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बुधवार, 12 दिसंबर 2018

सूचना समग्र

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान 


समन्वयम २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष: ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५५९६१८ ​
ऍफ़ २, वी ५ विनायक होम्स, मयूर विहार, अशोक गार्डन,भोपाल ४६२०२३ चलभाष: ९५७५४६५१४७
डी १०५ शैलेंद्र नगर रायपुर छत्तीसगढ़
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​इकाई स्थापना आमंत्रण 
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विश्ववाणी हिंदी संस्थान एक स्वैच्छिक अपंजीकृत समूह है जो ​भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रचार-प्रसार तथा विकास हेतु समर्पित है। संस्था पीढ़ियों के अंतर को पाटने और नई पीढ़ी को साहित्यिक-सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने के लिए निस्वार्थ सेवाभावी रचनात्मक प्रवृत्ति संपन्न महानुभावों तथा संसाधनों को एकत्र कर विविध कार्यक्रम न लाभ न हानि के आधार पर संचालित करती है। इकाई स्थापना, पुस्तक प्रकाशन, लेखन कला सीखने, भूमिका-समीक्षा लिखवाने, विमोचन-लोकार्पण-संगोष्ठी-परिचर्चा अथवा स्व पुस्तकालय स्थापित करने हेतु  संपर्क करें: salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१ ८३२४४ ​/ ७९९९५५९६१८। 
------------------------- 'सार्थक लघुकथाएँ' २०१८ ------------------------------
चयनित लघुकथाकारों की २-२ प्रतिनिधि लघु कथाएँ २ पृष्ठों पर चित्र, पते सहित सहयोगाधार पर प्रकाशित की जा रही हैं। संकलन पेपरबैक होगा। आवरण बहुरंगी, मुद्रण अच्छा होगा। सहभागिता के इच्छुक लघुकथाकार ४ लघुकथाएँ, चित्र, पता, चलभाष, ईमेल व सहमति ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com या roy. kanta@gmail.com पर अविलंब भेजें। यथोचित संपादन हेतु सहमत सहभागी रचनाएँ स्वीकृत होने के बाद मात्र ३००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में अथवा बैंक ऑफ़ इण्डिया, राइट टाउन शाखा जबलपुर IFSC- BKDN ०८११११९, लेखा क्रमांक १११९१०००२२४७  में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com  पर ईमेल करें। संपादन: संजीव वर्मा 'सलिल', छाया सक्सेना। संपादक: संपर्क ९४२५१८३२४४ या ७९९९५५९६१८ अतिरिक्त प्रतियाँ ५०% रियायत पर डाक व्यय निशुल्क सुविधा सहित मिलेंगी।

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दोहा शतक मंजूषा
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान तथा आचार्य संजीव 'सलिल' व डॉ. साधना वर्मा के संपादन में दोहा शतक मंजूषा के ३ भाग दोहा-दोहा नर्मदा, दोहा सलिला निर्मला तथा दोहा दीप्त दिनेश का प्रकाशन कर सहयोगियों को भेजा जा चुका है। ८००/- मूल्य की ३ पुस्तकें (५००० से अधिक दोहे, दोहा-लेखन विधान, २५ भाषाओँ में दोहे तथा बहुमूल्य शोध-सामग्री) ५०% छूट पर पैकिंग-डाक व्यय निशुल्क सहित उपलब्ध हैं। इस कड़ी के भाग ४ "दोहा है आशा-किरण" में सहभागिता हेतु यथोचित संपादन हेतु सहमत दोहाकारों से १२० दोहे (चयनित १०० दोहे छपेंगे), चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक आदि) ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com पर आमंत्रित हैं। सहभागिता निधि ३०००/- उक्तानुसार भेजें। प्रत्येक सहभागी को गत ३ संकलनों की एक-एक प्रति तथा भाग ४ की ८ प्रतियाँ कुल ११ पुस्तकें दी जाएँगी। नव दोहाकारों को भाषा, व्याकरण छंद शिक्षण, दोहा लेखन विधान, मात्रा गणना नियम व मार्गदर्शन उपलब्ध है।
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प्रतिनिधि नवगीत : २०१८ 


विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में 'प्रतिनिधि नवगीत: २०१८'' शीर्षक से प्रकाशनाधीन संकलन हेतु इच्छुक नवगीतकारों से एक पृष्ठीय ८ नवगीत चित्र, संक्षिप्त परिचय (जन्मतिथि-स्थान, माता-पिता, जीवन साथी, साहित्यिक गुरु व प्रकाशित पुस्तकों के नाम, शिक्षा, लेखन विधाएँ, अभिरुचि/आजीविका, डाक का पता, ईमेल, चलभाष क्रमांक) सहभागिता निधि ३०००/- सहित आमंत्रित है। यथोचित सम्पादन हेतु सहमत सहभागी ३०००/- सहभागिता निधि पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में अथवा बैंक ऑफ़ इण्डिया, राइट टाउन शाखा जबलपुर IFSC- BKDN ०८११११९, लेखा क्रमांक १११९१०००२२४७  में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com या roy.kanta@gmail.com पर ईमेल करें। । प्रत्येक सहभागी को ११ प्रतियाँ निशुल्क उपलब्ध कराई जाएँगी जिनका विक्रय या अन्य उपयोग करने हेतु वे स्वतंत्र होंगे। ग्रन्थ में नवगीत विषयक शोधपरक उपयोगी सूचनाएँ और सामग्री संकलित की जाएगी। देशज बोलिओं व हिंदीतर भारतीय भाषाओँ के नवगीत हिंदी अनुवाद सहित भेजें।  

शांति-राज स्व-पुस्तकालय योजना

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में नई पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति प्रेम तथा भारतीय संस्कारों के प्रति लगाव तभी हो सकता है जब वे बचपन से सत्साहित्य पढ़ें। इस उद्देश्य से पारिवारिक पुस्तकालय योजना आरम्भ की जा रही है। इस योजना के अंतर्गत निम्न में से ५००/- से अधिक की पुस्तकें मँगाने पर मूल्य में ४०% छूट, पैकिंग व डाक व्यय निशुल्क की सुविधा उपलब्ध है। राशि अग्रिम पे टी एम द्वारा चलभाष क्रमांक ९४२५१८३२४४ में अथवा बैंक ऑफ़ इण्डिया, राइट टाउन शाखा जबलपुर IFSC- BKDN ०८११११९, लेखा क्रमांक १११९१०००२२४७  में जमाकर पावती salil.sanjiv@gmail.com या roy.kanta@gmail.com पर ईमेल करें। इस योजना में पुस्तक सम्मिलित करने हेतु salil.sanjiv@gmail.com या ७९९९५५९६१८/९४२५१८३२४४ पर संपर्क करें। 
पुस्तक सूची
०१. मीत मेरे कविताएँ -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-
०२. काल है संक्रांति का गीत-नवगीत संग्रह -आचार्य संजीव 'सलिल' १५०/-
०३. कुरुक्षेत्र गाथा खंड काव्य -स्व. डी.पी.खरे -आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
०४. पहला कदम काव्य संग्रह -डॉ. अनूप निगम १००/-
०५. कदाचित काव्य संग्रह -स्व. सुभाष पांडे १२०/-
०६. Off And On -English Gazals -Dr. Anil Jain ८०/-
०७. यदा-कदा -उक्त का हिंदी काव्यानुवाद- डॉ. बाबू जोसफ-स्टीव विंसेंट
०८. Contemporary Hindi Poetry - B.P. Mishra 'Niyaz' ३००/-
०९. महामात्य महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' ३५०/-
१०. कालजयी महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' २२५/-
११. सूतपुत्र महाकाव्य -दयाराम गुप्त 'पथिक' १२५/-
१२. अंतर संवाद कहानियाँ -रजनी सक्सेना २००/-
१३. दोहा-दोहा नर्मदा दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१४. दोहा सलिला निर्मला दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा २५०/-
१५. दोहा दिव्य दिनेश दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा ३००/-
१६. सड़क पर गीत-नवगीत संग्रह आचार्य संजीव 'सलिल' ३००/-
१७. The Second Thought - English Poetry - Dr .Anil Jain​ १५०/-
१८. मौसम अंगार है नवगीत संग्रह -अविनाश ब्योहार १६०/-
१९. सार्थक लघुकथाएँ -सं. संजीव सलिल-कांता रॉय प्रकाशनाधीन 
२०. आदमी जिन्दा है लघुकथा संग्रह -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' २००/-  यंत्रस्थ
२१. दिव्य गृह - खंड काव्य   -आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' १५०/-  यंत्रस्थ
      (रोमानियन काव्य लुसिआ फेरुल का दोहा भावानुवाद)
२२. हस्तिनापुर की बिथा-कथा (बुंदेली महाकाव्य ) डॉ. मुरारीलाल खरे २००/- 
२३ दोहा है आशा-किरण दोहा संकलन -सं. सलिल-डॉ. साधना वर्मा प्रकाशनाधीन 
२४. प्रतिनिधि लघुकथाएँ -सं. -संजीव सलिल, छाया सक्सेना  प्रकाशनाधीन  

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मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

कुण्डलिया

कार्य शाला
*
तन की मनहर बाँसुरी, मन का मधुरिम राग।
नैनों से मुखरित हुआ, प्रियतम का अनुराग।।  -मिथिलेश बड़गैयाँ
प्रियतम का अनुराग, सलिल सम प्रवहित होता।
श्वास-श्वास में प्रवह,  सतत नव आशा बोता।।
जान रहे मिथिलेश, चाह सिय-रघुवर-मन की। 
तज सिंहासन राह, गहेंगे हँसकर वन की।।     - संजीव
*** 

kahani kahani ki 1

कहानी कहानी की १ 
संजीव 
*
मनुष्य ने बोलना सीखने के साथ अपने जीवनानुभवों को एक-दूसरे से कहना आरंभ किया तो कहानी विधा का जन्म हुआ। सामान्यत: किसी घटना, अनुभव या प्रतिक्रिया को आपस में कहा-सुना गया। इसीलिये पुरातन साहित्य में कहानी को वार्ता कहा गया, जैसे 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता'। कहानी कही जाए तो किससे कही जाए? उपयुक्त पात्र आवश्यक है, 'किससे' की तलाश ने 'कहानी' को 'किस्सा' बन दिया और तमाम किस्से कहे गए। कहानी में केवल सच कहना न तो रोचक होता है, न  हमेशा उपयुक्त, इसलिए उसमें बात घुमा-फिराकर कल्पना का पुट देते हुए कही गई। कल्पना के आधिक्य ने 'गप्प' का रूप धारण किया तो कहानी को एक और नाम मिला 'गल्प'। कहानी रचना किसी नायक की महानता, किसी जीवन मूल्य स्थापना को 'कथ्य' बनाकर कहा गया तो वह 'कथा' हो गई जैसे 'सत्य नारायण की कथा'। कहानी के नामकरण का आधार उसकी अंतर्वस्तु बना। 

सामाजिक उपचार: 
कहानी को कहने की क्रिया निरुद्देश्य नहीं है। कहानी समय बिताने का माध्यम मात्र कभी नहीं रही। कहानी रचने-कहने के उद्देश्य के आधार पर कहानी को अनेक नाम मिले। लोक कथा वह जो लोक मूल्यों, लोक की जीवन शैली, लोक के संघर्षों, लोक की आकांक्षाओं कहे। लोक को पेट भरने से ही अवकाश न मिले तो कहानी क्या खाक कहे? कहानी न कही जाए तो सुख-दुःख कैसे व्यक्त हो? सामाजिक असंतोष का प्रेशर कुकर फट न जाए इसलिए कहानियों के माध्यम से असंतोष की वाष्प बाहर की जाती रही। मनोरंजन के आधुनिक साधन विकसित न होने तक चौपालें, पनघट, नुक्कड़ और चबूतरे कहानी के केंद्र होते थे। हर गाँव या मोहल्ले में कोई न कोई किस्सेबाज अपनी वाक्पटुता से जन-मन का रंजन करता रहता और दर्द-पीड़ा या भावों का शमन होता रहता। इसलिए भारत में क्रांति की भ्रांति नहीं हुई। कहानीकार या श्रोताओं को सामाजिक कथा-वार्ता ने एकसूत्र में बाँधा।  प्रशासनिक अत्याचार, विदेशी आक्रमण, मौसम की मार, साधनाभाव आदि सभी को एक साथ, एक समान झेलनी होती थी।  इसलिए वर्ण, जाति और आर्थिक विभाजन के बाद भी भारतीय समाज एक सूत्र में बँधा रहा। इस सामाजिक संगठन का श्रेय 'कहानी को है।  

धार्मिक नैतिकता 
लोक ने तमाम व्यस्तता और उत्पीड़न के बाद भी अपनी जिजीविषा को धर्म के साथ मिश्रित कर जीवन शक्ति पाने के साथ विविध पीढ़ियों को जोड़कर परिवार संस्था को मजबूत किया। ऐसी लोककथाएँ विविध पर्वों पर माँ-बेटी, सास-बहू, ननद-भौजाई, भाई-बहिन के संबंधों को आधार बनाकर सदियों तक कही-सुनी जाती रहीं। ऐसी अनेक कथाएँ आज भी कही-सुनी या पढ़ी जाती हैं। इन्हें 'धार्मिक कथा कहा जाता है। इनके बिना कोई पर्व संपन्न नहीं होता। करवाचौथ, छठ, अन्नकूट, पूर्णिमा आदि की कहानियाँ तो अधिकाँश जनों को स्मरण हैं। इन कहानियों में अधिकतर किसी देवी-देवता का विधिवत पूजन न होने पर उसके रुष्ट होने के कारन स्वजनों को कष्ट, धन-संपत्ति का नाश, कारावास, लापता होने और संयोग जुटने पर उस दैवीय शक्ति की उपासना करने पर प्रसन्न होकर उपाय बताने या वर देने के वर्णन हैं जिससे कष्ट होकर सब प्रसन्न हो सकें।

शंका नाशक कहानी 
आदिमानव वनवासी था। उसने प्रकृति के विविध उपादानों को जिनसे उसे जीवन यापन के साधन मिलते थे को दैवीय शक्ति का आगार मानकर देवता कहा, पूजा और उसकी महिमा की कथाएँ कहीं। सूर्या, चंद्र, धरती, पवन, अग्नि, आकाश, वृक्ष, नदियाँ, पशु-पक्षी आदि संबंधी कहानियाँ निंजा देव, बड़ा देव, महादेव तक आ गईं। इस कहानियों में जीवन-सत्य ही मूल था। आदिवासियों के कुलों, कबीलों के उद्भव और प्रलय तथा सृष्टि के पुनरारंभ की कहानियाँ तात्कालिक सत्य ही कह रही थीं, जिसे कालांतर में विज्ञान ने भी सत्य प्रमाणित किया। विस्मय यह कि दुनिया के हर क्षेत्र में एक सी अनुभूतियाँ और अभिव्यक्तियाँ हैं। इन कहानियों में शंकाएं भी हैं और उनके समाधान भी। इसलिये लोक देवता को शंकर (शंकारि = शंका का शत्रु) कहकर उसके कंकर में वास करने की बात  कही गई। 'कंकर-कंकर में शंकर' जीवन सूत्र बन गया। ये शंकर सामान्य जन की तरह वन और पर्वतवासी थे, अपनी पत्नी के साथ लोक का सुख-दुःख जानने-समझने के लिए वेश बदलकर घूमते थे। उनकी कथाएँ 'हारे को हरिनाम' की तरह टूटे मन को जोड़ने की सामर्थ्य रखती थीं, हैं और रहेंगी। जन-गण के साथ कदम से कदम, कंधे से कन्धा मिलाकर चलनेवाला, उलझनों के सर्प, बाधाओं के विष और उपलब्धियों के चन्द्रमा को सम भाव से धारणकर सर्व सुलभ वृषभ पर न केवल घूमने वाला अपितु जान-भय कारक सिंह की स्वामिनी को जीवन संगिनी बनाकर जन सामान्य को भीत करने वाले दैत्यों का संहार करने-करनेवाला लोक देव न हो तो कौन हो? कहने उसका यह न कहे तो किसका कहे? शंका का अंत होने पर जन्म होता है विश्वास का। विश्वास एक पल में नहीं होता। जीवन मूल्यों की वाहक प्रथाओं को लोभ का गज और अविश्वास का मूषक कुतरने लगे तो श्रद्धा और शक्ति मिलकर जिस संतान को सामने लाती हैं उसके अंधविश्वासी शीश का कर्तन कर सत्यासत्य को जानने-माननेवाली मति युक्त मस्तिष्क से जोड़कर कहानी 'गणपति' को प्रतिष्ठित करती है। ये गणपति 'स्व' को 'सर्व' माननेवाले कार्तिकेय को 'श्रद्धा-विश्वास' की परिक्रमा कर पराजित करते हैं।शंका का अंत सत्य से ही होता है।
                                                                                                                                                        क्रमश: 

laghukatha

तीन काल खंड तीन लघु कथाएँ :

१. जंगल में जनतंत्र

जंगल में चुनाव होनेवाले थे।

मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'


' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।

तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिएरखिए' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।

विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '

१९९४

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२. समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
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३. मी टू

वे लगातार कई दिनों से कवी की रचनाओं की प्रशंसा कर रही थीं। आरंभ में अनदेखी करने करने के बाद कवि ने शालीनतावश उत्तर देना आवश्यक समझा। अब उन्होंने कवि से कविता लिखना सिखाने का आग्रह किया। कवि जब भी भाषा के व्याकरण या पिंगल की बात करता वे अपने नए चित्र के साथ अपनी उपेक्षा और शोषण की व्यथा-कथा बताने लगतीं।
एक दिन उन्होंने कविता सीखने स्वयं आने की इच्छा व्यक्त की। कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने कवि पर स्त्री की अवमानना करने का आरोप जड़ दिया। कवि फिर भी मौन रहा।

ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपने निर्वसन चित्र भेजते हुए कवि को अपने निवास पर या कवि के चाहे स्थान पर रात गुजारने का आमंत्रण देते हुए कुछ गज़लें देने की माँग कर दी, जिन्हें वे मंचों पर पढ़ सकें।
कवि ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। अब वे किसी अन्य द्वारा दी गयीं ३-४ गज़लें पढ़ते हुए मंचों पर धूम मचाए हुए हैं। कवि स्तब्ध जब एक साक्षात्कार में उन्होंने 'मी टू' का शिकार होने की बात कही। कवि समय की माँग पर लिख रहा है स्त्री-विमर्श की रचनाएँ पर उसका जमीर चीख-चीख कर कह रहा है 'मी टू'।
११.१२.२०१८
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सोमवार, 10 दिसंबर 2018

muktak

मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है                                                                                                                                     
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है                                                                                                                            कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना                                                                                                                      जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
*

muktika

मुक्तिका 
*
कौन सगा है? कौन पराया है?
ठेंगा सबने हमें बताया है 
*
पड़ी जरूरत याद किया हमको 
काम हुआ झट हमें भुलाया है
*
जिसका दामन पाक रहा दिखता
मिला पंक में हमें नहाया है
*
स्वर्ण महल में मिले इंद्र-रावण 
सीता को वनवास दिलाया है
*
प्राण रहे जिसमें संजीव वही
सत्य समय ने यही सिखाया है
***

अठारह मात्रिक पौराणिक जातीय छंद

muktak

मुक्तक 
शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो तो। 
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो तो।  
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो-
मानव जीवन कि सार्थकता 'सलिल' पुलक अवरेखो तो । 
*

doha shiv

दोहा-दोहा शिव बसे  -
उदय भानु का जब हुआ,
तभी ही हुआ प्रभात.
नेह नर्मदा सलिल में,
क्रीड़ित हँस नवजात.
.
बुद्धि पुनीता विनीता,
शिविर की जय-जय बोल.
सत्-सुंदर की कामना,
मन में रहे टटोल.
.
शिव को गुप्तेश्वर कहो,
या नन्दीश्वर आप.
भव-मुक्तेश्वर भी वही,
क्षमा ने करते पाप.
.
चित्र गुप्त शिव का रहा,
कंकर-कंकर व्याप.
शिवा प्राण बन बस रहें
हरने बाधा-ताप.
.
शिव को पल-पल नमन कर,
तभी मिटेगा गर्व.
मति हो जब मिथलेश सी,
स्वजन लगेंगे सर्व.
.
शिवता जिसमें गुरु वही,
शेष करें पाखंड.
शिवा नहीं करतीं क्षमा,
देतीं निश्चय दंड.
.
शिव भज आँखें मून्द कर,
गणपति का करें ध्यान.
ममता देंगी भवानी,
कार्तिकेय दें मान.
.
संजीव

soratha

 एक सोरठा: 
उद्यम से हो सिद्ध, कार्य मनोरथ से नहीं।
'सलिल, लक्ष्य हो बिद्ध, सतत निशाना साधिए।।
*

छंद बह्र का मूल है

कार्यशाला 
छंद बह्र का मूल है  
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २ 
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय मानवी अमानवी छंद 
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
*

टीप: बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिनी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
***
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा

रविवार, 9 दिसंबर 2018

कुण्डलिया

एक रचना
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
यायावर जी के घुटने को नमन
९.१२.२०१८


शनिवार, 8 दिसंबर 2018

आयुर्वेद

दोहा-दोहा चिकित्सा 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
खाँसी कफ टॉन्सिल अगर, करती हो हैरान। 
कच्ची हल्दी चूसिए, सस्ता, सरल निदान।।
*
खाँस-खाँस मुँह  हो रहा, अगर आपका लाल। 
पान शहद अदरक मिला, चूसें करे कमाल।। 
*
करिए गर्म अनार रस, पिएँ न खाँसें मीत। 
चूसें काली मिर्च तो, खाँसी हो भय-भीत।।
*
दमा ब्रोन्कियल अस्थमा, करे अगर बेचैन। 
सुबह पिएँ गो मूत्र नित, ताजा पाएँ चैन।।
*
पीस दालचीनी मिला, शहद पीजिए मीत।
पानी गरम सहित घटे, दमा न रहिए भीत।।
*
ग्रस्त तपेदिक से अगर, पिएँ आप छह माह। 
नित ताजा गोमूत्र तो, मिले स्वास्थ्य की राह।।
वात-पित्त-कफ दोष का, नीबू करता अंत
शक्ति बढ़ाता बदन की, सेवन करिये कंत
*
ए बी सी त्रय विटामिन, लौह वसा कार्बोज
फॉस्फोरस पोटेशियम, सेवन से दें ओज
*
मैग्निशियम प्रोटीन सँग, सोडियम तांबा प्राप्य
साथ मिले क्लोरीन भी, दे यौवन दुष्प्राप्य
*
नेत्र ज्योति की वृद्धि कर, करे अस्थि मजबूत
कब्ज मिटा, खाया-पचा, दे सुख-ख़ुशी अकूत
*
जल-नीबू-रस नमक लें, सुबह-शाम यदि छान
राहत दे गर्मियों में, फूँक जान में जान
*
नींबू-बीज न खाइये, करे बहुत नुकसान
भोजन में मत निचोड़ें, बाद करें रस-पान
*
कब्ज अपच उल्टियों से, लेता शीघ्र उबार
नीबू-सेंधा नमक सँग, अदरक है उपचार
*
नींबू अजवाइन शहद, चूना-जल लें साथ
वमन-दस्त में लाभ हो, हँसें उठकर माथ
*
जी मिचलाये जब कभी, तनिक न हों बेहाल
नीबू रस-पानी-शहद, आप पियें तत्काल
*
नींबू-रस सेंधा नमक, गंधक सोंठ समान
मिली गोलियाँ चूसिये, सुबह-शाम गुणवान
*
नींबू रस-पानी गरम, अम्ल पित्त कर दूर
हरता उदर विकार हर, नियमित पियें हुज़ूर
*
आधा सीसी दर्द से, परेशान-बेचैन
नींबू रस जा नाक में, देता पल में चैन
*
चार माह के गर्भ पर, करें शिकंजी पान
दिल-धड़कन नियमित रहे, प्रसव बने आसान
*
कृष्णा तुलसी पात ले, पाँच- चबायें खूब
नींबू-रस पी भगा दें, फ्लू को सुख में डूब
*
पियें शिकंजी, घाव पर, मलिए नींबू रीत
लाभ एक्जिमा में मिले, चर्म नर्म हो मीत
*
कान दर्द हो कान में, नींबू-अदरक अर्क
डाल साफ़ करिये मिले, शीघ्र आपको फर्क
*
नींबू-छिलका सुख कर, पीस फर्श पर डाल
दूर भगा दें तिलचटे, गंध करे खुशहाल
*
नीबू-छिलके जलाकर, गंधक दें यदि डाल
खटमल सेना नष्ट हो, खुद ही खुद तत्काल
*
पीत संखिया लौंग संग, बड़ी इलायची कूट
नींबू-रस मलहम लगा, करें कुष्ठ को हूट
*
नींबू-रस हल्दी मिला, उबटन मल कर स्नान
नर्म मखमली त्वचा पा, करे रूपसी मान
*
मिला नारियल-तेल में, नींबू-रस नित आध
मलें धूप में बदन पर, मिटे खाज की व्याध
*
खूनी दस्त अगर लगे, घोलें दूध-अफीम
नींबू-रस सँग मिला पी, सोयें बिना हकीम
*
बवासीर खूनी दुखद, करें दुग्ध का पान
नींबू-रस सँग-सँग पियें, बूँद-बूँद मतिमान
*
नींबू-रस जल मिला-पी, करें नित्य व्यायाम
क्रमश: गठिया दूर हो, पायेंगे आराम
*
गला बैठ जाए- करें, पानी हल्का गर्म
नींबू-अर्क नमक मिला, कुल्ला करना धर्म
*
लहसुन-नींबू रस मिला, सिर पर मल कर स्नान
मुक्त जुओं से हो सकें, महिलायें अम्लान
*
नींबू-एरंड बीज सम, पीस चाटिये रात
अधिक गर्भ संभावना, होती मानें बात
*
प्याज काट नीबू-नमक, डाल खाइये रोज
गर्मी में हो ताजगी, बढ़े देह का ओज
*
काली मिर्च-नमक मिली, पियें शिकंजी आप
मिट जाएँगी घमौरियाँ, लगे न गर्मी शाप
*
चेहरे पर नींबू मलें, फिर धो रखिये शांति
दाग मिटें आभा बढ़े, अम्ल-विमल हो कांति
*
नमक आजवाइन मिला, नीबू रस के संग। 
आधा कप पानी पिएँ, करती वायु न तंग।।
अदरक अजवाइन नमक, नीबू रस में डाल। 
हो जाए जब लाल तब, खाकर हों खुशहाल।।
घटे पीलिया नित्य लें, गहरी-गहरी श्वास।
सुबह-शाम उद्यान में, अधरों पर रख हास।।   
लहसुन अजवाइन मिला, लें सरसों का तेल।
गरम करें छानें मलें, जोड़-दर्द मत झेल।।
कान-दर्द खुजली करे, खाएँ कढ़ी न भात। 
खारिश दाद न रह सके, मिले रोग को मात।।  
*  
डालें बकरी-दूध में, मिसरी तिल का चूर्ण। 
रोग रक्त अतिसार हो, नष्ट शीघ्र ही पूर्ण।।

अजवायन का सत् २५ gram, कपूर २५ ग्राम, पिपरमेंट १० ग्राम, इलायची का तेल १० ग्राम, दालचीनी का तेल १० ग्राम, लौंग का तेल १० ग्राम, बादाम का तेल १० ग्राम- एक शीशी में डालकर १०-१५ मिनट हिलाएं। यह मिश्रण अनेक रोगों की राम बाण दावा 'अमृतधारा' है। इसके उपयोग से खाँसी, जुकाम, बदहजमी, पेट-दर्द, कई, दस्त, हैजा, दंत-दर्द, बिच्छू-दंश आदि में तुंरत आराम lहोता है।



वीणावादिनी वंदना

काव्यानुवाद
वीणावादिनी वंदना
*
सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति।
विनय करीन इ वींनवूं, मुझ तउ अविरल मत्ति।।
(संवत १६७७, ढोल मारू दा दोहा से)
*
सुरसुरों की स्वामिनी, सुनें शारदा मात।
विनय करूँ सर नवा दो, निर्मल मति सौगात।।

मुक्तक

मुक्तक 
माँ 
माँ की महिमा जग से न्यारी, ममता की फुलवारी 
संतति-रक्षा हेतु बने पल भर में ही दोधारी 
माता से नाता अक्षय जो पाले सुत बडभागी-
ईश्वर ने अवतारित हो माँ की आरती उतारी
नारी
नर से दो-दो मात्रा भारी, हुई हमेशा नारी
अबला कभी न इसे समझना, नारी नहीं बिचारी
माँ, बहिना, भाभी, सजनी, सासु, साली, सरहज भी
सखी न हो तो समझ जिंदगी तेरी सूखी क्यारी
*
पत्नि
पति की किस्मत लिखनेवाली पत्नि नहीं है हीन
भिक्षुक हो बारात लिए दर गए आप हो दीन
करी कृपा आ गयी अकेली हुई स्वामिनी आज
कद्र न की तो किस्मत लेगी तुझसे सब सुख छीन
*
दीप प्रज्वलन
शुभ कार्यों के पहले घर का अँगना लेना लीप
चौक पूर, हो विनत जलाना, नन्हा माटी-दीप
तम निशिचर का अंत करेगा अंतिम दम तक मौन
आत्म-दीप प्रज्वलित बन मोती, जीवन सीप
*
परोपकार
अपना हित साधन ही माना है सबने अधिकार
परहित हेतु बनें समिधा, कब हुआ हमें स्वीकार?
स्वार्थी क्यों सुर-असुर सरीखा मानव होता आज?
नर सभ्यता सिखाती मित्रों, करना पर उपकार
*
एकता
तिनका-तिनका जोड़ बनाते चिड़वा-चिड़िया नीड़
बिना एकता मानव होता बिन अनुशासन भीड़
रहे-एकता अनुशासन तो सेना सज जाती है-
देकर निज बलिदान हरे वह, जनगण कि नित पीड़
*
असली गहना
असली गहना सत्य न भूलो
धारण कर झट नभ को छू लो
सत्य न संग तो सुख न मिलेगा
भोग भोग कर व्यर्थ न फूलो
***

माया छंद

छंद सलिला :
माया छंद, 
संजीव
*
छंद विधान: मात्रिक छंद, दो पद, चार चरण, सम पदांत, 
पहला-चौथा चरण : गुरु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु,
दूसरा तीसरा चरण : लघु गुरु लघु-गुरु गुरु लघु-लघु गुरु लघु-गुरु गुरु।
उदाहरण:
१. आपा न खोयें कठिनाइयों में, न हार जाएँ रुसवाइयों में
रुला न देना तनहाइयों में, बोला अबोला तुमने कहो क्यों?
२. नादानियों का करना न चर्चा, जमा न खोना कर व्यर्थ खर्चा
सही नहीं जो मत आजमाओ, पाखंडियों की करना न अर्चा
३. मौका मिला तो न उसे गँवाओ, मिले न मौक़ा हँस भूल जाओ
गिरो न हारो उठ जूझ जाओ, चौंके ज़माना बढ़ लक्ष्य पाओ
#हिंदी_ब्लॉगर
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जनजातियाँ

भारत की प्रमुख जनजातियाँ
आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी।
झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील।
महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा, कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।
पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।
हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।
मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।
त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।
कश्मीर: गुर्जर।
गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।
उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।
उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।
केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।
छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।
तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।
कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।
उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।
राजस्थान: मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।
अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।
विश्व की प्रमुख जनजातियाँ
🎎एस्किमों – एस्कीमों जनजाति उत्तरी अमेरिका के कनाड़ा, ग्रीनलैण्ड और साइबेरिया क्षेत्र में पाई जाती है !
🎎यूकाधिर – यह साइबेरिया में रहने वाली जनजाति है। यह मंगोलाइड प्रजाति से संबंधित जनजाति है, इनकी आँखें आधी खुली होती है और रंग पीला होता है !
🎎ऐनू – यह ‘जापान’ की जनजाति है !
🎎बुशमैन – यह दक्षिण अफ्रीका और अफ्रीका के कालाहारी मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎अफरीदी – पाकिस्तान !
🎎माओरी – न्यूजीलैण्ड, आॅस्टेलिया।
🎎मसाई – अफ्रीका के कीनिया में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎जुलू – दक्षिण अफ्रीका के नेटाल प्रांत में !
🎎बद्दू – अरब के मरूस्थल में पाई जाने वाली जनजाति है !
🎎पिग्मी – कांगो बेसिन (अफ्रीका) !
🎎पापुआ – न्यूगिनी !
🎎रेड इण्डियन – दक्षिण अमेरिका !
🎎लैप्स – फिनलैण्ड और स्काॅटलैण्ड !
🎎खिरगीज – मध्य एषिया के स्टेपी क्षेत्र !
🎎बोरो – अमेजन बेसिन !
🎎बेद्दा – श्रीलंका !
🎎सेमांग – मलेशिया !
🎎माया – मेक्सिको !
🎎फूलानी – अफ्रीका के नाइजीरिया में !
🎎बांटू – दक्षिणी एवं मध्य अफ्रीका !
🎎बोअर – दक्षिणी अफ्रीका !