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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

दोहा शतक एकादशी शशि त्यागी

1
मन में तू ही तू रमा, लागी मन में टेर।
मुझमें मैं मरता गया, लगी नहीं कुछ देर।।
2
धीरज धारण कीजिए, धर मन में संतोष।
सहज ही भर जाएगा, जीवन रूपी कोष।।
3
सच को धारण कीजिए,सच है ईश समान।
भव सिंधु तर जाएगा,बाकी ईश विधान।।
4
झूठ कभी मत बोलना,झूठ है पाप समान।
अपने मन में तोलना,करना विष का पान।।
5
झूठ न मन को सोहता,झूठ का न कुछ काम।
कलयुग के बाजार में, बिकता है बिन दाम।।
शशि त्यागी
02-06-2018
भोले बालक चिन दिए,मुगल काल बतलाय। 
धर्म की रक्षा कीजिए,गुरु गोविंद सहाय।। 7 
पञ्च प्यारे साधते,हाथों में तलवार। 
सिक्ख समर्पण झलकता,धर्म हेतु हर बार।। 8 
सदा गवाही दे रहा, जलियाँवाला बाग। 
आज़ादी की बलि चढ़ा, देश धर्म अनुराग।। 9 
निर्दयी वह डायर था,दिन था बहुत विशेष। 
सत्य प्रमाणित कर रहे,गोलिन के अवशेष।। 10 
आजादी नींव गड़ा, नर-नारी बलिदान। 
आजादी तब ही मिली,भारत यह तू जान।। 
11 घोर कलयुगी काल में,हीरे-मोती मान। 
मनभावन सुख देत है,अविकारी संतान।। 12 
नोंक-झोंक लगती भली, जीवन साथी-साथ। 
इक दूजे को छेड़ते,ले हाथों में हाथ।। 13 
हँसी ठिठोली हो भली, बिखरे हों सब रंग। 
कुछ पल सभी बिताइए,अनमोल मीत संग।। 14 
घर आए अतिथि का, खूब कीजिए मान। 
यश-कीर्ति घर से चले, यही लीजिए जान।। 15 
जीवन में उल्लास हो,रख मन में विश्वास। 
मिलेगा फल निश्चित ही , जिसको जिसकी आस।। 
16 अंग-अंग में प्रभु रमा,शुचि गंगा माँ गाय। 
नित इनकी सेवा करो,मन कोमल हो जाए।। 17 
जून माह घर यूँ लगे,हो शीतल जल कूप। 
तन को शीतलता मिले,मन के हो अनुरूप।। 18 
धरा-अंबर डोल रहा,अंधड़ रहयो डरा। 
मानव के दुष्कर्म का, भरन लगा है घड़ा।। 19 
पढ़ा-लिखा संतान को, भेज दिया परदेस। 
सेवा करने के लिए, किसको दें आदेश।। 20 
पढ़-लिखकर उन्नति करे,करे देश हित काम। 
हर क्षेत्र विकसित करे,करे देश का नाम।।

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