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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

doha

दोहा दुनिया
*
राजनीति है बेरहम, सगा न कोई गैर
कुर्सी जिसके हाथ में, मात्र उसी की खैर
*
कुर्सी पर काबिज़ हुए, चेन्नम्मा के खास
चारों खाने चित हुए, अम्मा जी के दास
*
दोहा देहरादून में, मिला मचाता धूम
जितने मतदाता बने, सब है अफलातून
*
वाह वाह क्या बात है?, केर-बेर का संग
खाट नहीं बाकी बची, हुई साइकिल तंग
*
आया भाषणवीर है, छाया भाषणवीर
किसी काम का है नहीं, छोड़े भाषण-तीर
*
मत मत का सौदा करो, मत हो मत नीलाम
कीमत मत की समझ लो, तभी बनेगा काम
*
एक मरा दूजा बना, तीजा था तैयार
जेल हुई चौथा बढ़ा, दो कुर्सी-गल हार
*
१८-२- २०१७

shubhra saxena

स्कूटी से घूमकर महिला DM ने जगाई ऐसी अलख कि UP में अमरोहा ने तोड़ा मतदान का रिकॉर्ड

शुभ्रा सक्सेना का कमाल-  अमरोहा में रिकॉर्ड मतदान  

अमरोहा। जिलों में लीक से हटकर काम करने के लिए हमेशा शासन से शाबासी पाने वालीं यूपी की आईएएस डीएम शुभ्रा सक्सेना ने विधानसभा चुनाव में भी अनूठा काम कर दिखाया। अमरोहा जैसे जिले में मतदान के लिए गजब की जागरूकता पैदा की। कई दिन सुबह-शाम स्कूटी लेकर जागरूकता रैलियां निकालीं। प्रशासनिक अमले के साथ कस्बों से लेकर गांव तक पहुंचीं। लोगों को उनके एक वोट की कीमत समझाकर हर हाल में मतदान के लिए राजी किया। नतीजा रहा कि जब दूसरे चरण का मतदान हुआ तो अमरोहा ने यूपी में सबको पीछे छोड़ दिया। रिकॉर्ड 72 प्रतिशत मतदान हुआ। जबकि पहले और दूसरे चरण के बाकी जिलों में 70 फीसदी से कम मतदान हुआ। हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार सभी जिलों में औसतन पांच प्रतिशत मतदान में इजाफा हुआ है। यूपी में शुभ्रा सक्सेना उन आईआईएस में शुमार हैं, जो कि हमेशा अपने तैनाती वाले जिलों में इनोवेशन के लिए चर्चा में रहते हैं। शाहजहांपुर में प्राथमिक शिक्षा के सुधार सहित कई प्रोग्राम चलाने को लेकर शुभ्रा सुर्खियों में रहीं।
महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया
डीएम शुभ्रा सक्सेना ने रिकॉर्ड मतदान पर खुशी जाहिर की। कहा कि यह बताते हुए और खुशी हो रही है कि जिले की महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। महिलाओं ने जहां 73.94 प्रतिशत मतदान किया वहीं पुरुषों ने 70.99। जिले का औसत मतदान 72.28 प्रतिशत रहा। नौगांव विधानसभा में 77 प्रतिशत महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। इसी तरह धनौरा, , अमरोहा, हसनपुर में भी जमकर मतदान हुआ।

शुभ्रा का मॉडल आयोग ने अपनाया
पोलिंग पार्टियों की रवानगी से लेकर ईवीएम जमा करने की व्यवस्था को सुचारु और आसान करने के लिए शुभ्रा सक्सेना ने मॉडल प्लान तैयार किया था। इसमें एक हेल्प डेस्क से सभी मतदान कार्मिकों को हर जानकारी मिलने की व्यवस्था रही तो ईवीएम मशीन सहित सभी चुनाव सामग्री के लिए अलग-अलग काउंटर खोले गए। जहां एलईडी स्क्रीन पर टोकन नंबर की व्यवस्था रखी गई। ताकि पोलिंग पार्टियां बिना धक्का-मुक्की के निर्वाचन सामग्री प्राप्त कर सकें। यह मॉडल आयोग ने अपनाते हुए सभी जिलों को लागू करने को कहा।
आईआईटियन शुभ्रा सक्सेना रहीं हैं आईएएस टॉपर
शुभ्रा सक्सेना अपने आप में एक मिसाल हैं। आईआईटी रुड़की से बीटेक करने के बाद शुभ्रा सक्सेना को मल्टीनेशनल कंपनी में मोटे पैकेज पर जॉब मिल गई। मगर शुभ्रा को लगा कि इंजीनियर होने के बाद भी जिंदगी में कुछ मिस कर रहीं हैं। फिर अचाकन से प्रशासनिक अफसर बनने का ख्याल आया। इस बीच शुभ्रा की शादी हो गई। नौकरी और शादी के बाद घर-गृहस्थी बस जाने के बाद भी शुभ्रा सक्सेना ने अपने अंदर के स्टूडेंट की भावना खत्म नहीं होने दी। फिर से सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गईं। 2009 में शुभ्रा ने कमाल कर दिया। जब परीक्षा परिणाम आया तो शुभ्रा ने पूरे देश में टॉप कर दिया।
पहले चरण की पोलिंग का हाल- हापुड़: 69.8%, आगरा: 63.94%, एटा: 68%, अलीगढ: 65%, हाथरस: 61%, गाजियाबाद: 57%, मथुरा: 68.30%, मेरठ: 65%, शामली: 62%, बुलंदशहर: 64%, फिरोजाबाद: 61%, कासगंज: 64%, बागपत: 65%, नोएडा: 60%, मुजफ्फरनगर: 65%
दूसरा चरण- अमरोहा-72.28 %, बिजनौर: 72.28.00%, मुरादाबाद: 64.30%, सहारनपुर: 71.00%, शाहजहांपुर: 59.47%, बरेली: 62.17%, रामपुर: 61.5%, लखीमपुर: 62.25%, पीलीभीत: 65.62%, अमरोहा: 69.00%, संभल: 65.00%, बदायूं: 60.00%

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

muktika, upendra vajra

मुक्तिका
वार्णिक छंद उपेन्द्रवज्रा –
मापनी- १२१ २२१ १२१ २२
सूत्र- जगण तगण जगण दो गुरु
तुकांत गुरु, पदांत गुरु गुरु
*
पलाश आकाश तले खड़ा है
उदास-खो हास, नहीं झुका है

हजार वादे कर आप भूले
नहीं निभाए, जुमला कहा है

सियासती है मनुआ हमारा
चचा न भाए, कर में छुरा है

पड़ोस में ही पलते रहे हो
मिलो न साँपों, अब मारना है

तुम्हें दई सौं, अब तो बताओ
बसंत में कंत कहाँ छिपा है
*

subhramar doha

सुभ्रामर दोहा 
[२७ वर्ण, ६ लघु, २१ गुरु]
*
छोटी मात्रा छै रहें, दोहा ले जी जीत
सुभ्रामर बोलें इसे, जैसे मन का मीत
*
मैया राधा द्रौपदी, हेरें-टेरें खूब
आता जाता सताता, बजा बाँसुरी खूब
*
दादा दादी से कहें, पोते हैं नादान
दादी बोलीं- 'पोतियाँ, शील-गुणों की खान
*
कृष्णा सी मानी नहीं, दानी कर्ण समान
मीरा सी साध्वी कहाँ, कान्हा सी संतान
*
क्या लाया?, ले जाय क्या?, क्यों जोड़ा है व्यर्थ?
ज्यों का त्यों है छोड़ना, तो क्यों किया अनर्थ??
*
पाना खोना दें भुला, देख रहा अज्ञेय
हा-हा ही-ही ही नहीं, है साँसों का ध्येय
*
टोटा है क्यों टकों का, टकसालों में आज?
छोटा-खोटा मूँड़ पे, बैठा पाए राज
*
भोला-भाला देव है, भोला-भाला भक्त
दोनों दोनों से कहें, मैं तुझसे संयुक्त
*
देवी देवी पूजती, 'माँगो' माँगे माँग
क्या माँगे कोई कहे?, भरी हुई है माँग
*
माँ की माँ से माँ मिली, माँ से पाया लाड़
लाड़ो की लाड़ो लड़ी, कौन लड़ाए लाड़?
***

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

bhramar doha

दोहा सलिला
*
[भ्रमर दोहा- २६ वर्ण, ४ लघु, २२ गुरु]

मात्राएँ हों दीर्घ ही,  दोहा में बाईस
भौंरे की गुंजार से, हो भौंरी को टीस
*
फैलुं फैलुं फायलुं, फैलुं फैलुं फाय
चोखा दोहा भ्रामरी, गुं-गुं-गुं गुंजाय
*
श्वासें श्वासों में समा, दो हो पूरा काज, 
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज?
*
जीते-हारे क्यों कहो?, पूछें कृष्णा नैन
पाँचों बैठे मौन हो, क्या बोलें बेचैन?
*
तोलो-बोलो ही सही, सीधी सच्ची रीत
पाया-खोने से नहीं, होते हीरो भीत
*
नेता देता है सदा, वादों की सौगात
भूले से माने नहीं, जो बोली थी बात
*
शीशा देखे सुंदरी, रीझे-खीझे मुग्ध
सैंया हेरे दूर से, अंगारे सा दग्ध
*
बोले कैसे बींदड़ी, पाती पाई आज
सिंदूरी हो गाल ने, खोला सारा राज
*
चच्चा को गच्चा दिया, बच्चा ऐंठा खूब
सच्ची लुच्चा हो गया, बप्पा बैठा डूब
*
बुन्देली आल्हा सुनो, फागें भी विख्यात
राई का सानी नहीं, गाओ जी सें तात
*

valentine


लघु कथा
वैलेंटाइन
*
'तुझे कितना समझाती हूँ, सुनता ही नहीं. उस छोरी को किसी न किसी बहाने कुछ न कुछ देता रहता है. इतने दिनों में तो बात आगे बढ़ी नहीं. अब तो उसका पीछा करना छोड़ दे'
"क्यों छोड़ दूँ? तेरे कहने से रोज सूर्य को जल देता हूँ न? फिर कैसे छोड़ दूँ?" 'सूर्य को जल देने से इसका क्या संबंध?'
"हैं न, देख सूर्य धरती को धूप की गिफ्ट देकर प्रोपोज करता हैं न? धरती माने या न माने सूरज धूप देना बंद तो नहीं करता. मैं सूरज की रोज पूजा करूँ और उससे इतनी सी सीख भी न लूँ कि किसी को चाहो तो बदले में कुछ न चाहो, तो रोज जल चढ़ाना व्यर्थ हो जायेगा न? सूरज और धरती की तरह मुझे भी मनाते रहना है वैलेंटाइन."
***

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

samaroh

अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह








भोपाल २१२-२-२०१७. स्वराज भवन भोपाल में अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह के प्रथम सत्र में संक्षिप्त वक्तव्य के साथ तुरंत रची मुक्तिका का मुक्तक का पाठ किया-

गीतिका उतारती है भारती की आरती
नर्मदा है नेह की जो विश्व को है तारती

वास है 'कैलाश' पे 'उमेंश' को नमन करें
'दीपक' दें बाल 'कांति' शांति-दीप धारती

'शुक्ल विश्वम्भर' 'अरुण' के तरुण शब्द
दृगों में समंदर है गीतिका पुकारती

मुक्तिका मनोरम है शोभा 'मुख पुस्तक' की
घनश्याम अभिराम हो अखंड भारती

गीतिका है मापनी से युक्त-मुक्त दोनों ही
छवि है बसंत की अनंत जो सँवारती
*
मुक्तक
अपनी जड़ों से टूटकर मत अधर में लटकें कभी
गोद माँ की छोड़कर परिवेश में भटकें नहीं
जो हित सहित है सर्व के साहित्य है केवल वही
रच कल्पना में अल्पना रस-भाव-लय का संतुलन
*
मुख पुस्तक पर पढ़ रहे, मन के अंतर्भाव
रच-पढ़-बढ़ते जो सतत, रखकर मन में चाव
वे कण-कण को जोड़ते, सन्नाटे को तोड़
क्षर हो अक्षर का करे, पूजन 'सलिल' सुभाव
***
टीप- श्री कैलाश चंद्र पंत मंत्री राष्ट्र भाषा प्रचार समिति विशेष अतिथि, डॉ. उमेश सिंह अध्यक्ष साहित्य अकादमी म. प्र. मुख्य अतिथि, डॉ. देवेन्द्र दीपक निदेशक निराला सर्जन पीठ अध्यक्ष , डॉ. कांति शुक्ल प्रदेश अध्यक्ष मुक्तिका लोक, डॉ. विश्वम्भर शुक्ल संयोजक मुक्तक लोक, अरुण अर्णव खरे संयोजक, घनश्याम मैथिल 'अमृत', अखंड भारती संचालक, बसंत शर्मा अतिथि कवि.
***

भोपाल २१२-२-२०१७. स्वराज भवन भोपाल में अखिल भारतीय गीतिका काव्योत्सव् एवं सम्मान समारोह के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता की. लगभग ३५ कवियों द्वारा काव्य पाठ में निर्धारित से अधिक समय लेने का मोह न छोड़ने और सभागार रिक्त करने की बाध्यता के कारण अध्यक्षीय वक्तव्य न देकर तुरंत रची मुक्तिका का पाठ किया. क्या कविगण निर्धारित से अधिक समय लेने की लत छोड़ेंगे???
गीतिका है मनोरम सभी के लिये 
दृग में है रस समुंदर सभी के लिए

सत्य, शिव और सुंदर सृजन नित करें 
नव सृजन मंत्र है यह सभी के लिए

छंद की गंधवाही मलय हिन्दवी 
भाव-रस-लय सुवासित सभी के लिए

बिम्ब-प्रतिबिम्ब हों हम सुनयने सदा 
साध्य है, साधना है, सभी के लिए
भाव ना भावना, काम ना कामना 
तालियाँ अनगिनत गीतिका के लिए
गीत गा गीतिका मु क्तिका से कहे 
तेवरी, नव गजल है सभी के लिए 
 ***

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

gyarah matrik chhand


ग्यारह मात्रिक छंद
१. पदादि यगण
यही चाहा हमने
नहीं टूटें सपने
शहीदी विरासतें
न भूलें खुद अपने
*
२. पदादि मगण
आओ! लें गले मिल
भाओ तो मिले दिल
सीचेंगे चमन मिल
फूलों सम खिलें दिल
*
३. पदादि तगण
सच्चा बतायें जो
झूठा मिटायें जो
चाहें मिलें नेता
वादे निभायें जो
*
४. पदादि रगण
आपकी चाहों में
आपकी बाँहों में
जिंदगी है पूजा
आपकी राहों में
*
५. पदादि जगण
कहीं नहीं हैवान
कहीं नहीं भगवान
दिखा ह्रदय में झाँक
वहीँ बसा इंसान
*
६. पदादि भगण
आपस में बात हो
रोज मुलाकात हो
संसद में दूरियाँ
व्यर्थ न बेबात हों
*
७. पदादि नगण
सब अधरों पर हास
अब न हँसेंगे ख़ास
हर जन होगा आम
विनत रचें इतिहास

*
८. पदादि सगण
करना मत बहाना
तजना मत ठिकाना
जब तक वयस्क न हो
बिटिया मत बिहाना
*
९. पदांत यगण
हरदम हम बुलाएँ
या आप खुद आयें
कोई न फर्क मानें
१०. पदांत मगण
आस जय बोलेगी
रास रस घोलेगी
प्यास बुझ जाएगी
श्वास चुप हो लेगी
.
मीत! आ जाओ ना
प्रीत! भा जाओ ना
चैन मिल जायेगा
गीत गा जाओ ना
*
११. पदांत तगण
रंगपंचमी पर्व
धूम मचाते सर्व
दीन न कोई जान
भूल, भुला दें गर्व
.
हो मस्ती में लीन
नाच बज रही बीन
वेणी-नागिन झूम
नयन हो रहे मीन
.
बाँके भुज तलवार
करते नहीं प्रहार
सविनय माँगें दान
सुमुखी-भुजा का हार
.
मिले हार हो जीत
मिले प्रीत को प्रीत
द्वैत बने अद्वैत
बजे श्वास संगीत
*
१२. पदांत रगण
गीत प्रीत के सुना
गीत मीत के सुना
      हार में न हार हो
      जीत में न जीत हो
      शुभ अतीत के सुना
      गीत रीत के सुना
यार हो, जुहार हो
प्यार हो, विहार हो
नव प्रतीति के सुना
गीत नीति के सुना
      हाथ नहीं जोड़ना
      साथ नहीं छोड़ना
      बातचीत के सुना
      गीत जीत के सुना
*
१३. पदांत जगण
जनगण की सरकार
जन संसद दरबार
रीती-नीति-सहयोग
जनसेवा दरकार
देशभक्ति कर आप
रखें स्वच्छ घर-द्वार
पर्यावरण न भूल
पौधारोपण प्यार
धुआँ-शोर अभिशाप
बहे विमल जल-धार
इस पल में इनकार
उस पल में इकरार
नकली है तकरार
कर असली इज़हार
*
१४. पदांत भगण
जिंदगी जलसा घर
बन्दगी जल सा घर
प्रार्थना कर, ना कर
साधना कर ही कर
अर्चना नित प्रति कर
वन्दना हो सस्वर
भावना यदि पवन
कामना से मत डर
कल्पना नवल अगर
मान ले अजरामर
*
१५. पदांत नगण
नटनागर हों सदय
कर दें पल में अभय
शंका हर जग-जनक
कर दें मन को अजय
.
पान कर सकें गरल
हो स्वभाव निज सरल
दान कर सकें अमिय
जग-जीवन हो विमल
.
नेह नर्मदा अमर
जय कट जीवन समर
करे द्वेष अहरण
भरे प्रीत चिर अमर
*
१६. पदांत सगण
पत्थर को फोड़ लें
ईंटों को जोड़ लें
छोड़ें मत राह को
कदमों को मोड़ लें
नाहक क्यों होड़ लें?
मंजिल क्यों छोड़ दें?
डरकर संघर्ष से
मन को क्यों तोड़ लें?
       .
सत्य जो हो कहिए
झूठ को मत तहिए
घाट पर रुकिए मत
नर्मदा बन बहिए
रीत नित नव गढ़िए
नीत-पथ पर बढ़िए
सीढ़ियाँ मिल चढ़िए
प्रणय-पोथी पढ़िए
*
१७. पदादि-पदांत यगण
उसे गीत सुनाना
उसे मीत बनाना
तुझे चाह रहा जो
उसे प्रीत जताना
.
सुनें गीत सुनाएँ
नयी नीत बनायें
नहीं दर्द जरा हो
लुटा दें सुख पायें
*
१८. पदादि यगण, पदांत मगण
हमें ही है आना
हमें ही है छाना
बताता है नेता
सताता है नेता
*
१९. पदादि मगण पदांत यगण
चाहेंगे तुम्हें ही
वादा है हमारा
भाए हैं तुम्हें भी
स्वप्नों में पुकारा
*
२०. पदादि मगण पदांत तगण
सारे-नारे याद
नेता-प्यादे याद
वोटों का है खेल
वोटर-वादे याद

muktak

मुक्तक
मुक्त मन से लिखें मुक्तक
सुप्त को दें जगा मुक्तक
तप्त को शीतल करेंगे
लुप्त को लें बुला मुक्तक
*

muktak

मुक्तक
मुझसे मेरे गीत न माँगो
प्रिय पहले सी प्रीत न माँगो
मन वीणा को झंकृत कर तुम
साँसों का संगीत न माँगो
*

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

das matrik chhand

दस  मात्रिक छंद
२५. १० लघु मात्रा
हर दम छल मत कर
शुभ तज, अशुभ न वर
पथ पर बढ़,  मत रुक
नित नव करतब कर
.
'सलिल' प्रवह कलकल
सुख गहकर पल-पल
रुक मत कल रख चल
मनुज न बन अब कल
*
२६. ८ लघु, १ गुरु
नित नर्तित नटवर
गुरु गर्वित गिरिधर
चिर चर्चित चंचल
मन हरकर मनहर
*
२७. ६ लघु, २ गुरु
नित महकती कली
खिल चहकती भली
ललच भँवरे मिले
हँस, बहकती कली
राह फिसलन भरी
झट सँभलती कली
प्रीत कर मत अभी
बहुत सँकरी गली
संयमित रह सदा
सुरभि देकर ढली
*
२८. ४ लघु, ३ गुरु
धन्य-धन्य शंकर
वन्दन संकर्षण
भोले प्रलयंकर
दृढ़ हो आकर्षण
आओ! डमरूधर
शाश्वत संघर्षण
प्रगटे गुप्तेश्वर
करें कृपा-वर्षण
.
हमें साथ रहना
मिला हाथ रहना
सुख-दुःख हैं सांझा
उठा माथ कहना
*
२९. २ लघु, ४ गुरु
बोलो, सच बोलो
पोल नहीं खोलो
सँग तुम्हारे जो
तुम भी तो हो लो
.
तू क्यों है बेबस?
जागो-भागो हँस
कोई देगा न साथ
सोते-रोते नाथ?
*
३०. ५ गुरु
जो चाहो बोलो
बातों को तोलो
झूठों को छोड़ा
सच्चे तो हो लो
.
जो होना है हो
रोकोगे? रोको
पाया खो दोगे
खोया पा लोगे
*

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

muktika

एक मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू

कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू

उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू

आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू

सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
***

doha

क्रिकेट के दोहे 
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट 
क्म्गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट 
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ 
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ 
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर 
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक   
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक 

अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज 
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज 
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब 
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब 
***

das matik chhand

दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
    प्राची रवि लाई
    ऊषा मुसकाई
    रहा टेर कागा
    पहुना सुधि आई
    विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
    हुई मन मिलाई
    सुध-बुध बिसराई
    गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण  ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७.  २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ  
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
*







दोहा

दोहा
रोज-प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल?
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।
*

maithily haiku

मैथिली हाइकु
*
स्नेह करब
हमर मंत्र अछि
गले लगबै
*

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

mukatak, kundali, vimarsh

मुक्तक
मेटते रह गए कब मिटीं दूरियाँ?
पीटती ही रहीं, कब पिटी दूरियाँ?
द्वैत मिटता कहाँ, लाख अद्वैत हो
सच यही कुछ बढ़ीं, कुछ घटीं दूरियाँ
*
कुण्डलिया
जल-थल हो जब एक तो, कैसे करूँ निबाह
जल की, थल की मिल सके, कैसे-किसको थाह?
कैसे-किसको थाह?, सहायक अगर शारदे
संभव है पल भर में, भव से विहँस तार दे
कहत कवि संजीव, हरेक मुश्किल होती हल
करें देखकर पार, एक हो जब भी जल-थल
*
एक प्रश्न:
*
लिखता नहीं हूँ,
लिखाता है कोई
*
वियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
*
शब्द तो शोर हैं तमाशा हैं
भावना के सिंधु में बताशा हैं
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है
*
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं,
*
अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज विच टेल ऑफ़ सैडेस्ट थॉट.
*
जितने मुँह उतनी बातें के समान जितने कवि उतनी अभिव्यक्तियाँ
प्रश्न यह कि क्या मनुष्य का सृजन उसके विवाह अथवा प्रणय संबंधों से प्रभावित होता है? क्या अविवाहित, एकतरफा प्रणय, परस्पर प्रणय, वाग्दत्त (सम्बन्ध तय), सहजीवी (लिव इन), प्रेम में असफल, विवाहित, परित्यक्त, तलाकदाता, तलाकगृहीता, विधवा/विधुर, पुनर्विवाहित, बहुविवाहित, एक ही व्यक्ति से दोबारा विवाहित, निस्संतान, संतानवान जैसी स्थिति सृजन को प्रभावित करती है?
आपके विचारों का स्वागत और प्रतीक्षा है.

सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

das maatrik chhand

ॐ 
दस मात्रिक छंद 
१. पदादि यगण 
सुनो हे धनन्जय!
हुआ है न यह जग 
किसी का कभी भी। 
तुम्हारा, न मेरा
करो मोह क्यों तुम?
तजो मोह तत्क्षण।  
न रिश्ते, न नाते 
हमेशा सुहाते। 
उठाओ धनुष फिर 
चढ़ा तीर मारो। 
मरे हैं सभी वे 
यहाँ हैं खड़े जो 
उठो हे परन्तप!
*
२. पदादि मगण 
सूनी चौपालें 
सूना है पनघट
सूना है नुक्कड़ 
जैसे हो मरघट 
पूछें तो किससे?
बूझें तो कैसे?
बोया है जैसा 
काटेंगे वैसा 
नाते ना पाले 
चाहा है पैसा
*
३. पदादि तगण 
चाहा न सायास  
पाया अनायास 
कैसे मिले श्वास?
कैसे मिले वास?
खोया कहाँ नेह?
खोया कहाँ हास?
बाकी रहा द्वेष 
बाकी रहा त्रास 
होगा न खग्रास 
टूटी नहीं आस 
ऊगी हरी घास 
भौंरा-कली-रास
होता सुखाभास 
मौका यही ख़ास 
*
४. पदादि रगण 
वायवी सियासत 
शेष ना सिया-सत 
वायदे भुलाकर 
दे रहे नसीहत 
हो रही प्रजा की
व्यर्थ ही फजीहत 
कुद्ध हो रही है 
रोकिए न, कुदरत
फेंकिए न जुमले 
हो नहीं बगावत
भूलिए अदावत 
बेच दे अदालत 
कुश्तियाँ न असली    
 है छिपी सखावत 
*
५. पदादि जगण 
नसीब है अपना 
सलीब का मिलना
न भोर में उगना 
न साँझ में ढलना 
हमें बदलना है 
न काम का नपना  
भुला दिया जिसको 
उसे न तू जपना 
हुआ वही सूरज 
जिसे पड़ा तपना 
नहीं 'सलिल' रुकना
तुझे सदा बहना 
न स्नेह तज देना 
न द्वेष को तहना 
*
६. पदादि भगण 
बोकर काट फसल
हो  तब ख़ुशी प्रबल
भूल न जाना जड़
हो तब नयी नसल 
पैर तले चीटी 
नाहक तू न मसल 
रूप नहीं शाश्वत 
चाह न पाल, न ढल 
रूह न मरती है 
देह रही है छल 
तू न 'सलिल' रुकना 
निर्मल देह नवल 
*
७. पदादि नगण 
कलकल बहता जल 
श्रमित न आज न कल 
        रवि उगता देखे 
        दिनकर-छवि लेखे 
        दिन भर तपता है 
        हँसकर संझा ढल
        रहता है अविचल 
रहता चुप अविकल
कलकल बहता जल
        नभचर नित गाते 
        तनिक न अलसाते 
        चुगकर जो लाते
        सुत-सुता-खिलाते
        कल क्या? कब सोचें?
        कलरव कर हर पल 
कलरव सुन हर पल  
कलकल बहता जल 
        नर न कभी रुकता 
        कह न सही झुकता
        निज मन को ठगता 
        विवश अंत-चुकता 
        समय सदय हो तो 
        समझ रहा निज बल 
समझ रहा निर्बल 
कलकल बहता जल
*
८. पदादि सगण    
चल पंछी उड़ जा 
        जब आये तूफां 
        जब पानी बरसे 
        मत नादानी कर  
मत यूँ तू अड़ जा    
        पहचाने अवसर  
        फिर जाने क्षमता  
        जिद ठाने क्यों तू?  
झट पीछे मुड़ जा 
        तज दे मत धीरज 
        निकलेगा सूरज 
        वरने निज मंजिल 
चटपट हँस बढ़ जा 
***
संपर्क - ९४२५१८३२४४ / salil.sanjiv@gmail.com 


 

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

gale mile doha yamak

गले मिले दोहा-यमक
*
नारी पाती दो जगत, जब हो कन्यादान
पाती है वरदान वह, भले न हो वर-दान
*
दिल न मिलाये रह गए, मात्र मिलकर हाथ
दिल ने दिल के साथ रह, नहीं निभाया साथ
*
निर्जल रहने की व्यथा, जान सकेगा कौन?
चंद्र नयन-जल दे रहा, चंद्र देखता मौन
*
खोद-खोदकर थका जब, तब सच पाया जान
खो देगा ईमान जब, खोदेगा ईमान
*
कौन किसी का सगा है, सब मतलब के मीत
हार न चाहें- हार ही, पाते जब हो जीत
*
निकट न होकर निकट हैं, दूर न होकर दूर
चूर न मद से छोर हैं, सूर न हो हैं सूर
*
इस असार संसार में, खोज रहा है सार
तार जोड़ता बात का, डिजिटल युग बे-तार
*
५-२-२०१७



शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

muktak, muktika, kundalini

मुक्तक
कल्पना के बिना खेल होता नहीं 
शब्द का शब्द से मेल होता यहीं 
गिर 'सलिल' पर हुईं बिजलियाँ लुप्त खुद 
कलप ना, कलपना व्यर्थ होता कहीं?
*
मुक्तिका
*
नाजनीं को नमन मुस्कुरा दीजिए
मशविरा है बिजलियाँ गिरा दीजिए 
*
चिलमनों के न पीछे से अब वार हो
आँख से आँखबरबस मिला दीजिए
 *
कल्पना ही सही क्या बुरा है अगर
प्रेरणा बन के आगे बढ़ा दीजिए
*
कांता के हुए कांत अब तो 'सलिल'
बैठ पलकों पे उनको बिठा दीजिए
*
जो खलिश दिल में बाकी रहे उम्र भर
ले के बाँहों में उसको सजा दीजिए
***

कुंडलिनी
*
जिस पर बिजली गिर गयी, वह तो बैठा शांत
गिरा रहे जो वे हुए अपने आप शांत
अपने आप अशांत बढ़ा बैठे ब्लड प्रेशर 
करें कल्पना हुए लाल कश्मीरी केसर
'सलिल' हुआ है मुग्ध अनूठा रूप देखकर
वह भुगते बिजली गिरनी है अब जिस जिस पर
***