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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

सरस्वती वंदना नीता कुकरेती

नीता कुकरेती

















जन्म  - ७ सितंबर १९५२,  नरेन्द्रनगर, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड। 
जीवन साथी - श्री हेमवती नन्दन कुकरेती। 
शिक्षा - एम.ए. (अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान), एम.एड. 
संप्रति - सेवा निवृत्त प्रधानाचार्या। 
प्रकाशन - गढ़वाली - मेरी अग्याल, हिन्दी - शब्द बन गये गीत, गढ़वाली गद्य-पद्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित। 
कैसेट - गढ़वाली गीत - भुम्याल। 
उपलब्धि - आकाशवाणी नजीबाबाद /देहरादून की उच्च श्रेणी की कलाकार,  गढ़वाली पारम्परिक व स्वरचित गीतों का प्रसारण। सदस्य 

राज्य गीत निर्माण समिति, अनेक साहित्यिक सम्मान। 
*

तेरी शरण मा  

द्वी हत्थुं तैं जोड़ी माता, वंदना करुणु छौं मी
विद्या, बुद्धि देण वली माँ, तेरी शरण मा अयुं मी  

आखरों कु ज्ञान दें माँ, मान दे सम्मान माँ
कण्ठ मा सुर ताल दे माँ, अर्चना का गान मा  
तू दया की देवी भगवती, छौं सरल मतिहीन मी....


बाटो सौगौं हो न हो, पर विकट बाटो कभी न हो
हिम्मत बणैकि रखी माँ, हार मा ना होश खौं  
ऊँगली पकड़ी दिखै बाटू, छौं निर्बुद्ध अबोध मी....

कर्म का बाटा मा काण्डा, संगति मिलदन सच्चि ही
आँखों छौंदा अन्धा बणदा, यू अज्ञान च अभिशाप भी  
ये अन्धेरा तैं छाँटू करदी, खौरी लगौणु त्वेमु मी....

कर्म पथ बटि विरत ना होवां, हमतैं इन वरदान दे
नवल गति नव रंग दगड़ी, भाव मा उपकार दे 
वीणा वादिनी बुद्धिदायिनी, विनति करणु त्वै मु मी....
*
हिंदी : तुम्हारी शरण में

दोनों हाथ जोड़कर माता, वंदना करती हूँ मैं 
विद्या-बुद्धि दात्री मैया, शरण तेरी आई हूँ मैं 

अक्षरों का ज्ञान दो माँ, मान दो, सम्मान दो 
कंठ में सुर-ताल दो माँ, अर्चना का गान हो 
तू दया की देवी अंबे, अति सरल मतिहीन हूँ मैं....  

राह सीधी हो न हो, पर विकट राहें माँ न हों 
रहे हिम्मत बनी मैया!, हार में गुम होश न हो   
पकड़ अंगुली दिखा दे पथ, सुत अबुद्धि अबोध हूँ मैं....

कर्म-पथ में मिलें काँटें, साथ मिलता सच नहीं 
आँख रहते बने अंधे, अज्ञान है अभिशाप भी 
यह अँधेरा दूर कर दे, व्यथा कहने आई हूँ मैं....

कर्म-पथ से विरत मत हों, हमें यह वरदान दे 
नवल गति नव रंग भरदे, भाव में उपकार दे 
वीणावादिनि! बुद्धिदायनी!, विनय यही करती हूँ मैं....   
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