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बुधवार, 11 सितंबर 2013

geet:

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गीत
स्वीकारो मेरा अभिवादन

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प्रोद्योगिकी सूचना वाली के इकलौते भाग्य विधाता
तेरह घंटों से भी ज्यादा, नित्य काम करने की आदी
अन्तर्जाली दुनिया के तुम राज नगर के हो शहज़ादे
कुंजी वाली एक पट्टिका से कर ली है तुमने शादी
 
प्रभो संगणक अभियन्ता हे ! स्वीकारो मेरा अभिवादन
 
कहां सूचना कितनी जाये, ये निर्णय तुम पर है निर्भर
प्रेमपत्र के लिये कबूतर, केवल एक तुम्हारा इंगित
दिल का मिलना और बिछुड़ना या फिर टूट धरा पर गिरना
इसका सारा घटनाक्रम, बस तुम ही करते हो सम्पादित
 
धन्य तुम्हारा निर्देशन है, धन्य तुम्हारा है सम्पादन
 
खाना भी तुम जब खाते हो, वह इक दॄष्य निराला होता
एक हाथ में सेलफोन है, एक हाथ में रहता काँटा
कहाँ गया लेटस का पत्ता,या कटलेट कहां खोया है
सिस्टम को एडिट करना भी बहुत जरूरी है अलबत्ता
 
तुम पर ही तो निर्भर है हर एक फ़ैक्ट्री का उत्पादन
 
केवल एक तुम्हारा मैनेजर ही बस तुमसे ऊपर है
जिसके आगे नित्य बजाते हो तुम एक हाथ से ताली
यदि वह नर है तो निश्चित ही महिषासुर का है वो वंशज
और अगर नारी है तो वह सचमुच ही है हंटर वाली
 
एक वही है नाच नचाता, हो कितना भी टेढ़ा आँगन
 
माईक्रोसाट तुम्हीं से, तुमसे गूगल है याहू तुमसे ही 
तुमही हो पीसी की खातिर, हैकिंग वाले भक्षक राहू
तुम सिस्को हो  एएमडी तुमतुम ही इन्टेल केअवतारी
पूरा अन्तर्जाल काँपता, फ़ड़का अगर तुम्हारा बाहू
 
यूनीकोड तुम्ही से, मैने आज किया जिससे आराधन
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गीतकार geetkar gazal <geetkar@yahoo.com>

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