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रविवार, 23 मई 2010

हाइकु का रंग मैथिली के संग ---कुसुम ठाकुर

हाइकु का रंग मैथिली के संग

कुसुम ठाकुर
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कुसुम जी एक संवेदनशील रचनाकार हैं जो अपने चिट्ठों पर न केवल निरंतर सक्रिय रहती हैं अपितु खड़ी हिन्दी के साथ-साथ मैथिली और भोजपुरी में भी रचना कर्म कर पाती हैं. कुसुम जी ने पहली बार हाइकु रचे हैं. कुसुम के रचना उद्यान में खिली ये कलियाँ माँ शारदा के श्री चरणों में समर्पित कर रही है दिव्य नर्मदा:
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आस बनल
अछि अहाँक अम्बे
हम टूगर
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ध्यान धरब
हम कोना आ नहि
सूझे तैयो
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पाप बहुत
हम कयने छी हे
अहिंक धीया
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जायब कत
आब नहि सूझे
करू उद्धार
*
जायब कत
आब नहि सूझे
करू उद्धार
*
कुसुम जी के लिए दिव्य नर्मदा परिवार की ओर से हाइकु उपहार:
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कुसुम गंध
मननीय हाइकु
सुगंध फैले.
*
मन को भाये
सार्थक हैं हाइकु
खूब बधाई.
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बिंदु में सिन्धु
गागर में सागर
हाइकु छंद.
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लिखें नित्य ही
हाइकु कवितायेँ
मजा भी आये.
*
कोशिश से ही
मिलती सफलता
यश-कीर्ति भी.
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शब्द ब्रम्ह की
जब हो आराधना
हृदय खिले.
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मन की बात
कह देता हाइकु
चंद शब्दों में.
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