दोहा सलिला:
दोहा-दोहा यमकमय
संजीव
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चरखा तेरी विरासत, ले चर खा तू देश
दोहा-दोहा यमकमय
संजीव
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चरखा तेरी विरासत, ले चर खा तू देश
किस्सा जल्दी ख़त्म कर, रहे न कुछ भी शेष
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नट से करतब देखकर, राधा पूछे मौन
नट मत, नटवर! नट कहाँ?, कसे बता कब कौन??
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देख-देखकर शकुन तला, गुझिया-पापड़ आज
शकुनतला-दुष्यंत ने, हुआ प्रेम का राज
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पल कर, पल भर भूल मत, पालक का अहसान
पालक सम हरियाएगा, प्रभु का पा वरदान
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नीम-हकीम न नीम सम, दे पाते आरोग्य
ज्यों अयोग्य में योग्य है, किन्तु न सचमुच योग्य
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Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.comhttp://divyanarmada.blogspot.
5 टिप्पणियां:
Ram Gautam
आ. आचार्य 'सलिल' जी,
सामयिक और सुन्दर दोहे, अलंकारों के प्रयोग के साथ अच्छे लगे |
आपको नमन और साधुवाद !!!!
सादर- गौतम
dks poet
आदरणीय सलिल जी,
अलंकारों में आप सिद्धहस्त हैं। बधाई स्वीकारें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
Mahipal Tomar via yahoogroups.com
यमकमय-दोहे क्रमांक 1 ,4 , 5 समझ में आये ,तीजे चौथे हम चकराए ,
पहिला सब दोहों का राजा , बजा रहा है सब का बाजा । ढेर बधाई , संजीव जी ,
सादर ,
महिपाल
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
mcdewedy@gmail.com
बधाई सलिल जी.
सुंदर विश्लेषण एवँ संस्लेषण.
महेश चंद्र द्विवेदी
sn Sharma via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी ,
सुन्दर यमक का प्रयोग । लेखनी को नमन
सादर कमल
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