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मंगलवार, 9 मार्च 2021

अमृत महोत्सव गीत ७

अमृत महोत्सव गीत ७  
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ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर। 
साबरमती नदी की लहरें 
कलकल करतीं सिहर सिहर कर।।
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संकल्पों की नई इबारत, 
दांडी यात्रा ने लिख दी थी। 
सत्याग्रहियों ने सत्ता से, 
जूझ नाक में दम कर दी थी।। 
गोरों की काली सत्ता का, 
मिटा अँधेरा; सूरज ऊगा-
लाल किले से नव युग की 
वाणी गूँजी थी ठहर ठहर कर।   
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
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ट्राम्बे भेल भिलाई भाखरा, 
नव भारत के तीर्थ बने तब।
सर्वोदय से अंत्योदय तक 
करी यात्रा जनगण ने अब।।
जगवाणी हो हिंदी कहती 
जगद्गुरु भारत की महिमा-
इसरो, आई टी, कोरोना में  
क्षमता बिखरी शिखर नगर पर। 
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
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पर न मारता कोई परिन्दा 
सरहद पर सेना सशक्त है। 
उद्यम कौशल युवा शक्ति का 
सचमुच सारा जगत भक्त है।।
योग सिखाते जगद्गुरु हम, 
लिखते कथा-कथानक कल का- 
हैं संजीव न जीव मात्र हम,
प्रतिभा निखरे उभर उभर कर।  
ध्वजा तिरंगी वंदन करती 
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।। 
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