कुल पेज दृश्य

शनिवार, 9 जून 2018

साहित्य त्रिवेणी १३ राजेंद्र वर्मा -हिंदी काव्य के वर्णिक छंद और उर्दू की बहरें

हिंदी काव्य के वर्णिक छंद और उर्दू की बहरें
- राजेन्द्र वर्मा

परिचय: जन्म १५.३.१९५५, ग्राम सधई पुरवा, तहसील फ़तेहपुर, बाराबंकी उ.प्र.। संप्रति: से.नि. मुख्य प्रबंधक भारतीय स्टेट बैंक, प्रकाशन: चुटकी भर चाँदनी -दोहे, नवसृजन के स्वर -गीत, अन्तर संधि -गीत-नवगीत, बूँद-बूँद बादल -हाइकु, लौ -ग़ज़लें, मिथ्या का सत्य -कविताएँ, भारत उसका नाम -किशोरों हेतु कविताएँ, कागज़ की नाव -नवगीत, अंक में आकाश -ग़ज़लें, जीवन है अनमोल -पद, मुझे ईमानदार मत कहो -व्यंग्य(उ.प्र. हिन्दी संस्थान का श्रीनारायण चतुर्वेदी पुरस्कार), अभिमन्यु की जीत -लघुकथाएँ, दोहा छन्दः एक अध्ययन -आलोचना, दीया और दीवट -निबंध(उ.प्र. हिन्दी संस्थान का महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार), सफलता के सात सोपान -प्रेरक साहित्य, विकल्प -लघुकथाएँ, पद पुराण व्यंग्य, मुक्ति और अन्य कहानियाँ,  पेट और तोंद -व्यंग्य, सत्ता-रस -व्यंग्य, रस-छंद-अलंकार और प्रमुख काव्य-विधाएँ, Selected poems of Rajendra Verma Translation by Awadhesh K. Shrivastava,  उपलब्धि: अखिल भारतीय लघुकथा सम्मान पटना, ‘कथाबिंब पत्रिका का कमलेश्वर कहानी सम्मान, भुवनेश्वर शोध संस्थान (शाहजहाँपुर) का ‘शिवांशु स्मृति सम्मान’, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा एम्-फिल. 2005, रचनाएँ अंग्रेजी-पंजाबी में अनुवादित। संपादन: गीत शती, गीत गुंजन, अविरल मंथन १९९६-२००३। प्रसारण आकाशवाणी लखनऊ। संपर्क: ३/२९ विकास नगर, लखनऊ २२६०२२, चलभाष ८००९६ ६००९६, ईमेल: rajendrapverma@gmail.com।
*
रस और लय कविता के आवश्यक तत्त्व हैं। ‘रस’ वर्णन की वस्तु है, तो ‘लय’ शब्द- योजना की। यह शब्द-योजना छंद के माध्यम से आती है। छंद को कविता के लिए उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे नदी के प्रवाह के लिए उसके तट। तटविहीन नदी अपना वेग खोकर गन्तव्य तक नहीं पहुँचती । छंद की दृष्टि से हिंदी कविता के दो भेद हैं: (१) छंदोबद्ध और (२) मुक्तछंद। छंदोबद्ध कविता उसे कहा जाता है, जो किसी छंद विशेष में हो। जैसे: दोहा, चौपाई आदि। तुलसी की रामचरितमानस में मुख्यतः दोहे चौपाइयाँ तथा बीच-बीच में अन्य हरगीतिका, भुजंगप्रयात छंद, श्लोक आदि भी हैं। मुक्तछंद कविता में छंद तो होता है, लेकिन उसका स्वरूप निश्चित नहीं रहता। एक पंक्ति किसी छंद में हो सकती है, तो दूसरी किसी अन्य छंद में। उसकी पंक्तियाँ छोटी-बड़ी भी हो सकती हैं। उसकी लय भी अलग-अलग प्रकार की हो सकती है। कुछ लोग मुक्त छंद कविता को छंदमुक्त कविता भी कहते हैं, जो सही नहीं है। आज यद्यपि गद्य कविता भी प्रचलन में आ गयी है, जिसमें कतिपय शब्दों के दुहराव और उन पर आने वाली यति पर बल देकर लय उत्पन्न की जाती है; जबकि छंदोंबद्ध कविता में लय की स्थापना स्वमेव हो जाती है। छंदोबद्ध कविता दो प्रकार के छंदों से बनती है: मात्रिक और वर्णिक।
मात्रिक छंद: मात्रिक छंद मात्राओं के आधार पर बनते हैं अर्थात् लघु या गुरु स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है, उसी के अनुसार लघु या गुरु मात्राएँ गिनी जाती हैं। जैसे- राम शब्द में तीन मात्राएँ हैं- ‘रा’ में २ और ‘म’ में १ । दीर्घ स्वर को इंगित करने के लिए अंग्रेजी के 'एस' अक्षर (S) का निशान और लघु को 'आई' (I) से। इस प्रकार ‘राम’ शब्द की मात्राओं को SI चिह्नों से व्यक्त किया जाता है।
(१). दोहा, चौपाई आदि मात्रिक छंद के उदाहरण हैं। दोहे में चार चरण होते हैं। पहला और तीसरा चरण १३-१३ मात्राओं का होता है, जबकि दूसरा और चौथा चरण ११-११ मात्राओं का। पहले और तीसरे चरण के अंत में लघु-दीर्घ स्वर आते हैं जबकि दूसरे और चौथे में दीर्घ-लघु। इस प्रकार, पहले और दूसरे चरण को मिलाकर २४ मात्राएँ होती हैं। मात्राओं की गणना की दृष्टि से कबीर के एक दोहे को लेते हैं: साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । / जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप ।।
पहले चरण की मात्रा-गणना : साँच २+१=३, बराबर १+२+१+१=- ५, तप १+१= २, नहीं १+२= ३ (कुल तेरह)। दूसरे चरण में : झूठ-३, बराबर-५, पाप-३ (कुल ग्यारह)। चूँकि दोहे के सभी चरणों में मात्राएँ समान नहीं होती हैं, दो-दो चरणों में समान होती हैं; इसलिए, यह अर्धसम मात्रिक छंद कहलाता है । अगर सभी चरणों में मात्राएँ समान होतीं, तो यह सम-मात्रिक छंद कहलाता, जैसे चौपाई।
(२). चौपाई चार पंक्तियों का छंद है, जिसकी प्रत्येक पंक्ति में १६-१६ मात्राएँ होती हैं और उसके अंत में दो दीर्घ स्वर (SS) आते हैं। सभी पंक्तियों में तुकांत होता है। पंक्ति को पद या पाद भी कहते हैं; चरण नहीं। चौपाई का एक उदाहरण देखिए:
रामकथा सुंदर करतारी। संसय विहग उड़ावन हारी। /  रामकथा कलि विटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
इसकी प्रत्येक पंक्ति में १६ मात्राएँ होती हैं। पहली पंक्ति जाँचते हैं: राम ३, कथा ३, सुंदर ४, (जब किसी लघु वर्ण के बाद आधा वर्ण आता है, तो वह दीर्घ माना जाता है, इसलिए ‘सुंदर’ = ‘सुं’ २, दर २), कर २, तारी ४. कुल मात्राएँ: तीन+तीन+चार+दो+चार= सोलह । सभी पंक्तियों के अंत में दो दीर्घ भी हैं: तारी, हारी, ठारी और मारी। आपस में ये तुक में भी हैं। इसी छंद में जब दो-दो पंक्तियों में तुकांत होता है, तब वह चौपाई नहीं, अर्धाली कहलाती है। रामचरितमानस में अधिकांशतः अर्धालियाँ हैं।
मात्रिक छंदों में मात्राएँ समान होती हैं, पर उनका क्रम नहीं निश्चित रहता, जबकि वर्णिक छंद में उनका क्रम भी निश्चित रहता है। मात्रिक छंदों में, विष्णुपद, सरसी, ताटंक, आल्हा आदि अधिक प्रचलित छंद हैं। विष्णुपद में २६, सरसी में २७, ताटंक में ३० और आल्हा में ३१ मात्राएँ होती हैं। ये सभी छंद दो-दो चरणों से बने हैं: पहले चरण में सोलह मात्राएँ, शेष दूसरे चरण में। उदाहरण के लिए बच्चन की मधुशाला का एक छंद लेते हैं जो ताटंक छंद में है। १६-१४ मात्राओं में विभक्त ३० मात्राओं का चार पंक्तियों में निबद्ध यह छंद मनोहारी है:
मदिरालय जाने को घर से, चलता है पीनेवाला, / किस पथ से जाऊँ असमंजस, में है वह भोला-भाला।
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ, / राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला ।।
वर्णिक छंद: वर्णिक छंद उन्हें कहा जाता है जो वर्णों की गणना के आधार पर बनते हैं। इनमें वर्णों की गणना की विधि वही है, जो मात्रिक छंद की है, अर्थात् जिस वर्ण के उच्चारण में कम समय लगता है, वह लघु वर्ण और जिसमें अधिक समय लगता है, वह दीर्घ। मात्रिक छंद की किसी काव्य-पंक्ति में मात्राएँ समान होती है, पर उनका क्रम नहीं निश्चित रहता; जबकि वर्णिक छंद में उनका क्रम भी निश्चित रहता है। वर्णिक छंद के अंतर्गत सवैया और घनाक्षरी (कवित्त) भी आते हैं। सवैया में वर्ण के नीचे वर्ण आते हैं, लेकिन घनाक्षरी में केवल वर्णों की गणना की जाती है : इसकी एक पंक्ति में प्रायः ३१ वर्ण होते हैं और १६ पर यति होती है।  जैसे:  १ से १६ / १७ से ३१। उदाहरण: 
(३). भेजे मनभावन के, ऊधव के आवन के, सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहैं ‘रत्नाकर’ गुवारिनि की झौरि-झौरि, दौरि-दौरि नंद-पौरि आवन तबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पै, पेखि-पेखि पाती, छाती छोहनि छबै लगीं।
हमकौ लिख्यो है कहा, हमकौ लिख्यो है कहा, हमकौ लिख्यो है कहा, पूछन सबै लगीं । (रत्नाकर)
वर्णिक छंदों की लय लघु और गुरु वर्णों के मिश्रण से बनती है, लेकिन किसी पंक्ति में जो वर्णों आते हैं, उन्हीं की पुनरावृत्ति से अगली पंक्तियाँ लयबद्ध होती हैं। इस प्रकार वर्णिक छंदों में वर्णों का क्रम निर्धारित रहता है। जब उनका क्रम बदलता है, तो लय भी बदल जाती है। दूसरे शब्दों में वर्ण के नीचे वर्ण आता है- लघु के नीचे लघु और दीर्घ के नीचे दीर्घ। हाँ, दो लघु मिलकर एक दीर्घ बन सकते हैं। इसी प्रकार, एक दीर्घ को दो लघु में विभाजित कर लिखा जा सकता है, पर यह नियम वहाँ नहीं लागू होता है जहाँ कोई अनिवार्य लघु हो, जैसे: ‘न’, अथवा कमल शब्द में- ‘क’। कमल को हम क+मल (IS) ही बोल सकते हैं, कम+ल (SI) नहीं । किसी शब्द में वर्णों की अपेक्षा मात्राएँ अधिक हो सकती है, जैसे: ‘आकाश’ शब्द में पाँच मात्राएँ हैं, लेकिन तीन वर्ण हैं- दो दीर्घ और एक लघु: आ-का-श (SSI)। इसी प्रकार, वाणी में चार मात्राएँ हैं, पर दो दीर्घ वर्ण हैं: वा-णी (SS)। इस प्रकार, आकाशवाणी शब्द में नौ मात्राएँ हैं और वर्ण हैं: पाँच । जिस प्रकार मात्राएँ लघु और गुरु होती हैं, उसी प्रकार वर्ण भी लघु और दीर्घ कहलाते हैं। इन्हें क्रमशः ह्रस्व और गुरु भी कहा जाता है। आठ वर्णिक छंदों की गणना को आचार्य भरत के गणसूत्र  'यमाताराजभानसलगा' ने बहुत आसान कर दिया है। पहले तीन अक्षरों से युग्म बना 'यमाता' (ISS) अर्थात् यगण । दूसरे अक्षर से प्रारंभ कर तीन अक्षरों से बना 'मातारा' (SSS) अर्थात् मगण। इसी क्रम में कुल ८ गण बनते गए। 
उर्दू छंद-विधान में गण को ' रुक्न' (बहुवचन अरकान) और छंद को 'बह्र' कहते हैं। इन आठों गणों को हिंदी के तीन अक्षरों से बने युग्म और उर्दू के अरकान की मदद से समझते हैं:
१. यगण: यमाता (ISS) फ़ईलुन्/फ़ऊलुन्/मफ़ेलुन्, २. मगण: मातारा (SSS) फ़ाईलुन्/मफ़ऊलुन्/फ़इलातुन्, ३. तगण: ताराज (SSI) मफ़ऊल, ४. रगण: राजभा (SIS) फ़ाइलुन्, ५. जगण: जभान (ISI) फ़ईल/फ़ऊल, ६. भगण: भानस (SII) फ़ाइल, ७. नगण: नसल (III) फ़इल/फ़उल, ८.सगण: सलगा (IIS) फ़इलुन्/फ़उलुन्। 
(४). विभिन्न वर्णों के युग्म: 
गणसूत्र की सीमा यह है कि इसमें हर युग्म तीन वर्णों का है, जबकि उर्दू छंद-विधान में, दो से लेकर पाँच वर्णों तक के युग्म हैं।
(१) दो वर्णों के युग्म: दो दीर्घ वर्णों को फ़ेलुन्; दीर्घ-लघु को फ़ाइ या फ़ात; लघु-दीर्घ को फ़ई या फ़ऊ; और दो लघु वर्णों को फ़इ या फ़उ।
(२) तीन वर्णों के युग्म: तीनों दीर्घ हों तो- मफ़ऊलुन् या, फ़ाईलुन्, तीनों लघु- फ़इल या, फ़उल; दीर्घ-लघु-लघु को-फ़ाइल। अन्य वर्णयुग्म उपर्युक्त तालिका के अनुसार।
(३) चार वर्णों के युग्म: IISS- फ़इलातुन्, ISSS- मुफाईलुन् या, फ़ऊलातुन्, SISS- फाइलातुन्, SSIS- मुस्तफ्-इलुन् या, हरगीतिका।
(४) पंचवर्णीय युग्म: IISIS- मुत-फ़ाइलुन्, SIISS- मुत-फइलातु ISIIS- मुफ़ा-इलतुन्, न, SISSS- मुत- फ़ईलातुन, ISISI- मुफाइलात, SSSSS को मुस्तफ़-ईलातुन, अथवा इसे दो हिस्सों में विभक्त कर ‘फेलुन-फ़इलातुन’ अथवा इसका उल्टा, ‘फ़इलातुन-फेलुन’ कहा जा सकता है। इसे तीन हिस्सों में विभक्त कर ‘फेलुन-फेलुन-फ़इ/फ़ा’ अथवा ‘फेलुन- फ़इ-फेलुन’ भी कहा जा सकता है।
वर्णिक छंदों की निर्मिति:
वर्णिक छंद दो प्रकार से निर्मित होते हैं।  किसी वर्ण-समूह (गण) या अरकान की आवृत्ति अथवा, कतिपय वर्ण-समूहों के मिश्रण से। दोनों ही स्थितियों में लय स्वतः उत्पन्न हो जाती है।
१. एक ही गण या कतिपय वर्ण-युग्म (अरकान) की आवृत्ति से बने छंद: उर्दू में ऐसे छंदों को 'मुफ़रद बह्र' कहा जाता है। उदाहरण:
१.१ यह गण विशेष या अरकान को दुहराने से बन जाता है, जैसे ‘यगण’ (यमाता) या ‘फ़ऊलुन’ यानी, लघु-दीर्घ-दीर्घ (ISS) को चार बार दुहराकर। इससे भुजंगप्रयात नामक छंद उर्दू में 'बहरे-मुतक़ारिब' बन जाता है, ISS ISS ISS ISS / यमाता-यमाता-यमाता-यमाता अथवा, फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्
भला भी कहा है, बुरा भी कहा है, / जो देखा सुना है, वही तो कहा है । -स्वरचित 
न छूटा तुम्हारा बहाना बनाना / न छूटा हमारा तुम्हें यूँ बुलाना।   -संजीव वर्मा 'सलिल'  
१.२ यगण में एक गुरु वर्ण जोड़कर यदि उसे चार बार दुहरा दिया जाए, तो एक नया छंद बन हो जाएगा। जैसे: यमातारा-यमातारा-यमतारा-यमातारा। इस अति प्रचलित छंद का नाम 'विधाता' है। उर्दू में इस वर्णयुग्म को मफाईलुन (ISSS) कहते हैं। इसे चार बार दुहराने अथवा, फ़ऊलुन, फ़ाइलुन, फेलुन को दुहराकर समझा जा सकता है।  उर्दू में इसे 'बहरे-हज़ज' कहते हैं। एक उदाहरण:  ISSS ISSS, ISSS ISSS  / यमातारा-यमातारा-यमातारा-यमातारा अथवा, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन, मफाईलुन
हमन हैं इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या? / रहें आज़ाद या जग में, हमन दुनिया से यारी क्या? -कबीर 
दियों में तेल या बाती नहीं हो, तो करोगे क्या? / लिखोगे प्रेम में पाती नहीं भी, तो मरोगे क्या? -सलिल 
१.३ इसी प्रकार, ‘रगण’ (राजभा) या ‘फ़ाइलुन्’, अर्थात् दीर्घ-लघु-दीर्घ (SIS) को चार बार दुहराने पर 'स्रग्विणी छंद' बन जाता है। उर्दू में इसे 'बहरे-मुतदारिक' कहा जाता है। उदाहरण: फ़िल्म हकीक़त के एक गाने का मुखड़ा— SIS SIS SIS SIS / राजभा-राजभा-राजभा-राजभा अथवा, फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्-फ़ाइलुन्
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो! / अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो! -क़ैफ़ी आज़मी 
बोलिए तो सही बात ही बोलिए / राज की बात या झूठ ना बोलिए -सलिल 
१.४ यदि ‘रगण’ या ‘फाइलुन्’ (SIS) में एक दीर्घ (S) और जोड़ दिया जाए, तो उससे ‘फ़ाइलातुन्’ (SISS) अरकान बन जायेगा और इसे यदि चार बार रख दिया जाए, तो उससे एक अन्य (२८ मात्रिक यौगिक जातीय- सं.) छंद बन जाएगा जिसे उर्दू में बहरे-रमल कहते हैं। उदाहरण: SISS SISS SISS SISS / फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्- फ़ाइलातुन्
मुद्दतों से चल रहा यह सिलसिला है, / शिव को पीने को हमेशा विष मिला है। -स्वरचित 
साधना ने साध्य को पूजा हमेशा, हास पाया / कामना ने काम्य को चाहा हमेशा त्रास पाया  -सलिल
(इस छंद में १६-१२ पर यति और पदांत में SS हो तो सार, १४-१४ पर यति और पदांत में ISS हो तो विद्या छंद बन जायेंगे- सं.)
१.५ यदि ‘तगण’ (ताराज, SSI) में एक गुरु वर्ण जोड़ दिया जाए, अर्थात् दीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घ (SSIS) को चार बार दुहरा दिया जाए, तो वह हरगीतिका छंद होगा। ‘हरगीतिका’ शब्द की चार आवृत्तियों (हरगीतिका-हरगीतिका-हरगीतिका-हरगीतिका) से भी यह छंद बन जाता है । उर्दू में इस अरकान को ‘मुस्तफ्इलुन्’ कहते हैं और इससे बनी बहर को 'बहरे-रजज़' SSIS SSIS SSIS SSIS मुस्तफ़इलुन्-मुस्तफ़इलुन्- मुस्तफ़इलुन्-मुस्तफ़इलुन् । ( भनु जी ने छंद प्रभाकर में हरिगीतिका की बह्र आदि गुरु होने पर ४ x मुस्तफ़अलन तथा आदि दो लघु होने पर ४ x मुतफ़ायलुन् बताई है -सं.)।  तुलसी का प्रसिद्ध राम-स्तवन इसी छंद में है:  
श्री रामचंद्र कृपाल भज मन हरण भव भय दारुणम्। / नव कंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कंजारुणम् ।। -तुलसी 
पहली पंक्ति में ‘हरण’ (IS) आया है, जिसके कारण छंद-दोष उत्पन्न हो गया है। यहाँ दीर्घ-लघु (SI) आना चाहिए था, न कि लघु-दीर्घ (IS), परंतु ‘हरण’ का कोई अच्छा विकल्प न होने के कारण इसे इसी रूप में ग्रहण करना श्रेयस्कर है। (स्पष्ट है कि शिल्प अथवा विधान पर पर कथ्य को वरीयता दी जानी चाहिए किंतु इसका आशय यह कदापि नहीं है कि शिल्प अथवा विधान की अनदेखी की जाए। -सं.)
चंदा न जागा चाँदनी की बाँह में सोया रहा / थे ख्वाब देखे जो न पूरे हो सके खोया रहा।  -सलिल 
२. मिश्रित गणों अथवा वर्ण-समूहों से निर्मित कुछ छंद (उर्दू में मिश्रित छंदों को मुरक्कब बह्र कहा जाता है।)
२.१. भुजंगप्रयात छंद के अंत में आने वाले एक दीर्घ को यदि हटा दें, तो इससे हिंदी का भुजंगी छंद बन जाएगा। जैसे: ISS ISS ISS IS / यमाता-यमाता-यमाता-यमा अथवा, फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊ 
बजे नाद अनहद, सुनायी न दे, / है कण-कण में लेकिन, दिखायी न दे। -स्वरचित
पुजा है हमेशा यहाँ सत्य ही / रहा सत्य सापेक्ष ही धर्म भी। -सलिल 
२.२ यदि रगण (SIS) फ़ाइलुन यानी, दीर्घ-लघु-दीर्घ, में एक गुरु वर्ण और जोड़ दें, तो हिंदी छंद-विधान के अनुसार इसे रगण और एक दीर्घ कहेंगे, लेकिन उर्दू छंदविधान में इसे फ़ाइलातुन कहेंगे। 'फाइलातुन'को तीन बार दुहरायें और उसके बाद एक फ़ाइलुन (रगण) रख दें, तो हिंदी कविता का प्रसिद्ध २६ मात्रिक छंद, गीतिका बन जाएगा। उर्दू में इसे रमल कहते हैं, भले ही उसमें चारों फ़ाइलातुन् हों। गीतिका छंद का एक उदाहरण देखें: SISS SISS SISS SIS / फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्
हे प्रभो! आनंददाता, ज्ञान हमको दीजिए, शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए। -मैथिलीशरण गुप्त
काट डाले वृक्ष सारे पूर दी तूने नदी / खोद डाला है पहाड़ों को हुई गूंगी सदी। -सलिल 
२.३ गीतिका छंद में से यदि हम एक फाइलातुन निकाल दें, तो यह हिंदी का पीयूषवर्ष छंद बन जाएगा, जैसे— SISS SISS SIS /फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलुन्
अंक में आकाश भरने के लिए, / उड़ चले हैं हम बिखरने के लिए । -स्वरचित
वायदा पूरा कभी होता नहीं / देश मेरा चाहतें खोता नहीं -सलिल 
२.४ पीयूषवर्ष छंद में अगर एक फ़ाइलुन (दीर्घ-लघु-दीर्घ) जोड़ दें, तो वह राधा छंद बन जाएगा, जैसे: SISS SISS SIS SS / फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्, फ़ाइलुन्-फेलुन्
बीन भी हूँ; मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ, / कूल भी हूँ; कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ। -महादेवी
देश पे जो जान देता है हमेशा से / देश से वो मान पाता है हमेशा से -सलिल 
२.५ ISIS IISS ISIS IIS / जगण-भगण-तगण-रगण-सगण अथवा, मफ़ाइलुन्-फ़इलातुन्, मफ़ाइलुन्-फ़इलुन्
कहाँ तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए, / कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। -दुष्यन्त कुमार
कहा, कहा-न कहा, बात तो कही तुमने / सुना, सुना-न सुना, बात तो तही तुमने -सलिल 
२.६ SSI SIS IIS SIS IS / तगण-रगण- सगण-रगण, लघु-गुरु अथवा, फ़ेलुन्-मफ़ाइलात, मफ़ेलुन्-मफ़ाइलुन्। उर्दू में इस बहर का संक्षिप्त नाम है- मुज़ारे-अख़रब ।
दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए, /बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। -शहरयार
क्या-क्या, कहाँ-कहाँ न सहा आपके लिए / मारा कहाँ-कहाँ न फिरा आपके लिए  -सलिल-
२.७ SIS SIS ISI IS / रगण-रगण-जगण, लघु-गुरु अथवा, / फ़ाइलातुन्-मफ़ाइलुन्-फ़इलुन्। उर्दू में इस बहर का संक्षिप्त नाम है- खफ़ीफ़ । विस्तृत नाम आगे दिया गया है।
ज़िंदगी से  बड़ी सजा ही  नहीं, / और क्या जुर्म है, पता ही नहीं। -नूर लखनवी
सत्य को सत्य ही कहा जिसने / आदमी आदमी रहा उसमें -सलिल
३. उर्दू छंद विधान की बहरें और उनके उदाहरण:
३.१ किसी वर्ण-युग्म (अरकान) की आवृत्ति से बने छंदों, अथवा मुफ़रद बहरों के निम्नलिखित / सात भेद होते हैं:-
--------------------------------------------------------------------------------------
क्र.   बहर    हिंदी में सम-    आवृत्त अरकान   गण-नाम  उदाहरण S= II; वक्र
                  तुल्य छंद              का नाम                      अक्षर मात्रा पतन, गुरु
                                                                     को लघु पढ़ें, अन्यथा लयभंग 
--------------------------------------------------------------------------------------
१. मुतक़ारिब   भुजंगप्रयात   फ़ऊलुन् (ISS)    यगण     ISS ISS ISS ISS
   किनारा वो हमसे किये जा रहे हैं, / दिखाने को दर्शन दिये जा रहे हैं। -निराला
--------------------------------------------------------------------------------------
२. मुतदारिक    स्रिग्वणी       फ़ाइलुन् (SIS)    रगण     SIS SIS SIS SIS
 मेरी मुट्ठी में सूखे हुए फूल हैं, / ख़ुशबुओं को उड़ाकर हवा ले गयी। -बशीर बद्र
---------------------------------------------------------------------------------------
३. हज़ज      विधाता   मुफ़ाईलुन्(ISSS)   यगण गुरु  ISSS ISSS ISSSI SSS
                                       हज़ारों ख्व़ाहिशें ऐसी कि हर ख्व़ाहिश पे दम निकले,                                                                                                               बहुत निकले मिरे अरमान, लेकिन फिर कम निकले। -ग़ालिब 
----------------------------------------------------------------------------------------
४. रजज़          हरिगीतिका   मुस्तफ़्इलुन्   तगण गुरु      SSIS SSIS SSIS                                                       
                                               (SSIS)                                     SSIS
                                               वह पूर्व की सम्पन्नता, यह वर्तमान विपन्नता,
                 अब तो प्रसन्न भविष्य की आशा यहाँ उपजाइए। -मैथिलीशरण गुप्त 
-------------------------------------------------------------------------------------
५. रमल           गीतिका       फ़ाइलातुन्     रगण, गुरु     SISS SISS SISS
                                             (SISS)                                    SISS                                                                                       
                                                   बीन की झंकार कैसी बस गयी मन में  हमारे,
                             धुल गयीं आँखें जगत की, खुल गये रवि-चन्द्र-तारे -निराला 
--------------------------------------------------------------------------------------
६. कामिल                       मुतफ़ाइलुन्  सगण,लघु-गुरु     IISIS IISIS IISIS
                                             (IISIS)                                      IISIS
                                        कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
                    ये नये मिज़ाज का शह्’र है, ज़रा फ़ासले से मिला करो।-बशीर बद्र 
-------------------------------------------------------------------------------------
७. वाफ़िर                        मुफ़ाइलतुन्     जगण, लघु- गुरु  ISIIS ISIIS ISIIS
                                          (ISIIS)                                           ISIIS
                                          ज़माने में कोई ऐसा नहीं कि जैसा वो ख़ूबरू है मेरा,                   
    न ऐसी अदा जहां में कहीं, न ऐसी हया जहां में कहीं। -कमाल अहमद सिद्दीक़ी
--------------------------------------------------------------------------------------
नोट: (१) अपनी-अपनी श्रेणी की सभी बह्रें (उर्दू में बहूर) ‘मुसम्मन सालिम’ हैं। अतः, पहली बह्र का नाम हुआ ‘बह्रे-मुतक़ारिब-मुसम्मन-सालिम।’ अब इस पूरे पद का अर्थ समझते हैं: बह्रे= (....) की बहर (छंद)। मुतक़ारिब= अरकान (वर्ण-युग्म) का नाम। मुसम्मन= अष्टकोणीय या आठ बार, शे’र में ‘मुतक़ारिब’ अरकान (ISS) आठ बार आया है: चार बार पहली पंक्ति में और चार बार दूसरी में। सालिम= समूचा, अखंडित। ‘सालिम’ विशेषण है, जिसकी संज्ञा है- मुसल्लम; यानी, पूरा-का-पूरा, जैसे- मुर्ग़-मुसल्लम।
(२) उपर्युक्त तालिका की सभी बह्रें या बहूर ‘सालिम’ कहलाती हैं।
(३) उपर्युक्त तालिका की अगली बह्र का पूरा नाम होगा ‘बह्रे-मुतदारिक-मुसम्मन-सालिम। इसी क्रम में हर बह्र का नाम बदलता जाएगा।
(४) यदि किसी शे’र में किसी अरकान की आवृत्ति आठ बार से कम, अर्थात् चार अथवा, छः बार हुई हो तो, उसकी बहर ‘मुसम्मन’ के स्थान पर क्रमशः ‘मुरब्बा सालिम’ और ‘मुसद्दस सालिम’ के रूप में जानी जाएगी, जैसे- निम्न शे’र में ‘मुतक़ारिब’ रुक्न (ISS) चार बार (दोनों पंक्तियों में) आए हैं। अतः इसकी बहर का नाम होगा 'बह्रे-मुतदारिक-मुरब्बा-सालिम'। ISS ISS वही तो कहा है, / जो देखा-सुना है।
(५)  निम्नलिखित शे’र बह्रे-मुतदारिक-मुसद्दस-सालिम कहलाएगा, क्योंकि इसमें छः बार मुतदारिक रुक्न आया है: ISS ISS ISS  अगर जान जाती है जाए, / मगर सच को सच हम कहेंगे ।
(६)यदि किसी अरकान की दस आवृत्तियाँ हों, तो वह ‘दुहुम सालिम’ कहलायेगा। ग़ज़ल के शे’र में ऐसी सोलह आवृत्तियाँ मान्य हैं।
३.२ विभिन्न वर्ण-युग्मों से बने मिश्रित छंद या ‘मुरक्कब’ बह्रें: मिश्रित वर्ण-युग्म या, विभिन्न अरकान से जो बह्रें बनती है,। उर्दू अरूज़ में इन्हें ‘मुरक्कब’ बह्र कहा जाता है। अरूज़ के लिहाज से निम्नलिखित ‘मुरक्कब बह्रें’ निम्नलिखित १२ प्रकार की होती हैं। इनसे संबंधित अश'आर भी दिये जा रहे हैं। ये अश'आर बहर में प्रयुक्त अरकान को दर्शाने की दृष्टि से ही देखे जाने चाहिए, शेरियत के लिहाज से नहीं। इन बह्रों में अश'आर कम ही मिलते हैं, क्योंकि इनमें ज़िहाफ लगी बह्रों की अपेक्षा लय कम होती है।
---------------------------------------------------------------------------------------
क्र.  बहर का नाम            अरकान                   उदाहरण: दो लघु II=एक गुरु S
                                    जिन वर्णों की मात्राएँ गिरी हैं, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं
---------------------------------------------------------------------------------------
१.      तबील           फ़ऊलुन्-मुफ़ाईलुन्   ISS ISSS, ISS ISSS, तुम्हारी जुदाई
                         २x(मुतक़ारिब+हज़ज)    में लबों पर दम आया है / कोई से यों
                                                            मसीहा कब आया है। - सफ़ी अमरोही
---------------------------------------------------------------------------------------
२.      क़रीब        मुफ़ाईलुन्-मुफ़ाईलुन्-       ISSS ISSS SISS, न यह समझो
                       फ़ाइलातुन् (२ हज़ज+रमल)    रहा हूँ केवल घरों में, / उड़ानें भी
                                                                    रही हैं टूटे परों में।- कुँअर बेचैन
--------------------------------------------------------------------------------------
३.   मुज़ारिअ   मुफ़ाईलुन्-फ़ाइलातुन्    ISSS SISS, ISSS SISS, कभी आती
       (मुज़ारे)     २ x (हज़ज+रमल)  याद उनकी, कभी आती ही नहीं है,/इलाही,
                                      क्या याद भी ख़्वाब-सी होती बेवफ़ा है?-राज पाराशर
--------------------------------------------------------------------------------------
४.        मदीद      फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्*     SISS SIS, पूजता हूँ बस उसे, / अब
                            (रमल+मुत-दारिक)          वो पत्थर है तो है। - विज्ञान व्रत
---------------------------------------------------------------------------------------
५.    जदीद   फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-  SISS SISS SSIS, ले गया वो बेमुरव्वत
                 मुस्तफ़्इलुन(२रमल+रजज) आरामे-दिल,/कुछ नहीं बाक़ी रहा अब
                                                                       जुज़नामे-दिल।- राज पाराशर
----------------------------------------------------------------------------------------
६.  ख़फ़ीफ़  फ़ाइलातुन्-मुस्तफ्इलुन्-फ़ाइलातुन्  SISS SSIS SISS,  जल गयी
                   (रमल+रजज़+ रमल)                       निःसंदेह अँगुली हमारी,/दीप
                                                  को लेकिन ज्योतित कर  दिया है। - स्वरचित                       
---------------------------------------------------------------------------------------
७.     मुशाकिल     फ़ाइलातुन्-मुफाईलुन्-       SISS ISSS ISSS, इश्क़ क्या है,
                         मुफाईलुन् (रमल+2हज़ज)  नहीं मालूम ये यारो, गो कटी इश्क़
                                                                 में ही ज़िन्दगी मेरी।- राज पाराशर
----------------------------------------------------------------------------------------
८.       मुज़ास     मुस्तफ्इलुन-फाइलातुन्    SSIS SISS, उसको भला कौन मारे,   
        (मुज़्तस)          (रजज़+रमल)             / जीना जिसे आ गया हो।-स्वरचित
-----------------------------------------------------------------------------------------
९.       वसीत       मुस्तफ्इलुन्-फाइलुन्*    SSIS SIS, SSIS SIS, जाने-जिगर,
         (ख़सीत)        रजज़+मुतदारिक        जाने-मन, तुझको है मेरी क़सम, / तू
                                          जो न मुझको मिला, मर जाऊँगा मैं सनम।– समीर
-----------------------------------------------------------------------------------------
१०.   मुक्तज़िब   मफ़ऊलातु-मुस्तफ्इलुन्  SSSI SSIS, SSSI SSIS,जो भी ठानिये
                                                              दोस्तो! वह कर गुज़रिये आज ही, कल
                                 का क्या ठिकाना, समय की अनुकूलता हो न हो! -स्वरचित
------------------------------------------------------------------------------------------
११.    मुंसरिह        मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु   SSIS SSSI, SSIS SSSI, मिलकर
       (मुंसरिज)                  गले रो लो मीत, अपने नयन धो लो मीत, कितने गिरे
                                              आँसू आज, उनको ज़रा तोलो मीत। -कुँअर बेचैन                           
-----------------------------------------------------------------------------------------
१२.    सरीअ         मुस्तफ्इलुन्-                 SSIS SSIS SSSI, मैं भी सुनूँ, तू भी
        (सरीअ:)      मुस्तफ्इलुन्-मफ़ऊलातु   सुने ऐसा गीत, / यदि हो सके मुझको
                                                                             सुना मेरे मीत। -कुँअर बेचैन
------------------------------------------------------------------------------------------
* इन अरकान की भी प्रायः दो आवृत्तियाँ होती हैं। उदाहरण के शे’र में केवल मुरब्बा (चार अर्कान) ही प्रयुक्त हैं।
३.३ ज़िहाफ़ लगी (परिवर्तित अरकान से बनी) बह्रें और उनके भेद उपर्युक्त मुफ़रद बह्रों में जब किसी अरकान को परिवर्तित रूप में रखा जाता है, तो उसे ‘मुज़ाहिफ़’ बह्र (ज़िहाफ़ लगी बह्र) कहते हैं। जैसे: उपर्युक्त ‘मुतक़ारिब’ नामक मुफ़रद बहर के ‘फ़ऊलुन्’ (ISS) के लघु-गुरु-गुरु को बदलकर ‘लघु-गुरु-लघु’ अथवा ‘गुरु-लघु-लघु’ कर दिया जाए तो वे क्रमशः नए अरकान बन जाएँगे।  जैसे: ‘फ़ऊल’ (ISI) या ‘फेलन’ (SII). परिवर्तन की इस व्यवस्था को उर्दू में ‘ज़िहाफ़’ कहते हैं। हिंदी के वर्णिक छंदों में इस प्रकार के परिवर्तन संस्कृत-काल से चले आ रहे हैं। ज़िहाफ यों तो ४८ प्रकार के हैं किंतु निम्न १५-२० ज़िहाफ़ ही प्रचलित हैं:
------------------------------------------------------------------------------------
क्रमांक  मूल अरकान  परिवर्तित अरकान       ज़िहाफ     मुजाहिफ़ अरकान
-------------------------------------------------------------------------------------
१.  फ़ऊलुन् (ISS)          १-फ़ऊल (ISI)             क़ब्ज़            मक्बूज़
     (बह्रे- मुतक़ारिब)      २-फ़ेलन (SII)             सलम           अस्लम
                                    ३-फ़ऊ (IS)                 क़स्र              मक्सूर
-------------------------------------------------------------------------------------- 
२. फ़ाइलुन् (SIS)          १-फ़ेलुन् (SS)             १. कत्अ         मक्तूअ
     (बह्रे-मुतदारिक)       २-फ़े (S)                    २. हज़ज         महज़ूज
----------------------------------------------------------------------------------------
३. मुफ़ाईलुन् (ISSS)     १-मफ़ऊल (SSI)          १. ख़र्ब           अख़रब
.    (बह्रे-हज़ज)              २-फ़ऊलुन् (ISS)         २. हज्फ़          महज़ूफ़
                                    ३-मफ़ाईल (ISSI)        ३. क़फ़           मक़फ़ूफ़
--------------------------------------------------------------------------------------
४. मुस्तफ्इलुन (SSIS)  १. मुफ़ाइलुन् (ISIS)     ख़ब्न              मख़्बून
    (बह्रे-रजज़)
--------------------------------------------------------------------------------------
५. फ़ाइलातुन् (SISS)      १-फ़ाइलुन् (SIS)         हज्फ़             महज़ूफ़
     (बह्रे-रमल)                 २-फ़ाइलातु (SISI)      क़फ़              मक़फ़ूफ़
                                       ३-फ़इलातु (IISI)       शक्ल             मश्कूल
                                       ४-फ़इलातुन्(IISS)      ख़ब्न            मख़बून
-----------------------------------------------------------------------------------------
६. मुतफ़ाइलुन्(IISIS)     मुस्तफ्इलुन् (SSIS)    इज़्मार          मुज़्मर
    (बह्रे-कामिल)
------------------------------------------------------------------------------------------
७ मुफ़ाइलतुन् (ISIIS)      मुफ़ाईलुन् (ISSS)         अस्ब             मासूब
    (बह्रे-वाफ़िर)
------------------------------------------------------------------------------------------
८ मफ़ऊलातु (SSSI)*         मफ़ऊल (SSI)           रफ़अ               मरफ़ूअ
    (बह्रे-मुक्तज़िब)
-------------------------------------------------------------------------------------------
* यह ‘मुफ़रद’ बह्र का हिस्सा नहीं हैं, क्योंकि इसके अंत में हरकत वाला अक्षर ‘तु’ (I) आया है। इसे अगर शेर के ‘अरूज़’ या जर्ब पर, अर्थात् शेर के आख़िरी अरकान में रख देंगे, तो प्रवाह-भंग हो जायेगा। शेष सभी के ‘अंत में साकिन’ हैं।
३.४ ज़िहाफ़ लगी बह्र के उदाहरण: अब ज़िहाफ़ लगी बहूर में कुछ अशआर देखें। जिन वर्णों की मात्रा गिरी है, वे वक्र (itallic) दर्शित हैं:
(१) फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊलुन्-फ़ऊ  ISS ISS ISS IS  दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुद किया, / हमें आपसे भी ज़ुदा कर चले। - मीर
इस बह्र में तीन ‘फ़ऊलुन्’ और एक ‘फ़ऊ’ है, यदि चारों ‘फ़ऊलुन्’ होते तो इसका नाम होता ‘बहरे-मुतक़ारिब- मुसम्मन-सालिम’। अंतिम ‘फ़ऊलुन्’ की जगह ‘फ़ऊ’ है क्योंकि इसमें ‘क़स्र’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘फ़ऊलुन्’ अपने मूल रूप से बदलकर ‘फ़ऊ’ हो गया है। इस परिवर्तित अरकान को ‘मक्सूर’ कहा गया है। इस प्रकार, इस बह्र का नाम हुआ मुतक़ारिब-मुसम्मन-मक्सूर। ‘मुतक़ारिब’ मूल बह्र का नाम; ‘मुसम्मन’ माने शेर में आठ अरकान, और ‘मक्सूर’, अर्थात् ‘मुज़ाहिफ़’ नामक अरकान। हिंदी में इसे ‘भुजंगी’ छंद कहते हैं।
(२) मुफ़ाईलुन्-मुफाईलुन्-फ़ऊलुन् ISSS ISSS ISS ये माना जिंदगी है चार दिन की, / बहुत होते हैं यारो! चार दिन भी। -फ़िराक़ गोरखपुरी
इस बह्र में दो ‘मुफाईलुन्’ और एक ‘फ़ऊलुन्’ है। यदि तीनों ‘मुफ़ाईलुन्’ होते, तो इसका नाम होता- बह्रे-हज़ज- मुसद्दस-सालिम लेकिन, अंतिम ‘मुफाईलुन्’ की जगह ‘फ़ऊलुन्’ आया है, क्योंकि इसमें ‘हज्फ़’ नामक जिहाफ़ लगा है। इससे ‘मुफाईलुन्’ बदलकर ‘फ़ऊलुन्’ हो गया है। इसका परिवर्तित अरकान ‘महज़ूफ़’ है। इसलिए, बह्र का नाम हुआ: हजज-मुसद्दस-महज़ूफ़।
(३) फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन् SISS SISS SISS SIS चुपके-चुपके रात-दिन आँसू बहाना याद है, / हमको अपनी आशिक़ी का वो ज़माना याद है। - हसरत मोहानी
* * *
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है, / देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है। - रामप्रसाद ‘बिस्मिल’
इस बह्र में क्रमशः तीन ‘फ़ाइलातुन्’ हैं और एक ‘फ़ाइलुन्’ है। अतः यह मुजाहिफ़ (परिवर्तित) बह्र हुई। इसमें भी ‘हज्फ़’ नामक ज़िहाफ लगा है, जिसका नाम है- महज़ूफ़ । अतः, इस बह्र का नाम हुआ- ‘रमल-मुसम्मन-महज़ूफ़’। हिंदी में इसे ‘गीतिका’ छंद कहा जाता है। इसमें यदि एक ‘फ़ाइलातुन्’ कम हो जाए, तो यह ‘पीयूषवर्ष’हो जाएगा। उर्दू में ‘गीतिका’ छंद का नाम होगा- ‘बह्रे-रमल-मुसद्दस-महज़ूफ़’, क्योंकि इसमें कहे गये शे’र में छः अरकान हैं।
(४) मफ़ऊल-मफ़ाईलुन्, मफ़ऊल-मफ़ाईलुन् SSI ISSS SSI ISSS इक लफ़्ज़े-मुहब्बत है, अदना ये फ़साना है, / सिमटे तो दिले आशिक़, फैले तो ज़माना है। - जिगर मुरादाबादी इस बहर का नाम है- हज़ज-मुसम्मन-अख़रब। हज़ज में आठ अरकान है। हज़ज-मुसम्मन- सालिम में चार ‘मफ़ाईलुन्’ होते हैं, मगर यहाँ दो ‘मफ़ाईलुन्’ की जगह, ‘मफ़ऊल’ आये हैं, जो ‘खर्ब’ ज़िहाफ से ‘अखरब’ के रूप में हैं ।
(५) फ़ाइलातुन्-मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन् SISS ISIS SS दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है, / आख़िर इस दर्द की दवा क्या है! - ग़ालिब
(‘आखिर इस’ को बह्र में लाने के लिए ‘आखिरिस’ पढना पड़ेगा, लेकिन यह अनुमन्य है।)
अथवा, कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, / यों कोई बेवफ़ा नहीं होता। - बशीर बद्र
यह अति-प्रचलित बह्र है। इसके मिसरे में तीन अरकान होते हैं ‘फ़ाइलातुन्- मुफ़ाइलुन्-फ़ेलुन्’, जो मिश्रित (मुरक्कब) बहूर में से एक है। इसका नाम है ‘खफीफ़’। बह्र में ‘ख़ब्न’ नामक ज़िहाफ़ लगने से इसका नाम पड़ा  बह्रे-खफीफ़-मुसद्दस-‘मखबून।’
(६) अब तक केवल एक ज़िहाफ और उससे बने अरकान की बात की गयी है। निम्न बह्र में दो जिहाफ़ लगे हैं-- ‘ख़ब्न’ और ‘कफ्फ़’। इसे ‘सकल’ ज़िहाफ कहा जाता है और इससे ‘मस्कूल’ नामक मुज़ाहिफ़ अरकान बनता है, जैसे: फ़ऊल-फ़ेलुन्, फ़ऊल-फ़ेलुन् ISS SS ISS SS तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, / क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो! -क़ैफ़ी आज़मी (‘तुम इतना’ को ‘तुमितना’ (ISS) पढ़ा या बोला जाएगा।)
(७) फ़ेलुन्-मफाइलात-मफैलुन्-मफ़ाइलुन् SS ISISI ISS ISIS दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिए, / बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। / इस अंजुमन में आपको आना है बार-बार, / दीवारो-दर को ग़ौर से पहचान लीजिए। - शहरयार
(छंद की दृष्टि से दूसरे शेर के मिसरे में प्रयुक्त शब्दांश- ‘बार-बार’ में एक मात्रा बढ़ी हुई है। प्रयुक्त बह्र के यहाँ, ‘बारबा’ आना चाहिए, लेकिन पहले मिसरे के अंत में एक मात्रा अधिक लगाने की छूट है।)
(८) मफाइलात-मफैलुन्, मफ़ाइलात फ़ऊ ISISI ISS ISIS IIS कहाँ तो तय था चिराग़ां हरेक घर के लिए, / कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। - दुष्यंत कुमार
(९) मफ़ऊल-फ़ाइलातु-मफ़ाईल-फ़ाइलुन् SSI SISI ISSI SIS मिलती है ज़िंदगी में मुहब्बत कभी-कभी, / होती है दिलबरों की इनायत कभी-कभी। - साहिर लुधियानवी
* * *
दो-चार बार हम जो ज़रा हँस-हँसा लिये, सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिये। - कुंअर बेचैन
(१०) मफ़ाइलातु-मफ़ैलुन्-मफ़ाइलुन्-फेलुन् ISISI ISS ISIS SS मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली, / इसी तरह से बसर हमने ज़िंदगी कर ली। - इन्दीवर
नोट : (१) दोनों (मुरक्कब और मुजाहिफ़) बह्रों में प्रमुख अंतर यह है कि मुरक्कब में अरकान का मिश्रण रहता है, जबकि मुजाहिफ़ में अरकान की सूरत बदल जाती है।
(२) किसी बह्र का नाम जानना उतना ज़रूरी नहीं है, जितना कि उसके अर्कानों से बनी लय को जानना-समझना।
४. मुक्तछंद कविता में भी छंद  की उपस्थिति:  मुक्तछन्द काव्य कोई नया नहीं है। वह तो संस्कृत और वैदिक साहित्य में मिलता है। कविता किसी नदी की भाँति अनवरत बहती रहती है। जिस प्रकार बड़ी नदी छोटी-छोटी नदियाँ मिलती रहती हैं, उसी प्रकार कविता की मुख्य धारा में छोटी-छोटी काव्य-धाराएँ मिलती रहती हैं और उसका कथ्य और शिल्प बदलता और समृद्ध होता रहता है। कबीर के यहाँ यदि सधुक्कड़ी भाषा है, तो सूरदास के यहाँ ब्रज और तुलसी के यहाँ अवधी । रीतिकाल की ब्रज भाषा थोड़े-बहुत परिवर्तन के बाद भारतेंदु युग में खड़ी बोली बनी। वस्तु की दृष्टि से भक्ति, अध्यात्म, और राष्ट्रीय चेतना, छायावाद, मानव की मुक्ति-चेतना और फिर जनचेतना,  कितने ही रूप दिखायी पड़ते हैं।... अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का ‘प्रियप्रवास’ १९१४ में रचा गया। यह खड़ी बोली का पहला महाकाव्य माना जाता है, जिसमें अतुकांत छंदों का प्रयोग हुआ है:
अधिक और हुई नभ-लालिमा, / दश दिशा अनुरंजित हो गयी;
सकल पादप-पुंज-हरीतिमा / अरुणिमा-विनिमज्जित-सी हुई।
उक्त कविता बारह वर्णीय ‘द्रुत बिलंबित (जगती)’ छंद में हैं । छंद हेतु निर्धारित गणों का पालन भी हुआ है, क्योंकि सभी चारों पंक्तियों में क्रमशः ‘नगण, भगण, भगण’ और ‘रगण’ (III, SII, SII, SIS) आये हैं; केवल तुकांत की छूट ली गयी है। तुकांत का आग्रह न तो संस्कृत काव्य (श्लोक, अनुष्टप आदि) में है और न ही वैदिक छंदों (ऋचाओं) में। इस प्रसंग में एक श्लोक देखिए, जो तुलसी के रामचरितमानस के प्रारंभ में दिया गया है । श्लोक चार चरणों का छंद होता है, जिसके प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं, पर वे अगली पंक्ति में सवैया या ग़ज़ल की भाँति अपने स्थान पर अडिग नहीं रहते। घनाक्षरी की भाँति केवल उनके वर्ण गिने जाते हैं।
वर्णानामर्थसंघानां, रसानां छन्दसामपि। /  मंगलानां च कर्त्तारौ, वन्दे वाणीविनायकौ।।
जयशंकर ‘प्रसाद’ ने भी १९१८  में ‘झरना’ नामक रचना में खड़ी बोली में तुकांत से मुक्ति पा ली, यद्यपि छंद का पालन उन्होंने अवश्य किया, पर वह मुक्त छंद में है, अर्थात् एक पंक्ति के गण कुछ हैं, तो दूसरी की कुछ, पर उनमें लय है। उदाहरण के लिए दो पंक्तियों की तक्तीअ
(गणना) कर दी गई है। प्रस्तुत है झरना के प्रथम प्रभात का एक अंश:
SS SS ISISS SIS (मगण, रगण, यगण, रगण = फ़ेलुन्-फ़ेलुन्-मुफ़ाइलातुन्-फ़ाइलुन्) वर्षा होने लगी कुसुम मकरंद की,
SII SS SII SS SIS (भगण, मगण, सगण, तगण, दीर्घ = फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइल, फ़ेलुन्, फ़ाइलुन्) प्राण पपीहा बोल उठा आनंद में,
कैसी छवि ने बाल अरुण-सी प्रकट हो / शून्य हृदय को नवल राग रंजित किया।
सद्यस्नात हुआ मैं प्रेम सुतीर्थ में, / मन पवित्र उत्साहपूर्ण-सा हो गया,
विश्व, विमल आनंदभवन-सा हो गया, / मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था।
‘परिमल’ की भूमिका में निराला कहते हैं, “मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है। मनुष्यों की मुक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा है, और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना। जिस तरह मुक्त मनुष्य कभी किसी तरह भी दूसरे के प्रतिकूल आचरण नहीं करता, उसके तमाम कार्य औरों को प्रसन्न करने के लिए होते हैं: फिर भी स्वतन्त्र, इसी तरह कविता का भी हाल है। जैसे बाग़ की बँधी और वन की खुली हुई प्रकृति- दोनों ही सुंदर हैं पर दोनों के आनंद तथा दृश्य दूसरे-दूसरे हैं।”
अपनी बात के समर्थन में वे ऋग्वेद और यजुर्वेद की ऋचाओं का उल्लेख करते हैं, जो मुक्त छंद में हैं और उनकी पंक्तियों में न तो वर्ण समान हैं और न ही उनका क्रम! उनके अनुसार, “मुक्तछंद तो वह है, जो छंद की भूमि में रहकर भी मुक्त है।” उनके ‘परिमल’ के तीसरे खंड में इसी प्रकार की कविताएँ हैं। उसकी भूमिका में वे स्वयं कहते हैं, “...मुक्तछंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद-सिद्ध करता है, और उसका नियम-राहित्य उसकी मुक्ति।” समर्थन में वे अपनी कविता, ‘जुही की कली’ की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करते हैं। उद्धरण को उर्दू के अरकान के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है—
विजन-वन-वल्लरी पर (ISS SISS - फ़ऊलन् फ़ाइलातुन् ) / सोती थी सुहाग-भरी (SS SIS IIS - फेलुन फ़ाइलुन् फ़इलुन्)
स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल-कोमल-तन-तरुणी (SISI SII SSSS SS - फ़ाइलात फ़ाइल मफ़ईलातुन् फेलुन्)
जुही की कली (ISS IS - फ़ऊलुन् फ़ऊ ) दृग बन्द किये- शिथिल पत्रांक में। (SSI ISIS ISIS - मफ़ऊल मफ़ाइलुन्म फ़ाइलुन्)
४.१ मुक्तछंद क्यों?
कभी-कभी वेदना, विसंगति या त्रासदी की अभिव्यक्ति में पारम्परिक छंद का बंधन आड़े आने लगता है, तो कवि उससे मुक्ति चाहता है। वह स्वच्छंद होकर कुछ रचना चाहता है। इसलिए पारंपरिक छंदों को तोड़ने में कुछ बुराई नहीं। लेकिन छंद से कविता का नाता नहीं टूट सकता। उसका स्वरुप कुछ भी हो सकता है। कल्पना कीजिए कि निराला, ‘तोड़ती पत्थर’ या ‘कुकुरमुत्ता’ को यदि दोहा, चौपाई, सवैया-कवित्त जैसे छंद में रचते, तो क्या उसमें वही आस्वाद होता, जो उनके मुक्तछंद रूप में है! मुक्तछंद होने के बावज़ूद ये कविताएँ कतिपय वर्ण-युग्मों पर आधारित हैं और यति-गति से बद्ध हैं।
तोड़ती पत्थर
वह तोड़ती पत्थर। SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
देखा उसे मैंने/ इलाहाबाद के पथ पर SSIS SS/ ISSS ISSS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन, मफ़ाईलुन, मफ़ाईलुन
वह तोड़ती पत्थर । SSIS SS मुस्तफ्-इलुन, फ़ेलुन
कोई न छायादार SSIS SSI मुस्तफ्-इलुन, मफ़ऊल
पेड़ वह जिसके तले/ बैठी हुई स्वीकार, SISS SISS SIS SSI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलुन, मफ़ऊल
श्याम तन, भर बँधा यौवन, SISS ISSS फ़ाइलातुन, मफ़ाईलुन
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, SISS SISS फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन,
गुरु हथौड़ा हाथ, SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ातु
करती बार-बार प्रहार : SS SIS IISI फेलुन, फ़ाइलुन, फ़इलातु
सामने तरु मालिका अट्टालिका, प्राकार। SISS SISS SISS SI फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ातु
इसी क्रम में एक रचना और सुनिए, जो नई कविता के प्रसिद्ध कवि, शमशेर बहादुर सिंह की है—
बात बोलेगी
बात बोलेगी, हम नहीं SISS SSIS फ़ाइलातुन, मुस्तफ्इलुन्
भेद खोलेगी, बात ही। SISS SSIS वही
सत्य का मुख SISS फ़ाइलातुन् /  झूठ की आँखें SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन्
क्या देखें! SSS मफ़ऊलुन् /  सत्य का रुख़ SISS फ़ाइलातुन्
समय का रुख़ है : ISS SS फ़ऊलुन्, फ़ेलुन् / अभय जनता को ISS SS वही
सत्य ही सुख है, SIS SS फ़ाइलुन्, फ़ेलुन् / सत्य ही सुख। SISS फ़ाइलातुन् ।
-------------------------------------

साहित्य त्रिवेणी १४ ब्रह्मजीत गौतम

साहित्य त्रिवेणी १४ 
छंद-बह्‌र क्या एक हैं?
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम 
*
परिचय: जन्म: २८.१०.१९४०, ग्राम गढ़ी नन्दू, जिला मथुरा (अब हाथरस), कबीर काव्य में प्रतीक विधान पर शोध, से. नि. प्राध्यापक हिंदी, प्रकाशन: कबीर काव्य में प्रतीक विधान शोधग्रंथ, कबीर प्रतीक कोष, अंजुरी काव्य संग्रह, जनक छंद: एक शोधपरक विवेचन, वक्त के मंज़र (गजल संग्रह), जनक छंद की साधना, दोहा-मुक्तक माल (मुक्तक संग्रह), दृष्टिकोण समीक्षा संग्रह। उपलब्धि: तलस्पर्शी लेखन हेतु प्रतिष्ठित, संपर्क: डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, युक्का २०६, पैरामाउण्ट सिंफनी, क्रॉसिंग रिपब्लिक, ग़ाज़ियाबाद २०१०१६, चलभाष: ९७६०००७८३८, ९४२५१०२१५४, ईमेल: bjgautam2007@gmail.com 
संस्कृत की 'छद्' धातु में 'असुन्' प्रत्यय लगाने से ‘छंद’ शब्द की सिद्धि होती है, जिसका अर्थ है: प्रसन्न, आच्छादन या बंधन करने वाली वस्तु। वस्तुतः कविता में हमारे भाव और विचार वर्ण, मात्रा, यति, गति, चरण, गण आदि की एक निश्चित व्यवस्था में बँधे रहते हैं, अतः ऐसे संघटन को 'छंद' का नाम दिया गया है। हिंदी कविता प्रारंभ से ही छंदोबद्ध रही है, जबकि उर्दू शाइरी बह्र-बद्ध है। सहज ही प्रश्न उठता है कि 'छंद' और 'बह्र' दोनों शब्द समानार्थी हैं या इनमें कुछ अंतर है? निस्संदेह दोनों का कोशगत अर्थ एक ही है, दोनों का मूल आधार भी लय है, किंतु हिंदी तथा उर्दू-अरबी-फारसी आदि भाषाओं की प्रकृति, व्याकरणगत संरचना तथा वर्णों और मात्राओं की गणना-पद्धति में यत्किंचित् भेद होने से 'छंद' और 'बह्र' में भी भेद होना स्वाभाविक है| वस्तुत: इस गूढ़ता को समझना ही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है। छंद दो प्रकार के हैं: मात्रिक तथा वर्णिक। मात्रिक छंदों की रचना मात्राओं की गणना पर तथा वर्णिक छंदों की रचना वर्णों की गणना पर आधारित होती है। मात्रिक छंदों में प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है, वर्ण कम या अधिक हो सकते हैं किंतु वर्णिक छंदों में न केवल वर्णों की संख्या निश्चित रहती है, अपितु उनका लघ-गुरु क्रम भी तय रहता है। इसके विपरीत, बह्रों की रचना केवल वर्णों के लघु-गुरु क्रम से बने हुए रुक्नों (गणों) पर आधारित होती है। इस प्रकार बह्रें वर्णिक छंदों के अधिक निकट होती हैं जो बह्रें मात्रिक छंदों से मेल खाती हैं, उन्हें भी रुक्नों की सहायता से वर्णिक रूप दे दिया गया है। 
गण: 
छंदों में प्रयुक्त तीन वर्णों के लघु-गुरु क्रम-युक्त समूह को ‘गण’ कहते हैं, जो संख्या में आठ हैं। ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र के अनुसार इनके नाम और लक्षण निम्नानुसार है: १. यगण आदि लघु ISS भवानी, २. मगण तीनों गुरु SSS मेधावी, ३. तगण अंत्य लघु SSI नीरोग, ४. रगण मध्य लघु SIS भारती, ५. जगण मध्य गुरु ISI गणेश, ६. भगण आदि गुरु SII राघव, ७. नगण तीनों लघु III कमल
८. सगण अंत्य गुरु IIS कमला। 
रुक्न या अरकान: 
बह्रों में प्रयुक्त वर्णों के लघु-गुरु क्रम को ‘रुक्न’(बहुवचन अरकान) कहते हैं। मुख्य अरकान कुल सात हैं, किंतु इनमें जिहाफ़ (काट-छाँट) देकर दो मात्राओं से लेकर सात मात्राओं तक के अन्य अनेक रुक्न बनाये गए हैं। इन सब रुक्नों की संख्या लगभग पचास है। मुख्य सात रुक्नों के नाम और उनके वर्णिक लघु-गुरु क्रम की जानकारी निम्नानुसार ल और गा के रूप में दर्शायी गयी है: १. फ़ऊलुन लगागा ISS नगीना, २. फ़ाइलुन गालगा SIS आदमी, ३. मुस्तफ़्इलुन गागालगा SSIS जादूगरी, ४. मफ़ाईलुन लगागागा ISSS अदाकारी, ५. फ़ाइलातुन गालगागा SISS साफ़गोई, ६. मुतफ़ाइलुन ललगालगा IISIS अभिसारिका, ७. मफ़्ऊलात गागागाल SSSI वीणापाणि। 
अब हम उन मूल बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे, जिनके कारण छंद और बह्र में अंतर जैसा प्रतीत होता है। निकटस्थ दो लघु = एक गुरु।  हिन्दी व्याकरण के अनुसार अ, इ, उ तथा ऋ, ये चार लघु स्वर हैं जिनमें एक-एक मात्रा होती है।  ये जिस व्यंजन पर लगते हैं, वह भी लघु अर्थात् एक मात्रावाला माना जाता है इसी प्रकार आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, तथा औ दीर्घ स्वर हैं, जिनमें दो मात्राएँ होती हैं। ये जिस व्यंजन पर लगते हैं, वह भी गुरु अर्थात् दो मात्राओंवाला होता है।  अनुस्वार तथा विसर्गयुक्त अक्षर भी गुरु कहे जाते हैं। छंदों में हर अक्षर की स्वतंत्र सत्ता होती है, किंतु बह्र में अनिवार्य लघु को छोड़कर दो निकटस्थ लघु वर्णों को एक गुरु के बराबर मान लिया जाता है। जैसे, ‘गगन’ शब्द हिंदी के वर्णिक छंद में III अर्थात् नगण के अंतर्गत आता है, जबकि बह्र में उसे IS अर्थात् 'फ़अल' रुक्न कहा जाता है| एक शे’र के माध्यम से इसे और अच्छी तरह समझ सकते हैं –महल का / सफ़र छो / ड़ कर आ / ज कल ( I S S / I S S / I S S / I S ) = १८ मात्राएँ ग़ज़ल कह / रही है / कुटी की / कथा ( I S S / I S S / I S S / I S ) = १८ मात्राएँ,  -स्वरचित
इस शे’र के अरकान 'फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल' हैं तथा लय पूरी तरह हिंदी के वर्णिक छंद ‘भुजंगी’ (तीन यगण + लघु गुरु) एवं मात्रिक छंद ‘शक्ति’ से मिलती है, जिसमें प्रति चरण पहली, छठी, ग्यारहवीं तथा सोलहवीं मात्रा को अनिवार्यत: लघु रखते हुए कुल अठारह मात्राएँ होती हैं। छंद में जो यगण (ISS) है, वही बह्र में 'फ़ऊलुन' है। उक्त शे’र के शब्दों में हल, फ़र, कर, कल तथा ज़ल को एक गुरु-तुल्य मानकर 'फ़ऊलुन' रुक्न की सिद्धि की गयी है। 
मात्रा-पातन: 
हिंदी में मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकारके छंद पाये जाते हैं।हिंदी भाषा में यह बंधन या विशेषता है कि उसमें जो लिखा जाता है, वही पढ़ा जाता है और उसीके अनुसार शब्द या अक्षर की मात्रा निश्चित होती है| उर्दू की तरह हिंदी  में किसी भी अक्षर की मात्रा गिराने या बढाने की छूट नहीं है। यदि ऐसा किया जाता है, तो वह छंद अशुद्ध माना जाता है| उदाहरण के लिए, किसी छंद में यदि ‘कोई’ शब्द का प्रयोग होता है तो उसमें SS के क्रम से चार मात्राएँ होंगीं जबकि बह्‌र में उसकी माँग के अनुसार इसी शब्द का उच्चारण कोइ (SI), कुई (IS) या कुइ (II) भी हो सकता है और तदनुसार ही उसका मात्रा-भार निश्चित होगा। निष्कर्ष यह है कि छंदों में अक्षर के लिखित रूप के अनुसार तथा बह्‌र में उसके उच्चरित रूप के अनुसार मात्राएँ तय होती हैं। जैसे:
कोई तो बा / त है जो सुब् / ह से ही (I S S S / I S S S / I S S)
नयन उनके / अँगारे हो / रहे हैं (I S S S / I S S S / I S S)      -स्वरचित
यह शे’र 'मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन' की बह्र में है, जो हिन्दी के मात्रिक छंद ‘सुमेरु’ से पूर्णत: मिलती है| सुमेरु में प्रति चरण १२-७ या १०-९ के क्रम से १९ मात्राएँ होती हैं जिसमें पहली, आठवीं और पंद्रहवीं मात्रा लघु होनी चाहिए| उक्त शे’र के प्रथम मिसरे को बह्र में लाने के लिए ‘कोई’ शब्द में ‘को’ (S) की दीर्घ मात्रा गिराकर उसे हृस्व (I) उच्चरित किया गया है। 
अर्धाक्षर: छंदों में संयुक्त व्यंजन में प्रयुक्त आधे अक्षर की कोई मात्रा नहीं गिनी जाती। उसकी भूमिका केवल इतनी है कि यदि उसके पूर्व का वर्ण लघु है और उसके उच्चारण में बल पड़ रहा है तो लघु होने पर भी उसे गुरु माना जाता है। जैसे सत्य, दग्ध, वज्र आदि में स, द और व गुरु माने जायेंगे और इनमें दो मात्राएँ गिनी जायेंगी। अपवाद स्वरूप कुम्हार, मल्हार, तुम्हारा जैसे शब्दों के कु, म और तु में एक ही मात्रा रहेगी, क्योंकि इनके उच्चारण में बल नहीं पड़ता| इसके विपरीत, बह्र में आधे अक्षर को भी आवश्यकतानुसार पूर्णवत मानकर उसकी एक मात्रा गिन ली जाती है| जैसे रास्ता, आस्था, ख़ात्मा, आत्मा, धार्मिक, आर्थिक जैसे शब्द छंद में प्रयुक्त होने पर SS के वज़्न मे आयेंगे किंतु बह्‌र में SIS के वज़्न में भी हो सकते हैं।  जैसे:
छंद: अर्थ दोस्ती का किसीको हम बतायें किस तरह ( S I S S S I S S S I S S S I S )
बह्‌र: दोस्ती का अर्थ हम उसको बतायें किस तरह ( S I S S S I S S S I S S S I S )  -स्वरचित
‘गीतिका’ छंद की इस पहली पंक्ति में (जिसकी बह्‌र ‘फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन’ है), ‘दोस्ती’ शब्द को S S के वज़्न में बाँधा गया है, जबकि बह्र वाली पंक्ति में S I S के वज़्न में। फाइलुन का रुक्न पूरा करने के लिए ‘दोस्ती’ का उच्चारण ‘दोसती’ जैसा किया गया है। यह पद्धति बह्र में तो ठीक है, किन्तु छंद में नहीं।  इसी प्रकार आचार्य भगवत दुबे के एक दोहे की यह पंक्ति देखिये – 'ईश्वर के प्रति आस्था, बढ़ जाती है और'।  इसमें ‘आस्था’ शब्द को बह्‌र की तर्ज़ पर फाइलुन अर्थात् S I S के वज़्न में बाँधा गया है।  मूलत: इस चरण में १३ के स्थान पर १२ मात्राएँ ही रह गयी हैं, जिससे दोहा अशुद्ध होगया है| डॉ. राजकुमार ‘सुमित्र’ की दोहा-पंक्ति ‘अमराई की आत्मा, झेल रही संताप’ में ‘आत्मा’ की भी यही स्थिति है। 
स्वर संधि या अलिफ़ वस्ल: जब किसी स्वर का अपने सामने के किसी अन्य स्वर से मेल होता है, तब उसे स्वर-संधि कहते हैं।  उर्दू में इसे अलिफ़-वस्ल कहा जाता है। हिन्दी व्याकरण में ऐसे शब्दों के मिलन की एक निश्चित वैधानिक प्रक्रिया है।  जैसे: राम+अवतार = रामावतार, सर्व+ईश्वर = सर्वेश्वर, पर+उपकार = परोपकार। अरबी, फारसी, उर्दू में ये शब्द लिखित रूप में तो ‘राम अवतार’, ‘सर्व ईश्वर’, ‘पर उपकार’ ही रहेंगे, किंतु उच्चारण में क्रमश: रामवतार, सर्वीश्वर और परुपकार हो जायेंगे| उदाहरण के लिए एक मिसरा देखिये: 
हम उठ गए तो तेरी अंजुमन का क्या होगा – आलोक श्रीवास्तव
यह मिसरा ‘मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन’ (I S I S I I S S I S I S S S) की बह्‌र में है, जिसमें ‘हम उठ गये’ का उच्चारण ‘हमुठ गये’ जैसा करके 'मफ़ाइलुन' रुक्न में बाँधा गया है।  इसी प्रकार मिर्ज़ा ग़ालिब का मशहूर मिसरा ‘आख़िर इस दर्द की दवा क्या है’ बह्र में लाने के लिए ‘आख़िरिस दर्द की दवा क्या है’ पढ़ा जाता है। उल्लेख्य है कि छंद में न तो इस प्रकार की संधियाँ मान्य हैं और न उच्चारण। 
उचित मात्रा-विधान: जैसा कि पहले कहा जा चुका है, मात्रिक छंदों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है।  निर्दोष लय लाने के लिए उन मात्राओं में लघु-गुरु का उचित क्रम रखना भी आवश्यक होता है, जैसे त्रिकल के बाद त्रिकल या द्विकल के बाद द्विकल। कई बार हिंदी के छंदकार मात्राओं की संख्या तो पूरी कर देते हैं, किन्तु यह क्रम सही नहीं रख पाते| उदाहरणार्थ, तीन मात्राओं के लिए लघु-गुरु या गुरु-लघु का कोई भी क्रम उन्हें मान्य होता है। छंदशास्त्र में भी ऐसे प्रयोगों पर कोई प्रतिबंध नहीं है किंतु बह्र में इस प्रकार की छूट लेना वर्जित है| इससे बह्र ख़ारिज़ हो जाती है। देखिये:
ज़मीं तपती हुई थी और अपने पाँव नंगे थे / हुई है जेठ के दोपहर से तक़रार पहले भी
श्री ज्ञानप्रकाश विवेक की ये पंक्तियाँ मफ़ाईलुन x ४ की बह्‌र में हैं, जो हिंदी के विधाता छंद पर आधारित है।  विधाता के प्रत्येक चरण में कुल २८ मात्राएँ होती हैं, जिसमें पहली, आठवीं, पंद्रहवीं तथा बाईसवीं मात्रा का लघु होना आवश्यक है।  इस विधान के अनुसार उक्त शे’र छंद की दृष्टि से तो शुद्ध है, किन्तु बह्र की दृष्टि से ख़ारिज़ है क्योंकि रचनाकार ने ‘दोपहर’ शब्द को S I S के बजाय S S I में बाँध लिया है। इस कारण सानी मिसरे में' मफाईलुन' का दूसरा रुक्न पूरा नहीं हो सका है। 
अब हम उन बह्रों पर दृष्टिपात करेंगे जो हिंदी वर्णिक छंदों पर आधारित हैं।  अपने ग़ज़ल-संग्रह ‘एक बह्‌र पर एक ग़ज़ल’ की रचना के समय मैंने पाया कि ग़ज़ल कि लगभग साठ बह्रें ऐसी हैं जिनकी लय हू-ब-हू छंदों से मिलती है अगर खोज की जाए तो यह संख्या बहुत अधिक भी हो सकती है। यहाँ सब का उल्लेख तो सम्भव नहीं, किंतु कुछ मुख्य बह्रें सोदाहरण प्रस्तुत हैं:
१. बह्र: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल ( I S S I S S I S S I S ) मेरे खूँ में चीते हैं लेटे हुए / किसी तर’ह इनका सुकूँ भंग हो  -सादिक़
आधार : मात्रिक छंद ‘शक्ति’ ( मात्राएँ प्रति चरण, १, ६, ११, १६वीं लघु) 
२. बह्र: फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन ( I S S I S S I S S I S S ) गुलाबों की दुनिया बसाने की ख्वाहिश / लिये दिल में जंगल से हर बार निकले -शेरजंग गर्ग, आधार : वर्णवृत्त ‘भुजंगप्रयात’, (चार यगण (I S S) प्रति चरण, २० मात्राएँ)
३. बह्र: फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन ( S I S S I S S I S S I S ) यक्ष प्रश्नों के उत्तर दिए बिन हमें / सुख के तालाब से कुछ कमल चाहिए-चंद्रसेन विराट, आधार : वर्णवृत्त ‘स्रग्विणी’, (चार रगण प्रति चरण, मात्रिक छंद अरुण – २० मात्राएँ)
४. बह्र: मुस्तफ़्इलुन मुस्तफ़्इलुन ( S S I S S S I S ) अब किसलिए पछता रहा / जैसा किया, वैसा भरा -दरवेश भारती, आधार : मात्रिक छंद ‘मधुमालती’ (प्रति चरण, ७-७ के क्रम से १४ मात्राएँ, अंत S I S)
५. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ( S I S S S I S S S I S ) साँस जाती है मगर आती नहीं / कुछ बताने से हवा लाचार है -रामदरश मिश्र, आधार : मात्रिक छंद ‘पीयूषवर्ष’, ‘आनंदवर्धक’  (१९ मात्राएँ, ३, १०, १७वीं लघु)
६.बह्र: फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन ( S I S S I S I S S S ) मन में सपने अगर नहीं होते / हम कभी चाँद पर नहीं होते -उदयभानु हंस, आधार : मात्रिक छंद ‘चंद्र’ (१७ मात्राएँ प्रति चरण)
७. बह्र: फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन ( S I S S I I S S S S ) हक़ बयानी की सज़ा देता है / मेरा क़द और बढ़ा देता है -हस्तीमल ‘हस्ती’, आधार : मात्रिक छंद ‘चंद्र’ (१७ मात्राएँ प्रति चरण)
८. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन ( S I S S S I S S S I S S ) सामना सूरज का वो कैसे करेंगे / डर गये जो जुगनुओं की रौशनी से -राजेश आनंद ‘असीर’, आधार : मात्रिक छंद ‘कोमल’ (२१ मात्राएँ प्रति चरण, यति १०,११ )
९. बह्र – फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ा ( S I S S S I S S S I S S S )  घेरकर आकाश उनको पर दिए होंगे / राहतों पर दस्तखत यों कर दिए होंगे -- रामकुमार कृषक, आधार : वर्णवृत्त राधा – (रगण, तगण, मगण, यगण + एक गुरु, कुल २३ मात्राएँ
१०. बह्र: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन ( S I S S S I S S S I S S S I S ) एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें / आदमी के खून से अपना बदन धोता हुआ -अश्वघोष, आधार : मात्रिक छंद ‘गीतिका’ (२६ मात्राएँ प्रति चरण| ३, १०, १७, २४वीं मात्रा लघु)
११. बह्र: फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन ( S I S S I I S S I I S S S S ) अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई / मेरा घर छोड़ के कुल शह्‌र में बरसात हुई -नीरज, आधार : मात्रिक छंद ‘मोहन’, (२३ मात्राएँ प्रति चरण, यति ५, ६, ६, ६)। 
१२. बह्र: फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन (I S I S S I S I S S) दिया ख़ुदा ने भी खूब हमको / लुटाई हमने भी पाई-पाई -नरेश शांडिल्य, आधार : वर्णवृत्त ‘यशोदा’ (जगण + दो गुरु वर्ण, एक मिसरे में दो बार, १६ मात्राएँ)
१३. बह्र: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन (I S S S I S S S I S S) करीब आये तो हमने ये भी जाना / मुहब्बत फ़ासला भी चाहती है - कुँवर बेचैन, आधार : मात्रिक छंद ‘सुमेरु’, प्रति चरण १९ मात्राएँ| १, ८, १५ वीं अनिवार्यत: लघु। 
१४. बह्र: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन (I S S S / I S S S / I S S S) ख़ुदा से भी मैं बाज़ी जीत जाता पर / ख़ुदाई को न शर्मिंदा किया मैंने - ओमप्रकाश चतुर्वेदी, ‘पराग’ आधार : मात्रिक छंद ‘सिंधु’ (प्रति चरण २१ मात्राएँ| १, ८, १५वीं अनिवार्यत: लघु
१५. बह्र: मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन (I I S I S x ४ ) मैं जहाँ हूँ सिर्फ़ वहीँ नहीं, मैं जहाँ नहीं हूँ वहाँ भी हूँ/ मुझे यूँ न मुझमें तलाश कर, कि मेरा पता कोई और है – राजेश रेड्डी, आधार : वर्णवृत्त ‘गीता’ (सगण, जगण, जगण, भगण, रगण, सगण + एक गुरु)
१६. बह्र: मफ़्ऊल मफ़ाईलुन मफ़्ऊल मफ़ाईलुन ( S S I I S S S S S I I S S S ) हर एक सिकंदर का अंजाम यही देखा / मिट्टी में मिली मिट्टी, पानी में मिला पानी -सूर्यभानु गुप्त, आधार – वर्णवृत्त ‘भक्ति’ (तगण, यगण + एक गुरु, एक मिसरे में दो बार, २४ मात्राएँ)
१७. बह्र: मफ़्ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुन ( S S I I S S I I S S I I S S ) शादी न करें, साथ में रहने के मज़े लें / इस दौर में औलाद हरामी नहीं होती -राम मेश्राम, आधार : मात्रिक छंद ‘बिहारी’ (प्रति चरण २२ मात्राएँ, यति १३ – ९)
१८.बह्र: मफ़्ऊल फ़ाइलातुन मफ़्ऊल फ़ाइलातुन (S S I S I S S S S I S I S S) आ जा कि दिल की नगरी, सूनी-सी हो चली है / टाला बहुत है तूने वादों पे आज-कल के -उपेंद्र कुमार, आधार : मात्रिक छंद ‘दिगपाल’ (प्रति चरण २४ मात्राएँ, यति १२, १२)
१९. बह्र: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन ( S S S S S S S S) उसके घर जो दुनिया भर है / उस दुनिया में कितना घर है - विज्ञान व्रत, आधार : मात्रिक छंद ‘पादाकुलक’ (चार चतुष्कल के क्रम से १६ मात्राएँ प्रति चरण)
२०. बह्र: साढ़े सात बार फ़ेलुन (S S S S S S S S S S S S S S S ) हम पर दुख का परबत टूटा, तब हमने दो-चार कहे / उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शे’र हजार कहे -बालस्वरूप राही, आधार : ‘लावनी’, ‘ताटंक’ ( १६-१४ के क्रम से ३० मात्राएँ प्रति चरण)
स्पष्ट है कि छंद और बह्‌र 'लय' की दृष्टि से एक ही हैं जो अंतर है वह मात्रा-पातन, अर्धाक्षर को पूर्णाक्षर मानने, अथवा अलिफ़-वस्ल आदि के कारण है। उक्त उद्धरणों में कई शे’र पूर्णत: छंद में हैं, क्योंकि उनमें मात्रा-पातन या अलिफ़-वस्ल आदि नहीं हुआ है, जैसे दरवेश भारती, रामदरश मिश्र, रामकुमार कृषक, अश्वघोष, विज्ञान व्रत आदि के शे’र। आजकल हिंदी कवियों में ग़ज़ल कहने का शौक ख़ूब बढ़ा हुआ है, जिसकी रचना में मात्रा गिराना-बढ़ाना या अलिफ़-वस्ल करना आम बात है इसका प्रभाव उनके गीतों, कविताओं और छंदों में भी दिखाई देने लगा है। वे गीतों और दोहा जैसे छंदों में भी मात्रा गिराकर या आधे अक्षर को पपूर्णवत मानकर लय बनाने लगे हैं, जिससे छंद दूषित हो रहे हैं। कहते हैं कि पानी सदैव नींचाई की ओर बहता है।  मनुष्य का स्वभाव भी ऐसा ही है, तभी तो आज के कवि इन सुविधाओं का लाभ लेने में कोई संकोच नहीं करते किंतु छंदाधारित रचनाओं में इस प्रवृत्ति से जितना बचा जाय, उतना ही श्रेयस्कर है। 
============

शुक्रवार, 8 जून 2018

दोहे पानीदार

दोहा सलिला

दोहा
*
सोनपरी भू पर उतर, नाच रही; हो धूप।
उषा राजरानी मुदित, रवि नृप हेरे रूप।।
*
सूर्य रश्मि शर छोड़ता, तम भागा ले प्राण।
कीर्ति-कथा कहते विहग, सुन हो जग संप्राण।।
*
कोयल शहनाई बजा, गौरैया कर नृत्य।
मिट्ठू जीजा से कहें, मन भाया शुभ कृत्य।।
*
कौआ पंडित पढ़ रहा, काँव-काँव कर मंत्र।
टर्र-टर्र मेंढक करे, बजा बैंड के यंत्र।।
*
जुही-चमेली सरहजें, नमक चाय में घोल।
इठलातीं; जीजा विवश, पिएँ मौन बिन बोल।।
*
आ देवर जासौन ने, खूब जमाया रंग।
गारी गाती भौजियाँ, हुए बराती तंग।।
*
बेला-वेणी पा हुई, चंपा साली मौन।
प्रणयपत्रिका दे गया, आँख बचाकर कौन।।
*
लाल गुलाबी कली के, हुए गुलाबी गाल।
छेड़े भँवरा बावरा, चंपा करे धमाल।
*
झरबेरी मौसी हँसी, सुना गीत ज्यौनार।
पीपल चाचा झूमते, मन ही मन मन हार।।
*
दोहा मन को मोहता, चौपाई चितचोर।
छप्पय छूता हृदय को, बाँध सवैया डोर।।
*
षटपदी
चैन हर रहा त्रिभंगी, उल्लाला दिल लूट।
कुंडलिया का कर लिए, रोला करता हूट।।
रोला करता हूट, शूट कर रहा माहिया।
गिद्धा-टप्पा नचें, विकल सोरठा को किया।।
आल्हा पर स्रग्विणी, रीझकर रही न चंगी।
गया हाथ से हृदय, चैन हर रहा त्रिभंगी।।
*
8.6.2018, 7999559618

गुरुवार, 7 जून 2018

श्री श्री चिंतन

श्री श्री चिंतन: दोहा गुंजन 
जो पाया वह खो दिया, मिला न उसकी आस। जो न मिला वह भूलकर, देख उसे जो पास*हर शंका का हो रहा, समाधान तत्काल।  जिस पर गुरु की हो कृपा, फल पाए हर हालधन-समृद्धि से ही नहीं, मिल पाता संतोष। काम आ सकें अन्य के, घटे न सेवा कोष*गुरु जी से जो भी मिला, उसका कहीं न अंत गुरु में ही मिल जायेंगे, तुझको आप अनंत*जीवन यात्रा शुरू की, आकर खाली हाथ जोड़-तोड़ तज चला चल, गुरु-पग पर रख माथ*लेखन में संतुलन हो, सत्य-कल्पना-मेल लिखो सकारात्मक सदा, शब्दों से मत खेल*गुरु से पाकर प्रेरणा, कर खुद पर विश्वास। अपने अनुभव से बढ़ो, पूरी होगी आस.*गुरु चरणों का ध्यान कर, हो जा भव से पार गुरु ही जग में सार है, बाकी जगत असार*मन से मन का मिलन ही, संबंधों की नींव।  मन न मिले तो, गुरु-कृपा, दे दें करुणासींव*वाणी में अपनत्व है, शब्दों में है सत्य दृष्टि अमिय बरसा रही, बन जा गुरु का भृत्य*नस्ल, धर्म या लिंग का, भेद नहीं स्वीकार उस प्रभु को जिसने किया, जीवन को साकार*है अनंत भी शून्य भी, अहं ईश का अंश डूब जाओ या लीन हो, लक्ष्य वही अवतंश*शब्द-शब्द में भाव है, भाव समाहित अर्थ।  गुरु से यह शिक्षा मिली, शब्द न करिए व्यर्थ*बिंदु सिंधु में समाहित, सिंधु बिंदु में लीन गुरु का मानस पुत्र बन, रह न सकेगा दीन*सद्विचार जो दे जगा, वह लेखन है श्रेष्ठ। लेखक सत्यासत्य को, साध बन सके ज्येष्ठ
७.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

सड़गोड़ासनी 4: सखी री! गाओ

सड़गोड़ासनी 4: 
सखी री! गाओ
*
सखी री! गाओ सड़गोड़ा,
सीखें मोंड़ी-मोंड़ा।
सखी री!...
*
हिरा नें जाएँ छंद कहूँ जे,
मन खों रुचे निगोड़ा।
सखी री!...
*
'राइम' रट रय, अरथ नें समझें
जैसें दौड़े घोड़ा।
सखी री!...
*
घटे नें अन-धन दान दिए सें,
देखो दें कें थोड़ा।
सखी री!...
*
लालच-दंभ, चैन कें दुसमन,
मारे, गिनें नें कोड़ा।
सखी री!...
*
आधी छोड़ एक खों धावा,
पाएँ नें हिंसा छोड़ा।
सखी री?...
*
4.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com

बुधवार, 6 जून 2018

आम दोहावली

दोहा सलिला

आम खास का खास है......

संजीव 'सलिल'

*

आम खास का खास है, खास आम का आम.

'सलिल' दाम दे आम ले, गुठली ले बेदाम..

आम न जो वह खास है, खास न जो वह आम.

आम खास है, खास है आम, नहीं बेनाम..

पन्हा अमावट आमरस, अमकलियाँ अमचूर.

चटखारे ले चाटिये, मजा मिले भरपूर..

दर्प न सहता है तनिक, बहुत विनत है आम.

अच्छे-अच्छों के करे. खट्टे दाँत- सलाम..

छककर खाएं अचार, या मधुर मुरब्बा आम .

पेड़ा बरफी कलौंजी, स्वाद अमोल-अदाम..

लंगड़ा, हापुस, दशहरी, कलमी चिनाबदाम.

सिंदूरी, नीलमपरी, चुसना आम ललाम..

चौसा बैगनपरी खा, चाहे हो जो दाम.

'सलिल' आम अनमोल है, सोच न- खर्च छदाम..

तोताचश्म न आम है, तोतापरी सुनाम.

चंचु सदृश दो नोक औ', तोते जैसा चाम..

हुआ मलीहाबाद का, सारे जग में नाम.

अमराई में विचरिये, खाकर मीठे आम..

लाल बसंती हरा या, पीत रंग निष्काम.

बढ़ता फलता मौन हो, सहे ग्रीष्म की घाम..

आम्र रसाल अमिय फल, अमिया जिसके नाम.

चढ़े देवफल भोग में, हो न विधाता वाम..

'सलिल' आम के आम ले, गुठली के भी दाम.

उदर रोग की दवा है, कोठा रहे न जाम..

चाटी अमिया बहू ने, भला करो हे राम!.

सासू जी नत सर खड़ीं, गृह मंदिर सुर-धाम..

*******
१४-६-२०११ 

स्वास्थ्य दोहावली 2 आँवला

स्वास्थ्य दोहावली 2
आँवला
*
हरड़ बेड़ा आँवला, भाग तीन दो एक।
मिला आँख में आँजिए, रोहा रहे न एक।।
*
त्रिफला-घृत सेवन करें,  मिले देह को शक्ति।
संयम से नव स्वास्थ्य पा, रखें ईश प्रति भक्ति।।
*                                                                  केसर आँवला पीस लें, जल-गुलाब के साथ।        आधा सीसी मिटा दे, सिर पर लेपे हाथ।।            *
तोला-तोला लीजिए, बच अरु बायबिडंग।
त्रिफला तोले तीन लें, सेंधा नमक सुसंग।।
चाँदी-ताँबा-लौह की, दो-दो माशा भस्म।
दो रत्ती लें शहद सँग, लौटे याद सुरस्म।।
*
रोग टिटेनस का विकट, या बहता हो खून।
टपका दें आँवला-रस, मिलता शीघ्र सुकून।।
*

सड़गोड़ासनी 3 श्री श्री आइए

सड़गोड़ासनी 3
श्री श्री आइए
*
श्री श्री आइए मन-द्वारे,
चित पल-पल मनुहारे।

सब जग को देते प्रकाश नित,
हर लेते अँधियारे।

मृदु मुसकान अधर की शोभा,
मीठा वचन उचारे।

नयनों में है नेह-नर्मदा,
नहा-नहा तर जा रे!

मेघ घटा सम छाओ-बरसो,
चातक प्राण पुकारे।

अंतर्मन निर्मल करते प्रभु,
जै-जैकार गुँजा रे।

श्री-चरणों की रज पाना तो,
खुद को धरा बना रे।

कल खोकर कल सम है जीवन,
व्याकुल पार लगा रे।

लोभ मोह माया तृष्णा तज
गुरु का पथ अपना रे!

श्री-वचनों का अमिय पानकर
जीवन सफल बना रे!
***
6.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com

मंगलवार, 5 जून 2018

स्वास्थ्य दोहावली 1

स्वास्थ्य दोहावली
*
अमृत फल है आँवला, कर त्रिदोष का नाश।
आयुवृद्धि कर; स्वस्थ रख,  कहता छू आकाश।।
*
नहा आँवला नीर से,  रखें चर्म को नर्म।
पौधा रोपें; तरु बना, समझें पूजा-मर्म।।
*
अमित विटामिन सी लिए, करता तेज दिमाग।
नेत्र-ज्योति में वृद्धि हो, उपजा नव अनुराग।।
*
रक्त-शुद्धि-संचार कर, पाचन करता ठीक।
ओज-कांति को बढ़ाकर, नई बनाता लीक।।
*
जठर-अग्नि; मंदाग्नि में,  फँकें आँवला चूर्ण।
शहद और घी लें मिला,  भोजन पचता पूर्ण।।
*
भुनी पत्तियाँ फाँक लें, यदि मेथी के साथ।
दस्त बंद हो जाएंगे, नहीं दुखेगा माथ।।
*
फुला आँवला-चूर्ण को,  आँख धोइए रोज।
त्रिफला मधु-घी खाइए, तिनका भी लें खोज।।
*
अाँतों में छाले अगर, मत हों अाप निराश।
शहद आँवला रस पिएँ, मिटे रोग का पाश।।
*
चूर्ण आँवला फाँकिए,  नित भोजन के बाद।
आमाशय बेरोग हो, मिले भोज्य में स्वाद।।
*
खैरसार मुलहठी सँग, लघु इलायची कूट।
मिली अाँवला गोलियाँ, कंठ-रोग लें लूट।।
*
बढ़े पित्त-कफ; वमन हो, मत घबराएँ आप।
शहद-आँवला रस पाएँ, शक्ति सकेगी व्याप।।
*
5.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com

सोमवार, 4 जून 2018

सड़गोड़ासनी 2

सड़गोड़ासनी 2
रेवा माइ 
*
रेवा माइ पत रख लइयो,
कलकल कलकल बइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
मात-पिता, गुरु, बंधु-सखा तुम,
कब का करना; कइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
गौरा-बौरा औढरदानी,
किरपा तनक दिलइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
अमरकंटकी! संकट हरियो, 
बरखा खूब करइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
परबत-परबतजंगल-दूबा,
भू खों बसन उढ़इयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
पुरबैया-पछुवा-मलयज सँग
मिल बंबुलिया गइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
कोदों-कुटकी; ज्वार-बाजरा,
महुआ-मका पकइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
मोंड़ा-मोंड़ी, डुकरा-डुकरी,
डौकी सँग हँस रइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
टिमकी-मादल, झाँझ-मँजीरा,
बाजे; नाच-नचइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
कोउ नें अफरे, कोई नें भूखा
सोए; बात बनइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
*
गिरे-परे की कछू नें चिंता, 
मंजिल लौं पहुँचइयौ।
रेवा माइ पत रख लइयो... 
*
तुम बिन कौन सहारा जग में
नैया पार करइयो।
रेवा माइ पत रख लइयो...
***
4.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com 

रविवार, 3 जून 2018

लघुकथा: लक्ष्यवेध

लघुकथा: लक्ष्यवेध

आयकर विभाग में जमकर कमाई करने के बाद,  सेवानिवृत्ति पश्चात उसी विभाग में वकालत कर,  कभी मातहत रहे और अब निर्णायक पदों पर आसीन मित्रों के भरोसे वकालत करने लगे वे। धनपतियों को कर-चोरी के तरीके सुझाने, मन-मुताबिक फैसले कराने और इसकी एवज में येन-केन-प्रकारेण आदान-प्रदान के बाद मनचाहे फैसले कराकर कमाने-बाँटने का खेल खुल्लमखुल्ला होने लगा।
दो नंबर के धन से जेब भरी हो तो दो के चार खर्च करने में अपने बाप का क्या जाता है? अपनी इस दूरदर्शी सोच से पड़ोसियों को उपकृत कर वे अपने अपार्टमेंट की सोसायटी के अध्यक्ष बन बैठे। कुछ साल बाद कार खरीदी तो खुली जमीन के एक भाग पर शेड तान लिया। कुछ साल निकले, धन बड़ी मात्रा में एकत्र हो गया। कर देने के बजाय फ्लैट के मूल्य से अधिक धन उसकी मरम्मत में खर्च कर छाती फैलाकर घूमते रहे। लगा हुए हर सामान को सबसे अधिक मंहगा बताते समय उनकी छाती फूल और फैल जाती। पड़ोसियों को शहर के महँगे होटल में रात्रिभोज देकर, अगले ही दिन अपार्टमेंट के पीछे की जमीन पर एक शेड तानकर कर लिया उन्होंने लक्ष्यवेध ।
****
3.6.2018, 7999559618

शनिवार, 2 जून 2018

नवलेखन: सड़गोड़ासनी

नवलेखन: सड़गोड़ासनी
परिचय:
सड़गोड़ासनी बुंदेली भाषा का छंद है जिसे आधुनिक हिंदी में नहीं लिखा गया है। 'षड्' अर्थात छ:, षडानन, षड् राग आदि सर्वविदित हैं। लोकभाषा में 'ष' का उच्चारण 'स' या 'ख' किया जाता है। तभी सावन, खडानन, खटरागी जैसे शब्द बनते हैं। 'गोड़' अर्थात 'पैर' या 'पद'। सड़ + गोड़' + आसनी अर्थात छ: पंक्तियों पर आसीन छंद 'षड्पदी'। दोहा तथा रोला के सम्मिलन से बनी कुंडलिया भी 'षड्पदी' है।
विधान:
सड़गोड़ासनी मात्रिक छंद है। इसके मुखड़े में पंद्रह - बारह मात्रा पर यति का विधान है। शेष पंक्तियों में सोलह - बारह की यति होती है। प्रथम अर्धाली हर पंक्ति-युग्म के बाद दोहराई जाती है। प्रथम अर्धाली में पाँचवी-छठी मात्रा गुरु तथा सातवीं मात्रा लघु रखना आवश्यक है।
विशेष:
सड़गोड़ासनी दादरा ताल,  छ: मात्रा की बंदिश में  गाया जाता है। सड़गोड़ासनी वसंत का छंद होते हुए भी हर मौसम-पर्व पर गाया जाता है। सड़गोड़ासनी नृत्य-गीत है। इसके साथ मृदंग,  टिमकी, झांझ,  मँजीरा आदि लोकवाद्य बजाए जाते हैं । यह पुरुष तथा महिला दोनों के लिए है।
दादरा के बोल हैं ''धा धी ना ता ती ना'' जबकि सड़गोड़ासनी के बोल हैं ''धन ग्ग धन ग न,  ति क्क ति क न''। सड़गोड़ासनी में  प्रयुक्त बोल का आवर्त, दादरा में प्रयुक्त आवर्तों का दोगुना है। सामान्यतः महिलाएँ भक्ति व श्रंगारपरक सड़गोड़ासनी शुद्ध दादरा में गाती हैं तथा ढोलक,  मजीरा, पीतल का लोटा आदि वाद्य प्रयोग करती हैं। पुरुष नृत्य की भावमुद्राओं को प्रमुखता देते हुए सड़गोड़ासनी में प्राण फूँक देते हैं।
उदाहरण:
भारत देश, हमको प्यारा,
सब जग से है न्यारा।
भारत देश हमको प्यारा...
*
ध्वजा तिरंगी फहरे फर-फर,
मेघ करें जयकारा।
भारत देश हमको प्यारा...
*
मन मोहे सिर ताज हिमालय,
सागर चरण पखारा।
भारत देश हमको प्यारा...
*
बहे नदी नरमदा मध्य में, 
जीवन दे जलधारा।
भारत देश हमको प्यारा...
*
हम हैं एक; अनेक भले ही,
भाषा-वसन हमारा।
भारत देश हमको प्यारा...
*
धर्म कला साहित्य मनोहर,
शाश्वत ग्यान हमारा।
भारत देश हमको प्यारा...
***
2.6.2018, 7999559618
salil.sanjiv@gmail.com 

www.divyanarmada.in