पुण्यात्मा हो जाए और उसे स्वर्ग में स्थान मिले।
भगवान से वरदान पाकर गयासुर घूम-घूमकर लोगों के पाप दूर करने लगा. जो भी उसे देख लेता उसके पाप नष्ट हो जाते और स्वर्ग का अधिकारी हो जाता।
इससे यमराज की व्यवस्था गड़बड़ा गई. कोई घोर पापी भी कभी गयासुर के दर्शन कर लेता तो उसके पाप नष्ट हो जाते. यमराज उसे नर्क भेजने की तैयारी करते तो वह गयासुर के दर्शन के प्रभाव से स्वर्ग मांगने लगता. यमराज को हिसाब रखने में संकट हो गया था।
यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि अगर गयासुर को न रोका गया तो आपका वह विधान समाप्त हो जाएगा जिसमें आपने सभी को उसके कर्म के अनुसार फल भोगने की व्यवस्था दी है. पापी भी गयासुर के प्रभाव से स्वर्ग भोंगेगे।
ब्रह्माजी ने उपाय निकाला. उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे ज्यादा पवित्र है इसलिए तुम्हारी पीठ पर बैठकर मैं सभी देवताओं के साथ यज्ञ करुंगा।
उसकी पीठ पर यज्ञ होगा यह सुनकर गया सहर्ष तैयार हो गया. ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ पत्थर से गया को दबाकर बैठ गए. इतने भार के बावजूद भी वह अचल नहीं हुआ. वह घूमने-फिरने में फिर भी समर्थ था।
देवताओं को चिंता हुई. उन्होंने आपस में सलाह की कि इसे श्री विष्णु ने वरदान दिया है इसलिए अगर स्वयं श्री हरि भी देवताओं के साथ बैठ जाएं तो गयासुर अचल हो जाएगा. श्री हरि भी उसके शरीर पर आ बैठे।
श्री विष्णु जी को भी सभी देवताओं के साथ अपने शरीर पर बैठा देखकर गयासुर ने कहा- आप सब और मेरे आराध्य श्री हरि की मर्यादा के लिए अब मैं अचल हो रहा हूं. घूम-घूमकर लोगों के पाप हरने का कार्य बंद कर दूंगा।
लेकिन मुझे चूंकि श्री हरि का आशीर्वाद है इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकता इसलिए श्री हरि आप मुझे पत्थर की शिला बना दें और यहीं स्थापित कर दें।
श्री हरि उसकी इस भावना से बड़े खुश हुए. उन्होंने कहा- गया अगर तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो मुझसे वरदान के रूप में मांग लो।
गया ने कहा- " हे नारायण मेरी इच्छा है कि आप सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बन जाए."
श्री विष्णु ने कहा- गया तुम धन्य हो. तुमने लोगों के जीवित अवस्था में भी कल्याण का वरदान मांगा और मृत्यु के बाद भी मृत आत्माओं के कल्याण के लिए वरदान मांग रहे हो. तुम्हारी इस कल्याणकारी भावना से हम सब बंध गए हैं।
भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि करने से मृत आत्माओं को पीड़ा से मुक्ति मिलेगी. क्षेत्र का नाम गयासुर के अर्धभाग गया नाम से तीर्थ रूप में विख्यात होगा. मैं स्वयं यहां विराजमान रहूंगा।
इस तीर्थ से समस्त मानव जाति का कल्याण होगा।साथ ही वहा भगवान "श्री विष्णुजी* ने अपने पेर का निशान स्थापित किया जो आज भी वहा के मंदिर मे दर्शनीय हे | गया विधि के अनुसार श्राद्ध फल्गू नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में व अक्षयवट के नीचे किया जाता है। वह स्थान बिहार के गया में हुआ जहां श्राद्ध आदि करने से पितरों का कल्याण होता हैl
पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की, यह बताना उतना ही कठिन है जितना कि भारतीय धर्म-संस्कृति के उद्भव की कोई तिथि निश्चित करना। परंतु स्थानीय पंडों का कहना है कि सर्व प्रथम सतयुग में ब्रह्माजी ने पिंडदान किया था।
महाभारत के 'वन पर्व' में भीष्म पितामह और पांडवों की गया-यात्रा का उल्लेख मिलता है। श्रीराम ने महाराजा दशरथ का पिण्ड दान यहीं (गया) में किया था। गया के पंडों के पास साक्ष्यों से स्पष्ट है कि मौर्य और गुप्त राजाओं से लेकर कुमारिल भट्ट, चाणक्य, रामकृष्ण परमहंस व चैतन्य महाप्रभु जैसे महापुरुषों का भी गया में पिंडदान करने का प्रमाण मिलता है। गया में फल्गू नदी प्रायः सूखी रहती है। इस संदर्भ में एक कथा प्रचलित है।
भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीताजी के साथ पिता दशरथ का श्राद्ध करने गयाधाम पहुंचे। श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री लाने वे चले गये। तब तक राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी। फल्गू नदी तट पर अकेली बैठी सीताजी अत्यंत असमंजस में पड़ गई। माता सीताजी ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया।जब भगवान श्री राम आए तो उन्हें पूरी कहानी सुनाई, परंतु भगवान को विश्वास नहीं हुआ।
तब जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था, उन सबको सामने लाया गया। पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु अक्षयवट ने सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रख ली....।
इससे क्रोधित होकर सीताजी ने फल्गू नदी को श्राप दे दिया कि तुम सदा सूखी रहोगी जबकि गाय को मैला खाने का श्राप दिया केतकी के फूल को पितृ पूजन मे निषेध का। वटवृक्ष पर प्रसन्न होकर सीताजी ने उसे सदा दूसरों को छाया प्रदान करने व लंबी आयु का वरदान दिया। तब से ही फल्गू नदी हमेशा सूखी रहती हैं, जबकि वटवृक्ष अभी भी तीर्थयात्रियों को छाया प्रदान करता है। आज भी फल्गू तट पर स्थित सीता कुंड में बालू का पिंड दान करने की क्रिया (परंपरा) संपन्न होती है
लेख: सतत स्थाई विकास और स्वतंत्रता
लेख:
सतत स्थाई विकास और स्वतंत्रता
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
स्थायी-निरंतर विकास : हमारी विरासत
मानव सभ्यता का विकास सतत स्थाई विकास की कहानी है। निस्संदेह इस अंतराल में बहुत सा अस्थायी विकास भी हुआ है किन्तु अंतत: वह सब भी स्थाई विकास की पृष्ठ भूमि या नींव ही सिद्ध हुआ। विकास एक दिन में नहीं होता, एक व्यक्ति द्वारा भी नहीं हो सकता, किसी एक के लिए भी नहीं किया जाता।
'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:।
सर्वे भद्राणु पश्यन्ति, माँ कश्चिद दुःखभाग्भवेद"।।
अर्थात ''सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ्य हों, शुभ देखें सब, दुःख न कहीं हो"
यह वैदिक आदर्श तभी प्राप्त हो सकता है जब विकास, निरंतर विकास, सबकी आवश्यकता पूर्ति हित विकास, स्थाई विकास होता रहे। ऐसा सतत और स्थाई विकास जो मानव की भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और उनके समक्ष उपस्थित होने वाले संकटों और अभावों का पूर्वानुमान कर किया जाए, ही हमारा लक्ष्य हो सकता है।
सनातन वैदिक चिंतनधारा द्वारा प्रदत्त वसुधैव कुटुम्बकम" तथा 'विश्वैक नीड़म्' के मन्त्र ही वर्तमान में 'ग्लोबलाइज्ड विलेज' की अवधारणा का आधार हैं। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्षारंभ के पूर्व ही वैश्विक पटल पर भारतीय नेतृत्व के प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि विश्व ग्राम की संकल्पना साकार होने का श्रीगणेश है।
'सस्टेनेबल डेवलपमेंट अर्थ स्थायी या टिकाऊ विकास से हमारा अभिप्राय विकास ऐसे कार्यों की निरन्तरता से है जो मानव ही नहीं, सकल जीव जंतुओं की भावी पीढ़ियों का आकलन कर, उनकी प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए, वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। दुर्गा सप्तशतीकार कहता है-
'या देवी सर्व भूतेषु प्रकृतिरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'।
पौर्वात्य चिन्तन प्रकृति को 'माँ' और सभी प्राणियों को उसकी संतान मानता है। इसका आशय यही है कि जैसे शिशु माँ का स्तन पान इस तरह करता है कि माँ को कोई क्षति नहीं होती, अपितु उसका जीवन पूर्णता पाता है, वैसे ही मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह करे कि प्रकृति अधिक समृद्ध हो।
भारतीय परंपरा में प्रकृति के अनुकूल विकास की मानता है, प्रकृति के प्रतिकूल विकास की नहीं।
'सस्टेनेबल डवलेपमेन्ट कैन ओनली बी इन एकॉर्डेंस विथ नेचर एन्ड नॉट, अगेंस्ट और एक्सप्लोयटिंग द नेचर।'
प्रकृति माता - मनुष्य पुत्र
स्वयं को प्रकृति पुत्र मानने की अवधारणा ही पृथ्वी, नदी, गौ और भाषा को माता मानने की परंपरा बनकर भारत के जान-जन के मन में बसी है। गाँवों में गरीब से गरीब परिवार भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी बनाकर उन्हें खिलाते हैं। देहरी से भिक्षुक को खाली हाथ नहीं लौटाते। आँवला, नीम, पीपल, बेल, तुलसी, कमल, दूब, महुआ, धान, जौ, लाई, आदि पूज्यनीय हैं। नर्मदा, गंगा, यमुना, क्षिप्रा आदि नदियाँ पूज्य हैं। नर्मदा कुम्भ, गंगा दशहरा, यमुना जयंती आदि पर्व मनाये जाते हैं। लोक पर्व पोला पर पशुधन का पूजन किया जाता है। आँवला नवमी, तुलसी जयंती आदि लोक पर्व मनाये जाते हैं। नीम व जासौन को देवी, बेल व धतूरा को शिव, कदंब व करील को कृष्ण, कमल व धान को लक्ष्मी, हरसिंगार को विष्णु से जोड़कर पूज्यनीय कहा गया है। यही नहीं पशुओं और पक्षियों को भी देवी-देवताओं से संयुक्त किया गया ताकि उनका शोषण न कर, उनका ध्यान रखा जाए। बैल, सर्प व नीलकंठ को शिव, शेर व बाघ को देवी, राजहंस व मोर को सरस्वती, हाथी को लक्ष्मी, मोर को कृष्ण आदि देवताओं के साथ संबद्ध बताया गया ताकि उनका संरक्षण किया जाता रहे। यही नहीं हनुमान जी को वायु, लक्ष्मी जी को जल, पार्वती जी को पर्वत, सीता जी भूमि की संतान कहा गया ताकि जन सामान्य इन प्राकृतिक तत्वों की शुद्धता और सीमित सदुपयोग के प्रति सचेष्ट हो।
स्वतंत्रता तभी स्थाई हो सकती है जब जनगण स्वस्थ्य, संपन्न व सुखी हो। उनके बीच सद्भाव, सहकार और सहिष्णुता हो।
विश्व रूपांतरण : युग की महती आवश्यकता
हम पृथ्वी को माता मानते है और सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गाँधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को भारत सहित १९३ देशों ने सितंबर, २०१५ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार और इसे एक जनवरी, २०१६ से लागू किया। इसे सतत विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र के नाम से भी जाना जाता है।
सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण हेतु विकास में सामाजिक परिवेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है।
२००० से २०१५ तक के लिए निर्धारित नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। भारत विश्व कल्याणपरक विकास के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में आराम से ही सम्मिलित करता रहा है। वर्तमान विश्वव्यापी अर्थ संकट के संक्रमण काल में भी विकास की अच्छी दर बनाए रखने में भारत सफल है। गाँधी जी ने 'आखिरी आदमी के भले', विनोबा जी ने सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से निर्धनों को को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और निर्बल को सबल बनाने की संकल्पना का विकास किया। वर्ष २०३० तक निर्धनता को समाप्त करने का लक्ष्य हमारा नैतिक दायित्व ही नहीं, शांतिपूर्ण, न्यायप्रिय और चिरस्थायी
भारत और विश्व को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्राथमिकता भी है।
सतत विकास कार्यक्रम :
वित्तीय लक्ष्य:
विकसित देश सरकारी विकास सहायता का अपना लक्ष्य प्राप्त कर, अपनी सकल राष्ट्रीय आय का ०.७%, विकासशील देशों को तथा ०.१५% से ०.२०% सबसे कम विकसित राष्ट्रों को दें। विकासशील देश एकाधिक स्रोत से साधन जुटाएँ तथा समन्वित नीतियों द्वारा दीर्घिकालिक ऋण संवहनीयता प्राप्त कर अत्यधिक ऋणग्रस्त निर्धन देशों पर ऋण बोझ कम कर निवेश संवर्धन को करें।
तकनीकी लक्ष्य:
विकसित, विकासशील व अविकसित देशों के मध्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनालोजी व नवाचार सुलभ कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। वैश्विक तकनॉलॉजी तंत्र का विकास करना। परस्पर सहमति पर रियायती और वरीयता देते हुए हितकारी शर्तों पर पर्यावरण अनुकूल तकनोलॉजी का विकास, हस्तांतरण, प्रसार व समन्वय करना। तकनोलॉजी बैंक बनाकर सामर्थ्यवान तकनोलॉजी का प्रयोग बढ़ाना।
क्षमता निर्माण तथा व्यापार :
विकाशील देशों में लक्ष्य क्षमता निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। राष्ट्रीय योजनाओं को समर्थन दिलाना। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सार्वभौम, नियमाधारित, भेदभावहीन, खुली और समान बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहित करना। विकासशील देशों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि कर, सबसे कम देशों की भागीदारी दोगुनी करना। सबसे कम विकसित देशों को शुल्क और कोटा मुक्त बाजार प्रवेश सुविधा देना, पारदर्शी व् सरल व्यापार नियम बनाकर बाजार में प्रवेश सरल बनाना।
नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य:
सतत विकास हेतु वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता वृद्धि हेतु नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य बनाना। गरीबी मिटाने हेतु पारस्परिक नीतिगय क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना। सभी देशों के साथ सतत विकास लक्ष्य पाने में सहायक बहुहितकारी भागीदारियाँ कर विशेषज्ञता, तकनोलॉजी, तहा संसाधन जुटाना। प्रभावी सार्वजनिक व् निजी संसाधन जुटाना। सबसे कम विकसित, द्वीपीय व विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना। २०३० तक सकल घेरलू उत्पाद के पूरक प्रगति के पैमाने विकसित करना।
स्थायी विकास लक्ष्य : केंद्र के प्रयास
सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्त करने हेतु तत्काल कार्रवाई करने, विकासशील देशों में संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन - सूचना - संचार प्रौद्योगिकी आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेश जुटाने के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट दिशा निर्धारित करनी है। इस हेतु सहायक समीक्षा वझ निगरानी तंत्रों के विनियमन और प्रोत्साहक संरचनाओं हेतु नए साधन जुटाकर निवेश आकर्षित कर सतत विकास को पुष्ट करना प्राथमिक आवश्यकता है।
सर्वोच्च ऑडिट संस्थाओं, राष्ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को अविलंब पुष्ट किया जाना है। हमारे मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण और शहरी आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उपयोगी संकेतकों की पहचान कर राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को सौंपा है।
न्यूयार्क में जुलाई, २०१७ में आयोजित हुए उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत कर भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को सर्वोच्च महत्व दिया।
राज्यों की भूमिका :
भारत के संविधान केंद्रों और राज्यों के मध्य राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति संतुलन के अनुरूप राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनायें कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल है। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला मिलकर करना है। भारतीय संसद विभिन्न हितधारकों के साथ सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय है।
अध्यक्षीय शोध संस्थान(एसआरआई)
सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सांसदों और विशेषज्ञों के मध्य विमर्श हेतु है। नीति आयोग सतत विकास लक्ष्यों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर परामर्श शृंखलाएँ आयोजित कर विशेषज्ञों, विद्वानों, संस्थाओं, सिविल सोसाइटियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों राज्य सरकारों व हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संपूर्ण विकास हेतु जन आकांक्षा पूर्ण करने हेतु राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय प्रशासन तथा जन सामान्य द्वारा सतत समन्वयकर कार्य किये जा रहे हैं।
जन सामान्य की भूमिका :
भारत के संदर्भ में दृष्टव्य है कि सतत स्थाई कार्यक्रमों की प्रगति में जान सामान्य की भूमिका नगण्य है। इसका कारण उनका समन्वयहीन धार्मिक-राजनैतिक संगठनों से जुड़ाव, प्रशासन तंत्र में जनमत और जनहित के प्रति उपेक्षा, व्यापारी वर्ग में येन-केन-प्रकारेण अधिकतम लाभार्जन की प्रवृत्ति तथा संपन्न वर्ग में विपन्न वर्ग के शोषण की प्रवृत्ति का होना है।
किसी लोकतंत्र में सब कुछ तंत्र के हाथों में केंद्रित हो तो लोक में निराशा होना स्वाभाविक है। सतत विकास नीतियाँ गाँधी के 'आखिरी आदमी' अर्थात सबसे कमजोर को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आजीविका साधन उपलब्ध करा सकें तभी उनकी सार्थकता है।
सरकारी अनुदान आश्रित जनगण कमजोर और तंत्र द्वारा शोषित होता है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को दलीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को वरीयता देकर राष्ट्रोन्नयनपरक सतत विकास कार्यों में परस्पर सहायक होना होगा तभी संविधान की मंशा के अनुरूप लोकहितकारी नीतियों का क्रियान्वय कर मानव ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्रकृति की सुरक्षा और विकास का पथ प्रशस्त सकेगा।
आजादी का अमृत महोत्सव हम सबके लिए अवसर भी है और चुनौती भी। दृढ़ संकल्प के साथ एकता कायम रखते हुए बढ़ते रहे तो भविष्य हमारा वंदन करेगा।
कोरोना कालीन त्रासदी का डटकर मुकाबला करते हुए भारत ने कोरोना वैक्सीन वितरण के माध्यम से वैश्विक संकट से जूझने में जो भूमिका निभाई है, वह अविस्मरणीय है।
भारतीय स्वतंत्रता का वैशिष्ट्य
आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमें संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना सीखना होगा। भारतीय स्वतंत्रता का वैशिष्ट्य नागरिक समता, पंथ निरपेक्षता, बहुदलीयता, स्त्री-पुरुष समानता, मताधिकार, विधायिका, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ रक्षा करना होगी।
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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४,
ईमेल : salil.sanjiv@gmail.com
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सतत स्थाई विकास और स्वतंत्रता
लता मंगेशकर
सुर साम्राज्ञी लता जी के जन्म दिवस पर-
*
शारदसुता कोकिलाकण्ठी लता धरा-सिंगार
तार सिहरते हैं वीणा के सुन मृदु स्वर झंकार
समय साक्षी मिला मनुजता को अनुपम उपहार
लता समूची वसुधा को हैं ईश्वर का उपहार
सत्य प्रगटीं कल्याणी
लता की बनकर वाणी
धन्य हम तुम्हें नमन कर
समय हो आशिष देकर
*
शारदसुता कोकिलाकण्ठी लता धरा-सिंगार
तार सिहरते हैं वीणा के सुन मृदु स्वर झंकार
समय साक्षी मिला मनुजता को अनुपम उपहार
लता समूची वसुधा को हैं ईश्वर का उपहार
सत्य प्रगटीं कल्याणी
लता की बनकर वाणी
धन्य हम तुम्हें नमन कर
समय हो आशिष देकर
*
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लता मंगेशकर
नवगीत
नवगीत
तुम्हें प्रणाम
संजीव
*
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
सूक्ष्म काय थे,
चित्र गुप्त रख, विधि बन
सृष्टि रची अंशों से।
नाद-ताल-ध्वनि, सुर-सरगम
व्यापे वंशों में।
अणु-परमाणु-विषाणु
विष्णु हो धारे तुमने।
कोष-वृद्धि कर
'श्री' पाई है।
जल-थल-नभ पर
कीर्ति-पताका
फहराई है।
बन श्रद्धा-विश्वास
व्याप्त हो हर कंकर में।
जननी-जनक देखते हम
गौरी-शंकर में।
पंचतत्व तुम
नाम अनाम।
मेरे पुरखों!
सतत प्रणाम।
*
भूत-अभूत तुम्हीं ने
नाते, बना निभाए।
पैर जमीं पर जमा
धरा को थे छू पाए।
द्वैत दिखा,
अद्वैत-पथ वरा।
कहा प्रकृति ने
मनुज हो खरा।
लड़े, मर-मिटे
असुर और सुर।
मिलकर जिए
किंतु वानर-नर।
सेतुबंध कर मिटा दूरियाँ
काम करे रहकर निष्काम।
मेरे पुरखों!
विनत प्रणाम।
*
धरा-पुत्र हे!
प्रकृति-मित्र हे!
गही विरासत,
हाय! न हमने।
चूक करी
रौंदा प्रकृति को।
अपनाया मोहक विकृति को।
आम न रहकर
'ख़ास' हो रहे।
नाश बीज का
अपने हाथों आप बो रहे।
खाली हाथों जाना फिर भी
जोड़ मर रहे
विधि है वाम।
मेरे पुरखों!
अगिन प्रणाम।।
*
९५२५१८३२४४
तुम्हें प्रणाम
संजीव
*
मेरे पुरखों!
तुम्हें प्रणाम।
*
सूक्ष्म काय थे,
चित्र गुप्त रख, विधि बन
सृष्टि रची अंशों से।
नाद-ताल-ध्वनि, सुर-सरगम
व्यापे वंशों में।
अणु-परमाणु-विषाणु
विष्णु हो धारे तुमने।
कोष-वृद्धि कर
'श्री' पाई है।
जल-थल-नभ पर
कीर्ति-पताका
फहराई है।
बन श्रद्धा-विश्वास
व्याप्त हो हर कंकर में।
जननी-जनक देखते हम
गौरी-शंकर में।
पंचतत्व तुम
नाम अनाम।
मेरे पुरखों!
सतत प्रणाम।
*
भूत-अभूत तुम्हीं ने
नाते, बना निभाए।
पैर जमीं पर जमा
धरा को थे छू पाए।
द्वैत दिखा,
अद्वैत-पथ वरा।
कहा प्रकृति ने
मनुज हो खरा।
लड़े, मर-मिटे
असुर और सुर।
मिलकर जिए
किंतु वानर-नर।
सेतुबंध कर मिटा दूरियाँ
काम करे रहकर निष्काम।
मेरे पुरखों!
विनत प्रणाम।
*
धरा-पुत्र हे!
प्रकृति-मित्र हे!
गही विरासत,
हाय! न हमने।
चूक करी
रौंदा प्रकृति को।
अपनाया मोहक विकृति को।
आम न रहकर
'ख़ास' हो रहे।
नाश बीज का
अपने हाथों आप बो रहे।
खाली हाथों जाना फिर भी
जोड़ मर रहे
विधि है वाम।
मेरे पुरखों!
अगिन प्रणाम।।
*
९५२५१८३२४४
सवैया मुक्तक
सवैया मुक्तक
एक अकेला
संजीव
*
एक अकेला दिनकर तम हर, जगा कह रहा हार न मानो।
एक अकेला बरगद दृढ़ रह, कहे पखेरू आश्रय जानो।
एक अकेला कंकर, शंकर बन सारे जग में पुजता है-
एक अकेला गाँधी आँधी, गोरी सत्ता तृणमूल अनुमानो।
*
एक अकेला वानर सोने की लंका में आग लगाता।
एक अकेला कृष्ण महाभारत रचकर अन्याय मिटाता।
एक अकेला ध्रुव अविचल रह भ्रमित पथिक को दिशा ज्ञान दे-
एक अकेला यदि सुभाष, सारे जग से लोहा मनवाता।
*
एक अकेला जुगनू; दीपक जले न पग ठोकर खाता है
एक अकेला लालबहादुर जिससे दुश्मन थर्राता है
एक अकेला मूषक फंदा काट मुक्त करता नाहर को-
एक अकेला जगता जब तब शीश सभी का झुक जाता है।
२-१२-२०२०
एक अकेला
संजीव
*
एक अकेला दिनकर तम हर, जगा कह रहा हार न मानो।
एक अकेला बरगद दृढ़ रह, कहे पखेरू आश्रय जानो।
एक अकेला कंकर, शंकर बन सारे जग में पुजता है-
एक अकेला गाँधी आँधी, गोरी सत्ता तृणमूल अनुमानो।
*
एक अकेला वानर सोने की लंका में आग लगाता।
एक अकेला कृष्ण महाभारत रचकर अन्याय मिटाता।
एक अकेला ध्रुव अविचल रह भ्रमित पथिक को दिशा ज्ञान दे-
एक अकेला यदि सुभाष, सारे जग से लोहा मनवाता।
*
एक अकेला जुगनू; दीपक जले न पग ठोकर खाता है
एक अकेला लालबहादुर जिससे दुश्मन थर्राता है
एक अकेला मूषक फंदा काट मुक्त करता नाहर को-
एक अकेला जगता जब तब शीश सभी का झुक जाता है।
२-१२-२०२०
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सवैया मुक्तक
मुक्तिका साथ पुराना
मुक्तिका
साथ पुराना
*
जब भी मिलता साथ पुराना अच्छा लगता है।
पल-पल तुमको मौन बुलाना अच्छा लगता है।।
दिख जाते हो मूँद नयन लेते हैं जब भी हम।
आँख मिलाकर आँख चुराना अच्छा लगता है।।
दिलवर दिल वर दूर गए पर दिल ने किया न दूर।
सुधियों को फिर-फिर दोहराना अच्छा लगता है।।
ओ मेरी तुम!, हो मेरी तुम जन्मों की संगी।
स्नेह सलिल सा साथ सुहाना अच्छा लगता है।।
रीझ-रीझ कर थके न मैं-तुम एक दूसरे पर
जान रहे पर नित्य जताना अच्छा लगता है।।
बिना बात ही रूठ मानिनी जब बैठे मुँह फेर
घेर-घेर कर उसे मनाना अच्छा लगता है।।
धना-धनी का नाता ताना-बाना रहे अटूट।
जाना-आना बना बहाना अच्छा लगता है।।
*
९४२५१८३२४४
२९-९-२०२१
*
जब भी मिलता साथ पुराना अच्छा लगता है।
पल-पल तुमको मौन बुलाना अच्छा लगता है।।
दिख जाते हो मूँद नयन लेते हैं जब भी हम।
आँख मिलाकर आँख चुराना अच्छा लगता है।।
दिलवर दिल वर दूर गए पर दिल ने किया न दूर।
सुधियों को फिर-फिर दोहराना अच्छा लगता है।।
ओ मेरी तुम!, हो मेरी तुम जन्मों की संगी।
स्नेह सलिल सा साथ सुहाना अच्छा लगता है।।
रीझ-रीझ कर थके न मैं-तुम एक दूसरे पर
जान रहे पर नित्य जताना अच्छा लगता है।।
बिना बात ही रूठ मानिनी जब बैठे मुँह फेर
घेर-घेर कर उसे मनाना अच्छा लगता है।।
धना-धनी का नाता ताना-बाना रहे अटूट।
जाना-आना बना बहाना अच्छा लगता है।।
*
९४२५१८३२४४
२९-९-२०२१
चिप्पियाँ Labels:
मुक्तिका साथ पुराना
मुक्तिका बात
मुक्तिका
बात
संजीव
*
उनसे मेरी बात हो गई
शह देकर भी मात हो गई
*
थी उम्मीद प्रभात मिलेगा
लेकिन असमय रात हो गई
*
सन्नाटा कोलाहल बुनता
ज्यों आदम की जात हो गई
*
होश गँवाकर साँस-साँस खुद
यादों की बारात हो गई
*
जब से रब से जोड़ा नाता
कही मुक्तिका नात हो गई
*
ग्वालियर
१-१०-२०२१
९४२५१८३२४४
संजीव
*
उनसे मेरी बात हो गई
शह देकर भी मात हो गई
*
थी उम्मीद प्रभात मिलेगा
लेकिन असमय रात हो गई
*
सन्नाटा कोलाहल बुनता
ज्यों आदम की जात हो गई
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होश गँवाकर साँस-साँस खुद
यादों की बारात हो गई
*
जब से रब से जोड़ा नाता
कही मुक्तिका नात हो गई
*
ग्वालियर
१-१०-२०२१
९४२५१८३२४४
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मुक्तिका
बात
मुक्तिका तलाश
मुक्तिका
तलाश
संजीव
*
वो ही खुद को तलाश पाया है
जिसने खुद को सदा भुलाया है
जो खुदी को खुदा में खोज रहा
वो खुदा में खुदी समाया है
आईना उसको क्या दिखाएगा
जिसने कुछ भी नहीं छिपाया है
जो बहा वह सलिल रहा निर्मल
जो रुका साफ रह न पाया है
देखता है जो बंदकर आँखें
दीप हो उसने तम मिटाया है
है कमालों ने क्या कमाल किया
आ कबीरों को बेच-खाया है
मार गाँधी को कह रहे बापू
झूठ ने सत्य को हराया है
*
२-१०२०२१
सी ३०२ अमरकंटक अपार्टमेंट
साकेत नगर ग्वालियर
९४२५१८३२४४
संजीव
*
वो ही खुद को तलाश पाया है
जिसने खुद को सदा भुलाया है
जो खुदी को खुदा में खोज रहा
वो खुदा में खुदी समाया है
आईना उसको क्या दिखाएगा
जिसने कुछ भी नहीं छिपाया है
जो बहा वह सलिल रहा निर्मल
जो रुका साफ रह न पाया है
देखता है जो बंदकर आँखें
दीप हो उसने तम मिटाया है
है कमालों ने क्या कमाल किया
आ कबीरों को बेच-खाया है
मार गाँधी को कह रहे बापू
झूठ ने सत्य को हराया है
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२-१०२०२१
सी ३०२ अमरकंटक अपार्टमेंट
साकेत नगर ग्वालियर
९४२५१८३२४४
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मुक्तिका तलाश
सोरठा सलिला
सोरठा सलिला
*
मन में है संतोष, पुष्पा-पुष्पांशी मिलीं।
हुआ स्नेह का घोष, सारस्वत कलियाँ खिलीं।।
*
पढ़ तोमर इतिहास, मिली एक ही सीख।
ऐक्य नहीं तो मर, आक्रांत से हारकर।।
*
मृगनयनी के नैन, मान बसा दिल हारकर।
जागा अनगिन रैन, मान मानिनी का हुआ।।
*
महल गूजरी देख, प्रेम कहानी कह रहा।
मान मान निज भूल, रूप छटा लख तह रहा।।
*
हर घर ले सुख-श्वास, सास-बहू मंदिर बने।
नीर-क्षीर आभास, नेह नर्मदा बन बहे।।
*
ग्वालिप ऋषि तप लीन, रहे ग्वालियर क्षेत्र में।
कोई सका न छीन, गौरव कवि भवभूति का।।
*
झुका हुआ है शीश, बलिदानी को यादकर।
कृपा करें जगदीश, घर घर लछमीबाई हों।।
*
संजीव,
४-१०-२०२१
ए १/९ श्रीधाम एक्सप्रेस
*
मन में है संतोष, पुष्पा-पुष्पांशी मिलीं।
हुआ स्नेह का घोष, सारस्वत कलियाँ खिलीं।।
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पढ़ तोमर इतिहास, मिली एक ही सीख।
ऐक्य नहीं तो मर, आक्रांत से हारकर।।
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मृगनयनी के नैन, मान बसा दिल हारकर।
जागा अनगिन रैन, मान मानिनी का हुआ।।
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महल गूजरी देख, प्रेम कहानी कह रहा।
मान मान निज भूल, रूप छटा लख तह रहा।।
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हर घर ले सुख-श्वास, सास-बहू मंदिर बने।
नीर-क्षीर आभास, नेह नर्मदा बन बहे।।
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ग्वालिप ऋषि तप लीन, रहे ग्वालियर क्षेत्र में।
कोई सका न छीन, गौरव कवि भवभूति का।।
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झुका हुआ है शीश, बलिदानी को यादकर।
कृपा करें जगदीश, घर घर लछमीबाई हों।।
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संजीव,
४-१०-२०२१
ए १/९ श्रीधाम एक्सप्रेस
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ग्वालियर सोरठा,
सोरठा ग्वालियर
सोरठा सलिला
सोरठा सलिला
*
सलिल हुआ है धन्य, नेह नर्मदा में नहा।
देख नर्मदा मातु, सुखानंद अनुपम गहा।।
*
लहर-लहर को चूम, रवि किरणें पुलकित हुईं।
मचा रही हैं धूम, जैसे नन्हीं तितलियाँ।।
*
मोक्षदायिनी मात, तन-मन का कल्मष हरें।
गंग स्नान सा पुण्य, रेवा दर्शन पा तरें।।
*
अगिन बिंब-प्रतिबिंब, लहर लहर में बन रहे।
देख सके तो देख, चित्र अनूठे अनकहे।।
*
विहँस हरितिमा झाँक, तट-खेतों पर झूमती।
भू दामन पर टाँक, सपने खुशियाँ चूमती।।
*
सेतु उठाकर भार, तट से तट को जोड़ता।
बंद मत करो द्वार, दिल के; सुख मुँह मोड़ता।।
*
करतब करती मछलियाँ, नाचें झूमें तैर।
ज्यों बागों में तितलियाँ, करें नाचकर सैर।।
*
सलिल हुआ है धन्य, नेह नर्मदा में नहा।
देख नर्मदा मातु, सुखानंद अनुपम गहा।।
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लहर-लहर को चूम, रवि किरणें पुलकित हुईं।
मचा रही हैं धूम, जैसे नन्हीं तितलियाँ।।
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मोक्षदायिनी मात, तन-मन का कल्मष हरें।
गंग स्नान सा पुण्य, रेवा दर्शन पा तरें।।
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अगिन बिंब-प्रतिबिंब, लहर लहर में बन रहे।
देख सके तो देख, चित्र अनूठे अनकहे।।
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विहँस हरितिमा झाँक, तट-खेतों पर झूमती।
भू दामन पर टाँक, सपने खुशियाँ चूमती।।
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सेतु उठाकर भार, तट से तट को जोड़ता।
बंद मत करो द्वार, दिल के; सुख मुँह मोड़ता।।
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करतब करती मछलियाँ, नाचें झूमें तैर।
ज्यों बागों में तितलियाँ, करें नाचकर सैर।।
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४-१०-२०२१
ए १/ ९, श्रीधाम एक्सप्रेस
छंद शाला
सोरठा
एक साथ हँस आज, रवि-अरविंद सुशोभित नभ में।
पूर्ण करें सब काज, तुलसी पत्र मंजरी सँग ज्यों।।
दोहा
रवि-अरविंद सुशोभित नभ में, एक साथ हँस आज।
तुलसी पत्र मंजरी सँग ज्यों, पूर्ण करें सब काज।।
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नर्मदा सोरठा,
सोरठा नर्मदा
स्मरण अमृतलाल वेगड़
स्मरण
अमृतलाल वेगड़
*
नर्मदा संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले अमृतलाल वेगड़ का जन्म ३ अक्टूबर १९२८ को जबलपुर में हुआ। १९४८ से १९५३ तक शांतिनिकेतन में उन्होंने कला का अध्ययन किया। वेगड़ जी ने नर्मदा की पूरी परिक्रमा कर नर्मदा पदयात्रा वृत्तांत पर चार किताबें लिखीं हैं। 'सौंदर्य की नदी नर्मदा', 'अमृतस्य नर्मदा' और 'तीरे-तीरे नर्मदा' के बाद चौथी किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' २०१५ में प्रकाशित हुई ।ये हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला अंग्रेजी और संस्कृत में भी प्रकाशित हुई हैं।
वेगड़ गुजराती और हिंदी में साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार जैसे अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुए थे। वे उन चित्रकारों और साहित्यकारों में से थे, जिन्होंने नर्मदा की चार हज़ार किमी की पदयात्रा की और नर्मदा अंचल में फैली बेशुमार जैव विविधता से दुनिया को वाक़िफ कराया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम किया। अमृतलाल वेगड़ चित्रकार, शिक्षक, समाजसेवी साहित्यकार, पर्यावरणविद् सहित कई प्रतिभाओं के धनी रहे। साधारण पथिक के रूप में नर्मदा परिक्रमा शुरू की और धीरे-धीरे ‘नर्मदा पुत्र’ बन गए। वे कहते थे- ‘कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साज के सुर मिलाता है, उसी प्रकार हम इस जनम में नर्मदा मैया के सुर मिलाते रहे, परिक्रमा तो अगले जनम में करेंगे’। उन्होंने नर्मदा परिक्रमा दो बार पूरी की। पहली बार १९७७ में, जब वे ५० वर्ष के हुए थे और दूसरी बार २००२ में जब उन्होंने ७५ साल पूरे किए थे। ९० वर्ष की उम्र में ६ जुलाई २०१८ को वेगड़ जी का देहावसान हुआ।
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