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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

गीत: गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा... --संजीव 'सलिल'

गीत:
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
संजीव 'सलिल'
*
मार समय की सहें मूक हो, कोई न तेरा-मेरा.
पीर, वेदना, तन्हाई निश-दिन करती पग-फेरा..
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुमने वन-पर्वत खोये, मैंने खोया सुख-चैन.
दर्द तुम्हारे दिल में है, मेरे भी भीगे नैन..
लोभ-हवस में झुलसा है, हम दोनों का ही डेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
शकुनि सियासत के हाथों हम दोनों हारे दाँव.
हाथ तुम्हारे घायल हैं, मेरे हैं चोटिल पाँव..
जीना दूभर, नेता अफसर व्यापारी ने घेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुमने चौपालों को खोया, मैंने नुक्कड़ खोये.
पनघट वहाँ सिसकते, गलियाँ यहाँ बिलखकर रोये..
वहाँ अमन का, यहाँ चैन का बाकी नहीं बसेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
तुम्हें तरसता देख जुटायी मैंने रोजी-रोटी.
चिपक गया है पेट पीठ से, गिन लो बोटी-बोटी..
खोटी-खोटी सुना रहे क्यों नहीं प्यार से हेरा?
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*
ले विकास का नाम हर तरफ लूट-पाट है जारी.
बैठ शाख पर चला रहा शाखा पर मानव आरी..
सिसके शाम वहाँ, रोता है मेरे यहाँ सवेरा.
गाँव जी! कहें न शहर लुटेरा...
*

5 टिप्‍पणियां:

गुड्डोदादी ने कहा…

तुमने वन-पर्वत खोये, मैंने खोया सुख-चैन.
दर्द तुम्हारे दिल में है, मेरे भी भीगे नैन..
बहुत सुंदर भाव काश आज भी होते गावँ

Divya Narmada ने कहा…

दादी धन्यवाद

Shayaris.com ने कहा…

Great articl, keep doing.
heart-touching shayari

Unknown ने कहा…

Wow wonderfull heart touching poem

pyaar love shayari

hindi dp ने कहा…

nice post