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बुधवार, 5 जुलाई 2017

achal chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा ३८ : छन्द
अचल छंद
*
अपने नाम के अनुरूप इस छंद में निर्धारित से विचलन की सम्भावना नहीं है. यह मात्रिक सह वर्णिक छंद है। इस चतुष्पदिक छंद का हर पद २७ मात्राओं तथा १८ वर्णों का होता है। हर पद (पंक्ति) में ५-६-७ वर्णों पर यति इस प्रकार है कि यह यति क्रमशः ८-८-११ मात्राओं पर भी होती है। मात्रिक तथा वार्णिक विचलन न होने के कारण इसे अचल छंद कहा गया है। छंद प्रभाकर तथा छंद क्षीरधि में दिए गए उदाहरणों में मात्रा बाँट १२१२२/१२१११२/२११२२२१ रखी गयी है। तदनुसार
उदाहरण -
१.
सुपात्र खोजे, तभी समय दे, मौन पताका हाथ।
कुपात्र पाये, कभी न पद- दे, शोक सभी को नाथ।।
कभी नवायें, न शीश अपना, छूट रहा हो साथ-
करें विदा क्यों, सदा सजल हो, नैन- न छोड़ें हाथ।।
*
वर्ण तथा मात्रा बंधन यथावत रखते हुए मात्रा बाँट में परिवर्तन करने से इस छंद में प्रयोग की विपुल सम्भावनाएँ हैं.
उदाहरण-
१.
मौन पियेगा, ऊग सूर्य जब, आ अँधियारा नित्य।
तभी पुजेगा, शिवशंकर सा, युगों युगों आदित्य।।
चन्द्र न पाये, मान सूर्य सम, ले उजियारा दान-
इसीलिये तारक भी नभ में, करें न उसका मान।।
*
इस तरह के परिवर्तन करने पर उसे अचल छंद ही कहा जाए या कोइ नया नामकरण किया जाए? विद्वज्जनों के अभिमत आमंत्रित हैं।
***
५-७-२०१६
अब तक प्रस्तुत छंद: दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा, इंद्रवज्रा, सखी, वासव, अचल तथा धृति।
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doha

दोहा सलिला:
*
रमा रमा में मन रहा, किसको याद रमेश?
छोड़ विष्णु श्री लक्ष्मी, पुजतीं संग गणेश
*
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मंगलवार, 4 जुलाई 2017

mukatak

मुक्तक लोम-विलोम: जड़-चेतन
(१) जड
*****
जड़ बन जड़ मत खोदिए, जड़ चेतन का मूल।
जड़ बिन खड़ा गिरे तुरत, करिए कभी न भूल।।
जमीं रहे जड़ जमीन में, हँस छू लें आकाश-
जड़ता तज चेतन बनें, नाहक मत दें तूल।।
************************
(२) चेतन
*********
चेत न मन सोया बहुत अब चेतन हो जाग।
डूब नहीं अनुराग में, भाग न वर वैराग।।
सतत समन्वय-संतुलन से जीअवन हो पूर्ण-
'सलिल' न जल में डूबना, नहीं लगाना आग।।
*************************
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muktak

मुक्तक
मंगलवार, दिनांक ४-७-२०१७
विषय कसूर
*
ओ कसूरी लाल! तुझको कया कहूँ?
चुप कसूरों को क्षमाकर क्यों दहूँ?
नटखटी नटवर न छोडूँ साँवरे!
रास-रस में साथ तेरे हँस बहूँ.
*
तू कहेगा झूठ तो भी सत्य हो.
तू करे हुडदंग तो भी नृत्य है.
साँवरे ओ बाँवरे तेरा कसूर
जगत कहता ईश्वर का कृत्य है.
*
कौन तेरे कसूरों से रुष्ट है?
छेड़ता जिसको वही संतुष्ट है.
राधिका, बाबा या मैया जशोदा-
सभी का ऐ कसूरी तू इष्ट है.
***
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kshanika

क्षणिका:
आभार
अर्थात आ भार.
तभी कहें
जब सकें स्वीकार
*
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doha geet:

दोहा गीत:
*
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
कंकर-कंकर में वही
शंकर कहते लोग
संग हुआ है किस तरह
मक्का में? संजोग
जगत्पिता जो दयामय
महाकाल शशिनाथ
भूतनाथ कामारि वह
भस्म लगाए माथ
भोगी-योगी
सनातन
नाद वही ओंकार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
*
है अगम्य वह सुगम भी
अवढरदानी ईश
गरल गहे, अमृत लुटा
भोला है जगदीश
पुत्र न जो, उनका पिता
उमानाथ गिरिजेश
नगर न उसको सोहते
रुचे वन्य परिवेश
नीलकंठ
नागेश हे!
बसो ह्रदय-आगार
काश!
कभी हम पा सकें,
उसके भी दीदार
***
४-७-२०१६
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baal kavita

: बाल कविता :
संजीव 'सलिल'
*
आन्या गुडिया प्यारी,
सब बच्चों से न्यारी।
.
गुड्डा जो मन भाया,
उससे हाथ मिलाया।
.
हटा दिया मम्मी ने,
तब दिल था भर आया।
.
आन्या रोई-मचली,
मम्मी थी कुछ पिघली।
.
''नया खिलौना ले लो'',
आन्या को समझाया।
.
शाम को पापा आए
मम्मी पर झल्लाए।
*
हुई रुआँसी मम्मी
आन्या ने ली चुम्मी।
*
बोली: ''इनको बदलो
साथ नये के हँस लो''।
*
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nadi pariyojana

जन का पैगाम - जन नायक के नाम

प्रिय नरेंद्र जी!, उमा जी!
सादर वन्दे मातरम।
मुझे आपका ध्यान नदी घाटियों के दोषपूर्ण विकास की ओर आकृष्ट करना है।
मूलतः नदियां गहरी तथा किनारे ऊँचे पहाड़ियों की तरह और वनों से आच्छादित थे। कालिदास का नर्मदा तट वर्णन देखें। मानव ने जंगल काटकर किनारों की चट्टानें, पत्थर और रेत खोद लिये तो नदी का तक और किनारों का अंतर बहुत कम बचा। इससे भरनेवाले पानी की मात्रा और बहाव घट गया, नदी में कचरा बहाने की क्षमता न रही, प्रदूषण फैलने लगा, जरा सी बरसात में बाढ़ आने लगी, उपजाऊ मिट्टी बाह जाने से खेत में फसल घट गयी, गाँव तबाह हुए।
इस विभीषिका से निबटने हेतु कृपया, निम्न सुझावों पर विचार कर विकास कार्यक्रम में यथोचित परिवर्तन करने हेतु विचार करें:
१. नदी के तल को लगभग १० - १२ मीटर गहरा, बहाव की दिशा में ढाल देते हुए, ऊपर अधिक चौड़ा तथा नीचे तल में कम चौड़ा (U आकार) में खोदा जाए। इस खुदाई के पूर्व नदी के बहाव क्षेत्र में वर्षा का अनुमान कर पानी की मात्रा निकाल कर तदनुसार बहाव मार्ग खोदना होगा इससे सर्वाधिक वर्षा होने पर भी पानी नदी से बहेगा तथा समीपस्थ शहरों में न घुसेगा। 
२. खुदाई में निकली सामग्री से नदी तट से १-२ किलोमीटर दूर संपर्क मार्ग तथा किनारों को पक्का बनाया जाए ताकि वर्षा और बाढ़ में किनारे न बहें।
३. घाट तक आने के लिये सड़क की चौड़ाई छोड़कर शेष किनारों पर घने जंगल लगाए जाएँ जिन्हें घेरकर प्राकृतिक वातावरण में पशु-पक्षी रहें मनुष्य दूर से देख आनंदित हो सके।
४. गहरी हुई बड़ी नदियों में बड़ी नावों और छोटे जलयानों से यात्री और छोटी नदियों में नावों से यातायात और परिवहन बहुत सस्ता और सुलभ हो सकेगा। बहाव की दिशा में तो नदी ही अल्प ईंधन में पहुँचा देगी। सौर ऊर्जा चलित नावों (स्टीमरों) से वर्ष में ८-९ माह पेट्रोल-डीज़ल की तुलना में लगभग एक बटे दस ढुलाई व्यय होगा। प्राचीन भारत में जल संसाधन का प्रचुर प्रयोग होता था।
५. घाटों पर नदी धार से ३००-५०० मीटर दूर स्नानागार-स्नान कुण्ड तथा पूजनस्थल हों जहाँ जलपात्र या नल से नदी का पानी उपलब्ध हो। नदी के दर्शन करते हुए पूजन-तर्पण हो। प्रयुक्त दूषित जल व् अन्य सामग्री घाट पर बने लघु शोधन संयंत्र में उपचारित का शुद्ध जल में परिवर्तित की जाने के बाद नदी के तल में छोड़ा जाए। इस तरह जन सामान्य अपने पूजा-पाठ सम्पादित कर सकेगा तथा नदी भी प्रदूषित न होगीi। इस परिवर्तन के लिये संतों-पंडों तथा स्थानीय जनों को पूर्व सहमत करने से जन विरोध नहीं होगा।


६. नदी के समीप हर शहर, गाँव, कस्बे, कारखाने, शिक्षा संस्थान, अस्पताल आदि में हर भवन का अपना लघु जल-मल निस्तारण केंद्र हो। पूरे शहर के लिए एक वृहद जल-नल केंद्र मँहगा, जटिल तथा अव्यवहार्य है जबकि लघु ईकाइयाँ कम देख-रेख में सुविधा से संचालित होने के साथ स्थानीय रोजगार भी सृजित करेंगी। इनके द्वारा उपचारित जल य्द्य्नों की सिंचाई, सडकों -भवनों की ढुलाई आदि में प्रयोग के बाद साफ़ कर नदियों में छोड़ना सुरक्षित होगा।

७. एक से अधिक राज्यों में बहने वाली नदियों पर विकास योजना केंद्र सरकार की देख-रेख और बजट से हो जबकि एक राज्य की सीमा में बह रही नदियों की योजनाओं की देख-रेख और बजट केंद्र सरकार तथा एक राज्य में बाह रहे नदियों के परियोजनाएं राज्य सरकारें देखें। जिन स्थानों पर निवासी २५ प्रतिशत जन सहयोग उपलब्ध कराएँ, उन्हें प्राथमिकता दी जाए। देश के कुछ हिस्सों में स्थानीय जनों ने बाँध बनाकर या पहाड़ खोदकर बिना सरकारी सहायता के अपनी समस्या का निदान खोज लिया है और इनसे लगाव के कारण वे इनकी रक्षा व मरम्मत भी खुद करते हैं जबकि सरकारी मदद से बनी योजनाओं को आम जन ही लगाव न होने से हानि पहुँचाते हैं। इसलिए श्रमदान अवश्य हो। सन ७५ के दशक तक सरकारी विकास योजनाओं पर ५० प्रतिशत श्रमदान की शर्त थी, जो क्रमशः कम कर शून्य कर दी गयी तो आमजन लगाव ख़त्म हो जाने के कारण सामग्री की चोरी करने लगे और कमीशन माँगा जाने लगा। इस योजना से सप्ताह में एक दिन की मजदूरी  श्रमदान करनेवालों को आजीवन शत-प्रतिशत रोजगार मिलेगा। 
८. नर्मदा में गुजरात से जबलपुर तक, गंगा में बंगाल से हरिद्वार तक तथा राजस्थान, महाकौशल, बुंदेलखंड और बघेलखण्ड में छोटी नदियों से जल यातायात होने पर इन पिछड़े क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा।
९. इससे भूजल स्तर बढ़ेगा और सदियों के लिए पेय जल की समस्या हल हो जाएगी। भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।
नदियों के तटों पर जंगल लगाकर उन्हें अभयारण्य बना दिया जाए जिनमें मनुष्य बड़ी - बड़ी रोप-ट्रोली में सुरक्षित  रहकर वन्य जीवन को देखे और जानवर खुले रहें। 
अभयारण्यों में सर्प्पालन केंद्र बनाकर सर्प विष का व्यवसाय किया जा सकेगा। मत्स्य पालन कर आजीविका अवसर के साथ-साथ भोज्य सामग्री का भी उत्पादन होगा। अभयारण्यों में आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के वन लगाने पर वर्षा जल उनकी जड़ों से होकर नदी में मिलेगा, इससे नदी के पानी में रोग निवारण क्षमता होगी तथा जन सामान्य बिना किसी इलाज के अधिक स्वास्थ्य होगा। जड़ी-बूटियों से आजीविका के अवसर बढ़ेंगे।
कृपया, इन बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक विचारण कर, क्रियान्वयन की दिशा में त्वरित कदम उठाये जाने हेतु निवेदन है। संसाधन उपलब्ध कार्य जाने पर मैं इस परियोजना का प्रादर्श (मॉडल) बनाकर दिख सकता हूँ अथवा परियोजना को क्रियान्वित करा सकता हूँ
संजीव वर्मा 
एक नागरिक
संपर्क: ९४२५१ ८३२४४ 
२८-६-२०१४ 

सोमवार, 3 जुलाई 2017

dwipadi

द्विपदी
*
जब तलक मालूम नहीं था, तभी तक मालूम था
जब से कुछ मालुम हुआ तब से न कुछ मालूम है
*

kavita

एक रचना
*
प्रयासों की अस्थियों पर
सुसाधन के मांस बिन.
सफलता चमड़ी
शिथिल हो झूलती.
*
साँस का व्यापार अब
थम सा रहा है.
आस को मँहगाई विषधर
डँस रहा है.
अंकुरों को पतझड़ों का
पान-गुटखा सुहाया पर-
कालिया बन कैंसर
निज पाश में
नित कस रहा है.
तरलता संकल्प की
पथ भूलती.
*
ब्रांडेड मँहगी दवाई
लिख रही सरकार निर्दय.
नाम जी.एस.टी. रहे या
अन्य कोई.
चिढ़ाती मुख
आम जन को
शान-शौकत
ख़ास जन की.
आस्था जो न्याय पर थी
जा कचहरी कोटे काले
देख फंदा झूलती.
*



dwaipadi

द्विपदी
*
जब तलक मालूम नहीं था, तभी तक मालूम था
जब से कुछ मालुम हुआ तब से न कुछ मालूम है
*
चुप को चुप होकर सुन चुप्पी, बोले हर अनबोला
बंद रहे लाखों की मुट्ठी, ख़ाक हुई ज्यों खोला 
*

muktika

हास्य मुक्तिका:
*
हाय मल्लिका!, हाय बिपाशा!!
हाउसफुल पिक्चर की आशा 
*
तुम बिन बोलीवुड है सूना
तुम हो गरमागरम तमाशा
*
तोला-माशा रूप तुम्हारा
झीने कपड़े रत्ती-माशा
*
फ़िदा खुदा, इंसां, शैतां भी
हाय! हाय!! क्या रूप तराशा?
*
गले लगाने ह्रदय मचलता
आँख खुले तो मिले हताशा
*
मानें हार अप्सरा-हूरें
उर्वशियों को हुई हताशा
*
नहा नीर में आग लगा दो
बूँद-बूँद हो मधुर बताशा
***
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muktika

मुक्तिका-
*
सवाल तुमने किये सौ बिना रुके यारां
हमने चाहा मगर फिर भी जवाब हो न सके
*
हमें काँटों के बीच बागबां ने ठौर दिया
खिले हम भी मगर गुल-ए-गुलाब हो न सके
*
नसीब बख्श दे फुटपाथ की शहंशाही
किसी के दिल के कभी हम नवाब हो न सके
*
उठाये जाम जमाना मिला, है साकी भी
बहा पसीना 'सलिल' ही शराब हो न सके
*
जमीन पे पैर तो जमाये, कोशिशें भी करीं
मगर अफ़सोस 'सलिल' आफताब हो न सके
*
३-७-२०१६
#हिंदी_ब्लॉगिंग

geet

एक रचना
हर कविता में कुछ अक्षर
रस बरसा जाते आकर
*
कुछ किलकारी भरते हैं 
खूब शरारत करते हैं
नन्हे-मुन्ने होकर भी
नहीं किसी से डरते हैं
पल-पल गिर-उठ, रो-हँसकर
बढ़ कर फुर से उड़ते हैं
गीत-ग़ज़ल जैसे सस्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ पहुना से संकोची
सिमटे-सिमटे रहते हैं
करते मन की बातें कम
औरों की सुन-सहते हैं
किससे नयन लड़े, किस्से
कहें न मन में दहते हैं
खोजें मिलने के अवसर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ अवगुंठन में छिपकर
थाप लगा दरवाजे पर
हौले-हौले कदम उठा
कब्जा लेते सारा घर
गज़ब कि उन पर शैदा ही
होता घरवाला अक्सर
धूप-चाँदनी सम भास्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ हारे-थककर सोये
अपने में रहते खोये
खाली हाथों में देखें
कहाँ गये सपने बोये?
होंठ हँसें तो भी लगता
मन ही मन में हैं रोये
चाहें उठें न अब सोकर
हर कविता में कुछ अक्षर
*
कुछ अक्षर खो जाते हैं
बनकर याद रुलाते हैं
ज्ञात न वापिस आएँगे
निकट उन्हें हम पाते हैं
सुधियों से संबल देते
सिर नत, कर जुड़ जाते हैं
हो जाते ज्यों परमेश्वर
हर कविता में कुछ अक्षर
*****
३-७-२०१६
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muktak

मुक्तक
*
ज्योति तम हर, जगत ज्योतित कर रही
आत्म-आहुति पंथ हँस कर वर रही
ज्योति बिन है नयन-अनयन एक से 
ज्योति मन-मंदिर में निशि-दिन बर रही
*
ज्योति ईश्वर से मिलाती भक्त को
बचाती ठोकर से कदम अशक्त को
प्राण प्रभु से मिल सके तब ही 'सलिल'
ज्योति में मन जब हुआ अनुरक्त हो
*
ज्योति मन में जले अंधा सूर हो
और मीरा के ह्रदय में नूर हो
ज्योति बिन सूरज, न सूरज सा लगे
चन्द्रमा का गर्व पल में चूर हो
*
ज्योति का आभार सब जग मानता
ज्योति बिन खुद को न कोेेई जानता
ज्योति नयनों में बसे तो जग दिखे
ज्योति-दीपक से अँधेरा हारता
*
षट्पदी
ज्योति में आकर पतंगा जल मरे
दोष क्या है ज्योति का?, वह क्यों डरे?
ज्योति को तूफां बुझा दे तो भी क्या?
आखिरी दम तक तिमिर को वह हरे
इसलिए जग ज्योति का वंदन करे
हुए ज्योतित आप जल, मानव खरे
*
३-७-२०१६

#हिंदी_ब्लॉगिंग

हाइकु


हाइकु
ज्योतिर्मयी है
मानव की चेतना
हो ऊर्ध्वमुखी
*
ज्योति है ऊष्म
सलिल है शीतल
मेल जीवन
*
ज्योति जलती
पवन है बहता
जग दहता
*
ज्योति धरती
बाँटती उजियारा
तम पीकर
*
ज्योति जागती
जगत को सुलाती
आप जलकर
*
३-७-२०१७
#हिंदी_ब्लॉगिंग
व्यंग

एक्साईज और सर्विस टैक्स का रिटायरमेंट

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
vivekranjan.vinamra@gmail.com
बंगला नम्बर ऐ १ , विद्युत मंडल कालोनी , शिला कुन्ज , जबलपुर ४८२००८
०९४२५८०६२५२ , ७०००३७५७९८

 महीने का आखिरी दिन मतलब सरकारी दफ्तरो में ढ़ेर सारे रिटायरमेंट और रिटायर होते लोगो की जगह इक्के दुक्के एपांइंटमेंट . बचे खुचे अफसरो को ही मल्टीपल चार्ज दिये जा रहे हैं , सरकारी विभागो में इन दिनो लोगो के रावण जैसे कई कई सिर उगाये जा रहे हैं   . रिटायर होने वाला खुश होता है कि चलो  सही सलामत कट गई .  फैक्ट्री या दफ्तरो के मुख्य दरवाजे पर आजकल  महीने के आखिरी दिन बारात जैसा वातावरण होता है .बैंड , फूलो से सजी गाड़ी , रास्ता जाम ,फटाको का शोर ,  गुलाल उड़ाते लोग एक साथ ही होली दीवाली सब आ जाती है . इससे पहले हर रिटायर होते कर्मचारी अफसर को सर्वश्रेष्ठ इम्पलायी बताते हुये भाषण होते हैं . शाल , श्रीफल , स्मृति चिंह , एकाध प्रशस्ति पत्र , रिटायर होकर बिदा होने वाले के ओहदे के अनुरूप कोई उपहार पकड़ाकर उसे उसके परिवार के हवाले कर दिया जाता है . पत्नी भी घर पहुंचे पति की आरती उतारती है . दो एक दिनो पहले से रिटायरमेंट के बाद तक रात को होटलो में पार्टियां लेने देने  का दौर होता है . कई बार तो जब बिदाई भाषणो में रिटायर व्यक्ति के गुण सुनने को मिलते हैं तो लगता है कि क्या यह उसी आदमी के विषय में बोला जा रहा है , जिस खडूस को हम इतने  दिनो से झेल रहे थे . खैर परिवर्तन प्रकृति का नियम है , एक के जाते ही दूसरा आ जाता है . नये अफसर का स्वागत होता है . अखबारो में विज्ञप्तियां छपती हैं जिनमें नये प्रभारी  मुस्कराती फोटो के साथ अपनी कार्य शैली और लक्ष्य उद्घोषित करते हैं .
 कुछ इसी तरह तीस जून को एक्साईज और सर्विस टैक्स , एंट्री टैक्स वगैरह भी रिटायर हो गये . दोनो देश और राज्यो के कमाऊ पुत्र थे .केवल सरकारो के ही नही , एक्साईज और सर्विस टैक्स से जुड़े छोटे बड़े अफसरों , और वकीलो की भी तिजोरी भरने में इन्होंने कहीं कोई कमी नही छोड़ी .सफेद को काला बनाने में इन टैक्सो का योगदान याद किया जाता रहेगा .  एक जुलाई रात बारह बजे समारोह पूर्वक इनकी जगह आम जनता का कर मुंडन करने जी एस टी ने प्रभार ले लिया है . सरकार की पौ बारह है , ऐसा माना जा रहा है.  मुझे तो उन पत्नियो की चिंता हो रही है , जिनकी शादी ही उनके पिताजी ने अच्छे खासे प्रोफेसर का रिश्ता ठुकराकर एक्साईज इंस्पेक्टर से कर दी थी . बेचारे इंस्पेक्टर साहब जगह जगह सेमीनार करते हुये लोगो में नये गुड्स एन्ड सर्विस टैक्स के लिये एक्सैप्टिबिलिटी का वातावरण बनाते घूम रहे हैं . वकील , चार्टेड एकाउंटेंट जी एस टी के  लूप होल तलाश रहे हैं . चांदी तो साफ्टवेयर बनाने और बेचने वालों की है , बौद्धिक संपदा की वैल्यू की ही जानी चाहिये .
 जैसे रिटायर होते अफसर पर पुरानी फाइलो को निपटाने का प्रैशर होता है , कुछ उसी तरह जगह जगह प्री जीएसटी सेल लगीं . स्टाक क्लियेरेंस के लिये औने पौने दामो चीजें बेंची गईं . नया अफसर पहले माहौल समझता है तब काम शुरू होता है , इसी तरह जी एस टी लग तो गया है पर अभी  समझा समझी का दौर है .
 जीएसटी पूरी तरह कम्प्यूटरी कृत व्यवस्था है . मतलब साफ है कि यदि अगला विश्वयुद्ध लड़ा जायेगा तो वह साइबर युद्ध होगा . किसी भी देश के मुख्य सर्वर्स के हार्डवेयर्स डिस्ट्राय कर दिये जायें , या उस देश का इंटरनेट क्रेश कर दिया जाये , कम्प्यूटर्स हैक कर लिये जायें , साफ्टवेयर्स में वायरस डाल दिये जायें तो देशो की व्यवस्थायें चकनाचूर होते देर नहीं लगेगी . खैर अच्छा अच्छा सोचना चाहिये . यह तो मैने केवल इसलिये लिख दिया कि बाद में मत कहना कि बताया नही था .
 जीएसटी को समझाने के लिये व्हाट्सअप ज्ञानियो ने तरह तरह के मैसेज किये ,  वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी प्रणाली में गरीब और अमीर एक दर से कर देंगे , मैसेज आया , सुपर मार्केट में चीज़ें सस्ती होगी, मोहल्ले की परचून की दुकान, यहाँ तक कि पटरी वाले की चीज़ें भी महँगी होगी , सुपर मार्केट वाले इनपुट क्रेडिट का भरपूर लाभ लेंगे, परचूनिया कुछ नहीं ले पायेगा . मानो  गरीब सुपर मार्केट में नहीं जाते . एक मेसेज आया कि  शादी से पहले देर रात लौटने पर घर पर हरेक को जबाब देना होता था , पर शादी के बाद केवल पत्नी को जबाब देना पड़ता है , कुछ इसी तरह जी एस टी में केवल एक बिंदु पर टैक्स देना होगा . एक मैसेज आया कि जीएसटी में नमक पर टेक्स नही है , इसलिये सत्ता और विरोधी राजनीति एक दूसरे पर खूब नमक छिड़क रहे हैं . एक और मैसेज मिला कि जीएसटी में सस्ते हुये सामानो के लिये सरकार समर्थक फलाना चैनल देखिये , और महंगे हुये सामानो के लिये फलाना चैनल . खैर मैसेज तो बहुत से आप के पास भी आये होंगे , एक आखिरी मैसेज  शेयर कर रहा हूं ,जिससे आप जीएसटी को अच्छी तरह समझ सकें .  टीचर ने पूछा एक आम के पेड़ पर १२ केले लगे हैं , उनमें से ७ अमरूद तोड़ लिये गये तो बताओ कितने चीकू बचे ? छात्र ने उत्तर दिया सर ८ पपीते . शिक्षक ने कहा अरे वाह तुम्हें कैसे पता ? छात्र ने उत्तर दिया सर क्योकि मैं आज पराठे खाकर आया हूं . मारेल आफ दि स्टोरी यह है कि हमें रोज ब्रश करना चाहिये वरना जीएसटी की दरें  बढ़ सकती है .तो सारा देश जीएसटी को समझने में लगा है , आप भी समझिये . पर एक्साईज और सर्विस टैक्स के सुनहरे युग को मत भूलियेगा .

रविवार, 2 जुलाई 2017

muktika

मुक्तिका
*
उन्नीस मात्रिक महापौराणिक जातीय ग्रंथि छंद
मापनी: २१२२ २१२२ २१२
*
खौलती खामोशियों कुछ तो कहो
होश खोते होश सी चुप क्यों रहो?
*
स्वप्न देखो तो करो साकार भी
राह की बढ़ा नहीं चुप हो सहो
*
हौसलों के सौं नहीं मन मारना
हौसले सौ-सौ जियो, मत खो-ढहो
*
बैठ आधी रात संसद जागती
चैन की लो नींद, कल कहना अहो!
*
आ गया जी एस टी, अब देश में
साथ दो या दोष दो, चुप तो न हो
***
divyanarmada.blogspot.in
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geet

गीत:
प्रेम कविता...
संजीव 'सलिल'
*
*
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम कविता को लिखा जाता नहीं है.
प्रेम होता है किया जाता नहीं है..
जन्मते ही सुत जननि से प्रेम करता-
कहो क्या यह प्रेम का नाता नहीं है?.
कृष्ण ने जो यशोदा के साथ पाला
प्रेम की पोथी का उद्गाता वही है.
सिर्फ दैहिक मिलन को जो प्रेम कहते
प्रेममय गोपाल भी
क्या दिख सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
प्रेम से हो क्षेम?, आवश्यक नहीं है.
प्रेम में हो त्याग, अंतिम सच यही है..
भगत ने, आजाद ने जो प्रेम पाला.
ज़िंदगी कुर्बान की, देकर उजाला.
कहो मीरां की करोगे याद क्या तुम
प्रेम में हो मस्त पीती गरल-प्याला.
और वह राधा सुमिरती श्याम को जो
प्रेम क्या उसका कभी
कुछ चुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
अपर्णा के प्रेम को तुम जान पाये?
सिया के प्रिय-क्षेम को अनुमान पाये?
नर्मदा ने प्रेम-वश मेकल तजा था-
प्रेम कैकेयी का कुछ पहचान पाये?.
पद्मिनी ने प्रेम-हित जौहर वरा था.
शत्रुओं ने भी वहाँ थे सिर झुकाए.
प्रेम टूटी कलम का मोहताज क्यों हो?
प्रेम कब रोके किसी के
रुक सका है?
प्रेम कविता कब कलम से
कभी कोई लिख सका है?
*
२-७-२०१०

नवगीत

एक रचना 
*
येन-केन जीते चुनाव हम 
बनी हमारी अब सरकार 
कोई न रोके, कोई न टोके 
करना हमको बंटाढार
*
हम भाषा के मालिक, 

कर सम्मेलन ताली बजवाएँ
टाँगें चित्र मगर 

रचनाकारों को बाहर करवाएँ
है साहित्य न हमको प्यारा, 

भाषा के हम ठेकेदार 
*
भाषा करे विरोध न किंचित, 

छीने अंक बिना आधार
अंग्रेजी के अंक थोपकर, 

हिंदी पर हम करें प्रहार
भेज भाड़ में उन्हें, आज जो 

हैं हिंदी के रचनाकार
लिखो प्रशंसा मात्र हमारी
जो, हम उसके पैरोकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
जो आलोचक उनकी कलमें 

तोड़, नष्ट कर रचनाएँ
हम प्रशासनिक अफसर से, 

साहित्य नया ही लिखवाएँ
अब तक तुमने की मनमानी, 

आई हमारी बारी है
तुमसे ज्यादा बदतर हों हम, 

की पूरी तैयारी है
सचिवालय में भाषा गढ़ने, 

बैठा हर अधिकारी है
छुटभैया नेता बन बैठा, 

भाषा का व्यापारी है
हमें नहीं साहित्य चाहिए,
नहीं असहमति है स्वीकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
२-७-२०१६