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शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2014

shakti vandana:

शक्ति वंदना:
१.

माँ अम्बिके जगदंबिके करिए कृपा दुःख-दर्द हर
ज्योतित रहे मन-प्राण मैया! दीजिए सुख-शांति भर

दीपक जला वैराग्य का, तम दूर मन से कीजिए
संतान हम आये शरण में, शांति-सुख दे दीजिए

आगार हो मन-बुद्धि का, अनुरक्ति का, सदयुक्ति का
सत्पथ दिखा संसार सागर से तरण, भव-मुक्ति का

अन्याय अत्याचार से, हम लड़ सकें संघर्ष कर
आपद-विपद को जीत आगे बढ़ सकें उत्कर्ष कर

संकट-घिरा है देश, भाषा चाहती उद्धार हो
दम तोड़ता विश्वास जन का, कर कृपा माँ तार दो

भोगी असुर-सुर बैठ सत्ता पर, करें अन्याय शत
रिश्वत घुटाले रोज अनगिन, करो इनको माफ़ मत

सरहद सुरक्षित है नहीं, आतंकवादी सर चढ़े
बैठ संसद में उचक्के, स्वार्थ साधें नकचढ़े

बाँध पट्टी आँख पर, मंडी लगाये न्याय की
चिंता वकीलों को नहीं है, हो रहे अन्याय की

वनराजवाहिनी! मार डाले शेर हमने कर क्षमा
वन काट फेंके महानगरों में हमारा मन रमा

कांक्रीट के जंगल उगाकर, कैद उनमें हो गये  
परिवार का सुख नष्टकर, दुःख-बीज हमने बो दिये

अश्लीलता प्रिय, नग्नता ही, हो रही आराध्य है
शुचिता नहीं, सम्पन्नता ही हाय! होता साध्य है

बाजार दुनिया का बड़ा बन, बेचते निज अस्मिता
आदर्श की हम जलाते हैं, रोज ही हँसकर चिता

उपदेश देने में निपुण, पर आचरण से हीन हैं  
संपन्न होता देश लेकिन देशवासी दीन हैं

पुनि जागकर माँ! हमें दो, कुछ दंड बेहद प्यार दो
सत्पथ दिखाकर माँ हमें, संत्रास हरकर तार दो

जय भारती की हो सकल जग में सपन साकार हो
भारत बने सिरमौर गौरव का न पारावार हो

रिपुमर्दिनी! संबल हमें दो, रच सकें इतिहास नव
हो साधना सच की सफल, संजीव हों कर पार भव
(छंद हरिगीतिका: ११२१२)
*

 

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

chitra:

अतीत की स्मृतियाँ: दुर्लभ चित्र


दाहिने से: १. सुमित्रानंदन पंत, २. माखनलाल चतुर्वेदी, 
३. शिवमंगल सिंह सुमन, ४. हरिवंशराय बच्चन, ५.
भवानीप्रसाद मिश्र ६. अमृतलाल नागर, ७. नरेंद्र शर्मा,
८. भवानीप्रसाद तिवारी जबलपुर में. 

bang kavita : mridula pradhan

कविता:
मृदुला प्रधान 
 · 
(मृदुला जी ने देवनागरी लिपि में लिखकर गांधी जी के विचार को गांधी जयंती पर मूर्त रूप दिया है. बधाई. कोई पाठक इसका हिंदी अनुवाद दे सके तो शेष को अधिक आनंद आएगा)
पूजो एलो, चोलो मेला,
हेटे-हेटे जाई,
नतून जामा,नतून कापोड़,
नतून जूतो चाई.
बाबा एनो रोशोगोला,
मिष्टी दोईर हांड़ी,
माँ गो तुमि
शेजे-गूजे,
पोड़ो ढ़ाकाई शाड़ी.
आजके कोरो देशेर खाबा,
शुक्तो,बेगुन भाजा,
गोरोम-गोरोम भातेर ओपोर,
गावार घी दाव
ताजा.
चोलो 'शेनेमा'
'पॉपकॉर्न' खाबो, खाबो
आइस-क्रीम,
आजके किशेर ताड़ा एतो
कालके छूटीर दिन.
रात्रे खाबो 'चिली' 'चिकेन',
भेटकी माछेर
'फ्राई',
ऐई पांडाले,ओई पांडाले,
होई-चोई
कोरे आई


navgeet:

नवगीत:

गाँधी को मारा
आरोप
गाँधी को भूले
आक्रोश
भूल सुधारी
गर वंदन कर
गाँधी को छीना
प्रतिरोध

गाँधी नहीं बपौती
मानो
गाँधी सद्विचार
सच जानो
बाँधो मत सीमा में
गाँधी
गाँधी परिवर्तन की
आँधी
स्वार्थ साधते रहे
अबोध

गाँधी की मत
नकल उतारो
गाँधी को मत
पूज बिसारो
गाँधी बैठे मन
मंदिर में
तन से गाँधी को
मनुहारो
कर्म करो सत
है अनुरोध

***

sansmaran: sanjay sinha

कल और आज: कैसा बचपन

संजय सिन्हा

आज पोस्ट लिखने से पहले मैं कई बार रोया। कई बार लगा कि क्या इस अपराध में मैं भी शामिल रहा हूं? क्या जिस चुटकुले को मैं आज आपसे मैं साझा करने जा रहा हूं, उसका पात्र मैं भी हूं? 
फेसबुक के मेेरे भाई श्री Avenindra Mann जी ने यूं ही चलते फिरते ये चुटकुला मुझसे साझा किया था, शायद हंसाने के लिए या फिर हम सबको आइना दिखाने के लिए लेकिन ये इतना मार्मिक चुटकुला था कि इसे पढ़कर मैं खुद अपराधबोध में चला गया। चुटकुला इस तरह है-
एक छोटे से बच्चे ने सुबह अपनी दादी मां से पूछा, "दादी दादी कल रात जब मैं सोने गया था तो एक औरत और एक मर्द जो हमारे घर में आए थे, वो कौन थे? मैंने देखा कि वो चुपचाप भीतर आए और उस कमरे में चले गए थे। फिर सुबह वो दोनों चले भी गए।"
दादी ने कहा, "ओह! तो तूने उन्हें देख ही लिया?"
बच्चे ने कहा, "हां, सोते-सोते मेरी नींद खुल गई थी, और मैंने जरा सी झलक देख ली थी।"
दादी ने कहा, "मेरे बच्चे वो तेरे माता-पिता हैं, दोनों नौकरी करते हैं न! "
अब है तो ये चुटकुला ही। लेकिन मेरे मन में ये बात कुछ ऐसे समा गई कि क्या मेरे बच्चे ने भी बहुत छोटे होते हुए ऐसा सोचा होगा कि रोज रात में घर आने वाला ये आदमी कौन है?
मैंने पुरानी यादों में जाने की जरा सी कोशिश की तो मुझे इतना याद आया कि ये सच है कि अपनी बहुत व्यस्त नौकरी में कई बार मैं अपने घर वालों की एक झलक देखने के लिए सचमुच बहुत तरसा हूं। सुबह जल्दी दफ्तर चले जाना, फिर देर रात तक दफ्तर में रहना, यकीनन मेरे बेटे ने भी कभी न कभी ऐसा सोचा होगा कि रोज रात में घर आने वाला ये है कौन?।
मैं तो जब छोटा था तब बहुत सी कहानियां अपनी मां से सुनी थीं। लेकिन जब मेरा बेटा छोटा था तब मैं उसके लिए बच्चों की कहानियों के कई कैसेट और एक टेपरिकॉर्डर खरीद लाया था। उसे मैंने चंदा मामा की, चिड़िया और दाना की, खरगोश और कछुए की कहानियां उसी कैसेट से सुनाई हैं।
शुरू-शुरू में तो मेरी पत्नी या मैं, उस कैसेट को टेपरिकॉर्डर में लगा कर उसे ऑन कर देते और उसे बिस्तर पर लिटा कर कहते कि ये कहानी सुनो। लेकिन जल्दी ही उसने खुद ही कैसेट लगाना सीख लिया और मुझे याद है कि एक बार मैं घर आया तो वो चुपचाप बिस्तर पर जाकर लेट गया और अपने आप कहानी सुनने लगा। मैंने उसे बुलाने की कोशिश की तो उसने कहा कि ये कहानी टाइम है। वो कहानियां सुनते-सुनते सो जाता।
शुरू-शुरू में हम अपने घर और परिवार में फख्र से बताते कि कल सुबह की फ्लाइट से मैं मुंबई जा रहा हूं। वहां मीटिंग है। देर शाम मैं वहीं से कोलकाता के लिए निकलूंगा।
जिस दिन सिंगापुर, हांगकांग, मलेशिया निकलना होता उस दिन तो ऐसे इतराते हुए भाव में रहता कि पूछिए मत। अड़ोसी-पड़ोसी हैरत भरी निगाहों से देखते और सोचते कि मिस्टर सिन्हा कितने भाग्यशाली हैं जो रोज-रोज हवाई जहाज में जाते हैं, फिर आते हैं। मैं भी खुद को हाई फ्लायर कहता। दिल्ली एयरपोर्ट पर नाश्ता करता, मुंबई में खाना खाता। कभी फोन करता कि बस अभी-अभी चेन्नई पहुंचा हूं, अभी कल सुबह लंदन के लिए निकलना है।
ये सब नौकरी के हिस्सा हुआ करते थे। संसार के सभी अति व्यस्त पिताओं की तरह मैं भी व्यस्त रहने को अपनी खूबी मानता था। शायद पहले भी कभी लिखा है कि एक समय ऐसा भी आया था जब मेरी पत्नी एक सूटकेस मेरी कार में रख दिया करती थी, कि पता नहीं मुझे कब कहां जाना पड़ जाए?
एक दिन जब मैं घर आया तो मैंने देखा कि मेरे बेटे के बाल काफी बढ़ गए हैं। वो बहुत छोटा था और पास के उस सैलून में मैं नहीं चाहता था कि पत्नी जाए, इसलिए उसके बाल नहीं कट पाए थे। उसके बढ़े हुए बाल देख कर मैं बहुत दुखी हुआ।
सोचने लगा कि भला ऐसी नौकरी का क्या फायदा, जिसमें अपने बेटे के बाल भी महीने में एकदिन उसे साथ ले जाकर नहीं कटवा सकता?
उस दिन मैं सचमुच बहुत िवचलित हुआ। मुझे याद आने लगा कि जब मैं छोटा था, महीने के आखिरी रविवार को आमतौर पर पिताजी की उंगली पकड़ कर मैं उस सैलून में जाया करता था, जहां बाल काटने वाले को पता होता था कि आज संजू आएगा, और उसके समझाने के बाद भी वो अपने सिर को कभी इधर हिलाएगा, कभी उधर हिलाएगा और फिर पकड़-पकड़ कर वो उसके बाल काटेगा।
मेरे लिए बाल कटवाना उत्सव जैसा होता था। बाल काटने वाला कहता कि इधर देखो नहीं तो कान कट जाएंगे। मैं अपने दोनों हाथों से कानों को पकड़ लेता। फिर शुरू होता मान मनव्वल और धमकाने का दौर। और मैं आखिर में तब मानता जब पिताजी मुंह में एक टॉफी रख देते।
बाल कटने के बाद पिताजी सब्जी खरीदते, मेरे लिए चंपक खरीदते, एक दो टॉफियां एक्स्ट्रा खरीदते जैसे कि मैंने बाल कटवा कर उन पर अहसान किया हो।
कभी-कभी बाटा की दुकान पर ले जाकर जूते खरीदवाते। मतलब ये कि उस रविवार मैं और पिताजी भाई-भाई हो जाते। फिर जब हम घर आते तो मां बहुत देर तक प्यार करती। पिताजी को दुलार से डपटती कि इतने छोटे बाल क्यों करा दिए। पहले एकदम कन्हैया जैसा लगता था मेरा बेटा, और आपने इतने छोटे करा दिए।
फिर मां मुझे खुद नहलाती, बालों में खूब साबुन लगाती, कहती कि बाल कटा कर बिना नहाए कुछ और नहीं करना चाहिए।
ऐसे दोपहर होते होते खाना लगता। पिताजी अखबार पढ़ते उतनी देर में खाना लग जाता।
रविवार का दिन, मतलब अलग तरह का व्यंजन। चावल, दाल, रोटी, आलू की भुंजिया, सब्जी, दही, पापड़, चटनी, कभी-कभी पकौड़े… न जाने कितनी सारी चीजें।
मन में आता कि काश रोज ये रविवार होता। मैं और पिताजी साथ-साथ यूं ही रोज खाना खाते। पिताजी खाना खाते-खाते मेरी ओर देखते और कहते कि दही तो खा ही नहीं रहे तुम। मैं कहता कि आखिर में चीनी डाल कर खाउंगा। पिताजी मुस्कुराते और कहते चीनी ज्यादा नहीं खानी चाहिए, तुमने वैेसे भी दो-दो टॉफियां खाई हैं।
और तब तक मां वहां आ जाती, कहती कि बच्चे चीनी नहीं खाएंगे तो भला कौन खाएगा?
और ऐसे ही हम सारा दिन मस्ती करते।
रविवार के अलावा दो अक्तूबर, पंद्रह अगस्त, दशहरा जैसी छुट्टियों की तो बात ही निराली होती।
दशहरा मेें आस-पास बजने वाले लाउड स्पीकर माहौल के ऐसा खुशनुमा बना देते कि लगता घर में किसी की शादी है। पिताजी हर बार दशहरे पर पास के मेेले में ले जाते। मां खूब सुंदर सी साड़ी पहन कर तैयार होती। मेरे लिए भी हर दशहरे पर नए कपड़े आते।
पर मुझे नहीं याद कि किस दो अक्तूबर और किस दशहरे पर मैं अपने बेटे के लिए घर रहा हूं। मुझे नहीं याद कि कब आखिरी बार मैं अपने बेटे की उंगली पकड़ कर उसे पार्क ले गया हूं। अब बेटा बड़ा हो गया है, उसे शायद याद हो या न हो, लेिकन मुझे उस चुटकुले को पढ़ कर सबकुछ याद आ रहा है।
उन मां-बाप के बारे में याद आ रहा है जो मजाक में ही कहते हैं कि अरे वो तो बहुत व्यस्त हैं, बहुत ज्यादा व्यस्त हैं और वो जब घर आते हैं, तो उनका संजू सो चुका होता है।
पर मेरा यकीन कीजिए कई संजू सोए नहीं होते। वो चुपचार आंखें खोल कर ये जानने की कोशिश करते हैं कि उसके घर आने वाले ये दोनों लोग कौन हैं, जो रोज रात में आते हैं, और सुबह-सुबह चले जाते हैं?
अगर आपका संजू भी छोटा हो तो इस चुटकुले को चुटकुला मत समझिएगा। इस पर हंसिएगा भी मत।
सोचिएगा और सिर्फ सोचिएगा कि क्या सचमुच हर सुबह हम जो घर से निकल पड़ते हैं अपनी खुशियों की तलाश में, वो खुशियां ही हैं?

बुधवार, 1 अक्टूबर 2014

doha

भोजपुरी दोहा:

रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच
चमचा बदे बधाइ बा, तनक न देखल साँच
*
चिउड़ा-लिट्ठी ना रुचे, बिरयानी की चाह
नवहा मलिकाइन चली, घर फूँके की राह
*
पनहा ठंडाई भयल, पिछड़े की पहचान
कोला पेप्सी पेग भा, अगड़े बर अरमान
*
महिमा आपन देस बर, गायल बेद पुरान
रउआ बिटुआ के बरे, पच्छिम भयल महान
*
राम नाम के भजलऽ ना, पीटत छतिया व्यर्थ 
हाथ जोड़ खखनत रहब, केहु ना सुनी अनर्थ 
*
मँहगाई ससुरी गइल, भाईचारा लील 
प्याज-टमाटर भूलि गै, चँवरो-अटवा गील 
*
तार-तार रिश्ता भयल,भाई-भाई में रार 
बंगला बनल वकील बर, आपन चढ़ल उधार   
*

बुरा बतावल बुराई, दूसर के आसान 
जे अपने बर बुराई, देखल वही सयान 
*
जे अगहर बा ओकरा, बाकी खेंचल टाँग
बढ़े न, बाढ़न दे तनक, घुली कुँए मा भाँग 
***
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
#हिंदी_ब्लॉगर 

doha:

दोहा सलिला:
(दो दुम के दोहे)

प्रकृति की करुणा अमित, क्षमा करे अपराध
नष्ट कर रहा क्यों मनुज, बनकर निर्मम व्याध
वृक्ष को लिपट बचाएं
सहोदर इसे बनायें
*
नदियाँ माँ ममतामयी, हरतीं जग की प्यास
मानव उनको मलिन कर, दे-पाता संत्रास
किनारे हरे कीजिए
विमल जल विहँस पीजिए
*
पर्वत ऊँचा पिता सा, रखता सर पर छाँह
हर मुश्किल से ले बचा, थाम तुम्हारी बाँह
न इसकी छाती खोदो
स्नेह के पौधे बो दो
*
बब्बा-नाना सा गगन, करता सदा दुलार
धूप चाँदनी वृष्टि दे, जीवन रखें सँवार
धूम्र से मलिन न करिये
कुपित हो जाए न डरिए
*
दादी-नानी सी हवा, दे आशीष दुलार
रुके प्राण निकले- लगे, बहती रहे बयार
धरा माँ को हरिया दें
नेह-नर्मदा बहा दें
*


मंगलवार, 30 सितंबर 2014

maiya tere roop




मैया तेरे रूप अनेक 

घर घर बैठी लाल पालती 
ज्योति दीप में सतत बालती 
शिवशंकर पर चरण धर दिए 
जयललिता माया सँवारती 


दे कुछ बुद्धि विवेक 

पत्रकार मनमानी करता 
सर दे साई बुद्धि न वरता 
खुद ही खुद को मार कुल्हाड़ी 
दोष दूसरों पर क्यों धरता?
नहीं इरादे नेक 

नाम पाक नापाक इरादे 
करता हरदम झूठे वादे 
वस्त्र न्यूनतम पहनें रहतीं 
दीन-धनी हैं भिन्न इरादे 
लोग नयन लें सेक 

भारत शक्ति नयी पायेगा 
सब जग इसके गुण जाएगा 
हर नर बने नरेंद्र, कृपा कर- 
पकड़ चरण जग तर जाएगा
सत्य शक्ति हो एक 



patrkar ya deshdrohi?

विमर्श: 
पत्रकार का दायित्व 
राजदीप सरदेसाई का कुकृत्य : भारत की अस्मिता को लांछित  दुष्प्रयास
आप सबने अमेरिका में मोदी जी की विशाल जनसभा के पूर्व दुराग्रही पत्रकार राजदीप सरदेसाई को जनता द्वारा सबक सिखाये  वीडियो देखा किन्तु कुछ चैनलों पर उसकी व्याख्या गलत की गयी. कुछ चैनलों ने सभा के समाचार रोककर प्रलाप आरम्भ कर धरने की बात भी कही.  यहाँ सरदेसाई के सवाल जवाब देखिये:
राजदीप: क्या आप सोचते हैं कि एक आदमी भारत को बदल सकता है?
दर्शक: हाँ, यदि १ महिला भारत को लूट सकती है तो एक मनुष्य भारत को बदल सकता है.
राजदीप तुरंत सरक जाते हैं और अन्य युवा दर्शक से पूछते हैं: क्या आप सोचते हैं कि वह केवल एक समुदाय के प्रधान मंत्री हैं? (क्या यहाँ पत्रकार निर्वाचन आयोग, राष्ट्रपति और सर्विच्च न्यायलय की अवमानना नहीं  कर रहा जिन्होंने संवैधानिक प्रावधानों के परिपालन में मोदी जी को निर्वाचित, मनोनीत और शपथ दिलाकर प्रधानमंत्री की आसंदी पर पदासीन कराया?)
युवा दर्शक का उत्तर: यह किस तरह का प्रश्न है? क्या अपने उनके संबोधन में 'वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः तथा सबका साथ सबका विकास' नहीं सुना?
राजदीप: नहीं, मुझे यह बताइये आप २००२ के दंगों के बारे में क्या सोचते हैं? (प्रश्न पत्रकार की समझ, इरादे और सोच पर प्रश्न चिन्ह लगाता है.)
युवा दर्शक: क्या आप भारत के सर्वोच्च न्यायलय का सम्मान करते है? यह गोधरा काण्ड जहाँ कुस्लिमों द्वारा हिन्दू मारे गए थे, की प्रतिक्रिया थी. मोदी का इससे कुछ लेना-देना नहीं था.
राजदीप कैमरामैन से: यह सांप्रदायिक हिन्दुओं का आयोजन बन गया है. (राजदीप दर्शकों की प्रतिक्रिया  जानने गए थे या फैसला सुनाने? क्या उन्हें ऐसा निर्णय करने के अधिकार था? क्या वे इस तरह भीड़ को उत्तेजित नहीं कर रहे थे?)
भीड़ ने गगनभेदी नारा लगाया 'भारत माता की जय, राजदीप गद्दार है' राजदीप ने एक का कॉलर पकड़ लिया तो भीड़ उत्तेजित हो गयी और कैमरे उसे प्रसारित करने लगे. पूर्व संवाद हटकर सिर्फ भीड़ की उत्तेजना सैंकड़ों बार दिखाई जाने लगी.
क्या यह पत्रकारिता है? 
------
राजदीप अन्य स्थान पर: 
प्रश्न. आप यहाँ क्यों हैं? क्या एक आदमी भारत को बदल सकता है? 
एक दर्शक: एक मनुष्य बदल नहीं, ऊर्जा को श्रृंखलाबद्ध कर रहा है.
दूसरा दर्शक: मोदी अकेले नहीं हैं, इनके साथ १.२५  भारतीय हैं.
प्रश्न.आपके टिकिट का भुगतान किसने किया? (वह सोच रहे थे कि किराये की भीड़ तो नहीं है?)
प्रश्न. क्या आप भारत जायेंगे? 
उत्तर: हाँ (राजदीप निराश)
प्रश्न: जिन्होंने मोदी को मत नहीं दिया, उनके बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर: वह चुनाव पूर्व की बात है, अब वे हम सबके प्रधानमंत्री हैं।
अन्य दर्शक: मैंने उन्हें नत नहीं दिया पर अब मैं उन्हें सुनने आया हूँ. 
प्रश्न: क्या  एक आदमी भारत बदल सकता है?
उत्तर: एक महिला भारत  तो एक मनुष्य भारत बदल सकता है. राजदीप ने  फिर जगह बदल ली। वे बार-बार यही सवाल पूछते रहे. वे जैसे उत्तर चाहते थे नहीं मिले। वे लगातार इंगित करते रहे कि भारत में दो तरह और एक वर्ग मोदी को नहीं चाहता लेकिन भीड़ उनके बहकावे में नहीं आयी। 
आखिरकार खीझकर बोल पड़े: ' भारतीय मूल के अमरीकी बातें बहुत करते हैं किन्तु देश के लिए अधिक नहीं करते।'  
किसी ने उत्तर दिया: 'हम सारा धन भारत भेजते हैं ताकि आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।' 
भीड़ नारे लगाने लगी 'राजदीप मुर्दाबाद' 
राजदीप आक्रामक होकर एक दर्शक की और लपके कालर पकड़ने के लिए. राजदीप यही चाहते थे कि अव्यवस्था हो, मारपीट हो, कार्यक्रम स्थगित हो जाए और वे कैमरे में कैद कर भारत में बेचैनी फैला सकें। उनका दुर्भाग्य कि उनका दुष्प्रयास विफल हुआ. 
यूं ट्यूब परदेखें:  http://www.youtube.com/watch?v=dqOHCxmf2ak
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विचारणीय है कि जिस देश में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखन लाल चतुर्वेदी, धर्मवीर भारती 

रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे संवेदनशील पत्रकार हुए हों वहां अंग्रेजी का दंभ 

 कर रहे पूर्वाग्रही पत्रकार देश की छवि धूमिल कर गद्दारी नहीं कर रहे हैं क्या? इन्हें कब और 

कैसे दंड दिया जाए? मुझे लगता है इनकी चैनलों का बहिष्कार हो, टी. आर. पी. घटे तभी इन्हें 

अकल आएगी। 

आपका क्या विचार है?


facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

सोमवार, 29 सितंबर 2014

sonia gandhi

सोनिया गाँधी का वह सच जो आपके होश उड़ा देगा
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September 7, 2012

Prabhat kumar bhardwaj “परवाना ” (कवि व् समाज सेवक )
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सोनिया गाँधी का वह सच जो आपके होश उड़ा देगा
लेख थोडा बड़ा है किन्तु अवश्य पढ़े(शेयर करना ना भूले)
इसे इतना शेयर कीजिये की इटली वाली माता तक पहुचे

सोनिया माइनो गांधी. भारत की सबसे ताकतवर महिला शासक जिसके प्रत्यक्ष हाथ में सत्ता भले ही न हो लेकिन जो एक सत्ताधारी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं. जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी लंबे अरसे से सोनिया गांधी के बारे में ऐसे आश्चर्यजनक बयान देते रहे हैं
जिसपर सहसा यकीन करना मुश्किल होगा. लेकिन अब जैसे जैसे समय बीत रहा है सोनिया गांधी का सच और सुब्रमण्यम स्वामी के बयान की दूरियां घटती दिखाई दे रही हैं. सोनिया गांधी के बारे में खुद सुब्रमण्यम स्वामी का यह लेख-

तीन झूठ:
कांग्रेस पार्टी और खुद सोनिया गांधी अपनी पृष्ठभूमि के बारे में जो बताते हैं, वो तीन झूठों पर टिका हुआ है। पहला ये है कि उनका असली नाम अंतोनिया है न की सोनिया। ये बात इटली के राजदूत ने नई दिल्ली में 27 अप्रैल 1973 को लिखे अपने एक पत्र में जाहिर की थी। ये पत्र उन्होंने गृह मंत्रालय को लिखा था, जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सोनिया का असली नाम अंतोनिया ही है, जो उनके जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार एकदम सही है।
सोनिया से जुड़ा दूसरा झूठ है उनके पिता का नाम। अपने पिता का नाम स्टेफनो मैनो बताया था। वो दूसरे विश्व युद्ध के समय रूस में युद्ध बंदी थे। स्टेफनो नाजी आर्मी के वालिंटियर सदस्य थे। बहुत ढेर सारे इतालवी फासिस्टों ने ऐसा ही किया था। सोनिया दरअसल इतालवी नहीं बल्कि रूसी नाम है। सोनिया के पिता रूसी जेलों में दो साल बिताने के बाद रूस समर्थक हो गये थे। अमेरिकी सेनाओं ने इटली में सभी फासिस्टों की संपत्ति को तहस-नहस कर दिया था। सोनिया ओरबासानो में पैदा नहीं हुईं, जैसा की उनके बायोडाटा में दावा किया गया है। इस बायोडाटा को उन्होंने संसद में सासंद बनने के समय पर पेश किया था, सही बात ये है कि उनका जन्म लुसियाना में हुआ। शायद वह इस जगह को इसलिए छिपाने की कोशिश करती हैं ताकि उनके पिता के नाजी और मुसोलिनी संपर्कों का पता नहीं चल पाये और साथ ही ये भी उनके परिवार के संपर्क इटली के भूमिगत हो चुके नाजी फासिस्टों से युद्ध समाप्त होने तक बने रहे। लुसियाना नाजी फासिस्ट नेटवर्क का मुख्यालय था, ये इटली-स्विस सीमा पर था। इस मायनेहीन झूठ का और कोई मतलब नहीं हो सकता।
तीसरा सोनिया गांधी ने हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई कभी की ही नहीं , लेकिन रायबरेली से चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने अपने चुनाव नामांकन पत्र में उन्होंने ये झूठा हलफनामा दायर किया कि वो अंग्रेजी में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से डिप्लोमाधारी हैं। ये हलफनामा उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान रायबरेली में रिटर्निंग ऑफिसर के सम्मुख पेश किया था। इससे पहले 1989 में लोकसभा में अपने बायोग्राफिकल में भी उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ यही बात लोकसभा के सचिवालय के सम्मुख भी पेश की थी , जो की गलत दावा था। बाद में लोकसभा स्पीकर को लिखे पत्र में उन्होंने इसे मानते हुए इसे टाइपिंग की गलती बताया। सही बात ये है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने कभी किसी कालेज में पढाई की ही नहीं। वह पढ़ाई के लिए गिवानो के कैथोलिक नन्स द्वारा संचालित स्कूल मारिया आसीलेट्रिस गईं , जो उनके कस्बे ओरबासानों से 15 किलोमीटर दूर था। उन दिनों गरीबी के चलते इटली की लड़कियां इन मिशनरीज में जाती थीं और फिर किशोरवय में ब्रिटेन ताकि वहां वो कोई छोटी-मोटी नौकरी कर सकें। मैनो उन दिनों गरीब थे। सोनिया के पिता और माता की हैसियत बेहद मामूली थी और अब वो दो बिलियन पाउंड की अथाह संपत्ति के मालिक हैं। इस तरह सोनिया ने लोकसभा और हलफनामे के जरिए गलत जानकारी देकर आपराधिक काम किया है , जिसके तहत न केवल उन पर अपराध का मुकदमा चलाया जा सकता है बल्कि वो सांसद की सदस्यता से भी वंचित की जा सकती हैं। ये सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना का भी उल्लंघन है कि सभी उम्मीदवारों को हलफनामे के जरिए अपनी सही पढ़ाई-लिखाई से संबंधित योग्यता को पेश करना जरूरी है। इस तरह ये सोनिया गांधी के तीन झूठ हैं, जो उन्होंने छिपाने की कोशिश की। कहीं ऐसा तो नहीं कि कतिपय कारणों से भारतीयों को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने ये सब किया। इन सबके पीछे उनके उद्देश्य कुछ अलग थे। अब हमें उनके बारे में और कुछ भी जानने की जरूरत है।
सोनिया का भारत में पदार्पण:
सोनिया गांधी ने इतनी इंग्लिश सीख ली थी कि वो कैम्ब्रिज टाउन के यूनिवर्सिटी रेस्टोरेंट में वैट्रेस बन गईं। वो राजीव गांधी से पहली बार तब मिलीं जब वो 1965 में रेस्टोरेंट में आये। राजीव यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे , लेकिन वो लंबे समय तक अपने पढ़ाई के साथ तालमेल नहीं बिठा पाये इसलिए उन्हें 1966 में लंदन भेज दिया गया , जहां उनका दाखिला इंपीरियल कालेज ऑफ इंजीनियरिंग में हुआ। सोनिया भी लंदन चली आईं। मेरी सूचना के अनुसार उन्हें लाहौर के एक व्यवसायी सलमान तासिर के आउटफिट में नौकरी मिल गई। तासीर की एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी का मुख्यालय दुबई में था लेकिन वो अपना ज्यादा समय लंदन में बिताते थे। आईएसआई से जुडे होने के लिए उनकी ये प्रोफाइल जरूरी थी। स्वाभावित तौर पर सोनिया इस नौकरी से इतना पैसा कमा लेती थीं कि राजीव को लोन फंड कर सकें। राजीव मां इंदिरा गांधी द्वारा भारत से भेजे गये पैसों से कहीं ज्यादा पैसे खर्च देते थे। इंदिरा ने राजीव की इस आदत पर मेरे सामने भी 1965 में तब मेरे सामने भी गुस्सा जाहिर किया था जब मैं हार्वर्ड में इकोनामिक्स का प्रोफेसर था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने मुझे ब्रेंनेडिस यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में , जहां वो ठहरी थीं , व्यक्तिगत तौर पर चाय के लिए आमंत्रित किया। पीएन लेखी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किये गये राजीव के छोटे भाई संजय को लिखे गये पत्र में साफ तौर पर संकेत दिया गया है कि वह वित्तीय तौर पर सोनिया के काफी कर्जदार हो चुके थे और उन्होंने संजय से अनुरोध किया था , जो उन दिनों खुद ब्रिटेन में थे और खासा पैसा उड़ा रहे थे और कर्ज में डूबे हुए थे। उन दिनों सोनिया के मित्रों में केवल राजीव गांधी ही नहीं थे बल्कि माधवराव सिंधिया भी थे। सिंधिया और एक स्टीगलर नाम का जर्मन युवक भी सोनिया के अच्छे मित्रों में थे। माधवराव की सोनिया से दोस्ती राजीव की सोनिया से शादी के बाद भी जारी रही। 1972 में माधवराव आईआईटी दिल्ली के मुख्य गेट के पास एक एक्सीडेंट के शिकार हुए और उसमें उन्हें बुरी तरह चोटें आईं , ये रात दो बजे की बात है , उसी समय आईआईटी का एक छात्र बाहर था। उसने उन्हें कार से निकाल कर ऑटोरिक्शा में बिठाया और साथ में घायल सोनिया को श्रीमती इंदिरा गांधी के आवास पर भेजा जबकि माधवराव सिंधिया का पैर टूट चुका था और उन्हें इलाज की दरकार थी। दिल्ली पुलिस ने उन्हें हॉस्पिटल तक पहुंचाया। दिल्ली पुलिस वहां तब पहुंची जब सोनिया वहां से जा चुकी थीं। बाद के सालों में माधवराव सिंधिया व्यक्तिगत तौर पर सोनिया के बड़े आलोचक बन गये थे और उन्होंने अपने कुछ नजदीकी मित्रों से अपनी आशंकाओं के बारे में भी बताया था। कितना दुर्भाग्य है कि वो 2001 में एक विमान हादसे में मारे गये। मणिशंकर अय्यर और शीला दीक्षित भी उसी विमान से जाने वाले थे लेकिन उन्हें आखिरी क्षणों में फ्लाइट से न जाने को कहा गया। वो हालात भी विवादों से भरे हैं जब राजीव ने ओरबासानो के चर्च में सोनिया से शादी की थी , लेकिन ये प्राइवेट मसला है , इसका जिक्र करना ठीक नहीं होगा। इंदिरा गांधी शुरू में इस विवाह के सख्त खिलाफ थीं, उसके कुछ कारण भी थे जो उन्हें बताये जा चुके थे। वो इस शादी को हिन्दू रीतिरिवाजों से दिल्ली में पंजीकृत कराने की सहमति तब दी जब सोवियत समर्थक टी एन कौल ने इसके लिए उन्हें कंविंस किया , उन्होंने इंदिरा जी से कहा था कि ये शादी भारत-सोवियत दोस्ती के वृहद इंटरेस्ट में बेहतर कदम साबित हो सकती है। कौल ने भी तभी ऐसा किया जब सोवियत संघ ने उनसे ऐसा करने को कहा।

सोनिया के केजीबी कनेक्शन:
बताया जाता है कि सोनिया के पिता के सोवियत समर्थक होने के बाद से सोवियत संघ का संरक्षण सोनिया और उनके परिवार को मिलता रहा। जब एक प्रधानमंत्री का पुत्र लंदन में एक लड़की के साथ डेटिंग कर रहा था , केजीबी जो भारत और सोवियत रिश्तों की खासा परवाह करती थी , ने अपनी नजर इस पर लगा दी , ये स्वाभाविक भी था , तब उन्हें पता लगा कि ये तो स्टेफनो की बेटी है , जो उनका इटली का पुराना विश्वस्त सूत्र है। इस तरह केजीबी ने इस शादी को हरी झंडी दे दी। इससे पता चलता है कि केजीबी श्रीमती इंदिरा गांधी के घर में कितने अंदर तक घुसा हुआ था। राजीव और सोनिया के रिश्ते सोवियत संघ के हित में भी थे , इसलिए उन्होंने इस पर काम भी किया। राजीव की शादी के बाद मैनो परिवार को सोवियत रिश्तों से खासा फायदा भी हुआ। भारत के साथ सभी तरह सोवियत सौदों , जिसमें रक्षा सौदे भी शामिल थे , से उन्हें घूस के रूप में मोटी रकम मिलती रही। एक प्रतिष्ठित स्विस मैगजीन स्विट्जर इलेस्ट्रेटेड के अनुसार राजीव गांधी के स्विस बैंक अकाउंट में दो बिलियन पाउंड जमा थे , जो बाद में सोनिया के नाम हो गये। डॉ. येवगेनी अलबैट (पीएचडी , हार्वर्ड) जाने माने रूसी स्कॉलर और जर्नलिस्ट हैं और वो अगस्त 1981 में राष्ट्रपति येल्तिसिन द्वारा बनाये गये केजीबी कमीशन के सद्स्यों में भी थीं। उन्होंने तमाम केजीबी की गोपनीय फाइलें देखीं , जिसमें सौदों से संबंधित फाइलें भी थीं। उन्होंने अपनी किताब द स्टेट विदइन स्टेट – केजीबी इन द सोवियत यूनियन में उन्होंने इस तरह की गोपनीय बातों के रिफरेंस नंबर तक दे दिये हैं , जिसे किसी भी भारतीय सरकार द्वारा क्रेमलिन से औपचारिक अनुरोध पर देखा जा सकता है। रूसी सरकार की 1982 में अल्बैटस से मीडिया के सामने ये सब जाहिर करने पर भिङत भी हुई। उनकी बातों की सत्यता की पुष्टि रूस के आधिकारिक प्रवक्ता ने भी की। (ये हिन्दू 1982 में प्रकाशित हुई थी)। प्रवक्ता ने इन वित्तीय भुगतानों की पैरवी करते हुए कहा था कि सोवियत हितों की दृष्टि से ये जरूरी थे। इन भुगतानों में कुछ हिस्सा मैनो परिवार के पास गया , जिससे उन्होंने कांग्रेस पार्टी की चुनावों में भी फंडिंग की। 1981 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो चीजें श्रीमती सोनिया गांधी के लिए बदल गईं। उनका संरक्षक देश 16 देशों में बंट गया। अब रूस वित्तीय रूप से खोखला हो चुका था और अव्यवस्थाएं अलग थीं। इसलिए श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी निष्ठाएं बदल लीं और किसी और कम्युनिस्ट देश के करीब हो गईं , जो रूस का विरोधी है। रूस के मौजूदा प्रधानमंत्री और इससे पहले वहां के राष्ट्रपति रहे पुतिन एक जमाने में केजीबी के बड़े अधिकारी थे। जब डा. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो रूस ने अपने करियर डिप्लोमेट राजदूत को नई दिल्ली से वापस बुला लिया और तुरंत उसके पद पर नये राजदूत को तैनात किया , जो नई दिल्ली में 1960 के दशक में केजीबी का स्टेशन चीफ हुआ करता था। इस मामले में डॉ. अल्बैट्स का रहस्योदघाटन समझ में आता है कि नया राजदूत सोनिया के केजीबी के संपर्कों के बारे में बेहतर तरीके से जानता था। वो सोनिया से स्थानीय संपर्क का काम कर सकता था। नई सरकार सोनिया के इशारों पर ही चलती है और उनके जरिए आने वाली रूसी मांगों को अनदेखा भी नहीं कर सकती। क्या इससे ये नहीं लगता कि ये भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक भी हो सकता है। वर्ष 2001 में मैंने दिल्ली में एक रिट याचिका दायर की , जिसमें केजीबी डाक्यूमेंट्स की फोटोकापियां भी थीं और इसमें मैंने सीबीआई जांच की मांग की थी लेकिन वाजपेई सरकार ने इसे खारिज कर दिया। इससे पहले सीबीआई महकमे को देखने वाली गृह राज्य मंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने मेरे 3 मार्च 2001 के पत्र पर सीबीआई जांच का आदेश भी दे दिया था लेकिन इस मामले पर सोनिया और उनकी पार्टी ने संसद की कार्रवाई रोक दी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेई ने वसुधरा की जांच के आदेश को खारिज कर दिया। मई 2002 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक दिशा निर्देश जारी किया कि वो रूस से मालूम करे कि सत्यता क्या है , रुसियों ने ऐसी किसी पूछताछ का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सवाल ये है कि किसने सीबीआई को इस मामले पर एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया था। वाजपेई सरकार ने , लेकिन क्यों ? इसकी भी एक कहानी है। अब सोनिया ड्राइविंग सीट पर हैं और सीबीआई की स्वायत्ता लगभग खत्म सी हो चुकी है

सोनिया और भारत के कानूनों का हनन:
सोनिया के राजीव से शादी के बाद वह और उनकी इतालवी परिवार को उनके दोस्त और स्नैम प्रोगैती के नई दिल्ली स्थित प्रतिनिधि आटोवियो क्वात्रोची से मदद मिली। देखते ही देखते मैनो परिवार इटली में गरीबी से उठकर बिलियोनायर हो गया। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था जिसे छोड़ा गया। 19 नवंबर 1964 को नये सांसद के तौर पर मैंने प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी से संसद में पूछा क्या उनकी बहू पब्लिक सेक्टर की इंश्योरेंस के लिए इंश्योरेंस एजेंट का काम करती है (ओरिएंट फायर एंड इंश्योरेंस) और वो भी प्रधानमंत्री हाउस के पते पर और उसके जरिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पीएमओ के अधिकारियों का इंश्योरेंस करती हैं। जबकि वो अभी इतालवी नागरिक ही हैं (ये फेरा के उल्लंघन का मामला भी था) । संसद में हंगामा हो गया। कुछ दिनों बाद एक लिखित जवाब में उन्होंने इसे स्वीकार किया और कहा हां ऐसा हुआ था और ऐसा गलती से हुआ था लेकिन अब सोनिया गांधी ने इंश्योरेंस कंपनी से इस्तीफा दे दिया है। जनवरी 1970 में श्रीमती इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौटीं और सोनिया ने पहला काम किया और ये था खुद को वोटर लिस्ट में शामिल कराने का। ये नियमों और कानूनों का सरासर उल्लंघन था। इस आधार पर उनका वीसा भी रद्द किया जा सकता था तब तक वो इतालवी नागरिक के रूप में कागजों में दर्ज थीं। जब मीडिया ने इस पर हल्ला मचाया तो मुख्य निर्वाचक अधिकारी ने उनका नाम 1972 में डिलीट कर दिया। लेकिन जनवरी 1973 में उन्होंने फिर से खुद को एक वोटर के रूप में दर्ज कराया जबकि वो अभी भी विदेशी ही थीं और उन्होंने पहली बार भारतीय नागरिकता के लिए अप्रैल 1973 में आवेदन किया था।

सोनिया गांधी आधुनिक रॉबर्ट क्लाइव:
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी भारतीय कानूनों का सम्मान नहीं करतीं। अगर कभी उन्हें किसी मामले में गलत पाया गया या कठघरे में खडा किया गया तो वो हमेशा इटली भाग सकती हैं। पेरू में राष्ट्रपति फूजीमोरी जो खुद को पेरू में पैदा हुआ बताते थे , जब भ्रष्टाचार के मामले में फंसे और उन पर अभियोग चलने लगा तो वो जापान भाग गये और जापानी नागरिकता के लिए दावा पेश कर दिया। 1977 में जब जनता पार्टी ने चुनावों में कांग्रेस को हराया और नई सरकार बनाई तो सोनिया अपने दोनों बच्चों के साथ नई दिल्ली के इतालवी दूतावास में भाग गईं और वहीं छिपी रहीं यहां तक की इस मौके पर उन्होंने इंदिरा गांधी को भी उस समय छोड़ दिया। ये बात अब कोई नई नहीं है बल्कि कई बार प्रकाशित भी हो चुकी है। राजीव गांधी उन दिनों सरकारी कर्मचारी (इंडियन एयरलाइंस में पायलट) थे। लेकिन वो भी सोनिया के साथ इस विदेशी दूतावास में छिपने के लिए चले गये। ये था सोनिया का उन पर प्रभाव। राजीव 197८ में सोनिया के प्रभाव से बाहर निकल चुके थे लेकिन जब तक वो स्थितियों को समझ पाते तब तक उनकी हत्या हो चुकी थी। जो लोग राजीव के करीबी हैं , वो जानते हैं कि वो 1981 के चुनावों के बाद सोनिया को लेकर कोई सही कदम उठाने वाले थे। उन्होंने सभी प्रकार के वित्तीय घोटालों और 197८ के चुनावों में हार के लिए सोनिया को जिम्मेदार माना था। मैं तो ये भी मानता हूं कि सोनिया के करीबी लोग राजीव से घृणा करते थे। इस बात का जवाब है कि राजीव के हत्यारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के मृत्युदंड के फैसले पर मर्सी पीटिशन की अपील राष्ट्रपति से की गई। ऐसा उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह के लिए क्यों नहीं किया या धनंजय चट्टोपाध्याय के लिए नहीं किया ? वो लोग जो भारत से प्यार नहीं करते वो ही भारत के खजाने को बाहर ले जाने का काम करते हैं, जैसा मुहम्मद गौरी, नादिर शाह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव ने किया था। ये कोई सीक्रेट नहीं रह गया है। लेकिन सोनिया गांधी तो उससे भी आगे निकलती हुई लग रही हैं। वो भारतीय खजाने को जबरदस्त तरीके से लूटती हुई लग रही हैं।
जब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब क्रेट के क्रेट बहुमूल्य सामानों को बिना कस्टम जांच के नई दिल्ली या चेन्नई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से रोम न भेजा गया हो। सामान ले जाने के लिए एयर इंडिया और अलीटालिया को चुना जाता था। इसमें एंटिक के सामान , बहुमूल्य मूर्तियां , शॉल्स, आभूषण , पेंटिंग्स , सिक्के और भी न जाने कितनी ही बहुमूल्य सामान होते थे। ये सामान इटली में सोनिया की बहन अनुष्का उर्फ अलेक्सांद्रो मैनो विंसी की रिवोल्टा की दुकान एटनिका और ओरबासानो की दुकान गणपति पर डिसप्ले किया जाता था। लेकिन यहां उनकी बिक्री ज्यादा नहीं थी इसलिए इसे लंदन भेजा जाने लगा और सोठेबी और क्रिस्टी के जरिए बेचा जाने लगा। इस कमाई का एक हिस्सा राहुल गांधी के वेस्टमिनिंस्टर बैंक और हांगकांग एंड शंघाई बैंक की लंदन स्थित शाखाओं में भी जमा किया गया। लेकिन ज्यादातर पैसा गांधी परिवार के लिए काइमन आइलैंड के बैंक आफ अमेरिका में है। राहुल जब हार्वर्ड में थे तो उनकी एक साल की फीस बैंक आफ अमेरिका काइमन आइलैंड से ही दी जाती थी। मैं वाजपेई सरकार को इस बारे में बार-बार बताता रहा लेकिन उन्हें विश्वास में नहीं ले सका , तब मैने दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की। कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई को इंटरपोल और इटली सरकार की मदद लेकर जांच करने को कहा। इंटरपोल ने इन दोनों दुकानों की एक पूरी रिपोर्ट तैयार करके सीबीआई को भी दी, जिसे कोर्ट ने सीबीआई से मुझे दिखाने को भी कहा , लेकिन सीबीआई ने ऐसा कभी नहीं किया। सीबीआई का झूठ तब भी अदालत में सबके सामने आ चुका था जब उसने अलेक्सांद्रो मैनो का नाम एक आदमी का बताया और विया बेलिनी 14 , ओरबासानो को एक गांव का नाम बताया था जबकि मैनो के निवास की स्ट्रीट का पता था। अलबत्ता सीबीआई के वकील द्वारा इस गलती के लिए अदालत के सामने खेद जाहिर करना था लेकिन उसे नई सरकार द्वारा एडिशिनल सॉलिसीटर जनरल के पद पर प्रोमोट कर दिया गया।
एकदम ताजा मामला 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ा हुआ है। पौने दो लाख करोड के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 60 हजार करोड रुपए घूस बांटी गई जिसमें चार लोग हिस्सेदार थे। इस घूस में सोनिया गांधी की दो बहनों का हिस्सा 30-30 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री सब कुछ जानते हुए भी मूक दर्शक बने रहे। इस घोटाले में घूस के तौर पर बांटे गए 60 हजार करोड़ रुपये का दस प्रतिशत हिस्सा पूर्व संचार मंत्री ए राजा को गया। 30 फीसदी हिस्सेदारी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि को और 30-30 प्रतिशत हिस्सेदारी सोनिया गांधी की दो बहनों नाडिया और अनुष्का को गया है।
सुब्रमण्यम स्वामी (सुब्रमण्यम स्वामी जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं. उनके लेखों और वक्तव्यों से संग्रह करके इसे लेख का स्वरूप दिया है डॉ संतोष राय ने)
जागने का वक्त आ गया..
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निवेदनकर्ता
प्रभात “परवाना “
(समाज सेवक)
ब्लॉग का पता : http://prabhatbhardwaj.blogspot.in/

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नवगीत:

स्वर-सरगम
जीवन का लक्ष

दीनानाथ
लुटा आशीष
कहें: लता रख
ऊँचा शीश
आशा-ऊषा
जय बोलें
कोई न हो
सकता समकक्ष

सप्त सुरों का
सुखद निवास
कंठ, शारदा
करें प्रवास   
हृदयनाथ
अधरों का हास
कोई न तुम सा
गायन-दक्ष

राज-सिंह
वंदना करे
सुर-लय-धुन
साधना वरे
थकन-पीर
स्वर मधुर हरे
तुमसे बेहतर
कोई न पक्ष

*

muktak:

मुक्तक :

बदलता करवट समय है
मेहनती इंसां अभय है
बेचता जो चाय इस पल
महानायक वह अजय है
*
गुणग्राहक मिल जायेंगे
शत्रु स्वयं हिल जायेंगे
मन में दृढ़ संकल्प कर-
फूल अगिन खिल जायेंगे 
*
ऊँचाई पा भूल मत किंचित अपना मूल
तभी फूल पा सकेगा वरना चुभते शूल
नेकनीयत ले जो बढ़े उसे मिले मुस्कान
बदनीयत को मित्र भी लगता शत्रु समान
*
करी भूल तो सजा भी, तेरा ही है प्राप्य
आज नहीं तो कल मिले, कब तक रहे अप्राप्य
सजा मिले तो झेल ले, प्रभु की इच्छा मान
भोग कर्म फल है नहीं इसका अन्य निदान
*

navgeet:

नवगीत:

अगली सदी
हमारी ही है
हम जवान हैं

सांप-सपेरों
संतों का
माउस सम्हालना
डेमोक्रेसी
डेमोग्राफी
संग डिमांड का
एक साथ मिल
सारी दुनिया को
पुकारना
मंगल गृह पर
दस्तक देना
शुभ विहान हैं

बहुत हुआ
कानून तंत्र
कानून घटायें
पालन करें
किताबों में
मत भीड़ लगायें
छोटे लोगों खातिर
थोड़े काम बड़े कर
जग को
समझा पायें
केवल यह
निदान है

नदी देश की 
रक्तवाहिनी
स्वच्छ करेंगे
शौचालय निर्माण
शक्ति की
लाज रखेंगे
क़र्ज़ चुकाना
हमें देश का
सदा याद रख
प्रभु को दिखला दें
मानव कर में
विधान है

*



रविवार, 28 सितंबर 2014

षट्पदी:

कूद शेर की बाड़ में, कहे न काहे शेर
सुन शायर को छोड़कर, खुद हो जाता ढेर
खुद हो जाता ढेर, खुदा से जाकर कहता
तुझसे ज्यादा ताकतवर धरती पर रहता
तू देता है मूल, पर वह वसूल ले सूद
शेर सुनाता सड़े, बाड़ में खुद आ कूद

सुन ली अंग्रेजी बहुत, अब सुन हिंदी बोल
खरी-खरी बातें रहीं, जो पोलें सब खोल
जो पोलें सब खोल, पाक की करतूतों की
दहशतगर्दी करें, रात-दिन मर्दूदों की
दुनिया ने थोड़े में ज्यादा बात समझ ली
राष्ट्र संघ में बोले सच्ची बातें मोदी

न्यायालय ने किया है, सच्चा-सुलझा न्याय
वे जायेंगे जेल जो, करते हैं अन्याय
करते हैं अन्याय, मिटाकर गरिमा पद की
जिन्हें न चिंता नेताओं के घटते कद की
भोग न हो स्वीकार जाएँ वे गर देवालय
दंड इन्हें हो साफ़ करें, सड़कें शौचालय

***   



  

navgeet:

नवगीत:

राजनीति की रानी
तुझको
कारावास मिला

खरबों लूट
करोड़ों बाँटे
अपने छोड़
गैर को डाँटे

अंगुली एक
उठी औरों पर
देख-दिखाओ
खुद पर केंद्रित
तीन छिपाओ 

पाखंडों के
कुछ पंडों को
थोड़ा त्रास मिला

जनगण बेहद
खुश- सच मानो
चमचों व्यर्थ
विरोध न ठानो

करे अदालत
थोड़ी जल्दी
साफ़-सफाई
रिश्वतखोरों
आफत आयी

आम आदमी के
अधरों पर
हास खिला

***

nvgeet:

नवगीत:

गायब बेर, बेल,
सीताफल

जंगली हम
काटते जंगल
करें अपना
आप अमंगल
भा रहा है
स्वार्थ का दंगल

भूला कल
पर है हावी कल

रौंद डाले
हैं सुकोमल फूल
बच न पाये
नीम जाम बबूल
खोद डाले
हैं नदी के कूल

वहशी हम
फिर भी रहे मचल

गायब
गिद्ध काग गौरैया
दादी-
बब्बा बापू-मैया
नहीं चेतते
तनकऊ दैया!

ईश्वर! दे मति
सकें सम्हल

*
  

शनिवार, 27 सितंबर 2014

navgeet:

नवगीत:

विश्व मंच पर
गूंजे हैं
फिर हिंदी के बोल

अंग्रेजी का मोह छोड़कर
प्रतिबंधों का बंध तोड़कर
बनी बनाई लीक मोड़कर
प्रतिरोधों से सतत होड़कर

अपनी बात
विचार अलग
खुलकर कह पर तोल

अटल-नरेंद्र न क्रम अब टूटे
अंग्रेजी का मोह न लूटे
हिंदी हार न छाती कूटे
हिंदी का ध्वज उड़े न टूटे

परदेशी भाषा
सौतन सी जिसका
तनिक न मोल

आस निराश न होने देना
देश उठे खा चना-चबेना
हर दिन नूतन सपने सेना
भाषा नहीं गैर की लेना

स्वागत करना
सदा स्वदेशी ही
वरना दिल खोल
***

navgeet: sanjiv

नवगीत
*
बहुत हुआ
रोको भी
बारूदी गंध

शांति के कपोतों पर
बाजों का पहरा है
ऊपर है प्रवहमान
नीचे जल ठहरा है
सागर नभ छूता सा
पर पर्वत गहरा है

ऊषा संग
व्यस्त सूर्य
फैलाता धुंध

तानों से नातों की
छाती है घायल  
तानो ना तो बाजे
मन-मृदंग-मादल
छलछलछल छलकेगी
यादों की छागल

आसों की
श्वासों में
घुले स्नेह-गंध

होना है यदि विदेह
साधन है देह
खोना भी पाना है
यदि वर लो गेह
जेठ-घाम रूपवती
गुणवंती मेह

रसवंती
शीत, शांति
मत तज, हो अंध
*


kavita: sher aur adami

कविता:

शेर के बाड़े में
कूदा आदमी
शेर था खुश
कोई तो है जो
न घूरे दूर से
मुझसे मिलेगा
भाई बनकर.

निकट जा देखा
बँधी घिघ्घी
थी उसकी
हाथ जोड़े
गिड़गिड़ाता:
'छोड़ दो'

दया आयी
फेरकर मुख
चल पड़ा
नरसिंह नहीं
नरमेमने
जा छोड़ता हूँ

तब ही लगा
पत्थर अचानक
हुआ हमला
क्यों सहूँ मैं?
आत्मरक्षा
है सदा
अधिकार मेरा

सोच मारा
एक थप्पड़
उठा गर्दन
तोड़ डाली
दोष केवल
मनुज का है

***

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

haiku :

हाइकु

है अभिलाषा
माँ के दर्शन कर
मिटे हताशा
*
अभिलाषा है
जी भरकर खाना
पानी बताशा है
*
मंगल करो
धरा का अभिलाषा
हम सबकी
*
सीमा को देखो
अभिलाषा जनकी
धोखा ना खाओ
*
अमरीका में
जय भारत गूंजे
अभिलाषा है
*
प्रेम की भाषा
पाक समझ पाये
है अभिलाषा
*