एक रचना
*
महरी पर गड़ती
गृद्ध-दृष्टि सा
हो रहा पर्यावरण
*
दोष अपना और पर मढ़
सभी परिभाषा गलत पढ़
जिस तरह हो सीढ़ियाँ चढ़
देहरी के दूर
मिट्टी गंदगी सा
कर रहे हैं आचरण
*
हवस के बनकर पुजारी
आरती तन की उतारी
दियति अपनी खुद बिगाड़ी
चीयर डाला
असुर बनकर
माँ धरा का आवरण
***
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महरी पर गड़ती
गृद्ध-दृष्टि सा
हो रहा पर्यावरण
*
दोष अपना और पर मढ़
सभी परिभाषा गलत पढ़
जिस तरह हो सीढ़ियाँ चढ़
देहरी के दूर
मिट्टी गंदगी सा
कर रहे हैं आचरण
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हवस के बनकर पुजारी
आरती तन की उतारी
दियति अपनी खुद बिगाड़ी
चीयर डाला
असुर बनकर
माँ धरा का आवरण
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