मुक्तक
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पाक न तन्नक रहो पाक है?
बाकी बची न कहूँ धाक है।।
सूपनखा सें चाल-चलन कर
काटी अपनें हाथ नाक है।।
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वाह! शब्दों की क्या ख़ूब जादूगरी
चाह, रस-भाव की भी हो बाजीगरी
बिम्ब, रूपक, प्रतीकों से कर मित्रता
हो अलंकार की भी तो कारीगरी
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वन्दना प्रार्थना साधना अर्चना
हिंद-हिंदी की करिये, रहे सर तना
विश्व-भाषा बने भारती हम 'सलिल'
पा सकें हर्ष-आनंद नित नव घना
दीपावली
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सत्य-शिव-सुन्दर का अनुसन्धान है दीपावली
सत-चित-आनंद का अनुगान है दीपावली
अकेले लड़कर तिमिर से, समर को चुप जीतता
जो उसी दीपक के यश का गान है दीपावली
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अँधेरे पर रौशनी की जीत है दीपावली
दिलों में पलती मनुज की प्रीत है दीपावली
मिटा अंतर से सभी अंतर मनों को जोड़ दे
एकता-संदेश देती रीत है दीपावली
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स्वदेशी की गूँज, श्रम का मान है दीपावली
भारती की कीर्ति, भारत-गान है दीपावली
चीन की उद्दंडता को दंड दे धिक्कारता
देश के जनगण का नव अरमान है दीपावली
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सरहद के बाहर चलकर, चलिए बम फोड़ें
आतंकी हौसले सभी हम मिलकर तोड़ें
शत-शत मुक्तक लिखें सुनें दोनों शरीफ जब
सर टकराकर आपस में, झट दुनिया छोड़ें
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मुक्तक
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भोर से संझा हुई,कर कार्य, रवि जब थक चला
तिमिर छा जाए न जग में सोच, चिंतित जब ढला
कौन रोके तम?, बढ़ा लघु दीप बोला-' शक्ति भर
मैं हरूँगा' तभी दीवाली मनाने का सलिल' प्रचलन चला
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आपने चाहा जिसे वह गीत चाहत के लिखेगा
नहीं चाहा जिसे कैसे वह मिलन-अमृत चखेगा?
राह रपटीली बहुत है चाह की, पग सम्हल धरना
जान लेकर हथेली पर जो चले, आगे दिखेगा
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कुछ ग़लत हैं आचार्य जी, बाकी सभी कुछ ठीक है
बस चुप रहें प्राचार्य जी, बाकी सभी कुछ ठीक है
दीवार की शोभा बढ़ाते, चित्र भाते ही नहीं
थूकें तमाखू-पान खा, बाकी सभी कुछ ठीक है
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जब 'अशोक' मन, 'व्यग्र' हो करता शब्द प्रहार
तब 'नीरव' में 'ॐ' की गूँज उठे झनकार
'कलानाथ' रसधार में झलकाते निज बिम्ब
'रामानुज' से मिल रहे 'ममता' लिए अपार
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आँख दिखाकर, डरा-डराकर कहती 'डरती हूँ'
ठेंगा दिखा-दिखाकर कहती 'तुझ पर मरती हूँ'
गले लगाती नहीं नायिका, नायक से कहती
'जाओ भाड़ में,समय हो गया अब मैं चलती हूँ
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लाजवाब आप हो गुलाब हुए
स्नेह की अनपढ़ी किताब हुए
हमको उत्तर नहीं सूझा जब भी
आपके प्रश्न ही जवाब हुए
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हाय रे! हुस्न रुआंसा क्यों है?
ख्वाब कोई हुआ बासा क्यों है?
हास्य-जिंदादिली उपहार समझ
दूर श्वासा से हुलासा क्यों है?
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हाँ कह दूँ तो पत्नी पीटे, झूठ अगर ना बोलूँ
करूँ वंदना प्रेम आपसे है रहस्य क्यों खोलूँ ?
रोना है सौभाग्य हमारा, सब तनाव मिट जाता
क्यों न हास्य कर प्रेम-तराजू पर मैं खुद को तोलूँ
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आप = स्वयं, आत्मा सो परमात्मा = ईश्वर
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