दोहा सलिला
*माँ जमीन में जमी जड़, पिता स्वप्न आकाश
पिता हौसला-कोशिशें, माँ ममतामय पाश
*
वे दीपक ये स्नेह थीं, वे बाती ये ज्योत
वे नदिया ये घाट थे, मोती-धागा पोत
*
गोदी-आंचल में रखा, पाल-पोस दे प्राण
काँध बिठा, अँगुली गही, किया पुलक संप्राण
*
ये गुझिया वे रंग थे, मिल होली त्यौहार
ये घर रहे मकान वे,बाँधे बंदनवार
*
शब्द-भाव रस-लय सदृश, दोनों मिलकर छंद
पढ़-सुन-समझ मिले हमें, जीवन का आनंद
*
नेत्र-दृष्टि, कर-शक्ति सम, पैर-कदम मिल पूर्ण
श्वास-आस, शिव-शिवा बिन, हम रह गये अपूर्ण
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७.१०.२०१८
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