गीत :
संजीव 'सलिल'
भारतीय जो उसको भारत माता की जय कहना होगा.
सर्व धर्म समभाव मानकर, स्नेह सहित मिल रहना होगा...
*
आरक्षण की राजनीति है त्याज्य करें उन्मूलन मिलकर.
कमल योग्यता का प्रमुदित सौन्दर्य सौंदर्य बिखेरे सर में खिलकर.
नेह नर्मदा निर्मल रहे प्रवाहित हर भारतवासी में-
द्वेष-घृणा के पाषाणों को सिकता बनकर बहना होगा..
*
जाति धर्म भू भाषा भूषा, अंतर में अंतर उपजाते.
भारतीय भारत माता का दस दिश में जयकार गुंजाते.
पूज्य न हो यह भारत जिसको उसे गले से लगा न पाते-
गैर न कोई सब अपने हैं, सबको हँसकर सहना होगा...
*
कंकर-कंकर में शंकर हैं, गद्दारों हित प्रलयंकर हैं.
देश हेती हँस शीश कटाएँ, रण में अरि को अभ्यंकर हैं.
फूट हुई तो पद्मिनियों को फिर जौहर में दहना होगा...
*
******
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 1 मई 2010
गीतिका: रहना होगा...... ---आचार्य संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
bharat mata - sanjiv 'salil',
geet,
POETRY :BHARAT,
samyik hindi kavita
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें