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उत्तर तो दिल्ली बसे, दक्खन में बैराठ
अरावली जमना बीच बसे यू बेकुंठ से मेवात।
हमारे एतिहस से नाख़बर है तु जामना
हम क्षत्रिय हैं, हमारे पुरवाज राम और कान्हा।
लहु जिगर से सवारा हिन्द के तस्वीर को
हस्ते हस्ते झेला हमने बलबन की समशीर को।
खानवाः में हमने ही बाबर को ललकारा
मज़हब से पहले मुल्क, दिया हसन खां ने नारा।
हमारे खून से ही लाल हल्दी की घाटी
शिवजी को निकला, ये थी हमारी छाती।
सवाईओ की तरह मुगलो को डोली न भिजवाई
कोम की खातिर बाहड़ ने फांसी है खायी।
हमने झेला फिरंगी फंदो के कहर को
समसुदीन की शहादत पर नाज है हर बसर को।
दोहा और रुपरका में हमने हजारो सर कटवाए
रायसीना में अंग्रेज हमने गहते में चलवाये।
ना ज़ज़िया के डर सु, ना मुगलो के तलवर सु
हमने इस्लाम को लिया ख्वाजा और सालर सु।
राजा बल्ली को बिमा , सदुल्ला को अकेरा
यसीन को रेहना, घण्डी का घेरा ।
गलिब को ननिहाल, डाग को पुश्तैनी घर
अलावाल को बसायो यु शहर अलवर।
तारीख बताती हैं हमारी कुर्बानिया
कोटला और इन्दोर हमरी निशांया।
अरावली जमना बीच बसे यू बेकुंठ से मेवात।
हमारे एतिहस से नाख़बर है तु जामना
हम क्षत्रिय हैं, हमारे पुरवाज राम और कान्हा।
लहु जिगर से सवारा हिन्द के तस्वीर को
हस्ते हस्ते झेला हमने बलबन की समशीर को।
खानवाः में हमने ही बाबर को ललकारा
मज़हब से पहले मुल्क, दिया हसन खां ने नारा।
हमारे खून से ही लाल हल्दी की घाटी
शिवजी को निकला, ये थी हमारी छाती।
सवाईओ की तरह मुगलो को डोली न भिजवाई
कोम की खातिर बाहड़ ने फांसी है खायी।
हमने झेला फिरंगी फंदो के कहर को
समसुदीन की शहादत पर नाज है हर बसर को।
दोहा और रुपरका में हमने हजारो सर कटवाए
रायसीना में अंग्रेज हमने गहते में चलवाये।
ना ज़ज़िया के डर सु, ना मुगलो के तलवर सु
हमने इस्लाम को लिया ख्वाजा और सालर सु।
राजा बल्ली को बिमा , सदुल्ला को अकेरा
यसीन को रेहना, घण्डी का घेरा ।
गलिब को ननिहाल, डाग को पुश्तैनी घर
अलावाल को बसायो यु शहर अलवर।
तारीख बताती हैं हमारी कुर्बानिया
कोटला और इन्दोर हमरी निशांया।
यहाँ चोखा की बिरादरी ,मूसा की मीनारें।
यहाँ चुहुड सीड की वाणी ,लाल दस की दीवारें।
पांडव बिहार ये ,चन्दर प्रभु को तिजारा
शांति सागर की समाधी , मस्तान साह को डेरा।
जो काम कभी नबियो को हो वो मिलो
उसी तब्लीग को दुनिआ में मेवात से सिलसिला चलो।
यह भूमि है आलिमो की यहाँ वलियो के नज़ारे।
घासेड़ा को मूसा ,हाजी महताब के सितारे।।
यहाँ चुहुड सीड की वाणी ,लाल दस की दीवारें।
पांडव बिहार ये ,चन्दर प्रभु को तिजारा
शांति सागर की समाधी , मस्तान साह को डेरा।
जो काम कभी नबियो को हो वो मिलो
उसी तब्लीग को दुनिआ में मेवात से सिलसिला चलो।
यह भूमि है आलिमो की यहाँ वलियो के नज़ारे।
घासेड़ा को मूसा ,हाजी महताब के सितारे।।
(संकलित)
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