अमृत महोत्सव गीत ७
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ध्वजा तिरंगी वंदन करती
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।
साबरमती नदी की लहरें
कलकल करतीं सिहर सिहर कर।।
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संकल्पों की नई इबारत,
दांडी यात्रा ने लिख दी थी।
सत्याग्रहियों ने सत्ता से,
जूझ नाक में दम कर दी थी।।
गोरों की काली सत्ता का,
मिटा अँधेरा; सूरज ऊगा-
लाल किले से नव युग की
वाणी गूँजी थी ठहर ठहर कर।
ध्वजा तिरंगी वंदन करती
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।।
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ट्राम्बे भेल भिलाई भाखरा,
नव भारत के तीर्थ बने तब।
सर्वोदय से अंत्योदय तक
करी यात्रा जनगण ने अब।।
जगवाणी हो हिंदी कहती
जगद्गुरु भारत की महिमा-
इसरो, आई टी, कोरोना में
क्षमता बिखरी शिखर नगर पर।
ध्वजा तिरंगी वंदन करती
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।।
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पर न मारता कोई परिन्दा
सरहद पर सेना सशक्त है।
उद्यम कौशल युवा शक्ति का
सचमुच सारा जगत भक्त है।।
योग सिखाते जगद्गुरु हम,
लिखते कथा-कथानक कल का-
हैं संजीव न जीव मात्र हम,
प्रतिभा निखरे उभर उभर कर।
ध्वजा तिरंगी वंदन करती
स्वतंत्रता का फहर फहर कर।।
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