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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

एक मुक्तिका: संजीव सलिल'

अभिनव प्रयोग:

यमकमयी  मुक्तिका:

संजीव सलिल'
*
नहीं समस्या कोई हल की.
कोशिश लेकिन रही न हलकी..

विकसित हुई सोच जब कल की.
तब हरि प्रगटें बनकर कलकी..

सुना रही है सारे बृज को
छल की कथा गगरिया छलकी..

बिन पानी सब सून हो रहा
बंद हुई जब नलकी नल की..

फल की ओर निशाना साधा. 
किसे लगेगा फ़िक्र न फल की?

नभ लाया चादर मखमल की.
चंदा बिछा रहा  मलमल की.. 

खल की बात न बट्टा सुनता.  
जब से संगत पायी खल की..

श्रम पर निष्ठां रही सलिल की.
दुनिया सोचे लकी-अनलकी..

 कर-तल की ध्वनि जग सुनता है.
'सलिल' अनसुनी ध्वनि पग-तल की..

                 *************

13 टिप्‍पणियां:

Vishwa Deepak ने कहा…

Vishwa Deepak
आचार्य जी,
मज़ा आ गया पढकर।
यह अनुपम प्रयोग आप हीं कर सकते थे।
सच में...

- madanmohanarvind@gmail.com ने कहा…

बोलचाल के शब्दों से यमक क़ी उत्पत्ति आपके असाधारण काव्य-कौशल का मुंह बोलता प्रमाण है.
सादर
मदन मोहन 'अरविन्द

Anoop Bhargava ekavita ने कहा…

आदरणीय संजीव जी:

बहुत सुन्दर लगे आप के यह प्रयोग ।

सादर

अनूप


Anoop Bhargava
732-407-5788 (Cell)
609-275-1968 (Home)
732-420-3047 (Work)
I feel like I'm diagonally parked in a parallel universe.

Visit my Hindi Poetry Blog at http://anoopbhargava.blogspot.com/
Visit Ocean of Poetry at http://kavitakosh.org/

- dkspoet@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
सुंदर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करें।
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

sn Sharma ✆ ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी,
यमक अलंकार का अभिनव प्रयोग मन मुग्ध कर गया |
साधुवाद |
सादर,
कमल

achal verma ekavita, ने कहा…

हरबार कुछ नया है
जो मोहता है मन को
हम भी हैं भाग्यशाली ,
माथा झुका नमन को
Your's ,

Achal Verma

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

पढ़ कर दिल से आई आवाज़
सलिल नर्मदा ज़िंदाबाद.

--ख़लिश

Amitabh Tripathi ✆ ekavita ने कहा…
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Divya Narmada ने कहा…

गुणग्राहकता को नमन

sanjiv 'salil' ने कहा…
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shar_j_n ekavita ने कहा…

६:५१ अपराह्न,22-2-2011



हे राम, कितना कितना काव्य कौशल!
नमन है आपको आचार्य जी.
शिल्प तो अनूठा है ही, कथ्य भी कुछ कम नहीं.

सादर शार्दुला

Divya Narmada ने कहा…

आपकी पारखी दृष्टि और गुणग्राहकता को नमन.

Amitabh Tripathi ✆ ekavita ने कहा…

२४ फरवरी 2011



आदरणीय सलिल जी,
चातुर्यपूर्ण शब्द्प्रयोंगों से रचना रोचक हो गयी है|
सादर
अमित