तेवरी ::
किसलिए?
नवीन चतुर्वेदी
*
*
बेबात ही बन जाते हैं इतने फसाने किसलिए?
दुनिया हमें बुद्धू समझती है न जाने किसलिए?
ख़ुदग़र्ज़ हैं हम सब, सभी अच्छी तरह से जानते!
हर एक मसले पे तो फिर मुद्दे बनाने किसलिए?
सब में कमी और खोट ही दिखता उन्हें क्यूँ हर घड़ी?
पूर्वाग्रहों के जिंदगी में शामियाने किसलिए?
हर बात पे तकरार करना शौक जैसे हो गया!
भाते उन्हें हर वक्त ही शक्की तराने किसलिए?
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 10 अक्तूबर 2010
तेवरी : किसलिए? नवीन चतुर्वेदी
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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3 टिप्पणियां:
ठाले-बैठे लिख बैठे जो वह ही जीवन का सच है
खतरनाक है सच कहना यह भी दुनिया का एक सच है..
सलिल-नवीन न सच बोलें तो बोलो जोखिम लेगा कौन?
जोखिम लेने पर ही विष अमृत बनता है, यह सच है..
नीलकंठ के आराधक हम नहीं ज़हर से दूर रहें.
तम पीकर उजियारा बाँटे, दीपक बनकर यह सच है.
जिसके तेवर अलग सभी से, जो विद्रोही स्वर साधे.
संस्कार परिवर्तन जिसका, जो दे बद को निज काँधे.
मौन न रह जो सतत चुनौती दे-स्वीकारे आगे बढ़.
वही तेवरी, देखे तेवर, सके जमाना सपने गढ़..
आचार्य जी प्रणाम
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