मुक्तिका :
पूछ रहे तुम
संजीव 'सलिल'
*
पूछ रहे तुम हाल हमारा क्या बतलायें कैसे हैं हम?
झूठ कहें तो व्यर्थ दुखी हों, सत्य कहें तो खुद को हो गम..
कैसे क्या? हम नश्वर तन हैं, पल में गायब हो जायेंगे.
जब भी हमको याद करोगे आँख तुम्हारी होंगी कुछ नम..
राम-राम कह विहँस विदा हों, या गुडबाई-टाटा करलें.
कहें अलविदा या न कहें कुछ, निकल जाएगी यथासमय दम..
शब्द-साधना विधवा होगी, कविता-रचना थम जाएगी.
पाठक सोचें पीछा छूटा, खुश हो करें दिखावा-मातम..
ऊपरवाला सिर पीटेगा, कौन मुसीबत लेकर आया?
पछतायेगा कविता सुन-सुन किन्तु न लौटा पायेगा यम..
हूँ जाने को उद्यत लेकिन दोहा गीत गजल कह जाऊँ.
दुःख देनेवाले को अँजुरी भर खुशियाँ दे दूँ कम से कम..
बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम..
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पूछ रहे तुम
संजीव 'सलिल'
*
पूछ रहे तुम हाल हमारा क्या बतलायें कैसे हैं हम?
झूठ कहें तो व्यर्थ दुखी हों, सत्य कहें तो खुद को हो गम..
कैसे क्या? हम नश्वर तन हैं, पल में गायब हो जायेंगे.
जब भी हमको याद करोगे आँख तुम्हारी होंगी कुछ नम..
राम-राम कह विहँस विदा हों, या गुडबाई-टाटा करलें.
कहें अलविदा या न कहें कुछ, निकल जाएगी यथासमय दम..
शब्द-साधना विधवा होगी, कविता-रचना थम जाएगी.
पाठक सोचें पीछा छूटा, खुश हो करें दिखावा-मातम..
ऊपरवाला सिर पीटेगा, कौन मुसीबत लेकर आया?
पछतायेगा कविता सुन-सुन किन्तु न लौटा पायेगा यम..
हूँ जाने को उद्यत लेकिन दोहा गीत गजल कह जाऊँ.
दुःख देनेवाले को अँजुरी भर खुशियाँ दे दूँ कम से कम..
बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम..
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11 टिप्पणियां:
kusumsinha2000@yahoo.com
ekavita
priy sanjiv ji
aapke dohe man ko chhu jaate hain lekin abhi jaane ki mat kahen nahi to etne achhe dohe kaun sunayega bhagwan ne aapko dono hathon se vardan diya hai hamesha ke liye ajar amar hone ke liye
kusum
sanjiv verma salil ✆
ekavita
जग-जीवन को महकाता जो कुसुम-गुच्छ उसकी जय-जय हो.
लुटा रहा आशीष, समेटा मैंने मन भर खुश निर्भय हो..
दोहा गीत गज़ल उनके हैं, जो पढ़ते हैं इन्हें समझकर.
कवि माध्यम बन इतना चाहे बिंदु सिंधु में सहज विलय हो..
उससे जब जो मिली प्रेरणा, वही शब्द वर कविता बनती.
उद्वेलित कवि-मानस को कर, प्रगटे, यश दे आप सदय हो..
आना-जाना अपने मन से कहाँ कभी कोई कर पाता.
ज्यों की त्यों चादर धर जाऊँ जब वह चाहे, ना विस्मय हो..
कुसुम-पंखुड़ी करे सुवासित सलिल-बूँद को अनजाने ही.
श्वास-आस बन गीत-मुक्तिका जन तक पहुँचे प्रात-मलय हो..
achalkumar44@yahoo.com
ekavita
एक तीर में दो शिकार \
सलिल बह रही नर्वदा धार \
दोनोही पैनी तलवार,
वार करे पर लगता प्यार |
ज़रा सा मुस्कुरा लें, और बुरा नामानें
ये कटाक्ष नहीं, प्रतिक्रया भी नहीं,
ऊपर नीचे दो कवितायें देखी तो सोचा कुछ लिख दूं \
(अर्थहीन हूँ सही मगर ये व्यर्थ नहीं है)
गहरी बातें इस रचना में सही कही है \
इस रचना में भरी देख गागर में सागर
रह जाएगा पढ़कर प्रभु भी थोड़ा सा चकराकर
सोचेगा की नहीं बुलाऊँ तो अच्छा है
अमर बना देगा वो कवि को तब घबरा कर \\
Your's , Achal Verma
sanjiv verma salil ✆
ekavita
अचल सचल हो मचल-मचलकर कहे अर्थमय बात.
सलिल ग्रहण कर सार तत्व कुछ, पायी शुभ सौगात..
अमर हुआ तो 'मर' न मिटेगा रह जायेंगे शब्द-
पढ़ा करेगा कभी कोई तो होकर मौन-निशब्द..
बहुत-बहुत आभार.
wgcdrsps@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
ekavita
आदरणीय आचार्य जी,
रुचिकर प्रेरणा स्रोत रचना | क्या खूब लिखा है
बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम..
बधाई हो |
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
ekavita
आदरणीय आचार्य जी ,
ऊपर वाला खुद की किस्मत पर इतराएगा,काबिल कवि पाया
कविता सुन खुश हो लौटा देगा, ताकि भला हो हमारा भी यम
सादर संतोष भाऊवाला
आदरणीय आचार्य जी
सुन्दर हास्य रचना !
शब्द-साधना विधवा होगी, कविता-रचना थम जाएगी.
पाठक सोचें पीछा छूटा, खुश हो करें दिखावा-मातम.... :)))))))))
बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम.. :)बहुत सही !
सादर
प्रताप
drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com
ekavita
कविवर,
इस बार आपके दोहे हमें बहुत ही रुचिकर लगे.... अनूठे , अनुपम !!!
अशेष सराहना के साथ,
सादर,
दीप्ति
2012/1/20 sanjiv verma salil
मुक्तिका :
संजीव 'सलिल'
*
पूछ रहे तुम हाल हमारा क्या बतलायें कैसे हैं हम?
झूठ कहें तो व्यर्थ दुखी हों, सत्य कहें तो खुद को हो गम..--------------- बहुत खूब
कैसे क्या? हम नश्वर तन हैं, पल में गायब हो जायेंगे.
जब भी हमको याद करोगे आँख तुम्हारी होंगी कुछ नम...................... सुन्दर
राम-राम कह विहँस विदा हों, या गुडबाई-टाटा करलें.
कहें अलविदा या न कहें कुछ, निकल जाएगी यथासमय दम..... जाएगा दम
शब्द-साधना विधवा होगी, कविता-रचना थम जाएगी.................. खूब.... खूब
पाठक सोचें पीछा छूटा, खुश हो करें दिखावा-मातम.....................हा...हा...
ऊपरवाला सिर पीटेगा, कौन मुसीबत लेकर आया?......................सही कहा :)) laughing
पछतायेगा कविता सुन-सुन किन्तु न लौटा पायेगा यम..............हा...हा....हा..:)) laughing
हूँ जाने को उद्यत लेकिन दोहा गीत गजल कह जाऊँ..........कवि कर्म - कवि स्वभाव कि जाते-जाते भी......!
दुःख देनेवाले को अँजुरी भर खुशियाँ दे दूँ कम से कम..
बुढ़ा रहा तन लेकिन मन तो अब तक निश्छल बच्चा ही है.
जवां हौसले चाह रहे हैं 'सलिल' दिखा दें अपना दम-खम..
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kusumsinha2000@yahoo.com
ekavita
priy salil ji
kitni gambhir bat me aap ne hasya ka put de diya bada achha laga padhakar aapki kavya kshmta ko shat shat naman
kusum
dks poet ✆ dkspoet@yahoo.com
ekavita
आदरणीय सलिल जी,
जिस गति से आप इतनी अच्छी रचनाएँ करते हैं वह आश्चर्यजनक है।
इन रचनाओं के लिए साधुवाद स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
omtiwari24@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
ekavita
आदरणीय सलिल जी,
दोनों रचनाएं बहुत सुंदर हैं । बहुत खूब । बधाई ।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी
--
Om Prakash Tiwari
Special Correspondent
Dainik Jagran
41, Mittal Chambers, Nariman Point,
Mumbai- 400021
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