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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

samiksha

पुस्तक सलिला
एक पेग जिंदगी’ लघुकथा के नाम 
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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[पुस्तक विवरण एक पेग जिंदगी, पूनम डोगरा, लघुकथा संग्रह, प्रथम संस्करण २०१६, ISBN९७८-८१-८६८१०-५१-X, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी, पेपरबैक, पृष्ठ १३८, मूल्य२८०/-, समय साक्ष्य प्रकाशन १५, फालतू लाइन, देहरादून २४८००१, दूरभाष ०१३५ २६५८८९४]
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            कहना और सुनना चेतना का गुण है. जो प्राणी जितना अधिक चैतन्य होता है उतना अधिक अनुभव कर अनुभूति को अन्यों से कहता और अन्यों की अनुभूति को उनसे सुनता है.  कहना, सुनना और गुनना मानव सभ्यता का वैशिष्ट्य है. कहना-सुनना लेखक-पाठक या वक्ता-श्रोता के मध्य सह-अनुभूति का संपर्क-सेतु बनाकर अनुभूतियों को साझा करता है. चिरकाल से लोक कथा, बुजुर्गों द्वारा बच्चों को सुनाये गए किस्से, पर्व कथाएँ, धार्मिक कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ, रोमांचक कहानियाँ, बोध कथाएँ, उपदेश कथाएँ, दृष्टांत कथाएँ, जातक कथाएँ, अवतार कथाएँ, शौर्य कथाएँ, सृष्टि उत्पत्ति कथाएँ, प्रलय कथाएँ आदि भारत और अन्य विकसित देशों में कही-सुनी जाती रही हैं.  ये कथाएँ गद्य और पद्य दोनों में कही-सुनी जाती रही हैं.                                                              
            आधुनिक हिंदी का विकास और भारत की स्वतंत्रता इन दो घटनाओं ने हिंदी को राष्ट्र भाषा के पथ से होते हुए विश्व वाणी बनने के पथ पर सतत आगे बढ़ाया. हिंदी के उद्भव काल में तत्कालीन विदेश संप्रभुओं की भाषा अंग्रेजी के साहित्य को देख-सुन कर नकल करने की प्रवृत्ति विकसित होना स्वाभाविक है. कोंग्रेसियों द्वारा सत्ता और साम्यवादियों द्वारा शिक्षा संस्थानों की बन्दरबांट ने हिंदी-साहित्य और समीक्षा में साम्यवादी वर्ग संघर्ष सिद्धांत को बढ़ाने के लिए असंगतियों, विसंगतियों, विडंबनाओं, टकरावों, शोषण आदि के एकांगी चित्रण को विधान का रूप दे दिया. फलत:, समीक्षकों द्वारा नकारे जाने से बचने के लिए रचनाकारों विशेषकर लघुकथाकारों, व्यंग्यकारों तथा नवगीतकारों ने अपने सर्जन से उल्लास, उत्साह, सद्भाव, सहकार, समरसता, बन्धुत्व आदि को वर्जित मानकर बाहर ही रखा. इस पृष्ठभूमि में मूलत: देहरादून निवासी, अब साल्टलेक सिटी अमेरिका निवासी पूनम डोगरा की सद्य प्रकाशित कृति ‘एक पेग जिंदगी’ वर्तमान लघुकथा की झलक प्रस्तुत करती है.
            कृति की भूमिका में चर्चित लघुकथाकार कांता रॉय कुछ रचनाओं में ‘मैत्रेयी पुष्पा जी की कहानियों के तेवर, अमृता प्रीतम जी की शैली, तथा चित्रा मुद्गल जी का विन्यास’ अनुभव करती हैं. मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि पूनम जी लघुकथाओं के विषय अपने चतुर्दिक घट रही घटनाओं से चुनती हैं, वे घटना के कारण, प्रभाव तथा निराकरण को लेकर चिंतन करती हैं और तब लघुकथा को रूपाकार प्रदान करती हैं. इन लघुकथाओं के विषय दैनंदिन  जीवन से लिए गए हैं.
            स्त्री-विमर्श पूनम जी का प्रिय विषय है. छोटी कहानी ‘एक पेग जिंदगी’, ‘वैलेंटाइन’ तथा कड़वे घूँट में हिंदी की संन्य लघुकथाओं से कुछ लंबी, कहानियों से कुछ छोटी, अंग्रजी की शोर्ट स्टोरी की तरह हैं. स्त्री-पुरुष संबंधों पर केन्द्रित लघुकथाओं में पूनम जी की संयत भाषा, संतुलित विचारदृष्टि  उन्हें एकांगी होने से बचाती है.
            गरम गोश्त, सॉरी, उसका नाम, अश्क, इज्ज़त, आखिरी किश्त, चुपड़ी रोटी जैसी लघुकथाएँ कम शब्दों में अधिक संप्रेषित करने में समर्थ हैं. ‘डोज़-ए-इन्सुलिन, सॉरी, बोन्डिंग, रिफ्युजिए, ओवर टाइम, कनेक्शन, फुल सर्किल ट्रेनिंग कैम्प, करेंसी, शो, लव, ब्लैक एंड व्हाइट, लव यू आलवेज, वैलेंटाइन’ जैसे आंग्ल शीर्षक रखने की विवशता समझ से परे है. इनसे कथा या कृति की विशेषता में कोई वृद्धि नहीं होती.
            पूनम जी ने कुछ लघुकथाओं में हास्य का पुट देने का प्रयास कर एक खतरा उठाया है. आरम्भ में कुछ स्वनामधन्य साहित्यकारों ने लघुकथा को चुटकुला कहकर नकारा था. ‘माधुरी अलानी जूही फलानी’ में नेताओं पर व्यंग्य, ‘हाय मेरा दिल’ में दो पुराने मित्रों द्वारा एक-दुसरे से उम्र के प्रभाव  छिपाने के प्रयास से उपजा सहज हास्य नई लीक बनाने का प्रयास है. कहते हैं ‘लीक तोड़ तीनों चलें, शायर सिंह सपूत / ली-लीक तीनों चलें कायर भीत कपूत’. पूनम जी द्वारा अपनी लीक आप बनाने की आलोचना तो होगी पर उन्हें इसे समृद्ध करना चाहिए .
           पूनम जी हिंदी के प्रचलित शब्दों के साथ तत्सम-तद्भव शब्दों, देशज शब्दों, उर्दू-अंग्रेजी शब्दों का मुक्त भाव से प्रयाग करती हैं. सारत:, पूनम जी की यह प्रथम लघुकथा कृति उनमें विधा की समझ, शब्द-भण्डार, भाषा-शैली, नव प्रयोग का साहस और घटनाओं को कथा रूप देने की सामर्थ्य के प्रति आश्वस्त करता है. मेरी कामना है ‘अल्लाह करे जोरे कलम और जियादा’.

संपर्क- आचार्य संजीव वर्मा’सलिल’, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, ९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.              

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