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मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

chitra par kavita: sanjiv

चित्र पर कविता:
संजीव
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अगम अनाहद नाद हीं, सकल सृष्टि का मूल
व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल
निराकार ओंकार का, चित्र न कोई एक
चित्र गुप्त कहते जिसे, उसकाचित्र हरेक
सृष्टि रचे परब्रम्ह वह, पाले विष्णु हरीश
नष्ट करे शिव बन 'सलिल', कहते सदा मनीष

कंकर-कंकर में रमा, शंका का  कर अन्त
अमृत-विष धारण करे, सत-शिव-सुन्दर संत
महाकाल के संग हैं, गौरी अमृत-कुण्ड
सलिल प्रवाहित शीश से, देखेँ चुप ग़ज़-तुण्ड
विष-अणु से जीवाणु को, रचते विष्णु हमेश
श्री अर्जित कर रम रहें, श्रीपति सुखी विशेष
ब्रम्ह-शारदा लीन हो, रचते सुर धुन ताल
अक्षर-शब्द सरस रचें, कण-कण देता ताल
नाद तरंगें संघनित, टकरातीं होँ एक
कण से नव कण उपजते, होता एक अनेक
गुप्त चित्र साकार हो, निराकार से सत्य
हर आकार विलीन हो, निराकार में नित्य
आना-जाना सभी को, यथा समय सच मान
कोई न रहता हमेशा, परम सत्य यह जान
नील गगन से जल गिरे, बहे समुद मेँ लीन
जैसे वैसे जीव हो, प्रभु से प्रगट-विलीन
कलकल नाद सतत सुनो, छिपा इसी में छंद
कलरव-गर्जन चुप सुनो, मिले गहन आनंद
बीज बने आनंद ही, जीवन का है सत्य
जल थल पर गिर जीव को, प्रगटाता शुभ कृत्य
कर्म करे फल भोग कर, जाता खाली हाथ
शेष कर्म फल भोगने, फ़िर आता नत माथ
सत्य समझ मत जोड़िये, धन-सम्पद बेकार
आये कर उपयोग दें, ओरों को कर प्यार
सलिला कब जोड़ें सलिल, कभी न रीते देख
भर-खाली हो फ़िर भरे, यह विधना का लेख

3 टिप्‍पणियां:

Kusum Vir ने कहा…

Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com

ekavita


आदरणीय आचार्य जी,
जीवन की दार्शनिकता और आध्यात्मिकता पर अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए अपार सराहना और बधाई l
सादर,
कुसुम

sanjiv ने कहा…

कुसुम जी
उत्साह वर्धन हेतु आभार। किसी एक के कारण मंच न छोडें। फेसबुक पर भी आइये।

Kusum Vir ने कहा…

Kusum Vir द्वारा yahoogroups.com
ekavita


आदरणीय आचार्य जी,
मेरे प्रति आपकी स्नेहसिक्त संवेदनाओं के लिए बहुत आभारी हूँ l
सादर,
कुसुम