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बुधवार, 28 सितंबर 2016

muktak

मुक्तक 
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एक से हैं हम मगर डरे - डरे 
जी रहे हैं छाँव में मरे - मरे 
मारकर भी वो नहीं प्रसन्न है 
टांग तोड़ कह रहे अरे! अरे!!
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बता रहे कुसूरवार हमको ही 
सता रहे हजार बार हमको ही 
नज़र झुकाई तो झुकाई क्यों कहो? 
धता बता रहे निहार हमको ही 
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उफ़ मैंने क्या किया? 
जिया न लेकर दिया 
जाम उठा हाथों में-
कहा न लेकिन पिया 
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मत पूछो कब-कहाँ निहारा? 
अनजाने ही किसे पुकारा 
लुक-छिप खेले आँख मिचौली 
जो उसको ही मिला सहारा 
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नहीं बोलना कुछ कह बोला 
बोल नयन से अधर न खोला 
अच्छा-खासा है प्रमोद यह 
बिना शहद मधु चुप रह घोला

प्रेरणा किसको मिली कब और कैसे?
अर्चना किसने करी कब और कैसे?
वंदना ने प्रार्थना का पथ न रोका-
साधना-आराधना कब और कैसे?
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उषा की आभा गुलाबी खूब है 
प्रभा संध्या की सुहानी खूब है 
चाँदनी को देख तारों ने कहा-
विभा चंदा की प्रभावी खूब है 
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