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शनिवार, 28 जनवरी 2012

मुक्तिका: ये न मुमकिन हो सका --संजीव 'सलिल'






मुक्तिका
ये न मुमकिन हो सका
संजीव 'सलिल'
*
आप को अपना बनाऊँ ये न मुमकिन हो सका.
गीत अपने सुर में गाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

आपके आने के सपना देखकर अँखियाँ थकीं.
काग बोले काऊँ-काऊँ ये न मुमकिन हो सका..

अपने घर में शेर, जा बाहर हुआ हूँ ढेर मैं.
जीत का छक्का उड़ाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

वायदे कर वोट पाये, और कुर्सी भी मिली.
वायदा अपना निभाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

बेटियों ने निभाया है फर्ज़ अपना इस तरह.
कर बिदा उनको भुलाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

जड़ सभी बीमारियों की एक ही पायी 'सलिल'.
पसीना हँसकर बहाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

लिख रहा लेकिन खुशी से 'सलिल' मैं मरहूम हूँ.
देख उनकी झलक पाऊँ ये न मुमकिन हो सका..

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com

1 टिप्पणी:

drpsharma57@yahoo.com ने कहा…

Dr Pradeep Sharma ✆ drpsharma57@yahoo.com
Hindienglishpo-


Bahut sundar hai Salilji, namumkin ki baat kyon
Badi surili kavya-dhaara hai, naynon ki barsaat kyon

Dr Pradeep Sharma Insaan MD,FAMS Professor, RP Centre AIIMS New Delhi,INDIA