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मंगलवार, 1 अगस्त 2023

पुरोवाक्, तारेश दवे

पुरोवाक् 
मुक्तक मुक्त मणि सदृश
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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विश्ववाणी हिंदी की सर्वाधिक प्राचीन और सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य विधा मुक्तक का वैशिष्ट्य वैचारिक संपन्नता और सांदेशिक समृद्धि की दृष्टि से सर्वकालीन उपादेयता युक्त होना है। वीर भूमि राजस्थान के तरुण कवि तारेश दवे का मुक्तक संग्रह 'यादें देकर जाऊँगा' २४० मुक्त मणियों की संग्रहणीय कृति है। तारेश आत्वामालोकन और आत्मालोचन को आत्मोन्नयन की कुंजी मानते हैं-

दुखाकर दिल किसी का चैन से तुम सो न पाओगे
कहो क्या गैर की खातिर यूँ अपनों को रुलाओगे
कभी तन्हाई में बैठो तो खुद से बात ये पूछो
गलत रस्ते पे यूँ कब तक कहो खुद को चलाओगे।

तारेश की जुबान चाशनी में तैरती जलेबी की तरह हिन्दुस्तानी तहजीब की मिठास से भरी है। वे न तो संस्कृतनिष्ठ क्लिष्ट शुद्ध हिंदी वापरते हैं न ही अंग्रेजीपरस्त हिंगलिश का प्रयोग करते हैं। मुक्तक के कथ्य के अनुरूप शब्द चयन उनके मुक्तकों को जीवंतता प्रदान करता है।

अगर सच्चाई है दिल में तो फिर किस बात का डर है
तुम्हारे साथ धरती है, तुमहारे साथ अंबर है
हों नेकी और ईमांदारी जहाँ बुनियाद के पत्थर
यकीं मानो कि तूफ़ानों में भी महफूज वो घर है।

इन मुक्तकों को पढ़ते हुए हालाते-दौरां से मुक्तक-दर-मुक्तक मुलाकात होती है। सियासी और मजहबी बुराइयों का जिक्र करते हुए उन पर समझदार बाशिंदे के नुक्ता-ए-नजर से इस तरह तबसिरा करना की किसी को उँगली उठाने का मौका न मिले, एक नए कलमकार के लिए मुश्किल होता है लेकिन तारेश इस मुश्किल को आसान बना सके हैं। उनकी सलाहियत काबिले-दाद है। 
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- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, जबलपुर, ९४२५१८३२४४    

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