नवगीत
*
महरी पर गड़ती
गृद्ध-दृष्टि सा
हो रहा पर्यावरण
*
दोष अपना और पर मढ़
सभी परिभाषा गलत पढ़
जिस तरह हो सीढ़ियाँ चढ़
देहरी के दूर
मिट्टी गंदगी सा
कर रहे हैं आचरण
*
हवस के बनकर पुजारी
आरती तन की उतारी
दियति अपनी खुद बिगाड़ी
चीयर डाला
असुर बनकर
माँ धरा का आवरण
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020
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