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गुरुवार, 20 जून 2013

geet: bano fakeera sanjiv

गीत :
बनो फकीरा...
संजीव
*
बनो फकीरा, उठा मँजीरा साखी गाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,
कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .
बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-
 नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.
प्रभु  का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
 रमता जोगी, बहता पानी साथ न कोई,
माया  के सँग क्षणिक हँसी हँस, तृष्णा रोई.
तृप्ति-तार में अगर न आशामाला पोई-
डूब  राह में वृत्ति विरागी बेबस सोई.
लोभ न पालो और न जग को व्यर्थ लुभाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
तेरा-मेरा त्याग राम का नाम लिये जा,
हो तटस्थ जब जो भाये निष्काम किये जा.
क्या  लाया जो ले जाए?, जो मिला दिए जा-
मद-मदिरा तज, भक्ति-अमिय के घूँट पिए जा.
कहाँ नहीं वह?, कण-कण में प्रभु देख-दिखाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
***


10 टिप्‍पणियां:

Prakash kanungo ने कहा…

Prakash Kanungo

Bahut sundar- kabir yaad dila diye aapne.

kanu vankoti ने कहा…

Kanu Vankoti

बहुत सुन्दर संजीव भाई.

आपकी लेखनी को नमन !

सादर,

कनु

santosh kumar ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in via yahoogroups.com
आ० सलिल जी
बहुत ही प्यारा गीत है। मन को बहुत भाया। आपको बधाई।्
सन्तोष कुमार सिंह

indira pratap ने कहा…


संजीव भाई,
क्या बढ़िया लिख रहे हैं आप| बधाई| दिद्दा

sanjiv ने कहा…

दिद्दा का सत्संग पा, नीर हो सके क्षीर
दीप्तिमान हो तिमिर भी, कर कोशिश धर धीर

murarkasampatdevii@yahoo.co.in ने कहा…



आ. भाई संजीव जी,
आपकी लेखनी को नमन,
सादर
संपत.


Smt. Sampat Devi Murarka
Writer Poetess Journalist
Srikrishan Murarka Palace,
# 4-2-107/110, 1st floor, Badi Chowdi, nr P. S. Sultan Bazaar,
HYDERABAD; 500095, A. P. (INDIA)
Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
Home +91 (040) 2475 1412
http://bahuwachan.blogspot.com
http://charaiweti.blogspot.in
http://kavyamandir.blogspot.in

vijay3@comcast.net ने कहा…

___
vijay3@comcast.net via yahoogroups.com

सारा गीत ही अति सुन्दर, पर निम्न पंक्तिओं के क्या कहने!

//धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,

कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .

बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-

नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.

प्रभु का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ

सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...//

बधाई।

विजय

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी,
अद्भुत गीत लिखा है आपने, पूरे जीवन का निचोड़ सामने लाकर रख दिया है l
खासकर, ये पंक्तियाँ मन को बहुत भाईं ;


धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,

कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .

बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-

नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.

प्रभु का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ

सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...

सादर,

कुसुम वीर

indira pratap ने कहा…

Indira Pratap via yahoogroups.com
संजीव भाई ,
मात्राएँ स्वयं ठीक कर लीजिए गा |
काव्यधारा के सलिल ,और गंग के तीर |
इंदु -दीप्ति की ओट से, जलधर प्रकट शरीर ||

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta

Subject: Re: [kavyadhara] geet sanjiv

Good ....*:)) laughing