*कार्यकारिणी - २०२०-२१*
(सहयोगी संस्थाएँ- प्रसंग जबलपुर, युवा उत्कर्ष साहित्य संस्था दिल्ली, साहित्य संगम दिल्ली, सृजन संगम भिंड, स्वसेवा संयोजन समिति सिहोरा)
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मार्गदर्शक मंडल- डॉ. सुरेश कुमार वर्मा, आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, आशा वर्मा, डॉ. इला घोष ।
परामर्श मंडल- इं. अमरेंद्र नारायण, डॉ. राजलक्ष्मी शिवहरे, डॉ. साधना वर्मा, डॉ. सुमनलता श्रीवास्तव, इं. अमरनाथ, मंजरी शर्मा, डॉ. संतोष शुक्ला, श्याम देवपुरा।
संस्थापक-संयोजक - आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’।
अध्यक्ष - बसंत कुमार शर्मा।
उपाध्यक्ष - जयप्रकाश श्रीवास्तव।
सचिव - इंजी. अरुण भटनागर।
मुख्यालय सचिव - श्रीमती छाया सक्सेना।
कोषाध्यक्ष - हरिसहाय पांडे।
संगठन सचिव - डॉ. अनिल बाजपेयी।
प्रचार सचिव - अविनाश ब्यौहार।
इकाई संयोजक -
सरला वर्मा भोपाल, निशि शर्मा 'जिज्ञासु' दिल्ली, डॉ. अनिल जैन दमोह, डॉ. अनुराग श्रीवास्तव नरसिंहपुर, डॉ. नीलमणि दुबे शहडोल, डॉ. आलोकरंजन पलामू, पुनीता भारद्वाज भीलवाड़ा, अखिलेश सक्सेना कासगंज, शेख शहजाद उस्मानी शिवपुरी, ।
प्रकोष्ठ प्रभारी -
साहित्य - डॉ. मुकुल तिवारी, कला - अस्मिता शैली।
कार्यकारिणी सदस्य-
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
कार्यक्रम विवरण - दिन / कार्यक्रम का नाम/समय / संचालक
सोमवार - नर्मदा तीरे उपनिषद वार्ता, अपराह्न ५ बजे से, श्रीमती सरला वर्मा भोपाल
मंगलवार - कृति और कृतिकार, अपराह्न ५ बजे से, श्रीमती निशि शर्मा दिल्ली
बुधवार -
गुरुवार -
शुक्रवार - रचना और रचनाकार, अपराह्न ५ बजे से, श्रीमती निशि शर्मा दिल्ली
शनिवार - मानस विमर्श, अपराह्न ५ बजे से श्रीमती सरला वर्मा, डॉ. मुकुल तिवारी जबलपुर
रविवार - कृति और कृतिकार संत समागम, पूर्वाह्न ११ बजे से डॉ. संगीता भारद्वाज भोपाल
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नव छंद
गीत
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छंद: रविशंकर
विधान:
२. मात्रा क्रम लघु लघु गुरु लघु लघु
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धन तेरस
बरसे रस...
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मत निन्दित
बन वन्दित।
कर ले श्रम
मन चंदित।
रचना कर
बरसे रस।
मनती तब
धन तेरस ...
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कर साहस
वर ले यश।
ठुकरा मत
प्रभु हों खुश।
मन की सुन
तन को कस।
असली तब
धन तेरस ...
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सब की सुन
कुछ की गुन।
नित ही नव
सपने बुन।
रख चादर
जस की तस।
उजली तब
धन तेरस
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लघुकथा:
बाल चन्द्रमा
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वह कचरे के ढेर में रोज की तरह कुछ बीन रहा था, बुलाया तो चला आया। त्यौहार के दिन भी इस गंदगी में? घर कहाँ है? वहाँ साफ़-सफाई क्यों नहीं करते? त्यौहार नहीं मनाओगे? मैंने पूछा।
'क्यों नहीं मनाऊँगा?, प्लास्टिक बटोरकर सेठ को दूँगा जो पैसे मिलेंगे उससे लाई और दिया लूँगा।' उसने कहा।
'मैं
लाई और दिया दूँ तो मेरा काम करोगे?' कुछ पल सोचकर उसने हामी भर दी और मेरे कहे अनुसार सड़क पर नलके से नहाकर घर आ गया। मैंने बच्चे के एक जोड़ी कपड़े उसे पहनने को दिए, दो रोटी खाने को दी और सामान लेने बाजार चल दी। रास्ते में उसने बताया नाले किनारे झोपड़ी में रहता है, माँ बुखार के कारण काम नहीं कर पा रही, पिता नहीं है।
ख़रीदे सामान की थैली उठाये हुए वह मेरे साथ घर लौटा, कुछ रूपए, दिए, लाई, मिठाई और साबुन की एक बट्टी दी तो वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए पूछा: 'ये मेरे लिए?' मैंने हाँ कहा तो उसके चहरे पर ख़ुशी की हल्की सी रेखा दिखी। 'मैं जाऊं?' शीघ्रता से पूछ उसने कि कहीं मैं सामान वापिस न ले लूँ। 'जाकर अपनी झोपडी, कपडे और माँ के कपड़े साफ़ करना, माँ से पूछकर दिए जलाना और कल से यहाँ काम करने आना, बाक़ी बात मैं तुम्हारी माँ से कर लूँगी।
'क्या कर रही हो, ये गंदे बच्चे चोर होते हैं, भगा दो' पड़ोसन ने मुझे चेताया। गंदे तो ये हमारे द्वारा फेंगा गया कचरा बीनने से होते हैं। ये कचरा न उठायें तो हमारे चारों तरफ कचरा ही कचरा हो जाए। हमारे बच्चों की तरह उसका भी मन करता होगा त्यौहार मनाने का।
'हाँ, तुम ठीक कह रही हो। हम तो मनायेंगे ही, इस बरस उसकी भी मन सकेगी धनतेरस। ' कहते हुए ये घर में आ रहे थे और बच्चे के चहरे पर चमक रहा था बाल चन्द्रमा।
१७-१०-२०१७
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