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कहाँ मिले संतोष, आस पास तो है नहीं।
रीत रहा है कोष, तुष्टि नहीं मिलती कहीं।।
रीत रहा है कोष, तुष्टि नहीं मिलती कहीं।।
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कैसे पाएँ खोज, कहाँ गुम हुई प्रेरणा।
निरुत्तरित हो रोज, प्रश्न आपसे पूछता।।
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यायावर प्रज्ञान, भटक रहा है चाँद पर।
भारत का अभिमान, जनगण का अरमान है।।
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विक्रम पर प्रज्ञान, लदा हुआ बैताल बन।
जान रहा अनजान, भेजे डाटा निरंतर।।
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लैंडर करता लैंड, जब तब रुकती श्वास हर।
है सचमुच यह ट्रेंड, सॉफ्ट लैंडिंग कर सका।।
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