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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मुक्तिका: प्रश्न वन संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
प्रश्न वन

संजीव 'सलिल'
*
प्रश्न वन में रह रहे हैं आजकल.
उत्तरों बिन दह रहे हैं आजकल..

शिकायत-शिकवा किसी से क्या करें?
जो अचल थे बह रहे आजकल..

सत्य का वध नुक्कड़ों-संसद में कर.
अवध खुद को कह रहे हैं आजकल..

काबिले-तारीफ हिम्मत आपकी.
सच को चुप रह सह रहे हैं आजकल..

लाये खाली हाथ भरकर जायेंगे.
जर-जमीनें गह रहे हैं आजकल..

ज्यों की त्यों चादर रहेगी किस तरह?
थान अनगिन तह रहे हैं आजकल..

ढाई आखर पढ़ न पाये जो 'सलिल'
सियासत में शह रहे हैं आजकल..

'सलिल' सदियों में बनाये मूल्य जो
बिखर-पल में ढह रहे हैं आजकल..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

कविता: जीवन अँगना को महकाया संजीव 'सलिल'

कविता:

जीवन अँगना को महकाया

संजीव 'सलिल'
*
*
जीवन अँगना को महकाया
श्वास-बेल पर खिली कली की
स्नेह-सुरभि ने.
कली हँसी तो फ़ैली खुशबू
स्वर्ग हुआ घर.
कली बने नन्हीं सी गुडिया.
ममता, वात्सल्य की पुडिया.
शुभ्र-नर्म गोला कपास का,
किरण पुंज सोनल उजास का.
उगे कली के हाथ-पैर फिर
उठी, बैठ, गिर, खड़ी हुई वह.
ठुमक-ठुमक छन-छननन-छनछन
अँगना बजी पैंजन प्यारी
दादी-नानी थीं बलिहारी.
*
कली उड़ी फुर्र... बनकर बुलबुल
पा मयूर-पंख हँस-झूमी.
कोमल पद, संकल्प ध्रुव सदृश
नील-गगन को देख मचलती
आभा नभ को नाप रही थी.
नवल पंखुडियाँ ऊगीं खाकी
मुद्रा-छवि थी अब की बाँकी.
थाम हाथ में बड़ी रायफल
कली निशाना साध रही थी.
छननन घुँघरू, धाँय निशाना
ता-ता-थैया, दायें-बायें
लास-हास, संकल्प-शौर्य भी
कली लिख रही नयी कहानी
बहे नर्मदा में ज्यों पानी.
बाधाओं की श्याम शिलाएँ
संगमरमरी शिला सफलता
कोशिश धुंआधार की धरा
संकल्पों का सुदृढ़ किनारा.
*
कली न रुकती,
कली न झुकती,
कली न थकती,
कली न चुकती.
गुप-चुप, गुप-चुप बहती जाती.
नित नव मंजिल गहती जाती.
कली हँसी पुष्पायी आशा.
सफल साधना, फलित प्रार्थना.
विनत वन्दना, अथक अर्चना.
नव निहारिका, तरुण तारिका.
कली नापती नील गगन को.
व्यस्त अनवरत लक्ष्य-चयन में.
माली-मलिन मौन मनायें
कोमल पग में चुभें न काँटें.
दैव सफलता उसको बाँटें.
पुष्पित हो, सुषमा जग देखे
अपनी किस्मत वह खुद लेखे.
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टीप : बेटी तुहिना (हनी) का एन.सी.सी. थल सैनिक कैम्प में चयन होने पर रेल-यात्रा के मध्य १४.९.२००६ को हुई कविता.
------- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

बुधवार, 8 सितंबर 2010

श्री अनूप भार्गव को जन्म दिवस पर शुभकामनायें

हिन्दी के शिखर हस्ताक्षर श्री अनूप भार्गव को जन्म दिवस पर अनंत-अशेष शुभकामनायें

 हो अपरूप अनूप प्रिय!, रचिए नित्य अशेष.
हर पल नूतन जन्म हो, हर क्षण रहे विशेष..

शब्द ब्रम्ह आराधकर, भार्गव होता धन्य.
शौर्य-धैर्य पर्याय हो, जग में रहे अनन्य..

'सलिल' साधना सिद्धि दे, हों अक्षर-आदित्य.
हिन्दी जग-वाणी बने, रचें विपुल साहित्य..

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

दोहा सलिला: पावस है त्यौहार संजीव 'सलिल'


दोहा सलिला:                                                                                                    
                                                                                            
पावस है त्यौहार

संजीव 'सलिल'
*
नभ-सागर-मथ गरजतीं, अगणित मेघ तरंग.                                                         
पावस-पायस पी रहे, देव-मनुज इक संग..
*
रहें प्रिया-प्रिय संग तो, है पावस त्यौहार.                                                              मरणान्तक दुःख विरह का, जल लगता अंगार..                                                
*
आवारा बादल करे, जल बूंदों से प्यार.
पवन लट्ठ फटकारता, बनकर थानेदार..
*                                                                                                                
रूप देखकर प्रकृति का, बौराया है मेघ.
संयम तज प्रवहित हुआ, मधुर प्रणय-आवेग..
*
मेघदूत जी छानते, नित सारा आकाश.
डायवोर्स माँगे प्रिय, छिपता यक्ष हताश..   
*  
उफनाये नाले-नदी, कूल तोड़ती धार.
कुल-मर्यादा त्यागती, ज्यों उच्छ्रंखल नार.. 
*
उमड़-घुमड़ बादल घिरे, छेड़ प्रणय-संगीत.
अन-आमंत्रित अतिथि लख, छिपी चाँदनी भीत..
*
जीवन सतत प्रवाह है, कहती है जल-धार.
सिखा रही पाषाण को, पगले! कर ले प्यार..
*
नील गगन, वसुधा हरी, कृष्ण मेघ का रंग.
रंगहीन जल-पवन का, सभी चाहते संग..
*
किशन गगन, राधा धरा, अधरा बिजली वेणु.
'सलिल'-धार शत गोपियाँ, पवन बिरज की रेणु.
*
कजरी, बरखा गा रहीं, झूम-झूम जल-धार.
ढोल-मृदंग बजा रहीं, गाकर पवन मल्हार.
*
युवा पड़ोसन धरा पर, मेघ रहा है रीझ.
रुष्ट दामिनी भामिनी, गरज रही है खीझ.
*
वन प्रांतर झुलसा रहा, दिनकर होकर क्रुद्ध.                                                                    
नेह-नीर सिंचन करे, सलिलद संत प्रबुद्ध..
*
निबल कामिनी दामिनी, अम्बर छेड़े झूम.
हिरनी भी हो शेरनी, उसे नहीं मालूम..
*
पानी रहा न आँख में, देखे आँख तरेर.
पानी-पानी हो गगन, पानी दे बिन देर..                                                                
*
अति हरदम होती बुरी, करती सब कुछ नष्ट.
अति कम हो या अति अधिक, पानी देता कष्ट..
*
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---------- दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम                                                                                                               

आवश्यक सूचना: विदेश जाने से पहले -- विजय कौशल - संजीव 'सलिल

आवश्यक सूचना:   विदेश जाने से पहले    -- विजय कौशल - संजीव 'सलिल' 
 प्रिय मित्रों! 
Hi all,
-- मुझे यह ई-मेल मिली, सोचा आप तक पहुँचा दूँ. मुझे नहीं मालूम यह सही है या नहीं, न ही मुझे मध्य-पूर्व के कानूनों की जानकारी है- फिर भी सावधानी बरतने में कोई हानि नहीं है. आप इसे अपने मित्रों को भेज सकते हैं.
Recd this email. Thought I'll pass it on. I don't know whether its true and I'm not sure about the laws of the Middle East- no harm in being careful though. You may like to pass it on to your friends.

Dear Friends,
प्रिय मित्रों,
-- मुझे अपने एक एक मित्र से एक बहुत भयानक प्रकरण की जानकारी हुई है. उसका एक मित्र दुबई होकर यू.के.जा रहा था. दुर्योगवश वह अपने साथ भारत में कढ़ी और मिठाइयों में सामान्यतः प्रयुक्त एक मसाले खसखस का एक पैकेट लिये था. खसखस को 'पॉपी' भी कहा जाता है तथा इससे अफीम की तरह के नशीले पदार्थ अंकुरित किये जा सकते हैं. 
I  came to know of a case from a friend of mine which is very scary. One of his friends was traveling to UK via Dubai . Unfortunately  he was carrying a packet of Khas Khas which is a commonly used spice in some Indian curries and sweets. Khas Khas is also known as poppy seed which can be sprouted to grow narcotics (afeem etc.)..
-- यह भोला व्यक्ति नहीं जानता था कि यू.ए.ई. और अन्य गल्फ देशों के बदले कानूनों के तहत खास्कह्स ले जाने पर न्यूनतम २० वर्ष की कैद और अंततः मौत तक का प्रावधान है.
This innocent person did not know that recently the laws in UAE and other Gulf countries have been revised and carrying Khas Khas is punishable with   minimum 20 years of imprisonment or even worse with death penalty.
अब वह गत दो सप्ताह से दुबई की जेल में कैद है. उसके मित्र उसकी रिहाई हेतु कड़ी कोशिश कर रहे हैं किन्तु यह एक गंभीर प्रकरण है. वकील अदालत में उसकी निर्दोषिता सिद्ध करने के लिये एक लाख़ मुद्राओं की फीस माँग रहे हैं. 

Currently, the person is in a jail in Dubai for the last two weeks. His friends are frantically trying hard for his release but are finding that this has become a very very serious case. Lawyers are asking huge fees amounting to AED 100,000 even to appear in the court to plead for his innocence.
-- कृपया, भारत में अपने सभी परिचितों को यह मेल भेजें, उन्हें इसकी गंभीरता का अनुमान हो ताकि वे गल्फ देशों में जाते समय अनजाने भी ऐसी किसी वस्तु की छोटी से छोटी मात्रा भी साथ न रखें.
Please forward this email to all you know specially in India . They should know the seriousness of this matter and should never ever carry even minutest quantities of the following items when traveling to Gulf countries:
१. खसखस कच्चा, भुना या पका हुआ.
1. Khas Khas whether raw, roasted or cooked.
२. पान 

2. Paan
३. सुपारी, उससे बने उत्पाद, पान पराग आदि. 

3. Beetle nut (supari and its products, e.g. Paan Parag etc.)
इन्हें  रखने पर बहुत भारी जुर्माने हैं, यहाँ तक कि व्यक्ति की जान पर भी बन सकती है.
The penalties are very severe and it could destroy the life of an innocent person.
मेरा अनुरोध है कि इसे अपने सभी परिचितों को भेज कर सजग करें.
I appeal you to create the awareness by forwarding this email to all you know.


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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट .कॉम  

सोमवार, 6 सितंबर 2010

इतिहास के पृष्ठ से अनजाना सच: हमारी भारतीय सेना ग्रुप कमांडर विजय कौशल

इतिहास के पृष्ठ से अनजाना सच: 
हमारी भारतीय सेना 
ग्रुप कमांडर विजय कौशल 
*







*
 भारत की स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्र भारत के प्रथम सेनाध्यक्ष के चयन हेतु स्व. जवाहर लाला नेहरु की अध्यक्षता में आयोजित एक बैठक में नेता तथा अधिकारी चर्चा कर रहे थे कि यह जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए.

After getting freedom, a meeting was organized to select the first General of Indian Army. Jawahar Lal Nehru was heading that meeting. Leaders and Army officers were discussing to whom this responsibility should be given.
 
इसी बीच नेहरु बोले: 'मैं सोचता हूँ कि हमें किसी ब्रिटिश अधिकारी को भारतीय सेना का जनरल बनाना चाहिए क्योंकि हमाँरे पास इस जिम्मेदारी को वहन करने का अनुभव नहीं है.

In between the discussion Nehru said, "I think we should appoint a British officer as a General of Indian Army as we don't have enough experience to lead the same.

प्रत्येक ने नेहरु का समर्थन किया क्योंकि प्रधान मंत्री कुछ सुझा रहे थे. वे उनसे असहमत कैसे हो सकते थे?

"Everybody supported Nehru because if the PM was suggesting something, how can they not agree?

किन्तु एक सैन्य अधिकारी ने कहा: 'मेरे पास विचार के लिये एक बिन्दु है.' 

But one of the army officers abruptly said, "I have a point, sir."

नेहरु बोले: 'हाँ, तुम बोलने के लिये स्वतंत्र हो.'

Nehru said, "Yes, gentleman. You are free to speak."

वह बोला: 'हाँ, महाशय, हमारे पास एक राष्ट्र का नेतृत्व करने का भी अनुभव नहीं है तो क्या हमें एक ब्रितिशर  को भारत का प्रथम प्रधान मंत्री नियुक्त नहीं करना चाहिए?'

He said ,"You see, sir, we don't have enough experience to lead a nation too, so shouldn't we appoint a British person as first PM of India?"

अचानक सभागार में निस्तब्धता छा गयी.

The meeting hall  suddenly  went  quiet.

तब नेहरु ने पूछा:'क्या तुम भारतीय सेना का प्रथम जनरल बनने के लिये तैयार हो?'

Then, Nehru said, "Are you ready to be the first General of Indian Army ?"

उसे प्रस्ताव स्वीकार करने का स्वर्णिम अवसर मिल पर उसने प्रस्ताव ठुकराते हुए कहा: 'महोदय, हमारे पास एक बहुत प्रतिभावान सैन्य अधिकारी मेरे वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल करिअप्पा हैं जो हममें सर्वाधिक योग्य हैं..

He got a golden chance to accept  the  offer  but he refused  the same  and said, "Sir, we have a very talented army officer, my senior, Lt. Gen. Cariappa, who is the most deserving among us."

प्रधान मंत्री के सामने अपनी आवाज़ उठानेवाले अधिकारी थे भारतीय सेना के प्रथम ले.ज.नाथू सिंह राठौर.

The army officer who raised his voice against the PM was Lt. General
Nathu Singh Rathore, the 1st  Lt. General of the Indian Army.

भारतीय सेना ऐसी ही व्यावसायिकता और चरित्र से संपन्न है.

That  is the professionalism  and  character  the  the military is made of .................

कौन कह सकता है कि सूर्य अस्त हो गया है? वह अस्थायी रूप से क्षितिज के परे चला गया है.

Who says the sun is set? It has just temporarily gone beyond my horizon!"
 
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नव गीत: क्या?, कैसा है?... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

क्या?, कैसा है?...

संजीव 'सलिल'
*
*क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
पोखर सूखे,
पानी प्यासा.
देती पुलिस
चोर को झाँसा.
सड़ता-फिंकता
अन्न देखकर
खेत, कृषक,
खलिहान रुआँसा.
है गरीब की
किस्मत, बेबस
भूखा मरना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
चूहा खोजे
मिले न दाना.
सूखी चमड़ी
तन पर बाना.
कहता: 'भूख
नहीं बीमारी'.
अफसर-मंत्री
सेठ मुटाना.
न्यायालय भी
छलिया लगता.
माला जपना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*
काटे जंगल,
भू की बंजर.
पर्वत खोदे,
पूरे सरवर.
नदियों में भी
शेष न पानी.
न्यौता मरुथल
हाथ रहे मल.
जो जैसा है
जब लिखता हूँ
देख-समझना.
क्या?, कैसा है?
कम लिखता हूँ,
अधिक समझना...
*****************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.कॉम



मैथिली हाइकु : "शिष्य देखल " कुसुम ठाकुर

मैथिली हाइकु : 

 
"शिष्य देखल "

कुसुम  ठाकुर 
*


*
विद्वान छथि
ओ शिष्य कहाबथि
छथि विनम्र
*
गुरु हुनक
सौभाग्य हमर ई
ओ भेंटलथि
*
इच्छा हुनक
बनल छी माध्यम
तरि जायब
*
भरोस छैन्ह
छी हमर प्रयास
परिणाम की ?
*
भाषा प्रेमक
नहि उदाहरण
छथि व्यक्तित्व
*
छैन्ह उद्गार
देखल उपासक
नहि उपमा
*
कहथि नहि
विवेकपूर्ण छथि
उत्तम लोक
*
सामर्थ्य छैन्ह
प्रोत्साहन अद्भुत
हुलसगर
*
प्रयास करि
उत्तम फल भेंटs
तs कोन हानि
*
सेवा करथि
गंगाक उपासक
छथि सलिल
*

रविवार, 5 सितंबर 2010

मैथिली की पाठशाला २ : कुसुम ठाकुर


मैथिली की पाठशाला २        

इस स्तम्भ में हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी  में एक साथ रचनाकर्म करनेवाली कुसुम ठाकुर जी मैथिली सिखाएँगी. सभी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं. 

कुसुम ठाकुर.



कुसुम : दूसरा  पाठ.

सलिल : जी, प्रारंभ  करिए .
कुसुम : अहाँक  गाम  कतय  अछि   .
          आपका गाँव कहाँ है ? 
          हम जबलपुर के रहयवाला छी .
          मैं जबलपुर का रहनेवाला हूँ .
सलिल : अच्छा.
हम उस देस के रहयवाला छी  जहाँ  गंगा  बहत  छी.
कुसुम : ठीक  है.बताती  हूँ.
           हम ओहि देश केर रहय वाला छी, जाहि देश में गंगा मैया बहैत छथि .

आजका पाठ  इतना  ही,  कल  परीक्षा  लूँगी दो  दिनों  के  पाठ  की.
**********

मुक्तिका: किस चरण का अनुकरण संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

किस चरण का अनुकरण


संजीव 'सलिल'
*

किस चरण का अनुकरण जन-जन करे.
हर चरण के आचरण हैं जब बुरे..



गले मिलते मुस्कुराते मीत कह
पीठ पीछे हाथ में थामे छुरे..


हैं बुरे, बनते भले जो आजकल.
हैं भले जो आजकल लगते बुरे..


मायके में गुजर कब किसकी हुई?
खोज प्रियतम को चलो अब सासरे..


सच कहो तो मानते सब गैर हैं.
कहें मनचाही वही हैं खास रे..


बढ़ी है सुविधाएँ, वैभव, कीर्ति, धन.
पर आधार से गुम गया है हास रे..


साँस तेरा साथ चाहे छोड़ दे.
'सलिल' जीते जी न तजना आस रे..


**************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो ---दीपिका कुलश्रेष्ठ

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो 

दीपिका कुलश्रेष्ठ
Journalist, bhaskar.com


ताज़ा घोषणा के अनुसार अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया है.
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या निम्नानुसार है :
अंग्रेजी- 10,00,000       चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000         स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000             जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000             फ्रेंच- 100,000
                                                     (स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)

                 हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं।
                 कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा मात्र है।
                इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द होने का कारण यह है कि 
अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं। हिंदी में ऐसा क्यों नहीं किया जाता। जब 'जय हो' अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएँ पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है  ।

क्या है आपकी राय ?
क्या हिंदी में नए शब्दों को जगह दी जानी चाहिए?
अपनी राय कमेंट्स बॉक्स में जाकर दें! 
******************************* 
                                                                                    आभार : हिंदुस्तान का दर्द.  

मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

चुप रहो...

संजीव 'सलिल'
*

महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.
गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..

टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.
बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..

टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.
सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..

सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.
उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..

बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.
खड़कसिंह ले जाये चोरी अगर घोड़ी चुप रहो..

याद बचपन की मुक़द्दस पाल लहनासिंह बनो.
हो न मैली साफ़ चादर 'सलिल' रहे कोरी चुप रहो..

चुन रही सरकार जो सेवक है जिसका तंत्र सब.
'सलिल' जनता का न कोई धनी-धोरी चुप रहो..

************************************
-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

कविता : जिज्ञासा -- संजीव'सलिल'

कविता :

जिज्ञासा

संजीव'सलिल'
*

क्यों खोते?,
क्या खोते?,
औ' कब?
कौन किसे बतलाये?
मन की मात्र यही जिज्ञासा
हम क्या थे संग लाये?
आए खाली हाथ
गँवाने को कुछ कभी नहीं था.
पाने को थी सकल सृष्टि
हम ही कुछ पचा न पाये.
ऋषि-मुनि, वेद-पुराण,
हमें सच बता-बताकर हारे
कोई न अपना, नहीं पराया
हम ही समझ न पाये.
माया में भरमाये हैं हम
वहम अहम् का पाले.
इसीलिए तो होते हैं
सारे गड़बड़ घोटाले.
जाना खाली हाथ सभी को
सभी जानते हैं सच.
धन, भू, पद, यश चाहें नित नव
कौन सका इनसे बच?
जब, जो, जैसा जहाँ घटे
हम साक्ष्य भाव से देखें.
कर्ता कभी न खुद को मानें
प्रभु को कर्ता लेखें.
हम हैं मात्र निमित्त, वही है
रचने-करनेवाला.
जिससे जो चाहे करवा ले
कोई न बचनेवाला.
ठकुरसुहाती उसे न भाती
लोभ, न लालच घेरे.
भोग लगा खाते हम खुद ही
मन से उसे न टेरें.
कंकर-कंकर में वह है तो
हम किससे टकराते?
किसके दोष दिखाते हरदम?
किससे हैं भय खाते?
द्वैत मिटा, अद्वैत वर सकें
तभी मिल सके दृष्टि.
तिनका-तिनका अपना लागे
अपनी ही सब सृष्टि.

*****************

मैथिली की पाठशाला: कुसुम ठाकुर

मैथिली की पाठशाला १      

इस स्तम्भ में हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी  में एक साथ रचनाकर्म करनेवाली कुसुम ठाकुर जी मैथिली सिखाएँगी. सभी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं. 

कुसुम ठाकुर.

पहला वाक्य .....अहाँ केर नाम की अछि ?   = आपका  नाम  क्या है?


कुसुम : ता  आय  सा  हम  सब  मैथिलि  में  गप्प  करब.
सलिल : गप्प  में  मजा  मिलब .
मैथिली  सीख  के  विद्यापति  को  पढ़ब .
कुसुम : गप्प  निक  लगत  आ  आनादित  करत.
सलिल : गप्प  करब  से  गप्पी  तो  न  कहाब ?
कुसुम : मैथिलि  सीखी  का  विद्यापति  के  रचना  पढ़ब.
सलिल : कहाँ  पाब ?
कुसुम : हम  अहांके  पाठ  देब विद्यापतिक  रचना.
सलिल : अवश्य . कृपा करब.
कुसुम : अवश्य  ....मुदा  कृपा  नहीं  इ  हमर  सौभाग्य  होयत.

सलिल  : ई  आपका  बड़प्पन  होब.
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शनिवार, 4 सितंबर 2010

मुक्तिका: उज्जवल भविष्य संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



उज्जवल भविष्य



संजीव 'सलिल'

*

उज्जवल भविष्य सामने अँधियार नहीं है.

कोशिश का नतीजा है ये उपहार नहीं है..



कोशिश की कशिश राह के रोड़ों को हटाती.

पग चूम ले मंजिल तो कुछ उपकार नहीं है..



गर ठान लें जमीन पे ले आयें आसमान.

ये सच है इसमें तनिक अहंकार नहीं है..



जम्हूरियत में खुद पे खुद सख्ती न करी तो

मिट जायेंगे और कुछ उपचार नहीं है..



मेहनतो-ईमां का ताका चलता हो जहाँ.

दुनिया में कहीं ऐसा तो बाज़ार नहीं है..



इंसान भी, शैतां भी, रब भी हैं हमीं यारब.

वर्ना तो हम खिलौने हैं कुम्हार नहीं हैं..



दिल मिल गए तो जात-धर्म कौन पूछता?

दिल ना मिला तो 'सलिल' प्यार प्यार नहीं है..



जगे हुए ज़मीर का हर आदमी 'सलिल'

महका गुले-गुलाब जिसमें खार नहीं है..



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divyanarmada.blogspot.com

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

जन्माष्टमी पर कुण्डलियाँ: बजे बाँसुरी कृष्ण की: --संजीव 'सलिल'

जन्माष्टमी पर कुण्डलियाँ:

बजे बाँसुरी कृष्ण की

 संजीव 'सलिल'
*















*
बजे बाँसुरी कृष्ण की, हर तन-मन की पीर.
'सलिल' आपको कर सके, सबसे बड़ा अमीर..
सबसे बड़ा अमीर, फकीरी मन को भाए.
पिज्जा-आइसक्रीम फेंक, दधि-माखन खाए.
पद-धन का मद मिटे, न पनपे वृत्ति आसुरी.
'सलिल' जगत में पुनः कृष्ण की बजे बाँसुरी..
*
बजे बाँसुरी कृष्ण की,  कटें न जंगल-वृक्ष.
गोवर्धन गिरि ना खुदे, बचे न कंस सुदक्ष..
बचे न कंस सुदक्ष, पूतनाएँ दण्डित हों.
कौरव सत्तासीन न, महिमा से मंडित हों.
कहे 'सलिल' कविराय, न यमुना पाये त्रास री.
लहर-लहर लहराए, कृष्ण की बजे बाँसुरी..
*
बजे बाँसुरी कृष्ण की, यमुना-तट हो रास.
गोप-गोपियों के मिटें, पल में सारे त्रास.
पल में सारे त्रास, संगठित होकर जूझें.
कौन पहेली जिसका हल वे संग न बूझें..
कहे 'सलिल' कवि, तजें न मुश्किल में प्रयास री.
मंजिल चूमे कदम, कृष्ण की बजे बाँसुरी..
*
बजी बाँसुरी कृष्ण की, दुर्योधन हैरान.
कैसे यह सच-झूठ को लेता है पहचान?
लेता है पहचान, कौन दोषी-निर्दोषी?
लालच सके न व्याप, वृत्ति है चिर संतोषी..
राजमहल तज विदुर-कुटी में खाए शाक री.
द्रुपदसुता जी गयी, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
*
बजी बाँसुरी कृष्ण की, हुए पितामह मौन.
तोड़ शपथ ले शस्त्र यह दौड़ा आता कौन?
दौड़ा आता कौन, भक्त का बन संरक्षक.
हर विसंगति हर बुराई का है यह भक्षक.
साध कनिष्ठा घुमा रहा है तीव्र चाक री.
समयचक्र थम गया, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
*
बजी बाँसुरी कृष्ण की,आशाओं को सींच.
पांडव वंशज सुरक्षित, आया दुनिया बीच..
आया दुनिया बीच, अबोले कृष्ण रहे कह.
चलो समेटो जाल, लिखेगा नई कथा यह..
सुरा-मोह ने किया यादवी कुल-विनाश री.
तीर चरण में लगा, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
*
बजी बाँसुरी कृष्ण की, कुल-वधु लूटें भील.
निबल धनञ्जय रो रहे, हँसते कौए-चील..
हँसते कौए-चील, गया है हार धनञ्जय.
कहीं न दिखते विदुर, कर्ण, धृतराष्ट्र, न संजय..
हिमगिरि जाते पथिक काल भी भरे आह री.
प्रगट हुआ कलिकाल, कृष्ण की बजी बाँसुरी..
*
बजी बाँसुरी कृष्ण की, सूरदास बेचैन.
मीरा ने पाया नहीं, पल भर भी सुख-चैन..
पल भर भी सुख-चैन न जब तक उसको देखें.
आज न ऐसा कोई कथा हम जिसकी लेखें.
रुक्मी कौरव कंस कर्ण भी हैं उदास री.
कौन सुने कब-कहाँ कृष्ण की बजी बाँसुरी..
*
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

बाल गीत: लंगडी खेलें..... आचार्य संजीव 'सलिल'

बाल गीत:             लंगडी खेलें.....          आचार्य संजीव 'सलिल' 

**                                                                                              

आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************

बुधवार, 1 सितंबर 2010

लघुकथा: मोहनभोग संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा: मोहनभोग ---संजीव वर्मा 'सलिल'


*















*
'हे प्रभु! क्षमा करना, आज मैं आपके लिये भोग नहीं ला पाया. मजबूरी में खाली हाथों पूजा करना पड़ रही है.' किसी भक्त का कातर स्वर सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा.

अरे! ये तो वही सज्जन हैं जिन्होंने सवेरे मेरे साथ ही मिष्ठान्न भंडार से भोग के लिये मिठाई ली थी फिर...? मुझसे न रहा गया, पूछ बैठा: ''भाई जी! आज सवेरे हमने साथ-साथ ही भगवान के भोग के लिये मिष्ठान्न लिया था न? फिर आप खाली हाथ कैसे? वह मिठाई क्या हुई?''

'क्या बताऊँ?, आपके बाद मिष्ठान्न के पैसे देकर मंदिर की ओर आ ही रहा था कि देखा किरणे की एक दूकान में भीड़ लगी है और लोग एक छोटे से बच्चे को बुरी तरह मार रहे हैं. मैंने रुककर कारण पूछा तो पता चला कि वह एक डबलरोटी चुराकर भाग रहा था. लोगों को रोककर बच्चे को चुप किया और प्यार से पूछा तो उसने कहा कि उसने सच ही डबलरोटी बिना पैसे दिये ले ली थी. . रुपये-पैसों को उसने हाथ नहीं लगाया क्योंकि वह चोर नहीं है...मजबूरी में डबल रोटी इसलिए लेना पड़ा कि मजदूर पिता तीन दिन से बुखार के कारण काम पर नहीं जा सके...घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा... आज माँ बीमार पिता और छोटी बहन को घर में छोड़कर काम पर गयी कि शाम को खाने के लिये कुछ ला सके....छोटी बहिन रो-रोकर जान दिये दे रही थी... सबसे मदद की गुहार की.. किसी ने कोई सहायता नहीं की तो मजबूरी में डबलरोटी...'  और वह फिर रोने लगा...

'मैं सारी स्थिति समझ गया... एक निर्धन असहाय भूख के मारे की मदद न कर सकनेवाले ईमानदारी के ठेकेदार बनकर दंड दे रहे थे. मैंने दुकानदार को पैसे देकर बच्चे को डबलरोटी खरीदवाई और वह मिठाई का डिब्बा भी उसे ही देकर घर भेज दिया. मंदिर बंद होने का समय होने के कारण दुबारा भोग के लिये मिष्ठान्न नहीं ले सका और आप-धापी में सीधे मंदिर आ गया, इस कारण मोहन को भोग नहीं लगा पा रहा.'

''नहीं मेरे भाई!, हम सब तो मोहन की पाषाण प्रतिमा को ही पूजते रह गए... वास्तव में मोहन के जीवंत विग्रह को तो आपने ही भोग लगाया है.'' मेरे मुँह से निकला...प्रभु की मूर्ति पर दृष्टि पडी तो देखा वे मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं.

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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

श्री मदभगवदगीता : भावानुवाद मृदुल कीर्ति जी

श्री मदभगवदगीता : भावानुवाद
मृदुल कीर्ति जी, ऑस्ट्रेलिया.

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मूल:
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति,
तदहं भक्त्युप हृतंश्रनामी        प्रयतात्मनः.II गीता ९/२६

भावानुवाद:
प्रभु जी तोरे मंदिर कैसे आऊँ ?
दीन हीन हर भांति विहीना,  क्या नैवेद्य चढाऊँ?
गीता कथित तुम्हारे वचना,  घनी शक्ति अब पाऊँ.
भाव पुष्प, सुमिरन की माला, असुंवन नीर चढाऊँ .
फल के रूप करम फल भगवन , बस इतना कर पाऊँ .
पत्र रूप में तुलसी दल को, कृष्णा भोग लगाऊँ.

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दोहा दुनिया : छाया से वार्ता संजीव 'सलिल'

दोहा दुनिया :

छाया से वार्ता

संजीव 'सलिल'
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अचल मचल अविचल विचल, सचल रखे चल साथ.
'सलिल' चलाचल नित सतत, जोड़ हाथ नत माथ..
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प्रतिभा से छाया हुई, गुपचुप एकाकार.
देख न पाये इसलिए, छाया का आकार..
*
छाया कभी डरी नहीं, तम उसका विस्तार.
छाया बिन कैसे 'सलिल', तम का हो विस्तार..
*
कर प्रकाश का समादर, सिमट रहे हो मौन.
सन्नाटे का स्वर मुखर, सुना नहीं- है कौन?.
*
छाया की माया प्रबल, बली हुए भयभीत.
माया की छाया जहाँ, होती नीत-अनीत..
*
मायापति इंगित करें, माया दे मति फेर.
सुमति-कुमति सम्मति करें, यह कैसा अंधेर?.
*
अंतरिक्ष के मंच पर, कठपुतली है सृष्टि.
छाया-माया ही ध्खीं, गयी जहाँ तक दृष्टि..
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दोनों रवि-राकेश हैं, छायापति मतिमान.
एक हुआ रजनीश तो, दूजा है दिनमान..
*
मायापति की गा सका, पूरी महिमा कौन?
जग में भरमाया फिरे, माया-मारा मौन..
*
छाया छाए तो मिले, प्रखर धूप से मुक्ति.
आए लाए उजाला, जाए जगा अनुरक्ति..
*
छाया कहती है करो, सकल काम निष्काम.
जब न रहे छाया करो, तब जी भर विश्राम..
*
छाया के रहते रहे, हर आराम हराम.
छाया बिन श्री राम भी, करें 'सलिल' आराम..
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परछाईं-साया कहो, या शैडो दो नाम.
'सलिल' सत्य है एक यह, छाया रही अनाम..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम