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शनिवार, 6 जनवरी 2018

navgeet

नवगीत:
संजीव 
.
काल है संक्रांति का
तुम मत थको सूरज!
.
दक्षिणायन की हवाएँ
कँपाती हैं हाड़
जड़ गँवा, जड़ युवा पीढ़ी
काटती है झाड़
प्रथा की चूनर न भाती
फेंकती है फाड़
स्वभाषा को भूल, इंग्लिश
से लड़ाती लाड़
टाल दो दिग्भ्रान्ति को
तुम मत रुको सूरज!
*
उत्तरायण की फिज़ाएँ
बनें शुभ की बाड़
दिन-ब-दिन बढ़ता रहे सुख
सत्य की हो आड़
जनविरोधी सियासत को
कब्र में दो गाड़
झाँक दो आतंक-दहशत
तुम जलाकर भाड़
ढाल हो चिर शांति का
तुम मत झुको सूरज!
***

६-१-२०१५ 

muktika

मुक्तिका:
संजीव
.
गीतों से अनुराग न होता
जीवन कजरी-फाग न होता
रास आस से कौन रचाता?
मौसम पहने पाग न होता
निशा उषा संध्या से मिलता
कैसे सूरज आग न होता?
बाट जोहता प्रिय प्रवास की
मन-मुँडेर पर काग न होता
सूनी रहती सदा रसोई 
गर पालक का साग न होता 
चंदा कहलातीं कैसे तुम
गर निष्ठुरता-दाग न होता?
गुणा कोशिशों का कर पाते 
अगर भाग में भाग न होता  
नागिन क्वारीं मर जाती गर
बीन सपेरा नाग न होता
'सलिल' न होता तो सच मानो
बाट घाट घर बाग़ न होता
***
६.१.१५ 

दोहा दुनिया

शिव सत के पर्याय हैं,
शिव सुंदरता लीन।
कौन न सुंदर-शिव यहाँ,
शिव में सृष्टि विलीन।।
.
अशिव न शिव बिन रह सके,
शिव न अशिव पर्याय।
कंकर को शंकर करें,
शिव रच नव अध्याय।।
.
शिव की प्राप्ति न है सहज,
मिलते बिना प्रयास।
उमा अपर्णा हो वरें,
शिव जी को सायास।।
.
शंकर हर कंटक हरें,
अमर न कंटक बोल।
अमरकंटकी की लहर,
देती अमृत घोल।।
.
मन में कल मेकल रखे,
मेकलसुता सुशांति।
कलकलकल कर नर्मदा,
हर लेती हर भ्रांति।।
.
तन-मन आनंदित करे,
प्रवह नर्मदा नीर।
दुख न दर्द बाक़ी रहे,
करें पीर बेपीर।।
.
७.१.२०१८

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

doha sangrah- pustak mela



लघु कथा

लघुकथा :
खिलौने
*
दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद घर पहुँचते ही पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया तो वह उलटे पैर बाज़ार भागा। किराना लेकर आया तो बिटिया रानी ने शिकायत की 'माँ पिकनिक नहीं जाने दे रही।' पिकनिक के नाम से ही भड़क रही श्रीमती जी को जैसे-तैसे समझाकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए हुए बेटा दिखा। उसे बुलाकर पूछ तो पता चला कि खेल का सामान चाहिए। 'ठीक है' पहली तारीख के बाद ले लेना' कहते हुए उसने चैन की साँस ली ही थी कि पिताजी क खाँसने और माँ के कराहने की आवाज़ सुन उनके पास पहुँच गया। माँ के पैताने बैठ हाल-चाल पूछा तो पाता चला कि न तो शाम की चाय मिली है, न दवाई है। बिटिया को आवाज़ देकर चाय लाने और बेटे को दवाई लाने भेजा और जूते उतारने लगा कि जीवन बीमा एजेंट का फोन आ गया 'क़िस्त चुकाने की आखिरी तारीख निकल रही है, समय पर क़िस्त न दी तो पालिसी लेप्स हो जाएगी। अगले दिन चेक ले जाने के लिए बुलाकर वह हाथ-मुँह धोने चला गया।

आते समय एक अलमारी के कोने में पड़े हुए उस खिलौने पर दृष्टि पड़ी जिससे वह कभी खेलता था। अनायास ही उसने हाथ से उस छोटे से बल्ले को उठा लिया। ऐसा लगा गेंद-बल्ला कह रहे हैं 'तुझे ही तो बहुत जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की। रोज ऊँचाई नापता था न? तब हम तुम्हारे खिलौने थे, तुम जैसा चाहते वैसा ही उपयोग करते थे। अब हम रह गए हैं दर्शक और तुम हो गए हो सबके हाथ के खिलोने।
***    

दोहा दुनिया

महिमा की महिमा अमित, श्री वास्तव में खूब
वर्मा संरक्षण करे, रहे वीरता डूब
*
चित्र गुप्त है शौर्य का, चित्रगुप्त-वरदान
काया स्थित अंश ही, होता जीव सुजान
*
सकल सृष्टि कायस्थ है, सबसे करिए प्रेम
कंकर में शंकर बसे, करते सबकी क्षेम
*
उग्र न होते प्रभु कभी, रहते सदा प्रशांत 
सुमति न जिनमें हो तनिक, वे ही मिलें अशांत
*

kundaliya

कार्यशाला:
कुण्डलिया एक : कवि दो
राधा मोहन को जपे, मोहन राधा नाम।
अनहोनी फिर भी हुई, पीड़ा उम्र तमाम।। -सुनीता सिंह
पीड़ा उम्र तमाम, सहें दोनों मुस्काते।
हरें अन्य की पीर, ज़िंदगी सफल बनाते।।
श्वास सुनीता आस, हुई संजीव अबाधा।
मोहन राधा नाम, जपे मोहन को राधा।। -संजीव
***

कुण्डलिया

कार्यशाला:
एक कुण्डलिया : दो कवि
तन को सहलाने लगी, मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती, हवा फटकती सूप -शशि पुरवार

हवा फटकती सूप, टपकती नाक सर्द हो
हँसती ऊषा कहे, मर्द को नहीं दर्द हो
छोड़ रजाई बँधा, रहा है हिम्मत मन को
लगे चंद्र सा, सूर्य निहारे जब निज तन को - संजीव
***  

muktika

मुक्तिका
*
नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
निज हित की चिंता जायज
कुछ सब-हित भी रहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे


*

muktak

मुक्तक-
बिखर जाओ फिजाओं में चमन को आज महकाओ 
​बजा वीणा निगम-आगम ​कहें जो सत्य वह गाओ 
​अनिल चेतन​ हुआ कैलाश पर ​श्री वास्तव में पा 
बनो​ हीरो, तजो कटुता, मधुर मन मंजु ​हो जाओ
*

रहो शिव सम, न चाहो कुछ, बने जो वह विहँस देना 
दिया प्रभु ने न जो वह अन्य से मत चाहना-लेना 
मुकद्दर खुद लिखो अपना, न थक दिन-रात मेहनत कर 
नर्मदा चाहतों की, नाव कोशिश की 'सलिल' खेना 
*** 

laghukatha


लघुकथा- 
कतार 
*
दूरदर्शनी बहस में नोटबन्दी के कारण लग रही लंबी कतारों में खड़े आम आदमियों के दुःख-दर्द का रोना रो रहे नेताओं के घड़ियाली आँसुओं से ऊबे एक आम आदमी ने पूछा- 
'गरीबी रेखा के नीचे जी रहे आम मतदातों के अमीर जनप्रतिनिधियों जब आप कुर्सी पर होते हैं तब आम आदमी को सड़कों पर रोककर काफिले में जाते समय, मन्दिरों में विशेष द्वार से भगवान के दर्शन करते समय, रेल और विमान यात्रा के समय विशेष द्वार से प्रवेश पाते समय क्या आपको कभी आम आदमी की कतार नहीं दिखी? यदि दिखी तो अपने क्या किया? क्या आपको अपने जीवन में रुपयों की जरूरत नहीं होती? होती है तो आप में से कोई भी बैंक की कतार में क्यों नहीं दिखता? 
आप ऐसा दोहरा आचरण कर आम आदमी का मजाक बनाकर आम आदमी की बात कैसे कर सकते हैं? कालाबाजारियों, तस्करियों और काला धन जुटाते व्यापारियों से बटोर चंदा उपयोग न कर पाने के कारण आप जन गण द्वारा चुनी सरकार से सहयोग न कर जनमत का अपमान करते हैं तो जनता आप के साथ क्यों जुड़े? 
सकपकाए नेता को कुछ उत्तर न सूझा तो जन समूह से आवाज आई 'वहां मत बैठे रहो, हमारे दुःख से दुखी हो तो हमारा साथ दो। तुम सबको बुला रही है कतार। 
*

गुरुवार, 4 जनवरी 2018

pustak mela

दिल्ली पुस्तक मेले में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
अब तक निर्धारित कार्यक्रम निम्नानुसार है। शेष समय का सदुपयोग गोष्ठी, परिचर्चा या कार्यशाला में करने के इच्छुक मित्र संपर्क कर लें-
* दिनाँक ९ जनवरी: जबलपुर से प्रस्थान गोंडवाना एक्सप्रेस बी - ५७, शाम १५.० बजे।
* दिनाँक १० जनवरी: प्रात: ६ बजे (संभावित १२ बजे) हज़रत निज़ामुद्दीन, दिल्ली । श्री हरेराम नेमा समीप द्वारा सम्पादित 'समकालीन ग़ज़लकार: एक अध्ययन खंड २ ' संकलन के लोकार्पण कार्यक्रम [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक ११ जनवरी: श्री ॐ प्रकाश शुक्ल रचित काव्य संग्रह 'गाँधी और उनके बाद' के विमोचन समारोह में सहभागिता।
* दिनाँक १२ जनवरी: डॉ. भावना शुक्ल लिखित 'साहित्य साधक और साहित्य दृष्टि' तथा 'सोच के दायरे' के विमोचन समारोह में सहभागिता [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक १३ जनवरी: कविता कोष लोक रंग में सहभागिता शाम ६ बजे, हाल १२ लेखक मंच। (बुंदेली, छतीसगढ़ी, मालवी, राजस्थानी)
* दिनाँक १४ जनवरी: श्री योगराज प्रभाकर द्वारा सम्पादित लघु कथा पत्रिका के विमोचन समारोह में सहभागिता, १२ नंबर ११ बजे से ४ बजे।
* दिनाँक १५ जनवरी: भाषा सहोदरी के लघुकथा सम्मेलन में संबोधन- हंसराज कोलेज नई दिल्ली.
संपर्क क्रांति एक्सप्रेस १७.२५ से निज़ामुद्दीन से वापिसी।
मेरा संपर्क ७९९९५५९६१८ या ९४२५१८३२४४ होगा।
* मेरे ठहरने के स्थल की जानकारी श्री ओमप्रकाश शुक्ल ९७१७६३४६३१ / ९६५४४७७१२ या श्री ओम प्रकाश यति ९९९९०७५९४२ / ९४१०४७६१९३ से प्राप्त की जा सकेगी।
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doha duniya


शिव दोहावली
*
नाथ बसे कैलाश पर, विपिन रहा मन मोह
काम अकाम सुकाम लख, रति-पति करता द्रोह
*
भाव समाधि अटूट जब, टूटी हाहाकार
पुष्पलता के अश्रु बह, बने नर्मदा-धार
*
चंद्र झुलस श्यामल हुआ, कंपित रश्मि सुशील
शेष श्लेष भी धैर्य तज, हुआ भीति से नील
*
शशि का मन उन्मन हुआ, क्यों? बोलो शशिनाथ
उस बाधा को हटा दो, जिसका इसमें हाथ
*
रति-पति मति बौरा गई, किया शम्भु पर वार
पल में जल कर क्षार हो, पाया कष्ट अपार
*
शिव संयम साक्षात हैं, कभी न होते बाध्य
शिव चाहें तो क्या नहीं, होगा उनका प्राप्य?
*
स्वार्थी सुर निज हित करें, भोगे अन्य अनिष्ट
शिव-शिक्षा खुद कष्ट सह, बनकर रहिए शिष्ट
*
सीमोल्लंघन से हुए, शिव रति-पति पर रुष्ट
रति की विनती सुन द्रवित, हुए मिटाया कष्ट
*
शक्ति-शक्तिधर आप मिल, करें सृजन-संहार
करे बाध्य कोई अगर, हो भीषण संहार
*
४.१.२०१८

दोहा दुनिया doha duniya

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, सुभद्रा वार्ड, जबलपुर ४८२००१ 
*
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर द्वारा हिंदी के कालजयी छंद दोहा के समसामयिक लेखन को संवर्धित और  समृद्ध करने के उद्देश्य से समकालिक श्रेष्ठ दोहाकारों के दोहा-संकलनों की श्रंखला आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के संपादन में प्रकाशित की जा रही है। संकलनों का प्रकाशन सहभागिता के आधार पर हो रहा है। सम्मिलित होने के इच्छुक दोहकारों से १२० दोहे, चित्र, परिचय (नाम, उपनाम, जन्म तिथि,  जन्मस्थान, माता-पिता / जीवन साथी का नाम,  शिक्षा, लेखन-विधाएँ, प्रकाशित कृतियों के  नाम, विधा व वर्ष, उल्लेखनीय उपलब्धियाँ, पूरा पता, चल / दूर भाष, ईमेल), सहमति पत्र तथा ३०००/- सहयोग राशि (दोहे स्वीकृत होने के बाद) आमंत्रित है। आवश्यक होने पर दोहों में संशोधन का अधिकार संपादक को होगा। संकलन प्रकाशन के पश्चात हर सहभागी को ११-११ प्रतियाँ निशुल्क दी जाएँगी। कम से कम ११ रचनाकार होने पर ही संकलन प्रकाशित किया जाएगा। उपलब्ध होने पर अतिरिक्त प्रतियाँ ३०% रियायती मूल्य पर प्रदान की जा सकेंगी। सहभागियों का चयन दोहों की मौलिकता, गुणवत्ता तथा पहले आने के आधार पर किया जाएगा। सामग्री salil.sanjiv@gmail.com पर शीघ्रादिशीघ्र भेजें। 
(टीप: जो दोहाकार ३०००/- सहभागिता निधि देने में कठिनाई अनुभव करते हों वे ३००/- प्रति पृष्ट की दर से २, ४, ६ या ८ पृष्ठों हेतु राशि तथा क्रमश: १५, ४०, ६० व ८० दोहे भेजें।)
-------------- 

दोहा दुनिया

शिव अनेक से एक हों,
शिव हैं शुद्ध विवेक.
हों अनेक पुनि एक से,
नेक न कभी अ-नेक.
.
शिव ही सबके प्राण हैं,
शिव में सबके प्राण.
धूनी रचा मसान में,
शिव पल-पल संप्राण.
.
शिव न चढावा चाहते,
माँगें नहीं प्रसाद.
शिव प्रसन्न हों यदि करे,
निर्मल मन फ़रियाद.
.
शिव भोले हैं पर नहीं,
किंचित भी नादान.
पछताते छलिया रहे,
लड़े-गँवाई जान.
.
हर भव-बाधा हर रहे,
हर पल हर रह मौन.
सबका सबसे हित सधे,
कहो ना चाहे कौन?
.
सबका हित जो कर रहा,
बिना मोह छल लोभ.
वह सच्चा शिवभक्त है,
जिसे न हो भय-क्षोभ.
.
शक्तिवान शिव, शक्ति हैं,
शिव से भिन्न न दूर.
चित-पट जैसे एक हैं,
ये कंकर वे धूर.
.....
4.1.2018

बुधवार, 3 जनवरी 2018

kruti charcha-

कृति चर्चा:
'गाँधी और उनके बाद' 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
[कृति विवरण: गाँधी और उनके बाद, काव्य संग्रह, ISBN No.: 13-978-93-83198-07-8, ओमप्रकाश शुक्ल, २०१८, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी, पृष्ठ  ६०, १५०/-, पाल प्रकाशन, १८२ चंद्रलोक, मंडोली मार्ग, दिल्ली ११००९३, कवि संपर्क: ]     
*
               सनातन मूल्यों के वर्तमान संक्रमण काल में सत्य और अहिंसा की आधार शिला पर  अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, राजनैतिक और सामाजिक जीवन इमारत खड़ी करनेवाले, साधारण रूप-रंग, कद-काठी किंतु असाधारण ही नहीं अनुपमेय चिंतन शक्ति और कर्म निष्ठा के जीवंत उदाहरण गाँधी जी से आत्मिक जुड़ाव की अनुभूति कर, उनके व्यक्तित्व-कृतित्व से अभिभूत होकर, एकांतिक निष्ठा और समर्पण के दिव्य भाव से समर्पित होकर एक युवा द्वारा ६५ काव्य रचनाएँ की जाना विस्मित करता है। म. गाँधी की नौका पर चढ़कर चुनावी वैतरणी पार करनेवाले उनके नाम का सदुपयोग (?) उनके जीवन काल से अब तक असंख्य बार करते रहे हैं और न जाने कब तक करते रहेंगे। गाँधी जी के विचारों की हत्या कर उनके अनुयायी होने का दावा करनेवालों की संख्या भी अगणित है किंतु बिना किसी स्वार्थ के गाँधी जी के व्यक्तित्व-कृतित्व से अपनत्व और अभिन्नता की प्रतीति कर काव्य कर्म को मूर्त करने की साधना न तो सहज है, न ही सुलभ। प्रतिदिन प्रकाशित हो रही अगणित हिंदी काव्य रचनाओं के बीच शुचि-सात्विक चिंतनपरक सृजन का वैचारिक अश्वमेध बिना दृढ़ संकल्प पूर्ण नहीं होता। 

               काव्य रचना वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ प्रचुर शब्द-भण्डार, प्रासंगिक कथ्य, सम्यक भावाभिव्यक्ति, छांदस लयात्मक अभिव्यक्ति, यथोचित आलंकारिक सज्जा, बिंब-प्रतीक के सप्तपदीय अनुशासन के साथ शब्द-शक्तियों और रस के समन्वययुक्त नवधा अनुष्ठान को पूर्ण करने की संश्लिष्ट प्रक्रिया है। युवा कवि ओमप्रकाश शुक्ल ने  नितांत समर्पण भाव से इस रचना यज्ञ में भावाहुतियाँ दी हैं। इस कृति के पठन के समान्तर पाठक के मन में चिंतन प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर अध्ययन करते समय गाँधी दर्शन से दो-चार होने के अवसर मिला है। समय-समय पर अपने आचरण में यदा-कदा वह प्रभाव पाता रहा हूँ। 'गाँधी और उनके बाद' की रचनाएँ मुझे मेरे कवि के उस मनोभाव से साक्षात का सुअवसर देता रहा जिसे मैं अभिव्यक्त नहीं कर सका। बहुधा ऐसा लगता रहा जैसे अपनी ही विचार सलिला में अवगाहन कर रहा हूँ। 

               प्रथम रचना में बापू के चरणों में प्रणति-पुष्प अर्पित कर कवि कामना करता है 'देना नित मुझे मार्गदर्शन / कर सकूँ सत्य का अवलोकन'। सत्य - अवलोकन की प्रक्रिया में छद्म गाँधीवादियों की विचार यात्रा को 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग, बिना ढाल / साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल' से आरम्भ होकर 'मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी' तक पहुँचते देख सत्यान्वेषी कवि बरबस ही पूछ बैठता है-
क्या हम हर क्षण, हर पल
सिर्फ गाँधी की दुहाई देंगे?
मृत्यु के पश्चात् भी
क्या हर अच्छे और बुरे कार्य के लिए
उन्हें जिम्मेवार ठहराते रहेंगे?
वर्षों से ध्यान मग्न
उनकी तन्द्रा को भंग करेंगे?
क्या बापू ही
आज तक हर बुराई के लिए
जिम्मेवार हैं?
तो भाई! क्यों नहीं आज तक
आप सभी ने मिलकर
मिटा दिया उन बुराइयों को?

               कवि ही नहीं, मैं और आप भी जानते हैं कि येन-केन-प्रकारेण सिर्फ और सिर्फ सत्ता को साध्य माननेवाले और गाँधी जी के प्रति लोक-आस्था को भुनानेवाले राजनैतिक लोग अपने मन-दर्पण में कभी नहीं  झाँकेंगे। इसलिए वह अपने आप से गाँधी के नाम नहीं विचार के अनुकरण की परंपरा का श्री गणेश करना चाहता है-
मैं बापू के चरित्र से
प्रभावित तो हूँ
और उनके ही समान
बनना चाहता हूँ,
बापू के रंग में रंगकर
एक आदर्श
प्रस्तुत करना चाहता हूँ।

               इस राह में सबसे बड़ी बाधा है बापू का न होना। कवि का यह सोचना स्वाभाविक है कि आज बापू होते तो उनके चरणों में बैठकर उन जैसा बनने की यात्रा सहजता से हो पाती-
हे बापू!
आपके न रहने से
प्रभावित हुआ हूँ मैं।
मेरे अंतर्मन की आशा
जिसमें कुछ कर दिखाने की
थी अभिलाषा
जाने कहाँ विलुप्त हो गयी?

              इन पंक्तियों को पढ़कर बरबस याद हो आती है वह कविता जिसे हमने अपने बचपन में पाठ्य पुस्तक में पढ़कर गाँधी को जाना और एक अनकहा नाता जोड़ा था-
माँ! खादी की चादर दे-दे,  मैं गाँधी बन जाऊँगा
सब मित्रों के बीच बैठकर रघुपति राघव गाऊँगा...
... एक मुझे तू तकली ला दे, चरखा खूब चलाऊँगा

              तब हम सप्ताह में एक दिन तकली भी चलाते थे, और चरखा चलाना भी सीख लिया था। आज तो बच्चों को विद्यालय जाने और पढ़ना-लिखना सीखने के पहले अभिभावक के पहले चलभाष देने में गर्व अनुभव कर रहे हैं।
               यह सनातन सत्य है कि कोई हमेशा सदेह नहीं रहता। गाँधी जी की हत्या न होती तो भी उनका जीवन कभी न कभी तो समाप्त होना ही था। इसलिए अपने मन को समझाकर कवि गाँधी - मार्ग पर चलने का संकल्प करता है-
देख मत दूसरे के दोषों को
तू अपने दोषों का सुधार कर
अहंवाद समाप्त कर
जग में समन्वय पर्याप्त कर
अपनी हर भूल से शिक्षा ले
निज पापों का परिहार कर

               गाँधी-दर्शन 'स्व' नहीं' 'सर्व' के हित साधन का पथ है। कवि गाँधी जी के आदर्श को अपनाने की राह पर अकेला नहीं सबको साथ लेकर बढ़ने का इच्छुक है-
हे बंधु! सुनो
छोड़ो भी ये नारेबाजी
अब मिल तो गयी है आज़ादी
कुछ स्वयं करो
कुछ स्वयं भरो

               निज दोषों और कमियों का ठीकरा गाँधी जी पर फोड़कर खुद कुछ न करनेवाले अन्धालोचकों को कटघरे में खड़ा करते हुए कवि निर्भीकता किंतु विनम्रता से पूछता है-
बकौल तुम्हारे
उनको किसी अच्छाई का श्रेय
नहीं दिया जा सकता
तो अकेले हर बुराई के लिए
वो जिम्मेवार कैसे
फिर गाँधी जैसे व्यक्तित्व को
तुम जैसे तुच्छ सोच
और निरर्थक कृत्य वाले के
प्रमाण पत्र की
किंचित आवश्यकता नहीं
वह स्वयं में प्रामाणिक हैं.

               अपने आदर्श को विविध दृष्टिकोणों से देखने की चाह और विविधताओं में समझने की चाह अनुकरणकर्ता को अपने आदर्श के व्यक्तित्व-कृतित्व के निरीक्षण-परीक्षण तथा उसके संबंध में अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित ही नहीं विवश भी करती है। कुछ रचनाओं में भावुकता की अतिशयता होने पर भी कवि ने गाँधी जी के जीवन काल में और गाँधी जी की शहादत के बाद हुए सामाजिक, राजनैतिक और मानसिक परिवर्तनों का तुलनात्मक अध्ययन कर सटीक निष्कर्ष निकाले हैं।
यूँ लगा कि
गाँधी और उनके बाद
'भारत का भाग्य' चला गया।
अब वह मर्मस्पर्शी अपनत्व कहाँ?
अब वह सतयुग सा आभास कहाँ?
'गाँधी और उनके बाद'
वस्तुत:
सत्य यही है कि
युग बदला
समय का मूल्य सब भूल गए
नैतिकता का पतन हुआ
दुखद परिस्थितियों को
आत्मसात करना पडा
सत्य कहा मन ने कि
एक युग का अंत हुआ है
'गाँधी और उनके बाद'

               प्रथमार्ध में छंद मुक्त रचनाओं के साथ द्वितीयार्ध में रचनाकार ने हिंदी ग़ज़ल (जिसे आजकल गीतिका, मुक्तिका, अनुगीत, तेवरी आदि विविध नामों से विभूषित किया जा रहा है) के शिल्प विधान में चाँद रचनान्जलियाँ  समर्पित की हैं। गुरु वंदना के पश्चात प्रस्तुत इन रचनाओं का स्वर गाँधी चिन्तनपरक ही है-
क्यों लिखते हो खार सुनों तुम
लिख दो थोड़ा प्यार लिखो तुम

               प्यार की वकालत करते गाँधी जी और गाँधीवाद का प्रभाव  'मुहब्बत का असर है, आज कविता खूब लिखता हूँ', 'ज़िन्दगी सत्य की डगर पर है', 'प्रेम का ही आवरण दिग छा गया है', 'भारती हो भारती की जय करो', 'राम सदा ही / हैं दुःख भंजन' आदि पंक्तियाँ येन-केन संग्रह के केंद्र बिंदु को साथ रख पाती हैं।

               चतुष्पदिक मुक्तकों में 'हम दिखाते रह गए बस सादगी', 'सतयुग सरीखी रीत निभाया न कीजिए', 'आश औरि विश्वास लै, बाँधि नेह कय डोर', 'भू मंडल के जीव-जंतु सब, पुत्र भांति हैं धरती के', 'ममता, समता दिव्यता नारी के प्रतिरूप', 'ऊबड़-खाबड़ बना बिछौना' जैसी पंक्तियाँ विविध विषयांतर के बाद भी मूल को नहीं छोड़तीं। गाँधी दर्शन के दो बिंदु 'हिंदी-प्रेम' और निष्काम कर्म योग' पर केन्द्रित दो मुक्तक देखें-
हिंदी में रचना करें, हिंदी में व्याख्यान
हिन्दीमय हो हिन्द तब, हो हिंदी उत्थान
राजनीति का अंत ही उन्नति का आधार
भारत तब विकसित बने, हो भाषा का मान
*
कर्म करो मनु प्रभु बसें, हो हर अड़चन दूर
कृपा-दृष्टि की छाँव भी, मिले सदा भरपूर
मालिक नहिं कोई हुआ, धन-वैभव की खान
'शुक्ल' रहे इस जगत में, हर कोई मजदूर

               उक्त दोनों दोहा-मुक्तकों में क्रमश: 'स्वभाषा' और न्यासी (ट्रस्टीशिप) सिद्धांत को कवि ने कुशलता से संकेतित किया है। यह कवि सामर्थ्य का परिचायक है। कवि ने मानक आधुनिक हिंदी के साथ लोक भाषा का प्रयोग कर गाँधी जी की भाषा नीति को व्यावहारिक रूप दिया है।

               'प्रेम डोर से बाँध ह्रदय को', 'द्वेष, कपट, छल, बैर मिटे कुछ / मिलकर ऐसी नीत लिखो तुम', 'द्वेष भाव से विलग रहा हूँ', 'राम-भारत सम भ्रातृ-प्रेम हो', 'भले व्यक्ति को नेता चुन ले', 'लेप नेह का हिय पर मलता', 'मन को दुखी करो मत साथी, होगा जो प्रभु ने ठाना' आदि गीताशों में गाँधी-चिन्तन इस तरह पिरोया गया है कि कथ्य की विविधता के बावजूद गाँधी-सूत्र उस गीत का अभिन्न भाग हो गया है।

               कृति के अंत में सवैये, घनाक्षरी, आल्हा, पद कुण्डलिया तथा चौपाई की प्रस्तुति छांदस कविता के प्रति रचनाकार की रूचि और कुशलता दोनों को बिम्बित करती है। कवि ने अपना गाँधीचिन्तक परक दृष्टि कोण इन लघु रचनाओं में भी पूर्ववत रखा है।

राम प्रभो मनवा अति मोहत               - राम प्रेम, सवैया

'भारती के भाल पर, प्रकृति के गाल पर
सुर और टाल पर, हिंदी हिंदी छाई है '    - स्वभाषा प्रेम, घनाक्षरी

वंदे मातरम बोल सभी के मन में ऐसी अलख जगाय -राष्ट्र-प्रेम, आल्हा

माँ से बड़ा न कोई  जग में....               - मातृ-प्रेम, पद

सारा दिन मेहनत करे ह्रदय चीर मजदूर -श्रमिक शोषण, कुण्डलिया

अंतर्मन सत-रूप बसाओ - सत्य-प्रेम, चौपाई

हित छोड़ो, मत देश -राष्ट्र-प्रेम, सोरठा

सत्य पर हम बलि जाएँ  - सत्य-प्रेम, रोला

हिन्द देश, हिंदी जुबां, हिन्दू हैं सब लोग  -सर्व धर्म समभाव, दोहा

               काव्य को दृश्य काव्य, श्रव्य काव्य और चम्पू काव्य में वर्गीकृत किया गया है। दृश्य काव्य के अंतर्गत दृश्य अलंकार हैं। संस्कृत काव्य में इसे हेय या निम्न माना गया है। इस कारण न तो संस्कृत काव्य में न हिंदी काव्य में चित्र अलंकारों को अधिक प्रश्रय मिला। मैंने चित्र अलंकार का सर्वाधिक उपयुक्त और सटीक प्रयोग डॉ. किशोर काबरा रचित महाकाव्य उत्तर भागवत में श्री कृष्ण द्वारा महाकाल की पूजन प्रसंग में देखा है। प्रबंध काव्य कुरुक्षेत्र गाथा में में स्तूप अलंकार और ध्वजा अलंकार के रूप में मैंने भी चित्र अलंकार का प्रयोग किया है। ओमप्रकाश ने वर्ण पिरामिड तथा डमरू चित्रालंकार प्रस्तुत किये हैं। युवा रचनाकार में निरंतर नए प्रयोग करने की रचनात्मक प्रवृत्ति सराहनीय है।

               कहने की आवश्यकता नहीं कि कोई भी छंद हो, कोई भी विषय हो कवि को हर जगह गाँधी ही दृष्टिगत होते हैं। गाँधी दर्शन के प्रति यह प्रबद्धता ही इस कृति को पठनीय, मननीय और संग्रहणीय बनाती है। मुझे विशवास है कि पाठक वर्ग में इस कृति का स्वागत होगा।
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संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, सुभद्रा वार्ड, जबलपुर ४८२००१.
चलभाष: ९४२५१८३२४४ / ७९९९५५९६१८, salilsanjiv@gmail.com

pustak mela dehli men- sanjiv verma

दिल्ली पुस्तक मेले में आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
* दिनाँक ९ जनवरी: जबलपुर से प्रस्थान गोंडवाना एक्सप्रेस बी - ५७, शाम १५.० बजे।
* दिनाँक १० जनवरी: प्रात : ६ बजे हज़रत निज़ामुद्दीन, दिल्ली । श्री हरेराम नेमा समीप द्वारा सम्पादित 'समकालीन ग़ज़लकार: एक अध्ययन खंड २ ' संकलन के लोकार्पण कार्यक्रम [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक ११ जनवरी: श्री ॐ प्रकाश शुक्ल रचित काव्य संग्रह 'गाँधी और उनके बाद' के विमोचन समारोह में सहभागिता।
* दिनाँक १२ जनवरी: डॉ. भावना शुक्ल लिखित 'साहित्य साधक और साहित्य दृष्टि' तथा 'सोच के दायरे' के विमोचन समारोह में सहभागिता [१२ ए स्टाल नंबर १००-१०१ भावना प्रकाशन] में सहभागिता।
* दिनाँक १३ जनवरी: कविता कोष लोक रंग में सहभागिता शाम ६ बजे, हाल १२ लेखक मंच। (बुंदेली, छतीसगढ़ी, मालवी, राजस्थानी)
* दिनाँक १४ जनवरी: श्री योगराज प्रभाकर द्वारा सम्पादित लघु कथा पत्रिका के विमोचन समारोह में सहभागिता, १२ नंबर ११ बजे से ४ बजे।
* दिनाँक १५ जनवरी: भाषा सहोदरी के लघुकथा सम्मेलन में संबोधन- हंसराज कोलेज नई दिल्ली.
संपर्क क्रांति एक्सप्रेस १७.२५ से निज़ामुद्दीन से वापिसी।
मेरा संपर्क ७९९९५५९६१८ या ९४२५१८३२४४ होगा।
* मेरे कार्यक्रम की जानकारी श्री ओमप्रकाश शुक्ल ९७१७६३४६३१ / ९६५४४७७१२ या श्री ॐ प्रकाश यति ९९९९०७५९४२ / ९४१०४७६१९३ से प्राप्त की जा सकेगी। 
(दत्त भवन, न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन, नई दिल्ली ११००९६)

navgeet

नवगीत
चुप बैठा धुनिया
अवनीश सिंह चौहान
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सोच रहा              ६
चुप बैठा धुनिया   १०
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भीड़-भाड़ वह       ८
चहल-पहल वह    ८
बंद द्वार का          ८
एक महल वह      ८
ढोल मढ़ी सी       ८
लगती दुनिया    ८
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मेहनत के मुँह   ८
(यहाँ मेहनत का उच्चारण मिहनत लिया गया है।  ऐसा करना ठीक नहीं है)
बँधा मुसीका     ८
घुटता जाता      ८
गला खुशी का    ८
ताड़ रहा है         ८
सब कुछ गुनिया ८
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फैला भीतर       ८
तक सन्नाटा     ८
अँधियारों ने       ८
सब कुछ पाटा    ८
कहाँ-कहाँ से       ८
टूटी पुनिया        ८
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doha

दोहा दुनिया
रवि शशि जैसा लग रहा, उषा गुलाबी पीत
धुआँ-धुआँ चहुँ ओर है, गीत गुँजाती शीत

miktak

कला संगम:
मुक्तक
नृत्य-गायन वन्दना है, प्रार्थना है, अर्चना है 
मत इसे तुम बेचना परमात्म की यह साधना है 
मर्त्य को क्यों करो अर्पित, ईश को अर्पित रहे यह 
राग है, वैराग है, अनुराग कि शुभ कामना है 
***
आस का विश्वास का हम मिल नया सूरज उगाएँ
दूरियों को दूर कर दें, हाथ हाथों से मिलाएँ
ताल के संग झूम लें हम, नाद प्राणों में बसाएँ-
पूर्ण हों हम द्वैत को कर दूर, हिल-मिल नाच-गाएँ
***
नाद-ताल में, ताल नाद में, रास लास में, लास रास में
भाव-भूमि पर, भूमि भाव पर, हास पीर में, पीर हास में
बिंदु सिंधु मिल रेखा वर्तुल, प्रीत-रीत मिल, मीत! गीत बन
खिल महकेंगे, महक खिलेंगे, नव प्रभात में, नव उजास में
***
चंचल कान्हा, चपल राधिका, नाद-ताल सम, नाच नचे
गंग-जमुन सम लहर-लहर रसलीन, न सुध-बुध द्वैत तजे
ब्रम्ह-जीव सम, हाँ-ना, ना हाँ, देखें सुर-नर वेणु बजे
नूपुर पग, पग-नूपुर, छूम छन, वर अद्वैत न तनिक लजे
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३-१-२०१७
[श्री वीरेंद्र सिद्धराज के नृत्य पर प्रतिक्रिया]