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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

सरस्वती वंदना बृज नरेंद्र कुमार शर्मा गोपाल

सरस्वती वंदना बृज 
नरेंद्र कुमार शर्मा गोपाल
सिहांवलोकन छंद
*
सारदे ऐसौ जासे सार मिलै जन जन कों
जीवन की बगिया में नूतन बहार दे।
बहार दे हर मन में प्रेम भावना के बीज
तीज-त्यौहार रंग घर घर पसार दे।।
पसार दे देशभक्ति राष्ट्र हित सर्वोपरि
सब मन ते स्वार्थ की भावना निकार दे।
निकार दे अपने पराये के भेद सिगरे
बिगरै ना कोऊ ऐसौ सार दे सारदे।।
शीश कों नवाऊं गुन तेरे ही गाऊं आज
मन ही मन सिहाऊं बात हिय में समानी है।
तेरे ही सूरत की मूरत हिरदै में धारि
राखूं ना उधार रचना नगद करजानी में
भनत गुपाल नित्य है रहयौ कमाल अब
मच रहयौ धमाल चर्चा सिगरे जग जानी में।
लोग कहें ऐते गुन कहां ते पाये भईया
हौं तौ नादान किरपा सारदे भवानी में।।

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