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रविवार, 13 फ़रवरी 2011

मुक्तिका: जमीं बिस्तर है --- संजीव वर्मा 'सलिल'

मुक्तिका:

जमीं बिस्तर है

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
जमीं बिस्तर है, दुल्हन ज़िंदगी है.
न कुछ भी शेष धर तो बंदगी है..

नहीं कुदरत करे अपना-पराया.
दिमागे-आदमी की गंदगी है..

बिना कोशिश जो मंजिल चाहता है
इरादों-हौसलों की मंदगी है..

जबरिया बात मनवाना किसी से
नहीं इंसानियत, दरिन्दगी है..

बात कहने से पहले तौल ले गर
'सलिल' कविताई असली छंदगी है..

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1 टिप्पणी:

Navin C. Chaturvedi ने कहा…

Navin C. Chaturvedi
'छंदगी' शब्द प्रयोग आकर्षित करता है सलिल जी|