अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद जयंती पर विशेष नवगीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
और हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
तुम निडर थे
हम डरे हैं,
अपने भाई से.
समर्पित तुम,
दूर हैं हम
अपनी माई से.
साल भर
भूले तुम्हें पर
एक दिन 'सलिल'
सर झुकाए बन गए
विनत सलाम हैं...
तुम वचन औ'
कर्म को कर
एक थे जिए.
हमने घूँट
जन्म से ही
भेद के पिए.
बात या
बेबात भी
आपस में
नित लड़े.
एकता?
माँ की कसम
हमको हराम है...
आम आदमी
के लिए, तुम
लड़े-मरे.
स्वार्थ हित
नेता हमारे
आज हैं खड़े.
सत्ता साध्य
बन गयी,
जन-देश
गौड़ है.
रो रही कलम
कि उपेक्षित
कलाम है...
तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
'सलिल' हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
*****************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 23 जुलाई 2009
अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद जयंती पर विशेष रचना
चिप्पियाँ Labels:
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संजीव 'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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21 टिप्पणियां:
नीरज गोस्वामी ने आपकी पोस्ट " नवगीत: अभिनव प्रयोग " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
सलिल जी अद्भुत रचना है आपकी...सत्य को दर्शाती...वाह...नमन है आपकी लेखनी को...
नीरज
July 23, 2009 12:36 PM को पोस्ट किया गया
karuna ने आपकी पोस्ट " नवगीत: अभिनव प्रयोग " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
आचार्य सलिल को मेरा शत -शत नमन ,आपके द्वारा प्राप्त टिप्पणी ने मेरा सम्मान और हौसला बढाया --इसी प्रकार प्रेरित करें इस सद्भावना के साथ --
आपकी कविता में आज की सच्चाई व दशा का सटीक वर्णन है |
तुम निडर थे -हम डरे हैं अपने भाई से ,
तुम वचन और कर्म कर
एक थे जिए ,
हमने घूँट जन्म से ही ,
भेद के पिए -
इन पंक्तियों ने मन को छू लिया ,यही तो हमारी त्रासदी है कि हम जानकार भी कुछ नहीं कर पाते |भावाभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है |बधाई ....
July 23, 2009 2:32 PM को पोस्ट किया गया
’एकता’
माँ की कसम
हमको हराम है..
-वाह! अद्भुत!!बहुत सुन्दर ..बधाई.
क्या बात कही आपने......
आपकी कलम को नमन......सत्य से सामना कराती अद्वितीय रचना ....पढ़वाने के लिए आभार...
रंजना
nitesh …
तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
और हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
प्रहार करती कविता।
July 24, 2009 1:21 PM
बहुत अच्छी कविता, बधाई।
July 24, 2009 1:45 PM
सुंदर रचना !!
July 24, 2009 2:45 PM
SATYAM,SHIVAM AUR SUNDARAM KO
CHARITAARTH KARTEE HUEE KAVITA.
BADHAAEE ACHARYA JEE.
July 24, 2009 3:00 PM
चंद्रशेखर आजाद जिस आजादी के लिये कुर्बान हुए उसकी कीमत हमने रखी ही नहीं।
July 24, 2009 5:56 PM
कविता आईना दिखाती है।
ACHARYA RAMESH SACHDEVA …
HAKIKAT KO BYA KARTI KAVITA H
AAPKA AABHAR.
SAMJHNE WALE KE LIYE YEH BAHUT H.
SATIK AUR SALIL H.
AABHAR SAWIKAR KARE.
RAMESH SACHDEVA
DIRECTOR
HPS SR. SEC. SCHOOL
SHERGARH, MANDI DABWALI
hpsdabwali07@gmail.com
July 25, 2009 7:20 AM
सशक्त रचना जिसका एक एक शब्द सार्थक है।
July 25, 2009 7:54 AM
आम आदमी
के लिए, तुम
लड़े-मरे.
स्वार्थ हित
नेता हमारे
आज हैं खड़े.
सत्ता साध्य
बन गयी,
जन-देश
गौड़ है.
रो रही कलम
कि उपेक्षित
कलाम है...
तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
और हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
काश कि आपकी कविता में अंतर्निहित भावना जन जन तक पहुँचे।
July 25, 2009 8:02 AM
Nice Poetry on Ajad-Jayanti.
July 25, 2009 9:10 PM
सलिल साब को प्रणाम इस अनूठी रचना पर !
July 26, 2009 8:29 PM
तुम
गुलाम देश में
आजाद हो जिए
और हम
आजाद देश में
गुलाम हैं....
यही शब्द इतना कुछ कह रहे हैं कि और कुछ कहने की जरूरत नहीं है... यही गंभीर लेखन का एक सटीक उदाहरण है
July 27, 2009 11:31 AM
gulaam desh men azad aur azad desh men gulam...waah kya baat hai?...
सौम्य सलिल जी,
वन्दे
ऐसे विरल शहीदों के आगे हम कितने छोटे लगते हैं. हम सुखों में दुःख बनाने में ही पारंगत हैं. अपनी विकृत अहम् मान्यताओं के कारण किसी अन्य को मान्यता देना हम भूल गए. एक दिन के लिए भी हम दो पल को उनको याद नहीं करते जो केवल और केवल हमारे लिए ही मरे थे. सलिल जी शहीदों को याद करते ही मेरे मन में एक विचित्र सी पीड़ा होती है.
पुष्प केवल दो जगह ही चढ़ने चाहिए -----------
मंदिर में और शहीदों पर किसी और भावना के लिए पुष्पों का प्रयोग प्रकृति का अपमान है.
Long live azad... gratitudes to mortyres
amar shaeedon ne desh par sb kuchh luta diya. hm khud unkee virasat kee samhaal nheen kar sake
रचना को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर प्रोत्साहन देनेवाले सभी साहित्यप्रेमियों का धन्यवाद.
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