डा. बी. एन. श्रीवास्तव द्वारा अपनी सहधर्मिणी स्वर्गीया श्रीमती श्रीमती शरणदुलारी श्रीवास्तव की पुण्य स्मृति में संस्कारधानी में वृद्धजनो हेतु ''निशुल्क जेरियोट्रिक क्लीनिक'' का शुभारम्भ
अनुभव प्रवण वृद्धजनाः विद्गोषा महत्वपूर्ण तेषां सेवा
पुण्यप्रदा आयु वृद्धसुश्रूषा उपचार तेषां शुभ पुण्य कर्मः।
प्रो.सी बी श्रीवास्तव -'विदग्ध'
हमारी संस्कृति में सदा से बुजुर्गों का विशेष महत्व रहा है . वानप्रस्थ व सन्यास आश्रमो की व्यवस्था भारतीय समाज का हिस्सा रही है . किन्तु भौतिकवादी , आत्मकेंद्रित , पाश्चात्य , आपाधापी के वर्तमान सामाजिक ताने बाने में वृद्धजन समाज की मूलधारा से कटते जा रहे हैं , व स्वयं को उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं . वृद्धावस्था जीवन का ऐसा हिस्सा है जब हम जिंदगी के विविध अनुभवों से तो सराबोर होते हैं , किन्तु शारीरिक रूप से अपेक्षाकृत अशक्त हो जाते हैं .यह समझते हुये भी कि ऐसा एक दिन सबके साथ होना ही है , युवा पीढ़ी शायद चाहकर भी बुजुर्गों को अपेक्षित समय नही दे पा रही है . मनुष्य सदा से अमरत्व की खोज में लगा रहा है . जिस तरह से आज कृत्रिम खून के निर्माण , मानव अंगो के प्रत्यारोपण आदि क्षेत्रों में चिकित्सा जगत को आशातीत सफलता मिली है , निश्चित है कि आने वाले समय में दिन पर दिन और भी बेहतर स्वास्थ्य सेवायें सुलभ होंगी . डा. बी एन. श्रीवास्तव जबलपुर मेडिकल कालेज के मेडिसिन विभाग के सेवानिवृत डीन हैं . चिकित्सा जगत के लगातार बदलते परिवेश में विभिन्न स्वयं को सतत सक्रिय बनाये रखते हुये वे लगातार जन सेवा की मूल भावना के साथ लायंस क्लब जैसी अनेक सामाजिक संस्थाओ से जुड़े हुये हैं . उन्होने नर्मदा तट पर स्थित गीता धाम में भी भवन निर्माण करवा कर जनहित हेतु लोकार्पित किया है . उनकी पत्नी स्वर्गीया श्रीमती श्रीमती शरणदुलारी श्रीवास्तव सदैव विभिन्न चिकित्सकीय सेमीनार आदि यात्राओ में उनके साथ रहती थीं , वे न केवल उनकी जीवन संगिनी थीं वरन सच्चे अर्थों में सहधर्मिणी , उनकी आध्यात्मिक प्रेरणा स्त्रोत , व यथार्थ में मित्र थीं . विगत वर्ष एक चिकित्सकीय सेमीनार से डाक्टर साहब के साथ ही लौटते हुये ट्रेन में ही उनका दुखद देहावसान हृदयाघात से हो गया . डा. बी. एन. श्रीवास्तव ने उनकी स्मृति में जेरियोट्रिक सोसायटी ऑफ इंण्डिया द्वारा मान्यता प्राप्त सर्व सुविधा संपन्न अस्पताल वृद्धजनो हेतु स्थापित करने का निर्णय लिया है , और संस्कारधानी में इस तरह का यह पहला चिकित्सालय १० अगस्त २०१० को , डा. बी. एन. श्रीवास्तव के निवास के उपर प्रथम तल पर गुलाटी पैत्रोल पंप के निकट , प्रेमनगर , मदनमहल जबलपुर में किया गया. उद्घाटन स्वामी श्यामदास जी महाराज के कर कमलों से हुआ . कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ट शिक्षाविद व साहित्यकार प्रो चित्रभूषण श्रीवास्तव जी ने की . . कार्यक्रम का संचालन श्रीमती प्रार्थना अर्गल ने किया . उल्लेखनीय है कि जेरियाट्रिक सोसायटी आफ इण्डिया के सचिव डा. ओम प्रकाश शर्मा ने नगर के वरिष्ठतम चिकित्सक डा. बी एन. श्रीवास्तव को भीष्म पितामह निरूपित करते हुये उन्हें जेरियाट्रिक सोसायटी आफ इण्डिया के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया है .इस अवसर पर स्वामी श्यामदास जी महाराज जी ने कहा कि रोगियो के रूप में परमात्मा की सेवा का ही अवसर इस वृद्ध चिकित्सालय में मिलेगा .
जेरियोट्रिक मेडीसिन चिकित्सा जगत की वह शाखा है जो वरिष्ठ नागरिकों (६० वर्ष के ऊपर आयु के स्त्री पुरूष) की विभिन्न बीमारियों के उपचार से संबंधित है। हमारे देश में सन् २००१ में वृद्धों की संख्या कुल जनसंखया का ६.८ प्रतिशत थी जो अगले २५ वर्षो में १२ प्रतिशत हो जाने की संभावना है। १९६१ से आने वाले १०० वर्षो में जहॉं हमारे देश की जनसंख्या पांचगुना हो जाना अनुमानित है वहीं वृद्धों की संख्या भी १३ गुना बढ जाने की संभावना है।
जेरियोट्रिक मेडीसिन जनरल मेडीसिन से भिन्न है क्योकि वृद्धो की समस्यायें युवाजन की समस्याओं से भिन्न होती है। आयु की वृद्धि के साथ शरीर के अंग शिथिल होते है और उनकी क्रियाओं में भी शिथिलता आ जाती है। इससे बुजुर्गो हेतु सामान्य से भिन्न दवाओं की आवश्यकता होती है। वृद्धो के स्वास्थ्य के लिये नियमित परीक्षण डाक्टरी सलाह और उपचार आवश्यक होता है। पति या पत्नि में से किसी एक की मृत्यु से वियोग का दुख होना और सूनापन आने से मानसिक निर्बलता की समस्यायें भी वृद्धजनो में होती है , जिसके निदान हेतु आध्यात्मिक संबल की आवश्यकता होती है . ।
वास्तव में वृद्धावस्था अभिशाप नहीं है ,यह तो जीवन का वह पडाव है जब आदमी अपने अनुभवों से परिपक्व होकर नई पीढ़ी को सही राह दिखा सकता है। समाज को कुछ सिखा सकता है और समाज सेवा कर सकता है पर इसके लिये मनोबल बनाये रखे जाने की जरूरत होती है ।इस दृष्टि से जेरियोट्रिक चिकित्सालय बुजुर्गो हेतु महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है .
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 11 अगस्त 2010
अनुभव प्रवण वृद्धजनाः विद्गोषा महत्वपूर्ण तेषां सेवा ,पुण्यप्रदा आयु वृद्धसुश्रूषा उपचार तेषां शुभ पुण्य कर्मः।..प्रो.सी बी श्रीवास्तव -'विदग्ध'
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
बाल गीत अपनी माँ का मुखड़ा..... संजीव वर्मा 'सलिल'
बाल गीत अपनी माँ का मुखड़ा..... संजीव वर्मा 'सलिल'
मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा..... सुबह उठाती गले लगाकर, फिर नहलाती है बहलाकर.आँख मूँद, कर जोड़ पूजती प्रभु को सबकी कुशल मनाकर.देती है ज्यादा प्रसाद फिर सबकी नजर बचाकर. आंचल में छिप जाता मैं ज्यों रहे गाय सँग बछड़ा.मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा..... बारिश में छतरी आँचल की. ठंडी में गर्मी दामन की.. गर्मी में धोती का पंखा, पल्लू में छाया बादल की.कभी दिठौना, कभी आँख में कोर बने काजल की.. दूध पिलाती है गिलास भर -
कहे बनूँ मैं तगड़ा. ,
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*****
मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा..... सुबह उठाती गले लगाकर, फिर नहलाती है बहलाकर.आँख मूँद, कर जोड़ पूजती प्रभु को सबकी कुशल मनाकर.देती है ज्यादा प्रसाद फिर सबकी नजर बचाकर. आंचल में छिप जाता मैं ज्यों रहे गाय सँग बछड़ा.मुझको सबसे अच्छा लगता अपनी माँ का मुखड़ा..... बारिश में छतरी आँचल की. ठंडी में गर्मी दामन की.. गर्मी में धोती का पंखा, पल्लू में छाया बादल की.कभी दिठौना, कभी आँख में कोर बने काजल की.. दूध पिलाती है गिलास भर -
कहे बनूँ मैं तगड़ा. ,
मुझको सबसे अच्छा लगता -
अपनी माँ का मुखड़ा!
*****
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मंगलवार, 10 अगस्त 2010
माँ को अर्पित चौपदे: संजीव 'सलिल'
माँ को अर्पित चौपदे: संजीव 'सलिल'
बारिश में आँचल को छतरी, बना बचाती थी मुझको माँ.
जाड़े में दुबका गोदी में, मुझे सुलाती थी गाकर माँ..
गर्मी में आँचल का पंखा, झलती कहती नयी कहानी-
मेरी गलती छिपा पिता से, बिसराती थी मुस्काकर माँ..
*
मंजन स्नान आरती थी माँ, ब्यारी दूध कलेवा थी माँ.
खेल-कूद शाला नटख़टपन, पर्व मिठाई मेवा थी माँ..
व्रत-उपवास दिवाली-होली, चौक अल्पना राँगोली भी-
संकट में घर भर की हिम्मत, दीन-दुखी की सेवा थी माँ..
खाने की थाली में पानी, जैसे सबमें रहती थी माँ.
कभी न बारिश की नदिया सी कूल तोड़कर बहती थी माँ..
आने-जाने को हरि इच्छा मान, सहज अपना लेती थी-
सुख-दुःख धूप-छाँव दे-लेकर, हर दिन हँसती रहती थी माँ..
*
गृह मंदिर की अगरु-धूप थी, भजन प्रार्थना कीर्तन थी माँ.
वही द्वार थी, वातायन थी, कमरा परछी आँगन थी माँ..
चौका बासन झाड़ू पोंछा, कैसे बतलाऊँ क्या-क्या थी?-
शारद-रमा-शक्ति थी भू पर, हम सबका जीवन धन थी माँ..
*
कविता दोहा गीत गजल थी, रात्रि-जागरण चैया थी माँ.
हाथों की राखी बहिना थी, सुलह-लड़ाई भैया थी माँ.
रूठे मन की मान-मनौअल, कभी पिता का अनुशासन थी-
'सलिल'-लहर थी, कमल-भँवर थी, चप्पू छैंया नैया थी माँ..
*
आशा आँगन, पुष्पा उपवन, भोर किरण की सुषमा है माँ.
है संजीव आस्था का बल, सच राजीव अनुपमा है माँ..
राज बहादुर का पूनम जब, सत्य सहाय 'सलिल' होता तब-
सतत साधना, विनत वन्दना, पुण्य प्रार्थना-संध्या है माँ..
*
माँ निहारिका माँ निशिता है, तुहिना और अर्पिता है माँ
अंशुमान है, आशुतोष है, है अभिषेक मेघना है माँ..
मन्वंतर अंचित प्रियंक है, माँ मयंक सोनल सीढ़ी है-
ॐ कृष्ण हनुमान शौर्य अर्णव सिद्धार्थ गर्विता है माँ
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गीत: चुनौतियों के आँधी-तूफां..... संजीव 'सलिल'
गीत:
चुनौतियों के आँधी-तूफां.....
संजीव 'सलिल'
*

*
चुनौतियों के आँधी-तूफां मुझको किंचित डिगा न पाये.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
संबंधों की मृग-मरीचिका, अनुबंधों के मिले भुलावे.
स्नेह-प्रेम का ओढ़ आवरण, पग-पग पर छल गए छलावे..
अनजाने लगते अपने हैं, अपने अपनापन सपने हैं.
छेद हुआ पेंदी में जिनके, बेढब दुनियावी नपने हैं..
अपनी-अपनी कहें बेसुरे, कोई किसी की नहीं सुन रहा.
हाय! इमारत का हर पत्थर, अलग-अलग निज शीश धुन रहा..
सत्ता-सियासती मौसम में, बिन मारे सद्भाव मर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
अपने मत को सत्य मानना, मीता! बहुत सहज होता है.
केवल अपना सच ही सच है, जो कहता सच को खोता है..
अलग-अलग सुर-ताल मिलें जब, राग-रागिनी तब बन पाती.
रंग-बिरंगे तरह-तरह के, फूलों से बगिया सज पाती..
अपनी सीमा निर्धारित कर, कैद कर रहे खुद ही खुद को.
मन्दिर में भगवान समाता, कैसे? पूज रहे हैं बुत को..
पूर्वाग्रह की सुदृढ़ बेड़ियाँ, जेवर कहकर पहन घर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
बड़े-बड़े घावों पर मलहम, समय स्वयं ही रहा लगता.
भूली-बिसरी याद दिला मन, चोटों पर कर चोट दुखाता..
निर्माणों की पूर्व पीठिका, ध्वंस-नाश में ही होती है.
हर सिकता-कण, हर चिनगारी, जीवन की वाहक होती है..
कंकर-कंकर को शंकर कर, प्रलयंकर अभ्यंकर होता.
विधि-शारद, हरि-श्री शक्तित हों, तब जागृत मन्वन्तर होता.
रतिपति मति-गति अभिमंत्रित कर, क्षार हुए, साहचर्य वर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*************
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चुनौतियों के आँधी-तूफां.....
संजीव 'सलिल'
*

*
चुनौतियों के आँधी-तूफां मुझको किंचित डिगा न पाये.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
संबंधों की मृग-मरीचिका, अनुबंधों के मिले भुलावे.
स्नेह-प्रेम का ओढ़ आवरण, पग-पग पर छल गए छलावे..
अनजाने लगते अपने हैं, अपने अपनापन सपने हैं.
छेद हुआ पेंदी में जिनके, बेढब दुनियावी नपने हैं..
अपनी-अपनी कहें बेसुरे, कोई किसी की नहीं सुन रहा.
हाय! इमारत का हर पत्थर, अलग-अलग निज शीश धुन रहा..
सत्ता-सियासती मौसम में, बिन मारे सद्भाव मर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
अपने मत को सत्य मानना, मीता! बहुत सहज होता है.
केवल अपना सच ही सच है, जो कहता सच को खोता है..
अलग-अलग सुर-ताल मिलें जब, राग-रागिनी तब बन पाती.
रंग-बिरंगे तरह-तरह के, फूलों से बगिया सज पाती..
अपनी सीमा निर्धारित कर, कैद कर रहे खुद ही खुद को.
मन्दिर में भगवान समाता, कैसे? पूज रहे हैं बुत को..
पूर्वाग्रह की सुदृढ़ बेड़ियाँ, जेवर कहकर पहन घर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
*
बड़े-बड़े घावों पर मलहम, समय स्वयं ही रहा लगता.
भूली-बिसरी याद दिला मन, चोटों पर कर चोट दुखाता..
निर्माणों की पूर्व पीठिका, ध्वंस-नाश में ही होती है.
हर सिकता-कण, हर चिनगारी, जीवन की वाहक होती है..
कंकर-कंकर को शंकर कर, प्रलयंकर अभ्यंकर होता.
विधि-शारद, हरि-श्री शक्तित हों, तब जागृत मन्वन्तर होता.
रतिपति मति-गति अभिमंत्रित कर, क्षार हुए, साहचर्य वर गए.
अपने सपने पतझर में इस तरह झरे वीरान कर गये ...
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मुक्तिका ......... बात करें संजीव 'सलिल'
मुक्तिका
......... बात करें
संजीव 'सलिल'
*

*
बात न मरने की अब होगी, जीने की हम बात करें.
हम जी ही लेंगे जी भरकर, अरि मरने की बात करें.
जो कहने की हो वह करने की भी परंपरा डालें.
बात भले बेबात करें पर मौन न हों कुछ बात करें..
नहीं सियासत हमको करनी, हमें न कोई चिंता है.
फर्क न कुछ, सुनिए मत सुनिए, केवल सच्ची बात करें..
मन से मन पहुँच सके जो, बस ऐसा ही गीत रचें.
कहें मुक्तिका मुक्त हृदय से, कुछ करने की बात करें..
बात निकलती हैं बातों से, बात बात तक जाती है.
बात-बात में बात बनायें, बात न करके बात करें..
मात-घात की बात न हो अब, जात-पांत की बात न हो.
रात मौन की बीत गयी है, तात प्रात की बात करें..
पतियाते तो डर जाते हैं, बतियाते जी जाते हैं.
'सलिल' बात से बात निकालें, मत मतलब की बात करें..
***************
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......... बात करें
संजीव 'सलिल'
*

*
बात न मरने की अब होगी, जीने की हम बात करें.
हम जी ही लेंगे जी भरकर, अरि मरने की बात करें.
जो कहने की हो वह करने की भी परंपरा डालें.
बात भले बेबात करें पर मौन न हों कुछ बात करें..
नहीं सियासत हमको करनी, हमें न कोई चिंता है.
फर्क न कुछ, सुनिए मत सुनिए, केवल सच्ची बात करें..
मन से मन पहुँच सके जो, बस ऐसा ही गीत रचें.
कहें मुक्तिका मुक्त हृदय से, कुछ करने की बात करें..
बात निकलती हैं बातों से, बात बात तक जाती है.
बात-बात में बात बनायें, बात न करके बात करें..
मात-घात की बात न हो अब, जात-पांत की बात न हो.
रात मौन की बीत गयी है, तात प्रात की बात करें..
पतियाते तो डर जाते हैं, बतियाते जी जाते हैं.
'सलिल' बात से बात निकालें, मत मतलब की बात करें..
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हास्य मुक्तिका: बसाई याद जिसकी दिल में संजीव 'सलिल'
हास्य मुक्तिका:
बसाई याद जिसकी दिल में
संजीव 'सलिल'
*
*
बसाई याद जिसकी दिल में हमने वह कसाई है.
धँसे दिल में मिली हमको, हँसी चुप्पी रुलाई है..
उसे चूमा गुंजाया गीत, लिपटाया मिला दोहा.
बिछुड़कर ग़ज़ल कह दी, फिर मिले पाई रुबाई है..
न लेने चैन ही देती, न कुछ आराम करने दे.
जो मूंदूं आँख तो देखूं वो पलकों में समाई है..
नहीं है सिर्फ मेरा प्यार, वह है स्वप्न लाखों का.
मुझे है फख्र उससे ज़माने की महबूबाई है.
न उसका पिंड छोड़ेंगे, न लेने चैन ही देंगे.
नहीं है गैर, कविता से 'सलिल' की आशनाई है.
******************
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बसाई याद जिसकी दिल में
संजीव 'सलिल'
*
*
बसाई याद जिसकी दिल में हमने वह कसाई है.
धँसे दिल में मिली हमको, हँसी चुप्पी रुलाई है..
उसे चूमा गुंजाया गीत, लिपटाया मिला दोहा.
बिछुड़कर ग़ज़ल कह दी, फिर मिले पाई रुबाई है..
न लेने चैन ही देती, न कुछ आराम करने दे.
जो मूंदूं आँख तो देखूं वो पलकों में समाई है..
नहीं है सिर्फ मेरा प्यार, वह है स्वप्न लाखों का.
मुझे है फख्र उससे ज़माने की महबूबाई है.
न उसका पिंड छोड़ेंगे, न लेने चैन ही देंगे.
नहीं है गैर, कविता से 'सलिल' की आशनाई है.
******************
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सोमवार, 9 अगस्त 2010
नवगीत: घर के रहे न घाट के संजीव 'सलिल'
नवगीत:
घर के रहे न घाट के
संजीव 'सलिल'
*
*
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
आदमखोर बुराईयाँ
लीलें कब किस व्याज...
*
धरती को लीलता मनुष्य.
जीव-जन्तु हो रहे हविष्य.
अपने ही पाँव कुल्हाड़ी-
मारता, मिटा रहा भविष्य.
नियति नटी मौन क्यों रहे?
दंड निठुर मिलेगा अवश्य.
अमन चैन ही खो गया
बना सुराज कुराज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*
काट दिए जंगल सब ओर.
सुना नहीं आर्तनाद घोर.
पर्वत को खोद ताल पूर-
कानफाडू करता है शोर.
पशु-पक्षी मूक पूछते
इन्सां तू क्यों हुआ है ढोर?
चरणकमल पर कर कमल
वार करें तज लाज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*
घर के रहे न घाट के
संजीव 'सलिल'
*
*
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
आदमखोर बुराईयाँ
लीलें कब किस व्याज...
*
धरती को लीलता मनुष्य.
जीव-जन्तु हो रहे हविष्य.
अपने ही पाँव कुल्हाड़ी-
मारता, मिटा रहा भविष्य.
नियति नटी मौन क्यों रहे?
दंड निठुर मिलेगा अवश्य.
अमन चैन ही खो गया
बना सुराज कुराज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*
काट दिए जंगल सब ओर.
सुना नहीं आर्तनाद घोर.
पर्वत को खोद ताल पूर-
कानफाडू करता है शोर.
पशु-पक्षी मूक पूछते
इन्सां तू क्यों हुआ है ढोर?
चरणकमल पर कर कमल
वार करें तज लाज.
घर के रहे न घाट के
कमल-कमलिनी आज.
*
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दोहा सलिला: दिल के संग दोहा के रँग: संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
दिल के संग दोहा के रँग:
संजीव 'सलिल'
*
*
दिल ने दिल में झाँककर, दिल का कर दीदार.
दिलवर से हँसकर कहा- 'मैं कुरबां सरकार'.
दिल ने दिल को दिल दिया, दिल में दिल को देख.
दिल ही दिल में दिल करे, दिल दिलवर का लेख.
दिल से दिल मिल गया तो, बढ़ी दिलों में प्रीत.
बिल देखा दिल फट गया, लगती प्रीत कुरीत..
बेदिल से दिल कहा रहा, खुशनसीब हैं आप.
दिल का दर्द न पालते, लगे न दिल को शाप..
दिल तोड़ा दिल फेंककर, लगा लिया दिल व्यर्थ.
सार्थक दिल मिलना तभी, जेब भरे जब अर्थ..
दिल में बस, दिल में बसा, देख जरा संसार.
तब असार में सार लख, जीवन बने बहार..
दिल की दिल में रह गयी, क्यों बतलाये कौन?
दिल ने दिल में झाँककर, 'सलिल' रख लिया मौन..
दिल से दिल ने बात की, अक्सर पर बेबात.
दिल में दिल ने घर किया, ले-देकर सौगात..
दिल डोला दिल ने लिया, आगे बढ़कर थाम.
दिल डूबा दिल ने दिया, 'सलिल' प्रीत-पैगाम..
लगे न दिल में बात जो, उसका कहना व्यर्थ.
दिल में चुभती बात जो, दिल ही समझे अर्थ..
दिल लेकर दिल दे दिया, 'सलिल' किया व्यापार.
प्रीत परायी के लिये, दिल अपना बेज़ार.
दिल को चीरे चिकित्सक, कहीं न पाये प्रीत.
प्रीत करे अनुभव वही, जिसके दिल में प्रीत..
दिल धडके सुर-ताल में, श्वास बने संगीत.
बहर भंग हो तो 'सलिल', दिल का चैन अतीत..
दिल टूटे खुद ना जुड़े, जोड़े यदि शल्यज्ञ.
हो न पूर्व सा फिर कभी, दिल अभिज्ञ या भिज्ञ..
जिसका दिल सचमुच बड़ा, वही बड़ा इन्सान.
दिल छोटा तो धनपति, दीन- कहें मतिमान..
*********************
दिल के संग दोहा के रँग:
संजीव 'सलिल'
*
*
दिल ने दिल में झाँककर, दिल का कर दीदार.
दिलवर से हँसकर कहा- 'मैं कुरबां सरकार'.
दिल ने दिल को दिल दिया, दिल में दिल को देख.
दिल ही दिल में दिल करे, दिल दिलवर का लेख.
दिल से दिल मिल गया तो, बढ़ी दिलों में प्रीत.
बिल देखा दिल फट गया, लगती प्रीत कुरीत..
बेदिल से दिल कहा रहा, खुशनसीब हैं आप.
दिल का दर्द न पालते, लगे न दिल को शाप..
दिल तोड़ा दिल फेंककर, लगा लिया दिल व्यर्थ.
सार्थक दिल मिलना तभी, जेब भरे जब अर्थ..
दिल में बस, दिल में बसा, देख जरा संसार.
तब असार में सार लख, जीवन बने बहार..
दिल की दिल में रह गयी, क्यों बतलाये कौन?
दिल ने दिल में झाँककर, 'सलिल' रख लिया मौन..
दिल से दिल ने बात की, अक्सर पर बेबात.
दिल में दिल ने घर किया, ले-देकर सौगात..
दिल डोला दिल ने लिया, आगे बढ़कर थाम.
दिल डूबा दिल ने दिया, 'सलिल' प्रीत-पैगाम..
लगे न दिल में बात जो, उसका कहना व्यर्थ.
दिल में चुभती बात जो, दिल ही समझे अर्थ..
दिल लेकर दिल दे दिया, 'सलिल' किया व्यापार.
प्रीत परायी के लिये, दिल अपना बेज़ार.
दिल को चीरे चिकित्सक, कहीं न पाये प्रीत.
प्रीत करे अनुभव वही, जिसके दिल में प्रीत..
दिल धडके सुर-ताल में, श्वास बने संगीत.
बहर भंग हो तो 'सलिल', दिल का चैन अतीत..
दिल टूटे खुद ना जुड़े, जोड़े यदि शल्यज्ञ.
हो न पूर्व सा फिर कभी, दिल अभिज्ञ या भिज्ञ..
जिसका दिल सचमुच बड़ा, वही बड़ा इन्सान.
दिल छोटा तो धनपति, दीन- कहें मतिमान..
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रविवार, 8 अगस्त 2010
गीत: कब होंगे आजाद... ------संजीव 'सलिल'
गीत:
कब होंगे आजाद
संजीव 'सलिल'
*

*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
http://divyanarmada.blogspot.com
कब होंगे आजाद
संजीव 'सलिल'
*

*
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे
भारत माँ को
ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों
अपना घर
करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो
समाज में
ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच
गाँव में
विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग तभी तो
हो पायेगा
धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?
कहो हम
कब होंगे आजाद?....
*
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कविता: उम्मीद की किरण संजीव 'सलिल'
कविता:
उम्मीद की किरण
संजीव 'सलिल'
*
*
बहुत कम हैं जो
सच को कह पाते हैं
उनसे भी कम हैं
जो सच को सह पाते हैं
अधिकांश तो
स्वार्थ और झूठ की
बाढ़ में बह जाते हैं.
रोशनी की लकीर
बनते और बनाते हैं वही-
जो सच को गह पाते हैं.
वे भले ही सच की
तह नहीं पाते हैं, किन्तु
सच को सहने और कहने की
वज़ह बन जाते हैं.
असच के सामने
तन जाते हैं.
उम्मीद की किरण
बनकर जगमगाते हैं.
************
उम्मीद की किरण
संजीव 'सलिल'
*
*
बहुत कम हैं जो
सच को कह पाते हैं
उनसे भी कम हैं
जो सच को सह पाते हैं
अधिकांश तो
स्वार्थ और झूठ की
बाढ़ में बह जाते हैं.
रोशनी की लकीर
बनते और बनाते हैं वही-
जो सच को गह पाते हैं.
वे भले ही सच की
तह नहीं पाते हैं, किन्तु
सच को सहने और कहने की
वज़ह बन जाते हैं.
असच के सामने
तन जाते हैं.
उम्मीद की किरण
बनकर जगमगाते हैं.
************
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
गीत: हर दिन मैत्री दिवस मनायें..... संजीव 'सलिल'
गीत:
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
संजीव 'सलिल'
*
*
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
होनी-अनहोनी कब रुकती?
सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?
कारण कृपया, मुझे बतायें
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
मन से मन की बात रुके क्यों?
जब मन हो गलबहियाँ डालें.
अमराई में झूला झूलें,
पत्थर मार इमलियाँ खा लें.
धौल-धप्प बिन मजा नहीं है
हँसी-ठहाके रोज लगायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
बिरहा चैती आल्हा कजरी
झांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
लगा अबीर, गायें कबीर
छाछ पियें मिल भंग चढ़ायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
संजीव 'सलिल'
*
*
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
होनी-अनहोनी कब रुकती?
सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.
जैसा जो बीते हैं हम सब
वैसा फल हम नित पाते हैं.
फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?
कारण कृपया, मुझे बतायें
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
मन से मन की बात रुके क्यों?
जब मन हो गलबहियाँ डालें.
अमराई में झूला झूलें,
पत्थर मार इमलियाँ खा लें.
धौल-धप्प बिन मजा नहीं है
हँसी-ठहाके रोज लगायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
बिरहा चैती आल्हा कजरी
झांझ मंजीरा ढोल बुलाते.
सीमेंटी जंगल में फँसकर-
क्यों माटी की महक भुलाते?
लगा अबीर, गायें कबीर
छाछ पियें मिल भंग चढ़ायें.
हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....
*
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
दोहा सलिला: संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*

*
कौन कहानीकार है?, किसके हैं संवाद?
बोल रहे सब यंत्रवत, कौन सुने फरियाद??
*
आर्थिक मंदी छा गयी, मचा हुआ कुहराम.
अच्छे- अच्छे फिसलते, कोई न पाता थाम..
*
किसका कितना दोष है?, कहो कौन निर्दोष?
विधना जाने कब करे, सर्व नाश का घोष??
*
हवामहल पल में उड़ा, वासी हुए निराश.
बिन नींव की व्यवस्था, हाय हो गयी ताश..
*
कठपुतलीवत नचाता, थाम श्वास की डोर.
देख न पाते हम झलक, चाहें करुणा-कोर..
*
भ्रम होता हम कर रहे, करा रहा वह काज.
लेते उसका श्रेय खुद, किन्तु न आती लाज..
*
सुविधा पाने जो गए, तजकर अपना देश.
फिर-फिर आते पलटकर, मन में व्यथा अशेष..
*
नगदी के नौ लीजिये, तेरह नहीं उधार.
अब तो छलिये! बंद कर, सपनों का व्यापार..
*
चमक-दमक औ' सादगी, वह सोना यह धूल.
वह पावन शतदल कमल, यह बबूल का शूल..
*
पेड़ टूटते, दूब झुक, सह लेती तूफ़ान.
जो माटी से जुड़ रहे, 'सलिल' वही मतिमान..
*
पल में पैरों-तले से, सरकी 'सलिल' ज़मीन.
तीसमारखाँ काल के, हाथ हो गए दीन..
*
थाम-थमाये विपद में, बिना स्वार्थ निज हाथ.
'सलिल' हृदय में लो बसा, नमन करो नत माथ..
*
दानव वे जो जोड़ते, औरों का हक छीन.
ऐश्वर्य जितना बढ़ा, वे उतने ही दीन..
*
भूमि, भवन, धन जोड़कर, हैं दरिद्र वे लोग.
'सलिल' न जो कर पा रहे, जी भरकर उपयोग..
*
जो पाया उससे नहीं, 'सलिल' जिन्हें संतोष.
वे सचमुच कंगाल हैं, गर्दभ ढोते कोष.
*
बात-बात में कर रहे, नाहक वाद-विवाद.
'सलिल' सहज हो कर करें, कुछ सार्थक संवाद..
*
संजीव 'सलिल'
*

*
कौन कहानीकार है?, किसके हैं संवाद?
बोल रहे सब यंत्रवत, कौन सुने फरियाद??
*
आर्थिक मंदी छा गयी, मचा हुआ कुहराम.
अच्छे- अच्छे फिसलते, कोई न पाता थाम..
*
किसका कितना दोष है?, कहो कौन निर्दोष?
विधना जाने कब करे, सर्व नाश का घोष??
*
हवामहल पल में उड़ा, वासी हुए निराश.
बिन नींव की व्यवस्था, हाय हो गयी ताश..
*
कठपुतलीवत नचाता, थाम श्वास की डोर.
देख न पाते हम झलक, चाहें करुणा-कोर..
*
भ्रम होता हम कर रहे, करा रहा वह काज.
लेते उसका श्रेय खुद, किन्तु न आती लाज..
*
सुविधा पाने जो गए, तजकर अपना देश.
फिर-फिर आते पलटकर, मन में व्यथा अशेष..
*
नगदी के नौ लीजिये, तेरह नहीं उधार.
अब तो छलिये! बंद कर, सपनों का व्यापार..
*
चमक-दमक औ' सादगी, वह सोना यह धूल.
वह पावन शतदल कमल, यह बबूल का शूल..
*
पेड़ टूटते, दूब झुक, सह लेती तूफ़ान.
जो माटी से जुड़ रहे, 'सलिल' वही मतिमान..
*
पल में पैरों-तले से, सरकी 'सलिल' ज़मीन.
तीसमारखाँ काल के, हाथ हो गए दीन..
*
थाम-थमाये विपद में, बिना स्वार्थ निज हाथ.
'सलिल' हृदय में लो बसा, नमन करो नत माथ..
*
दानव वे जो जोड़ते, औरों का हक छीन.
ऐश्वर्य जितना बढ़ा, वे उतने ही दीन..
*
भूमि, भवन, धन जोड़कर, हैं दरिद्र वे लोग.
'सलिल' न जो कर पा रहे, जी भरकर उपयोग..
*
जो पाया उससे नहीं, 'सलिल' जिन्हें संतोष.
वे सचमुच कंगाल हैं, गर्दभ ढोते कोष.
*
बात-बात में कर रहे, नाहक वाद-विवाद.
'सलिल' सहज हो कर करें, कुछ सार्थक संवाद..
*
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शनिवार, 7 अगस्त 2010
विचित्र किन्तु सत्य: 'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'
विचित्र किन्तु सत्य:
'तेजोमहालय' बन गया 'ताजमहल'
इमारत के सामने की मीनारें और जलागार
कहते हैं 'truth is strange than fiction' अर्थात सत्य कल्पना से भी अधिक विचित्र होता है. विश्व के सात आश्चर्यों में से एक तथाकथित ताजमहल के सम्बन्ध में यह पूरी तरह सत्य है. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के चापलूस इतिहासकारों ने सरासर झूठ लिखा और इतिहास की आँखों में धूल झोंकने का प्रयास किया कि इस खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताजमहल की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्मृति में बनवाया.
यह भी कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छुपते. यही सत्य के बारे में भी है. कितना भी छिपाओ सच कहीं न कहीं से प्रगट हो ही जाता है.
सदियों तक प्रयास करने के बाद भी सच छिप नहीं सका. देश की सर्वेक्षण सेवा के सर्वोपरि अधिकारी स्व. पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपनी कृति 'ताजमहल कभी राजपूती महल था में अकाट्य प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि ताजमहल का वास्तविक नाम तेजोमहालय था. यह राजपूत राजाओं का महल था जिसमें भगवान शिव का विशाल मंदिर था. शाहजहाँ एक विलासी राजा था, जिसे हर रात एक नयी औरत के बिताने का शौक था. उसके सैंकड़ों बच्चे थे. लगभग हर साल बच्चे जनने से बेहद कमजोर हो गयी बेगम की मौत एक प्रसूति के बाद हुई जिसे बुरहानपुर में दफन किया गया. बाद में बादशाह के आगरा आने पर मुस्लिम दरबारियों ने राजपूतों के प्रभाव और वीरता से ईर्ष्या के कारण उन्हें नीचा दिखाने के लिये बादशाह को उकसाया कि बेगम की याद में शानदार मकबरा हो. लगातार लड़ाइयों के कारण खाली शाही खजाने पर बोझ न पड़े इसलिए बादशाह को सुझाव दिया गया कि राजपूतों के इस महल को मकबरे में बदल दिया जाए. बादशाह के प्रति निष्ठां के सवाल पर राजपूतों ने इसे खाली किया.
ताजमहल का आकाशीय दृश्य......

ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत १००० से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, खंड एक के पृष्ठ ४०२ और ४०३ पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था. मौत के के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार,को उसके शव को मकबरे से निकाल कर अकबराबाद आगरा लाया गया. फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से छीने गए, आगरा स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया. लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था. शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने "बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत १००० से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, खंड एक के पृष्ठ ४०२ और ४०३ पर इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी को मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था. मौत के के ०६ माह बाद, तारीख़ 15 ज़मदी-उल-अउवल दिन शुक्रवार,को उसके शव को मकबरे से निकाल कर अकबराबाद आगरा लाया गया. फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से छीने गए, आगरा स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) में पुनः दफनाया गया. लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों की इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे, पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
ताजमहल के अन्दर जल कूप. हिन्दू मंदिरों में स्नान के बाद शिव का जलाभिषेक करने की प्रथा है
जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे.......
सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, हिन्दुओं से छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था , उदाहरणार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.
सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, हिन्दुओं से छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था , उदाहरणार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं.
=>प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य
==>ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद पानी टपकता है. विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद-बूँद कर पानी नहीं टपकाया जाता. शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद जल गिराकर अभ्बिशेक करने की परंपरा है.
मकबरा महल नहीं होता:
="महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता. यहाँ यह व्याख्या करना कि 'महल' शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल नही, मुमताज-उल-ज़मानी था.
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है...
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल नही, मुमताज-उल-ज़मानी था.
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है...
..
ताज का शिखर: मंदिरों के शिखर पर कलश बनाया जाता है.
प्रो.ओक का दावा है कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है. उनके अनुसार मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है. शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है.....
आँगन में शिखर के छायाचित्र का रूपांकन
आँगन में शिखर के छायाचित्र का रूपांकन
==>न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर १९८५ में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् १३५९ के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग ३०० वर्ष पुराना है...
==>मुमताज की मृत्यु सन १६३१ में हुई थी उसी वर्ष भारत आए अंग्रेज भ्रमणकर्ता पीटर मुंडी के अनुसा: ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था.
प्रवेश द्वार पर कमल:
कमल का पुष्प विष्णु और लक्ष्मी का प्रतीक है
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् १६३८ (मुमताज कि मृत्यु के ०७ साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया. परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य १६३१ से १६५१ तक जोर-शोर से चल रहा था.
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् १६३८ (मुमताज कि मृत्यु के ०७ साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया. परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य १६३१ से १६५१ तक जोर-शोर से चल रहा था.
ताज के पिछले हिस्से में बाइस कमरे:
==>औरंगजेब की ताजपोशी के समय भारत आये और दस साल यहाँ रहे फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो के अनुसार: औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.
पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजे:
विशेषतः वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा
मकबरे के पास संगीतालय:एक विरोधाभास
ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा.........
ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से आज तक बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं.
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह
निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह
दीवारों पर बने फूलों में ओम् ( ॐ )
प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि चिन्ह प्रयोग किये जाते हैं.
निचले तल पर जाने के लिए सीढियां
राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
कमरों के मध्य 300फीट लंबा गलियारा..
निचले तल के २२ गुप्त कमरों मे से एक कमरा
२२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
अन्य बंद कमरों में से एक आतंरिक दृश्य
एक बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान .....
अन्य कमरों से गुप्त संपर्क हेतु दरवाजों में गुप्त दीवार
साक्ष्यों छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा
बुरहानपुर स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी की मृत्यु हुई
बादशाहनामा के अनुसार मुमताज यहाँ दफनाई गईं
प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से,,,,,,,,
रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें,कुदरत के काम से,,,,
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......
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शुक्रवार, 6 अगस्त 2010
हिन्दी वैभव: संकलन : संजीव 'सलिल'
हिन्दी वैभव:
हिन्दी को कम आंकनेवालों को चुनौती है कि वे विश्व की किसी भी अन्य भाषा में हिन्दी की तरह अगणित रूप और उन रूपों में विविध विधाओं में सकारात्मक-सृजनात्मक-सामयिक लेखन के उदाहरण दें. शब्दों को ग्रहण करने, पचाने और विधाओं को अपने संस्कार के अनुरूप ढालकर मूल से अधिक प्रभावी और बहुआयामी बनाने की अपनी अभूतपूर्व क्षमता के कारण हिन्दी ही भावी विश्व-वाणी है. इस अटल सत्य को स्वीकार कर जितनी जल्दी हम अपनी ऊर्जा हिन्दी में हिंदीतर साहित्य और संगणकीय तकनीक को आत्मसात करेंगे, अपना और हिन्दी का उतना ही अधिक भला करेंगे.
*
*
मगही में मातृभूमि वंदना
डॉ. रामाश्रय झा, बख्तियारपुर पटना.
*
मातृभूमि हे! हमर प्रनाम.
सरगो से बढ़कर के सुन्दर, तोहर सोभा ललित ललाम....
*
हरियर बाग़-बगीचा धरती, एको देग कहौं नन परती.
अन-धन से परिपूर्ण मनोहर, जनगन-मन पाबे विश्राम...
*
सागर जेकर चरन पखारे, हरदम गौरव-गीत उचारे.
तीरथ राज प्रयाग बनल हे, मनहर-पावन चारों धाम...
*
अनुपम वेद, रामायण, गीता, धर्म सुसंस्कृति परम पुनीता.
सुधा सरिस गंगा-यमुना जल, कर दे मन के पूरनकाम...
*
जय-जय-जय हे भारत माता, तोरा से जलमों के नाता.
मरूं-जिऊँ तो ई माटी में, मुँह मा पर बस तोरे नाम...
*
सोभे पर्वतराज हिमालय, पावन मन्दिर अउर शिवालय.
गऊ-गणेश के पूजा घर-घर, विजय मन्त्र हे जय श्री राम...
**********
भोजपुरी में मुक्तिका
ओमप्रकाश केसरी, बंगाली टोला, बक्सर.
बयार अलगाँव के चले लागल.
घरे में गली दर गली खले लागल..
रहे आस जवना दिया पे हमरा.
उहे दिया से घरवा जले लागल..
आ गइल अइसन दरार रिश्तन में.
आपन, अपने छले लागल..
हो गइल हे मुसीबत के अइसन चलन.
किनारा भी देख के गले लागल..
रास ना आइल इश्क के दुलार.
भूखल आँत के मले लागल..
कहवाँ ठौर मिली 'पवन नन्दन'
जिनगी के सवाल गले लागल..
*****************
अंगिका में मुक्तिका :
राजकुमार, बालकृष्ण नगर, भागलपुर
आदमी छै कहाँ?, जो छै तs सहमलs डरलs
आरो हुनख थपेड़ से खै दुबलल डढ़लs..
जहाँ भी जाय छी पाबै छी भयानक जंगल.
कुंद चन्दन छै, कुल्हाड़ी रs मान छै बढ़लs..
बाघ-भालू भीरी भेलs छै आद्लौ बौना.
हुनख नाखून छै बदलs, कपोत पर पड़लs..
आय काबिज़ हुनी सागर, आकाश धरती पर.
जाल हुनखs छै, फ्रेप में भी छै हुती मढ़लs..
राज लागै छ बगदलs छै समुन्दर अबको.
आग लगत छै लहर छै कमान पर चढ़ल..
******************
बघेली में हाइकु गीत
श्रुतिवंत प्रसाद दुबे 'विजन', डगा बरगवां, सीधी.
बोले मुरैला
पहरे डहारे मा
बन मस्तान.
*
पानी बरसा
दुआरे बगारे मा
धूरी पटान.
*
नदिया बाढ़ी
कहा किनारे मा
मने उफान.
*
हथलपकी
गोरिया अंगन से
रे बिदुरान.
*
उर्दू में ग़ज़ल
चंद्रभान भारद्वाज, १६४ श्रीनगर, इंदौर.
साँकल को भरमानेवाले.
बाँटे दिन भर चाबी-ताले.
हर भूखे को भेजा न्यौता
घर में केवल चार निवाले.
नंगों की बस्ती में बेचें
सपनों के रंगीन दुशाले.
आशाएँ सड़कों को सौंपी
सपने फुटपाथों पर पाले.
खिड़की-दरवाजों के पीछे
बुनतीं रोज़ मकड़ियाँ जाले.
चाकू गोली आग बमों की
दहशत के हम हुए हवाले.
आँगन में बबूल बोये तो
चुभते काँटे कौन निकाले?
भाड़े की कुछ भीड़ जुटाकर
सिर्फ हवा में शब्द उछाले.
मिली वक़्त से हमें वसीयत
फटी बिमाई, रिसते छाले.
*
खड़ी बोली में हाइकु मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
जग माटी का
एक खिलौना, फेंका
बिखरा-खोया.
फल सबने
चाहे पापों को नहीं
किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे
संबंधों-अनुबंधों
की, थक-हारा.
मैं ढोता, चुप
रहा- किसी ने नहीं
मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा
किस पर कितना,
कौन बताये?
लुटे कलियाँ
बेरहमी से माली
भंवरा रोया..
*
राह किसी की
कहाँ देखता वक्त
नहीं रुकता.
अस्त उसी का
देता चलता सदा
नहीं जो सोया.
*
दोष विधाता
को मत देना गर
न जीत पाओ.
मिलता वही
'सलिल' उसको जो
जिसने बोया.
*
**************
http://divyanarmada.blogspot. com
हिन्दी को कम आंकनेवालों को चुनौती है कि वे विश्व की किसी भी अन्य भाषा में हिन्दी की तरह अगणित रूप और उन रूपों में विविध विधाओं में सकारात्मक-सृजनात्मक-सामयिक लेखन के उदाहरण दें. शब्दों को ग्रहण करने, पचाने और विधाओं को अपने संस्कार के अनुरूप ढालकर मूल से अधिक प्रभावी और बहुआयामी बनाने की अपनी अभूतपूर्व क्षमता के कारण हिन्दी ही भावी विश्व-वाणी है. इस अटल सत्य को स्वीकार कर जितनी जल्दी हम अपनी ऊर्जा हिन्दी में हिंदीतर साहित्य और संगणकीय तकनीक को आत्मसात करेंगे, अपना और हिन्दी का उतना ही अधिक भला करेंगे.
*
*
मगही में मातृभूमि वंदना
डॉ. रामाश्रय झा, बख्तियारपुर पटना.
*
मातृभूमि हे! हमर प्रनाम.
सरगो से बढ़कर के सुन्दर, तोहर सोभा ललित ललाम....
*
हरियर बाग़-बगीचा धरती, एको देग कहौं नन परती.
अन-धन से परिपूर्ण मनोहर, जनगन-मन पाबे विश्राम...
*
सागर जेकर चरन पखारे, हरदम गौरव-गीत उचारे.
तीरथ राज प्रयाग बनल हे, मनहर-पावन चारों धाम...
*
अनुपम वेद, रामायण, गीता, धर्म सुसंस्कृति परम पुनीता.
सुधा सरिस गंगा-यमुना जल, कर दे मन के पूरनकाम...
*
जय-जय-जय हे भारत माता, तोरा से जलमों के नाता.
मरूं-जिऊँ तो ई माटी में, मुँह मा पर बस तोरे नाम...
*
सोभे पर्वतराज हिमालय, पावन मन्दिर अउर शिवालय.
गऊ-गणेश के पूजा घर-घर, विजय मन्त्र हे जय श्री राम...
**********
भोजपुरी में मुक्तिका
ओमप्रकाश केसरी, बंगाली टोला, बक्सर.
बयार अलगाँव के चले लागल.
घरे में गली दर गली खले लागल..
रहे आस जवना दिया पे हमरा.
उहे दिया से घरवा जले लागल..
आ गइल अइसन दरार रिश्तन में.
आपन, अपने छले लागल..
हो गइल हे मुसीबत के अइसन चलन.
किनारा भी देख के गले लागल..
रास ना आइल इश्क के दुलार.
भूखल आँत के मले लागल..
कहवाँ ठौर मिली 'पवन नन्दन'
जिनगी के सवाल गले लागल..
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अंगिका में मुक्तिका :
राजकुमार, बालकृष्ण नगर, भागलपुर
आदमी छै कहाँ?, जो छै तs सहमलs डरलs
आरो हुनख थपेड़ से खै दुबलल डढ़लs..
जहाँ भी जाय छी पाबै छी भयानक जंगल.
कुंद चन्दन छै, कुल्हाड़ी रs मान छै बढ़लs..
बाघ-भालू भीरी भेलs छै आद्लौ बौना.
हुनख नाखून छै बदलs, कपोत पर पड़लs..
आय काबिज़ हुनी सागर, आकाश धरती पर.
जाल हुनखs छै, फ्रेप में भी छै हुती मढ़लs..
राज लागै छ बगदलs छै समुन्दर अबको.
आग लगत छै लहर छै कमान पर चढ़ल..
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बघेली में हाइकु गीत
श्रुतिवंत प्रसाद दुबे 'विजन', डगा बरगवां, सीधी.
बोले मुरैला
पहरे डहारे मा
बन मस्तान.
*
पानी बरसा
दुआरे बगारे मा
धूरी पटान.
*
नदिया बाढ़ी
कहा किनारे मा
मने उफान.
*
हथलपकी
गोरिया अंगन से
रे बिदुरान.
*
उर्दू में ग़ज़ल
चंद्रभान भारद्वाज, १६४ श्रीनगर, इंदौर.
साँकल को भरमानेवाले.
बाँटे दिन भर चाबी-ताले.
हर भूखे को भेजा न्यौता
घर में केवल चार निवाले.
नंगों की बस्ती में बेचें
सपनों के रंगीन दुशाले.
आशाएँ सड़कों को सौंपी
सपने फुटपाथों पर पाले.
खिड़की-दरवाजों के पीछे
बुनतीं रोज़ मकड़ियाँ जाले.
चाकू गोली आग बमों की
दहशत के हम हुए हवाले.
आँगन में बबूल बोये तो
चुभते काँटे कौन निकाले?
भाड़े की कुछ भीड़ जुटाकर
सिर्फ हवा में शब्द उछाले.
मिली वक़्त से हमें वसीयत
फटी बिमाई, रिसते छाले.
*
खड़ी बोली में हाइकु मुक्तिका:
संजीव 'सलिल'
जग माटी का
एक खिलौना, फेंका
बिखरा-खोया.
फल सबने
चाहे पापों को नहीं
किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे
संबंधों-अनुबंधों
की, थक-हारा.
मैं ढोता, चुप
रहा- किसी ने नहीं
मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा
किस पर कितना,
कौन बताये?
लुटे कलियाँ
बेरहमी से माली
भंवरा रोया..
*
राह किसी की
कहाँ देखता वक्त
नहीं रुकता.
अस्त उसी का
देता चलता सदा
नहीं जो सोया.
*
दोष विधाता
को मत देना गर
न जीत पाओ.
मिलता वही
'सलिल' उसको जो
जिसने बोया.
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-acharya sanjiv 'salil',
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vishva vanee hindee
This is interesting! ----vijay kaushal
This is interesting! Learn something new everyday....
'Stewardesses'
is the longest word
typed with only the left hand.
typed with only the left hand.
And 'lollipop' is the longest word typed
with your right hand.
with your right hand.
(Bet you tried this out mentally, didn't you?)
No word in the English language rhymes with
month , orange, silver, or purple.![[]](https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=12a40cf34fc51a09&attid=0.5&disp=emb&zw)
![[]](https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=12a40cf34fc51a09&attid=0.4&disp=emb&zw)
month , orange, silver, or purple.
' Dreamt' is the only English word that ends in the letters 'mt'.
(Are you doubting this?)
(Are you doubting this?)
our eyes
are always the same size from birth,
but our nose
and ears ![[]](https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=12a40cf34fc51a09&attid=0.3&disp=emb&zw)
never stop growing.
but our nose
never stop growing.
The sentence: 'The quick brown fox jumps over the lazy dog'
uses every letter of the alphabet.
(Now, you KNOW you're going to try this out for accuracy, right?)
uses every letter of the alphabet.
(Now, you KNOW you're going to try this out for accuracy, right?)
The words 'racecar,'
'kayak'
and 'level'
are the same whether they are read left to right
or right to left (palindromes).
(Yep, I knew you were going to 'do' this one.)
or right to left (palindromes).
(Yep, I knew you were going to 'do' this one.)
There are only four words in the English language which end in 'dous': tremendous, horrendous, stupendous, and hazardous.
(You're not possibly doubting this, are you ?)
There are two words in the English language that have all five vowels in order: 'abstemious' and 'facetious.'
(Yes, admit it, you are going to say, a e i o u)
(Yes, admit it, you are going to say, a e i o u)
TYPEWRITER is the longest word that can be made using the letters only on one row of the keyboard.
(All you typists are going to test this out)
A cat has 32 muscles in each ear.
A goldfish
has a memory span of three seconds .
(Some days that's about what my memory span is.)
A 'jiffy' is an actual unit of time for 1/100th of a second.
A shark
is the only fish that can blink with both eyes.
A snail
can sleep for three years.
(I know some people that could do this too.!)
(I know some people that could do this too.!)
Almonds are a member of the peach
An ostrich's eye
(I know some people like that also . Actually I know A LOT of people like this!)
Babies
are born without kneecaps.
They don't appear until the child reaches 2 to 6 years of age.
February 1865 is the only month in recorded history not to have a full moon.
In the last 4,000 years, no new animals have been domesticated.
If the population of China walked past you, 8 abreast,
the line would never end because of the rate of reproduction.
the line would never end because of the rate of reproduction.
Leonardo Da Vinci invented the scissors
Peanuts
Rubber bands
The average person's left hand does 56% of the typing.
The cruise liner, QE 2,
![[]](https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=12a40cf34fc51a09&attid=0.18&disp=emb&zw)
moves only six inches for each gallon of diesel that it burns.
moves only six inches for each gallon of diesel that it burns.
The microwave
was invented after a researcher walked by a radar tube and a chocolate bar melted in his pocket.
(Good thing he did that.)
(Good thing he did that.)
The winter of 1932 was so cold that Niagara Falls
froze completely solid .
froze completely solid .
There are more chickens
Winston Churchill
![[]](https://mail.google.com/mail/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=12a40cf34fc51a09&attid=0.16&disp=emb&zw)
was born in a ladies' room during a dance.
was born in a ladies' room during a dance.
Women blink nearly twice as much as men.
Now you know more than you did before!!
The Rain-Thomas Kinkade
This is a Thomas Kinkade painting It's rumored to carry a miracle!
They say if you pass this on, you will receive a miracle.
I am passing this on because I thought it was really pretty,
And besides, who couldn't use a miracle
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