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सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

vyangya geet

एक रचना
दीवाली और दीवाला
*
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
दूने दाम बेच दिन दूना
होता लाला, घोटाला है
*
धन ते रस, बिन धन सब सूना,
निर्धन हर त्यौहार उपासा
नरक चौदहों दिन हैं उसको,
निर्जल व्रत बिन भी है प्यासा
कौन बताये, किससे पूछें?
क्यों ऐसा गड़बड़झाला है?
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
छोड़ विष्णु आयी है लछमी,
रिद्धि-सिद्धि तजकर गणेश भी
एक साथ रह पुजते दोनों
विस्मित चूहा, चुप उलूक भी
शेष करें तो रोक रहा जग
कहता करते मुँह काला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
समय न मिलता, भूमि नहीं है
पाले गाय कब-कहाँ बोलो
गोबर धन, गौ-मूत्र कौन ले?
किससे कहें खरीदो-तोलो?
'गो वर धन' बोले मम्मी तो
'जा धन कमा' अर्थ आला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
अन्न कूटना अब न सुहाता
ब्रेड-बटर-बिस्कुट भाता है
छप्पन भोग पचायें कैसे?
डॉक्टर डाइट बतलाता है
कैलोरी ज्यादा खाई तो
खतरा भी ज्यादा पाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
भाई दूज का मतलब जानो
दूजा रहे हमेशा भाई
पहला सगा स्वार्थ निज जानो
फिर हैं बच्चे और लुगाई
बुढ़ऊ-डुकरिया से क्या मतलब?
निज कर्तव्य भूल टाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*
चित्र गुप्त, मूरत-तस्वीरें
खुद गढ़ पूज रहे हैं लाला
दस सदस्य पर सभा बीस हैं
घर-घर काट-छाँट घोटाला
घरवाली हावी दहेज ला
मन मारे हर घरवाला है
सजनी मना रही दीवाली
पर साजन का दीवाला है
*

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