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बुधवार, 14 सितंबर 2016

muktak

मुक्तक 
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काश! कभी हम भी सुधीर हो पाते 
संघर्षों में जीवन-जय गुंजाते
गगन नापते, बूझ दिशा अनबूझी 
लौट नीड पर ग़ज़लें-नगमे गाते
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सोच को विस्तार देते जाइए
भाव को संसार देते जाइये
गीत का यदि आचमन कर सकें तो
'सलिल'-संग हर शब्द में मुस्काइये
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काण्ड सुन्दर हो, तभी घर, घर रहे
साथ मनहर हो, मधुर हर स्वर रहे
सृजन के संसार में वैराग्य संग-
प्रेम का पाथेय भी उर में रहे
*
माँ मरती ही नही, जिया करती है संतानों में
श्वास-आस अपने -सपने कब उसे भूल पाते हैं
हो विदेह वह साथ सदा, संकट में संबल देती-
धन्य वही सुत जो मैया के गुण आजीवन गाते
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सुर जीत रहे तो अ-सुर हार कर खुद बाहर हो जायेंगे
गीत-गुहा में स-सुर साधना कर नवगीत सुनाएँगे
हर दिन होता जन्म दिवस है, नींद मरण जो मान रहे
वे सूरज सँग जाग, करें श्रम, अपनी मन्ज़िल पाएँगे
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