ॐ
यह वेदोक्त रात्रि सूक्त है
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नमन रात्रि! करतीं प्रगट, देश काल जड़-जीव।
यथोचित दें कर्म-फल, जय माँ! करुणासींव।१।
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ओ देवी! हो अमर तुम, उछ-अधम में व्याप्त।
नष्ट करो अज्ञान को, ज्ञान-ज्योति 'थिर आप्त।२।
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पराशक्ति रजनी करें, प्रगट उषा को नित्य।
नष्ट अविद्या-तिमिर हो, प्रगटे ज्ञान अनित्य।३।
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प्रगटें खुश हों रात्रि माँ!, कर सुख-निद्रा लीन।
ज्यों कोटर में खग हुए, मिश्रित अभय अदीन।४।
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रजनी माँ के अंक में, शयन करें सुख-धार।
पशु-पक्षी, ग्रामीणजन, पथिक भूल व्यापार।५।
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वृकी वासना; पाप वृक, माँ राका! कर दूर।
मोक्षदायिनी! कर कृपा, दो निद्रा भरपूर।६।
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उषा! रात्रि!! अज्ञान-तम, घेरे है चहुँ ओर।
ऋणवत मुझसे दूर कर, दो; लूँ ज्ञान अँजोर।७।
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धेनु दुधारू सदृश हो, रात्रि! रहो अनुकूल।
मिली कृपा हूँ अरिजयी, लो स्तोम-दुकूल।८।
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१३-१०-२०१८
(स्तोम = स्तुति)
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