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बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला 

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माँ जमीन में जमी जड़, पिता स्वप्न आकाश
पिता हौसला-कोशिशें, माँ ममतामय पाश
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वे दीपक ये स्नेह थीं, वे बाती ये ज्योत
वे नदिया ये घाट थे, मोती-धागा पोत 
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गोदी-आंचल में रखा, पाल-पोस दे प्राण 
काँध बिठा, अँगुली गही, किया पुलक संप्राण
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ये गुझिया वे रंग थे, मिल होली त्यौहार 
ये घर रहे मकान वे,बाँधे बंदनवार 
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शब्द-भाव रस-लय सदृश, दोनों मिलकर छंद 
पढ़-सुन-समझ मिले हमें, जीवन का आनंद 
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नेत्र-दृष्टि, कर-शक्ति सम, पैर-कदम मिल पूर्ण
श्वास-आस, शिव-शिवा बिन, हम रह गये अपूर्ण 
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७.१०.२०१८

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