कुल पेज दृश्य

रविवार, 5 मई 2024

भारत, संविधान



विमर्श : भारत का संविधान 
*
संविधान निर्माता कौन?
आजकल भारत की हर उपलब्धि का श्रेय सरकार का प्रमुख होने के नाते मोदी जी को दिया जाता है । उसे तरह संविधान सभा का अध्यक्ष होने के नाते संविधान निर्माता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को कहा जाना चाहिए।
माँग 
इस समिति का मुख्य उद्देश्य भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना था जो देश को एक प्रभुत्व का दर्जा देता है। १९३४ में एम.एन.रॉय जो एक भारतीय मार्क्सवादी क्रांतिकारी, राजनीतिक सिद्धांतकार और दार्शनिक थे, ने संविधान सभा का विचार दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस विचार को परिष्कृत किया और १९३५ में इसे आधिकारिक माँग बना दिया जिसे अंग्रेजों ने अस्वीकार कर दिया था। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने १५ नवंबर १०३९ को संविधान सभा के गठन के लिए अपनी आवाज उठाई। इसे अंग्रेजों ने अगस्त १९४० में स्वीकार कर लिया।
गठन 
१९४६ में ब्रिटिश राज से भारतीय राजनीतिक नेतृत्व को सत्ता हस्तांतरित करने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन भारत आया। इस मिशन के तहत पहली बार संविधान सभा के चुनाव हुए। संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय सभाओं द्वारा किया जाता था। चुनाव एकल, हस्तांतरणीय-वोट प्रणाली के रूप में थे। संविधान सभा की अंतिम संरचना इस प्रकार है:

* २९२ सदस्यों ने प्रांतों के प्रतिनिधियों के रूप में कार्य किया।

* ९३ सदस्य रियासतों का प्रतिनिधित्व करते थे।

* ४ सदस्य अजमेर-मेवाड़, दिल्ली, कूर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान प्रांतों के मुख्य आयुक्त के रूप में मनोनीत थे।

इस प्रकार, सभा की कुल सदस्य संख्या ३८९ थी। इस चुनाव के बाद संविधान की योजना सुचारु रूप से नहीं चल पाई क्योंकि मुस्लिम लीग ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया। हिंदू-मुस्लिम के बीच दंगे शुरू हो गए और मुस्लिम लीग ने भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए अपनी संविधान सभा की माँग की।
पुनर्गठन 
१५ अगस्त १९४७ कोभारत-पाकिस्तान विभाजन तथा भारत की आजादी के बाद ९ दिसंबर १९४६ को संविधान सभा की पहली बैठक १४ अगस्त १९४७ को एक संप्रभु निकाय के रूप में हुई। विभाजन के कारण संविधान सभा के लिए नए चुनाव हुए और सदस्यों की संख्या घटकर २९९ रह गई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान निर्माण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए संविधान सभा ने कई समितियाँ बनाईं। प्रारूप समिति ने संविधान के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई। इस समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराओ अंबेडकर तथा ६ सदस्य एन. माधव राव, टी.टी. कृष्णामाचारी, डॉ. कन्हैया लाल माणिकलाल मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, एन. गोपालस्वामी अयंगर तथा अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर थे।
तैयारी 
भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार बी. एन. राव ने पश्चिमी लोकतंत्रों का दौरा कर विभिन्न संविधानों का अध्ययन किया तथा अन्य देशों द्वारा संविधान-मसौदा बनाने की प्रक्रिया जानी। बी. एन. राव ने संविधान के मूल सिद्धांतों को समझ कर नोट्स बनाकर प्रारूप समिति को भेज जिससे उन्हें एक प्रभावी संविधान का मसौदा तैयार करने में मदद मिली। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने लगभग ६० देशों के संविधान का भी अध्ययन किया।
कारक 
कई सदस्यों ने यूरोपीय-अमेरिकी संवैधानिक ढाँचे को प्राथमिकता दी। अन्य सदस्य भारत की अपनी स्वदेशी परंपराओं को ध्यान में रखते हुए एक संविधान का मसौदा तैयार करना चाहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण खाद्यान्न की भारी कमी और देश की आर्थिक एवं सामाजिक वृद्धि में गिरावट आदि ने समिति को राष्ट्रीय सरकार के नियंत्रण के बारे में सोचने पर मजबूर किया। विभाजन, रक्तपात आदि का कारण प्रांतीय कानून कमजोर होना था। तेलंगाना में कम्युनिस्ट विद्रोह ने एक मजबूत केंद्र सरकार की आवश्यकता बताई बाहरी रक्षा और आंतरिक सुरक्षा का प्रबंधन कर सके। राजनीतिक व्यवस्था की संरचना यूरोपीय और अमेरिकी मॉडल से प्रभावित थी। सभा द्वारा लिए गए निर्णय आर्थिक विकास, विभाजन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा, औद्योगिक उत्पादकता, कृषि की वृद्धि और शरणार्थियों के बड़े पैमाने पर प्रवाह जैसी कई चिंताओं से प्रभावित थे।
विशेषता 
नागरिकों के मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का कार्यान्वयन भी संविधान का हिस्सा बन गया। कुल मिलाकर छह मौलिक अधिकार तय किए गए: समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार। संपत्ति, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार। निदेशक सिद्धांतों ने यह सुनिश्चित किया कि देश सामाजिक दबाव से मुक्त होगा। सभा ने समुदायों के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया। उपरोक्त उल्लिखित बातों के अलावा संविधान बनाते समय सभा बहुत सारी गरमागरम चर्चाओं और बहसों से गुज़री थी और प्रत्येक सूक्ष्म विवरण पर ध्यान दिया था।
उलेखनीय 
संविधान का मसौदा तैयार करने में तीन साल लगे, जिसमें १६५ दिनों की अवधि में ग्यारह सत्र आयोजित किए गए तथा तैयार किए गए संविधान को प्रस्तावना, ३९५ अनुच्छेद और ८ अनुसूचियों के साथ २६ जनवरी १९५० को लागू किया गया। संविधान संशोधनाओं के कारण वर्तमान में, संविधान में ४७० अनुच्छेद हैं जिन्हें २५ भागों, १२ अनुसूचियों और ५ परिशिष्टों में बाँटा गया है।

* भारतीय संविधान के हिंदी संस्करण का सुलेखन “वसंत कृष्णन वैद्य” द्वारा किया गया था, जिसे नंद लाल बोस द्वारा सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था। संविधान की अंग्रेजी प्रति को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने हाथों से कैलीग्राफी में इतनी सावधानी पूर्वक लिखा और सजाया था कि एक भी गलती नहीं की थी। संविधान लिखने में ३०३ निब तथा ३५४ बोतल स्याही लगी थी। संविधान की प्रस्तावना पर चित्र सज्जा जबलपुर निवासी ब्योहार राम मनोहर सिन्हा द्वारा की गई थी।

* २४ जनवरी १९५० को भारत के २८४ संसद सदस्यों ने हस्ताक्षर कर संविधान की जिस हस्तलिखित मूल प्रति को अपनाया था, वह नेशनल म्यूजियम नई दिल्ली में सुरक्षित है। ४४८ लेखों और १२ अनुसूचियों युक्त भारत का संविधान, दुनिया के सबसे लंबे संविधानों में से एक है। भारत का संविधान सरकार की संसदीय प्रणाली के साथ देश को राज्यों के एक संघ के रूप में परिभाषित करता है। भारत का संविधान २६ नवम्बर १९४९ को संविधान सभा द्वारा पारित कर २६ जनवरी १९५० से प्रभावी हुआ। इस दिन को भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

* भारतीय संविधान अपने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जैसे भाषण और धर्म की स्वतंत्रता आदि। भारत विविधताओं वाला एक देश है, जिसमें कई भाषाओं, धर्मों और जातीय समूहों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। भारतीय संविधान २२ आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देता है।
***

कोई टिप्पणी नहीं: