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रविवार, 23 जून 2013

blogger sammelan kathmandu 13-14 september 2013

कई मायनों में विशिष्ट होगा अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन !


जैसा कि आप सभी को विदित है कि “न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन 13-14 सितंबर 2013 को काठमाण्डू में परिकल्पना समय के द्वारा किया जा रहा है । 
यह परिसंवाद चार सत्रों में सम्पन्न होगा, जिसमें मुख्य प्रतिपाद्य विषय “न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” पर तथा कुछ उप विषयों पर वैचारिक मंथन सत्रों के साथ ही दो सत्र उल्लेखनीय ब्लॉगरों के सम्मान और सम्मिलन का भी होगा ।
विगत दो समारोह-सम्मिलन पर नज़र डालें तो परिकल्पना समूह के संस्थापक -संयोजक रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा उद्घोषित 51 ब्लॉगर्स को दिनांक 30 अप्रैल-2011 को हिंदी भवन दिल्ली में परिकल्पना सम्मान देश के एक बड़े प्रकाशन संस्थान हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर ने प्रदान किया। इसी प्रकार परिकल्पना समूह द्वारा उद्घोषित 51 ब्लॉगर्स को दिनांक 27 अगस्त-2012 को राय उमनाथ वली प्रेक्षागृह, लखनऊ में परिकल्पना सम्मान प्रदान किया सामाजिक सांस्कृतिक संस्था तस्लीम ने । इस बार यह समारोह कई मायनों में विशिष्ट है, क्योंकि यह त्रिदिवसीय आयोजन देश से बाहर नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में होने जा रहा है । 

यद्यपि समय कम है और आयोजन को एक नया आयाम भी देना है, इसलिए आवश्यक हो गया है कि तीसरे परिकल्पना सम्मान की उद्घोषणा कर ही दी जाये । इसके लिए लगातार चयन समिति की बैठक हो रही है एक सप्ताह के भीतर सूची फाइनल होने की संभावना है । ज्ञातव्य हो कि इस बार परिकल्पना सम्मान के अंतर्गत कुछ नए नियम-निर्देश के साथ -साथ नए सिरे से सम्मान राशि का भी निर्धारण किया जाना है, ताकि परिकल्पना सम्मान को एक नया स्वरूप प्रदान किया जा सके । साथ ही इसबार इस सम्मान के अंतर्गत एक विषय मर्मज्ञ  लेखक और एक चर्चित ब्लॉगर को शिखर सम्मान प्रदान किया जाना है । इस बार कुछ क्षेत्रीय भाषा यथा नेपाली, भोजपुरी, मैथिली, अवधि आदि के ब्लॉगर को भी स्थान दिया जाना है । 

इसलिए परिकल्पना सम्मान समिति द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि परिकल्पना सम्मान हेतु चयनित धारकों के जीवन वृत्त के साथ नाम उद्घोषित किए जाएँ और नेपाल की राजधानी काठमाण्डू मे सभी सम्मान धारकों को नेपाल में भारत के राजदूत की उपस्थिती में नेपाल के किसी विशिष्ट व्यक्ति के कर-कमलों से प्रदान कराया जाए । इस प्रक्रिया को अंतिम रूप देने का कार्य प्रगति पर है । 20 जुलाई 2013 को इसकी विधिवत घोषणा परिकल्पना सम्मान समिति के संयोजक रवीन्द्र प्रभात जी के द्वारा परिकल्पना पर की जाएगी । 

नोट : इस सममारोह में उपस्थित होने हेतु सूचना देने वाले सभी सम्मानित सदस्यगण से अनुरोध है वे कृपया  अपना रजिस्ट्रेशन शुल्क चेक या ड्राफ्ट से "परिकल्पना समय" के नाम "पएबूल एट लखनऊ" बनबाते हुये निम्न पते पर भेजें : "परिकल्पना समय (हिन्दी मासिक), एस एस -107, सेक्टर-एन, संगम होटल के पीछे, अलीगंज, लखनऊ (ऊ.प्र.)-226024"

या "परिकल्पना समय" के विजया बैंक विकासनगर, लखनऊ  के खाता संख्या : 716600301000214 में सीधे जमा कराते हुये सूचना "parikalpana.samay@gmail.com" पर शीघ्र देवे । आपकी सूचना के आधार पर ही काठमाण्डू में उक्त तिथि को आपके आवास-भोजन और ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी । 

विशेष जानकारी के लिए यह लिंक देखें : 


अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मेलन काठमाण्डू में होना तय

निवेदक : 
मनोज पाण्डेय 
संपादक : परिकल्पना समय एवं
प्रयोजक : अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर  सम्मेलन , काठमाण्डू

क्या आप नहीं जाना चाहेंगे काठमाण्डू ?


ह पहला अवसर है जब हिन्दी चिट्ठाकारों का वैश्विक समागम भारत की दहलीज से बाहर काठमाण्डू में होने जा रहा है ।

साहित्य और ब्लॉगिंग के इस 
त्रिदिवसीय महाकुंभ में जहां मेलबोर्न से पधार रहे  हैं वरिष्ठ लेखक श्री हरिहर झा, वहीं कनाडा से उपस्थित हो रहे हैं वरिष्ठ ब्लॉगर श्री समीर लाल समीर । 
हिन्दी के वरिष्ठ गजलकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल और वरिष्ठ लेखिका डॉ मीना अग्रवाल के अतिरिक्त इस वैश्विक समारोह में हैदराबाद से पधार रहे हैं वरिष्ठ कथाकार श्री विजय कुमार सपत्ति और हिन्दी की सुपरिचित लेखिका डॉ रामा द्विवेदी, वाराणसी से प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक डॉ  अरविंद मिश्र तथा बिहार से प्रखर ब्लॉगर श्री मनोज पाण्डेय। 
इसके अलावा जयपुर से पधार रहे हैं "अहा जिंदगी" के फीचर संपादक श्री चंडी दत्त शुक्ल, दिल्ली से वरिष्ठ ब्लॉगर एवं व्यंग्यकार श्री अविनाश वाचस्पति, संतोष त्रिवेदी,भोजपुरी फिल्मों के नायक श्री मनोज भावुक, हिन्दी के सुपरिचित रचनाकार श्री मनोज अवोध, सुश्री अंजु अनु चौधरी, नीता कोटेचा, मुकेश कुमार सिन्हा आदि । 
इसके अलावा हिन्दी की साधक सुश्री नमिता राकेश, नीलिमा शर्मा, रश्मि वर्मा, संगीता पुरी, डॉ प्रीत अरोडा आदि । 
इस समारोह में अपनी उपस्थिति की सूचना देने वालों की संख्या 30 तक पहुँच चुकी है और अब आपकी बारी है, समय कम है । अवसर बार-बार नहीं आता, शीघ्र अपना पंजीयन कराएं । 

ध्यान दें : प्रतिभागियों की संभावित संख्या पूर्ण हो जाने पर कभी भी पंजीयन बंद किया जा सकता है । 

विशेष जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें :  

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मेलन काठमाण्डू में होना तय, चल रहे हैं न आप ?

() एक खुशखबरी दे दूँ , कि परिकल्पना समय ( मासिक पत्रिका) का लखनऊ से प्रकाशन प्रारम्भ हो गया है, यह रहा उसका प्रवेशांक : 
इस पत्रिका के एक अंक की सहयोग राशि है 20/- तथा वार्षिक 240/- , वटवृक्ष के आजीवन सदस्यों को यह पत्रिका आजीवन बिना किसी शुल्क के निरंतर प्राप्त होती रहेगी । 
() चलते-चलते एक और सूचना दे दूँ कि प्रत्येक वर्ष 51 ब्लोगर्स को परिकल्पना सम्मान प्रदान किया जाता रहा है, जिसका निर्वाह इस वर्ष भी किया जाना है, किन्तु उसमें  कुछ परिवर्तन किए जा रहे हैं । पहली बार हिन्दी के मंच पर कुछ क्षेत्रीय भाषाओं के ब्लॉगर का भी सम्मान किया जाना है । कुछ वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार व ब्लॉगर को विशेष सम्मान भी दिया जाना है आदि-आदि । इस वर्ष के  परिकल्पना सम्मान की उद्घोषणा अगले सप्ताह होने जा रही है, जिन्हें आगामी 13-14 सितंबर में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मेलन काठमाण्डू में सम्मानित किया जाएगा । 

उपरोक्त से संवन्धित किसी भी प्रकार का पत्राचार कृपया इस मेल पर ही करें : 

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मेलन काठमाण्डू में होना तय, चल रहे हैं न आप ?

न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य
दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद 
काठमाण्डू,13-14 सितंबर 2013
(द्वितीय घोषणा)
परिसंवाद स्वरुप :  
जैसा कि आप सभी को विदित है कि न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन 13-14 सितंबर 2013 को काठमाण्डू में किया जा रहा है । यह परिसंवाद चार सत्रों में सम्पन्न होगाजिसमें मुख्य प्रतिपाद्य विषय “न्यू मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य” पर नीचे अंकित उप विषयों पर वैचारिक मंथन सत्रों के साथ ही दो सत्र उल्लेखनीय ब्लॉगरों के सम्मान और सम्मिलन का भी होगा ।
जो प्रतिभागी इस परिसंवाद में अपना शोध आलेख प्रस्तुत करना चाहते हैंउनसे अनुरोध है कि वे निम्नलिखित विषय सूची से विषय चुनकर संयोजक को parikalpana.samay@gmail.com पर 25 जून  2013 तक भेज दें ।शोधलेख यूनिकोड/मंगल में टंकित करके वर्ड फ़ॉर्म मे ई मेल द्वारा भेजें। प्राप्त शोध आलेखों का मूल्यांकन एक समिति करेगी और स्वीकृति की सूचना शीघ्र दे दी जायेगी। उक्त के अतिरिक्त पशुपतिनाथ,बोद्धनाथस्वयंभूनाथदरवार स्क्वायर आदि प्रमुख पर्यटन स्थलों  का आधे दिन का दृश्यावलोकन भी  समाहित होगा।
आवासीय व्यवस्था :
आवासीय व्यवस्था तीन दिन दो रातों की होगी और इस दौरान प्रतिभागियों को नाश्ता-खाना और कार्यक्रम स्थल तक जाने -आने हेतु वाहन की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी ।आवासीय एक कमरा तीन लोगों के लिए होगा । पंजीकृत   प्रतिभागी यदि पति-पत्नी हैं तो उन्हें एक कमरा उपलब्ध कराया जाएगा।

 
उप विषय  :
1.   हिन्दी ब्लॉगिंग की दशकीय यात्रा और वर्तमान स्थिति
2.   व्यक्तिगत पत्रकारिता और न्यू मीडिया
3.   वेब मीडिया और हिंदी : एक बिहंगावलोकन
4.   हिंदी के विकास में वेब मीडिया का योगदान
5.   भारत में इन्टरनेट के विकास में क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका
6.   वेब मीडिया और सोश्ल नेटवरकिंग साइट्स
7.   वेब मीडिया और अभिव्यक्ति का लोकतन्त्र
8.   वेब मीडिया और प्रवासी भारतीय
9.   हिंदी ब्लागिंग दिशादशा और दृष्टि
10. इंटरनेट जगत में हिंदी की वर्तमान स्थिति
11. हिंदी भाषा के विकास से जुड़ी तकनीक और संभावनाएं
12. इन्टरनेट और हिंदी ; प्रौद्योगिकी सापेक्ष विकास यात्रा
13. ब्लॉगिंग में नेपाली भाषा और नेपाल
14. हिंदी ब्लागिंग पर हो रहे शोध कार्य
15. भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की वेब पत्रकारिता
16. भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की ई पत्रिकाएँ
17. हिंदी के अध्ययन-अध्यापन में इंटरनेट की भूमिका
18. ब्लॉगिंग से जुड़े महत्वपूर्ण साफ्टव्येर
19. हिंदी टंकण से जुड़े साफ्टव्येर और संभावनाएं
20. सोश्ल मीडिया और हमारा समाज
21. सोश्ल नेटवर्किंग का अभिप्राय और उद्देश्य
22.सोश्ल मीडिया और अभिव्यक्ति के खतरे
23. न्यू मीडिया बनाम सरकारी नियंत्रण की पहल
24. वेब मीडिया ; स्व्तंत्रता बनाम स्वछंदता
25. इन्टरनेट और कापी राइट
26. न्यू मीडिया और हिंदी साहित्य
27. न्यू मीडिया पर उपलब्ध हिंदी की पुस्तकें
28. हिंदीन्यू मीडिया और रोजगार
29. भारत में इन्टरनेट की दशा और दिशा
30. हिंदी को विश्व भाषा बनाने में तकनीक और इन्टरनेट का योगदान
31. बदलती भारतीय शिक्षा पद्धति में इन्टरनेट की भूमिका
32. न्यू मीडिया में आम आदमी का लोकतन्त्र
33. सामाजिक न्याय दिलाने में न्यू मीडिया का योगदान
34. भारतीय युवा पीढ़ी और इन्टरनेट
35. न्यू मीडिया और दलित विमर्श
36. हिन्दी ब्लॉगिंग और अभिव्यक्ति की आज़ादी
37. हिन्दी ब्लॉगिंग और समाज का बदलाव
38. क्षेत्रीय भाषाओं में न्यू मीडिया की सार्थकता
39. न्यू मीडिया की ई-पत्रिकाएँ
40. भारतीय समाज में सोश्ल मीडिया की सार्थकता
पंजीकरण :
  • पंजीकरण शुल्क – काठमाण्डू / स्थानीय  प्रतिभागियों के लिए 1100/ रूपये 
  • बाह्य  प्रतिभागियों के लिए – 4100/ रूपये है । बाहर से आनेवाले प्रतिभागियों के आवास और भोजन की व्यवस्था आयोजक पूर्व सूचना के आधार पर ही सुनिश्चित करेगा । परिसंवाद का उद्घाटन सत्र 13 सितंबर  2013 को अपराहन 2 बजे शुरू होगा । पंजीकरण एवं जलपान का समय सुबह 9.30 से 11.30 तक रहेगा । 
  • पंजीकरण शुल्क यदि चेक या ड्राफ्ट से भेजना चाहते हैं तो उसे  "परिकल्पना समय" के नाम और प्येबुल एट लखनऊ बनवाते हुये निम्न पते पर अपने वायोडाटा और आलेख के साथ भेज दें : 
  • पता इसप्रकार है : परिकल्पना समय,एस एस-107, सेक्टर-एन-1,संगम होटल के पीछे,अलीगंज, लखनऊ-226024 (उ. प्र.)

इस परिसंवाद से जुड़ी कुछ बातों को स्पष्ट करना चाहूँगा,जो अधिकांश प्रतिभागी फोन और पत्र द्वारा जानना चाहते हैं । 
  • इस अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद में सहभागी हो रहे किसी भी प्रतिभागी को किसी  प्रकार का यात्रा व्यय हम प्रदान नहीं करेंगे । 
  • प्रपत्र प्रस्तुत करेने के लिए भी कोई मानधन हम प्रदान नहीं करेंगे । 
  • काठमाण्डू के बाहर से आनेवाले प्रतिभागियों को अपना पंजीकरण 13 अगस्त के पूर्व सुनिश्चित करना होगा। 
  •  काठमाण्डू के बाहर से आनेवाले प्रतिभागियों का सेमिनार के दिन पंजीकरण नहीं किया जाएगा और ना ही उन्हे परिसंवाद में सम्मिलित होने की अनुमति दी जाएगी । 
  • प्रकाशित होने वाली पुस्तक अथवा विशेषांक में सभी प्रतिभागियों के आलेख सम्मिलित नहीं किए जाएंगे । 
  • आप के आलेख को छापने या न छापने के निर्णय को लेने के लिए परिकल्पना समय स्वतंत्र है । 
  • आवास की व्यवस्था 13-14 सितंबर 2013 और 15 सितंबर की सुबह 10  बजे तक के लिए ही है और सिर्फ पूर्व पंजीकृत प्रतिभागियों के लिए ।               
  • प्रतिभागियों को परिसंवाद के अतिरिक्त नान ए सी डीलक्स कोच से आधे दिन का दृष्यवलोकन भी कराया जाएगाजिसमे पशुपतिनाथ,बोद्धनाथस्वयंभूनाथदरवार स्क्वायर आदि होंगे 
  • इन सभी स्थानों पर प्रवेश शुल्क प्रतिभागियों को स्वयं वहन करना होगा ।
 ब्लागिंग के इस स्वर्णिम पड़ाव पर सहभागी बनने को आप आमंत्रित हैं!
 
 

शनिवार, 22 जून 2013

sameeksha, sumitra ke jijeevishajayee vyangya dohe -acharya sanjiv verma 'salil'

सृजन चर्चा
        
  सुमित्र जी के जिजीविषाजयी व्यंग्य दोहे
 आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'  
*

 सनातन सलिल नर्मदा का अंचल सनातन काल से सृजनधर्मियों का साधना क्षेत्र रहा है. सम-सामयिक साहित्य सर्जकों में अग्रगण्य डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' विविध विधाओं में अपने श्रेष्ठ सृजन से सर्वत्र सतत समादृत हो रहे हैं।

दोहा हिंदी साहित्य कोष का दैदीप्यमान रत्न है। कथ्य की संक्षिप्तता, शब्दों की सटीकता, कहन की लयबद्धता , बिम्बों-प्रतीकों की मर्मस्पर्शिता तथा भाषा की लोक-ग्राह्यता के पञ्चतत्वी निकष पर खरे दोहे रचना सुमित्र जी के लिए सहज-साध्य है। सामयिकता, विसंगतियों का संकेतन,  विडंबनाऑं पर प्रहार, जनाक्रोश की अभिव्यक्ति और परोक्षतः ही सही पारिस्थितिक वैषम्य निदान की प्रेरणा व्यंग्य विधा के पाँच सोपान हैं। सुमित्र की दशरथी कलम ''विगतं वा अगं यस्य'' की कसौटी पर खरे उतारनेवाले व्यंग्य दोहे रचकर अपनी सामर्थ्य का लोहा मनवाती है।
''आएगा, वह आयेगा, राह देखती नित्य / कहाँ न्याय का सिंहासन, कहाँ विक्रमादित्य'' कहकर दोहाकार आम आदमी की आशावादिता और उसकी निष्फलता दोनों को पूरी शिद्दत से बयां करता है।
समाज में येन-केन-प्रकारेण धनार्जन कर स्वयं को सकल संवैधानिक प्रावधानों से ऊपर समझनेवाले नव धनाढ्य वर्ग की भोगवादी मनोवृत्ति पर तीक्ष्ण कटाक्ष करते हुए निम्न दोहे में दोहाकार 'रसलीन' शब्द का सार्थक प्रयोग करता है- ''दिन को राहत बाँटकर, रात हुई रसलीन / जिस्म गरम करता रहा, बँगले का कालीन''
राजनीति का ध्येय जनकल्याण से बदलकर पद-प्राप्ति और आत्म कल्याण होने की विडम्बना पर सुमित्र का कवि-ह्रदय व्यथित होकर कहता है-
नीतिहीन नेतृत्व है, नीतिबद्ध वक्तव्य।
चूहों से बिल्ली कहे, गलत नहीं मंतव्य।।
*
सेवा की संकल्पना, है अतीत की बात।
फोटो माला नोट है, नेता की औकात।।
*
शैक्षणिक संस्थाओं में व्याप्त अव्यवस्था पर व्यंग्य दोहा सीधे मन को छूता है-
पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामे पीठ।
कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ।।
*
पात्रता का विचार किये बिना पुरस्कार  चर्चित होने की यशैषणा की निरर्थकता पर सुमित्र दोहा को कोड़े की तरह फटकारते हैं-
अकादमी से पुरस्कृत, गजट छपी तस्वीर।
सम्मानित यों कब हुए, तुलसी सूर कबीर।।
*
अति समृद्धि और अति सम्पन्नता के दो पाटों के बीच पिसते आम जन की मनस्थिति सुमित्र की अपनी है-
सपने में रोटी दिखे, लिखे भूख तब छंद।
स्वप्न-भूख का परस्पर, हो जाए अनुबंध।।
*
आँखों के आकाश में, अन्तःपुर आँसू बसें, नदी आग की, यादों की कंदील, तृष्णा कैसे मृग बनी, दरस-परस छवि-भंगिमा, मन का मौन मजूर, मौसम की गाली सुनें, संयम की सीमा कहाँ, संयम ने सौगंध ली, आँसू की औकात क्या, प्रेम-प्यास में फर्क, सागर से सरगोशियाँ, जैसे शब्द-प्रयोग और बिम्ब-प्रतीक दोहाकार की भाषिक सामर्थ्य की बानगी बनने के साथ-साथ नव दोहकारों के लिए सृजन का सबक भी हैं।

सुमित्र के सार्थक, सशक्त व्यंग्य दोहों को समर्पित हैं कुछ दोहे-

पंक्ति-पंक्ति शब्दित 'सलिल', विडम्बना के चित्र।
संगुम्फित युग-विसंगति, दोहा हुआ सुमित्र।।
*
लय भाषा रस भाव छवि, बिम्ब-प्रतीक विधान।
है दोहा की खासियत, कम में अधिक बखान।।
*
सलिल-धार की लहर सम, द्रुत संक्षिप्त सटीक।
मर्म छुए दोहा कहे, सत्य हिचक बिन नीक।।
*
व्यंग्य पहन दोहा हुआ, छंदों का सरताज।
बन सुमित्र हृद-व्यथा का, कहता त्याग अकाज।।
*
Sanjiv verma 'Salil'

शुक्रवार, 21 जून 2013

chitr par kavita -sanjiv

चित्र पर कविता :

प्राकृतिक   के समय अत्यंत संयम के साथ अनजानों की सहायता कर रहे सैनिकों के योगदान आपको कुछ कहने को प्रेरित करे तो लिख भेजें भावनाएँ:







दोहा सलिला:
संजीव
*
वन काटे पर्वत मिटा, मनुज बुलाये काल।
कुपित प्रकृति-लीला लखे, हुआ नष्ट बेहाल।।

सम्हल न कर निज नाश अब, न कर प्रकृति का नाश।
वर्ना झेल न पायेगा, हो जब प्रलय-विनाश।।

करनी का फल भोगता मनुज, देव हैं मौन।                                                                     
आपद की इस घड़ी में, रक्षक होगा कौन??

मनुज-मनुज का साथ दे, भूल जाति या धर्म।                                                                      
साँझा सुख-दुःख ही 'सलिल', है जीवन का मर्म।।

करें स्वयं सेवक सदा, सेवा रख अनुराग।                                                                           
वन्दनीय है कार्य यह, श्रेष्ठ नहीं वैराग।।                                                                              

नेता-अफसर सो रहे, सैनिक आते काम।                                                                            
उनको ठेंगा दिखाकर, इनको करो सलाम।।

कठिन परीक्षा की घड़ी, संयम रखी मित्र।                                                                            
संग प्रकृति के जियें हम, तब बदलेगा चित्र।।

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doha muktika: --sanjiv

दोहा मुक्तिका:
राधा धारा प्रेम की :
संजीव
*
राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात।
बरसाने  में बरसती, बिन बादल बरसात।।
*
माखनचोर न मोह मन, चित न चुरा चितचोर।
गोवर्धन गो पालकर, नृत्य दिखा बन मोर।।
*
पानी दूषित कर किया, जन हित पर आघात।
नाग कालिया को पड़ी, सहनी सर पर लात।।
*
आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ।
नहीं  बेवफा वफ़ा की, माँग फेर ले दीठ।।
*
तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाये चीर।
कौन कृष्ण सम मित्र की, हर सकता है पीर।।
*
विपद वृष्टि की सह सके, कृष्ण-ग्वाल मिल साथ।
देवराज निज सर धुनें, झुका सदा को माथ।।
*
स्नेह-'सलिल' यमुना विमल, निर्मल भक्ति प्रभात
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण कमल जलजात।।
*
कुञ्ज गली का बावरा, कर मन-मन्दिर वास।
जसुदा का छोरा 'सलिल', हुआ जगत विख्यात।।
*

doha kosh

प्रतिनिधि  दोहा कोष पर कार्य हो रहा है. जो दोहाकार सहयोगी होना चाहें वे अपने ३०  दोहे, चित्र तथा परिचय (जन्म तिथि, माता-पिता का नाम, जन्म तिथि / स्थान, डाक तथा ईमेल का पता, दूरभाष / चलभाष, प्रकाशित पुस्तकों के नाम) मुझे divynarmada@gmail.com / salil.sanjiv@yahoo.com पर ई मेल करें। प्राप्त दोहे http://divyanarmada.blogspot.in में तथा अन्यत्र निशुल्क प्रकाशित किये जायेंगे।
अधिकांश सहयोगियों द्वारा चाहने तथा मुद्रण-डाक व्यय में सहभागी होने पर चयनित दोहाकारों के श्रेष्ठ दोहे चित्र, परिचय, समीक्षात्मक टिप्पणी सहित पुस्तकाकार प्रकाशित किये जायेंगे।

गुरुवार, 20 जून 2013

geet: bano fakeera sanjiv

गीत :
बनो फकीरा...
संजीव
*
बनो फकीरा, उठा मँजीरा साखी गाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
धूप-छाँव से रिश्ते-नाते रंग बदलते,
कभी निठुर पाषाण,मोह से कभी पिघलते .
बहला-फुसला-दहलाते, पथ से भटकाते-
 नादां गिरते, दाना उठते सम्हल-सम्हलते.
प्रभु  का थामो हाथ उसी को पीर सुनाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
 रमता जोगी, बहता पानी साथ न कोई,
माया  के सँग क्षणिक हँसी हँस, तृष्णा रोई.
तृप्ति-तार में अगर न आशामाला पोई-
डूब  राह में वृत्ति विरागी बेबस सोई.
लोभ न पालो और न जग को व्यर्थ लुभाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
*
तेरा-मेरा त्याग राम का नाम लिये जा,
हो तटस्थ जब जो भाये निष्काम किये जा.
क्या  लाया जो ले जाए?, जो मिला दिए जा-
मद-मदिरा तज, भक्ति-अमिय के घूँट पिए जा.
कहाँ नहीं वह?, कण-कण में प्रभु देख-दिखाओ
सबद-रमैनी में मन को मन जरा रमाओ...
***


मंगलवार, 18 जून 2013

geet: udne do... sanjiv

गीत :

उड़ने दो…
संजीव
*
पर मत कतरो
उड़ने दो मन-पाखी को।
कहो कबीरा
सीख-सिखाओ साखी को...
*
पढ़ो  पोथियाँ,
याद रखो ढाई आखर।
मन न  मलिन हो,
स्वच्छ रहे तन की बाखर।
जैसी-तैसी
छोड़ो साँसों की चादर।
ढोंग मिटाओ,
नमन करो सच को सादर।
'सलिल' न तजना
रामनाम  बैसाखी को...
*
रमो राम में,
राम-राम सब से कर लो।
राम-नाम की
ज्योति जला मन में धर लो।
श्वास  सुमरनी
आस अंगुलिया संग चले।
मन का मनका,
फेर न जब तक सांझ ढले।
माया बहिना
मोह न, बांधे राखी को…
*


शनिवार, 15 जून 2013

doha geet: baat n sunen kabir ki -sanjiv

दोहा गीत :
http://www.wallpaperswala.com/wp-content/gallery/kabir-das/snat-kabir-das-jayanti.jpg
बात न सुनें कबीर की
संजीव
*
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार.
सच्चों की है अनसुनी-
झूठे हुए लबार….
*
एकै आखर प्रेम का, नफरत के हैं ग्रन्थ।
सम्प्रदाय सौ द्वेष के, लुप्त स्नेह के पन्थ।।
अनदेखी विद्वान की,
मूढ़ों की मनुहार.
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*
लोई के पीछे पड़े, गुंडे सीटी मार।
सिसक रही है कमाली, टूटा चरखा-तार।।
अद्धा लिये कमाल ने,
दिया कुटुंब उबार।
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*
क्रय-विक्रय कर राम का, जग माया का दास।
त्याग-त्याग वैराग का, पग-पग पर उपहास।।
नाहर की घिघ्घी बँधी,
गरजें कूकुर-स्यार।
बात न सुनें कबीर की,
करते  जय-जयकार...
*


 

doha salila hindi salil

दोहा सलिला
हिंदी नगपति हिमालय
संजीव
*
हिंदी नगपति हिमालय, बन छूती आकाश
हो नदीश नित तोड़ती, सीमाओं के पाश
*
हिंदी में रजनीश ने, दिया अनूठा ज्ञान
मिला महर्षि महेश से, दिव्य वेद विज्ञान
*
हिंदी ने युग-युग किया, वाणी का श्रृंगार
राष्ट्र अस्मिता बचने, दहकी बन अंगार
*
हिंदी है जनतंत्र के जन-जन की आवाज़
कोटि-कोटि कंठों बसी, करे ह्रदय पर राज
*
हिंदी दिल से दिल मिला, मिटा रही तकरार
हाथ मिला, पग साथ  धर, बांटो-पाओ प्यार
*

thought of the day : sardar poorn singh

आज का चितन: थॉट ऑफ़ थे डे
अध्यापक पूर्ण सिंह
*
''मैं तो अपनी खेती करता  हूँ,  अपने हल और बैलों को सुबह उठाकर प्रणाम करता  हूँ ! मेरा जीवन  जंगल के पेड़ों  और पत्तियों  की  संगति  में गुज़रता  है, आकाश के बादलों को  देखते मेरा दिन निकल  जाता है  ! मैं किसी को  धोखा नहीं देता,  हाँ, यदि  कोई मुझे  धोखा दे  तो  उससे मेरी  कोई  हानि नहीं !  मेरे खेत में अन्न  उग रहा है, मेरा घर  अन्न से भरा  है,  बिस्तर के  लिए मुझे एक कमली काफी हैं, कमर  के  लिए लंगोटी   और  सिर के लिए एक टोपी  बस  है !  हाथ - पाँव मेरे बलवान है, शरीर मेरा  आरोग्य  है, भूख खूब लगती  है, बाजरा  और मकई , छाछ  और दही , दूध  और मक्खन  बच्चों  को  खाने के लिए मिल जाता  है !'' 

क्या इस  'किसान' की सादगी  और सच्चाई में वह मिठास  नहीं  जिसकी प्राप्ति के लिए  भिन्न-भिन्न धर्म संप्रदाय  लम्बी- चौड़ी  और चिकनी  चुपडी  बातों द्वारा  दीक्षा  दिया करते हैं  ?

                                                                                     -   सरदार पूर्ण सिंह
प्रस्तुति: दीप्ति गुप्ता

             
पूर्ण सत्य का पूर्ण सिंह, करते यहाँ बखान
धन्य दीप्ति जी! कराया, हमें सत्य का भान
काश व्यर्थ मद-मोह से, 'सलिल' हो सके मुक्त
आत्म तनिक परमात्म से हो पाए संयुक्त
यदि कोशिश जारी रहे, सफर न रहे अपूर्ण
चौदह रात्रि अपूर्ण रह, बने चन्द्रमा पूर्ण
*

गुरुवार, 13 जून 2013

doha salila: ghar-ghar dhar hindi kalash -sanjiv

दोहा सलिला:
घर-घर धर हिंदी कलश...
संजीव
*
घर-घर धर हिंदी कलश, हिंदी-मन्त्र  उचार.
हिन्दवासियों  का 'सलिल', हिंदी से उद्धार..
*
दक्षिणभाषी सीखते, हिंदी स्नेह समेत.
उनकी  भाषा सीख ले, होकर 'सलिल' सचेत..
*
हिंदी मैया- मौसियाँ, भाषा-बोली अन्य.
मातृ-भक्ति में रमा रह, मौसी होगी धन्य..
*
पशु-पक्षी तक बोलते, अपनी भाषा मीत.
निज भाषा भूलते, कैसी अजब अनीत??
*
माँ को आदर दे नहीं, मौसी से जय राम.
करे जगत में हो हँसी, माया मिली न राम..
*

मंगलवार, 11 जून 2013

shubh kamna : ऋचा-अनुज परिणय, मंगलवार ११ जून २०१३


श्री गणेशाय नमः
ऋचा-अनुज परिणय, मंगलवार ११ जून २०१३
*
रिद्धि-सिद्धि माँ हों सदय, हों प्रसन्न गणनाथ
ऋचा सुनाएँ 'ऋचा' सुन, रख दें सर पर हाथ
*
रीति सनातन-पुरातन, प्रकृति-पुरुष हों संग
मिटा दूरियाँ मन मिला, दें जीवन को रंग
*
नेह नर्मदा में नहा, 'अनुज' पधारे द्वार
अंजु-वंदना पुलककर, करें अतिथि मनुहार
*
विजय-अनिल भुज भेंटकर, जोड़ रहे सम्बन्ध
जबलपूर-भोपाल हँस, करें नवल अनुबंध
*
हुलस कन्हैया, पुलक दें- रविशंकर आशीष
कहें सुशीला त्रिवेणी, भला करें जगदीश
*
माया है गोविन्द की, गूंजे वैदिक मन्त्र
प्रेमनगर-गुप्तेश्वर, रचें प्रणय का तंत्र
*
आशा-आकांक्षा हुई, पूर्ण- मिली मृदु छाँव
ऋचा राजराजेश्वरी, चली पिया के गाँव
*
सजा कल्पना अल्पना, करे हथेली लाल
मेंहदी रचना सुर्ख तू, करतल हो करताल
*
अनिल अनल भू नभ 'सलिल', पंचतत्वमय देह
द्वैत मिटा अद्वैत वर, हों मन-प्राण विदेह
*
दीपक-रश्मि हरे तिमिर, श्रृद्धा करे निशांत
प्रांजल पूजा सुहानी, हों प्रसन्न दिग्कांत
*
ओशी शुभि नित्य विहँस, गायें बन्नी गीत
ऋतु समृद्धि उपहार ले, मुदित बढ़ाए प्रीत
*
खुश अनिकेत अरुण वरुण, नभ नीलाभ विभोर
आनंदित अनिमेष मन, खुशयां रहा अंजोर
*
चुटकी भर सिन्दूर दे, सात जन्म का साथ
ढाई आखर पढ़ युगल, रखे उठाकर माथ
*
घूँघट पर अचकन गयी, पल भर में दिल हार
कलगी पर बेंदा करे, तन-मन विहँस निसार
*
श्वास-आस, मन-प्राण हों, सुख-समृद्धि भरपूर
छेड़े सरगम सुखों की, साँसों का संतूर
******
शब्द्सुमन: संजीव, ९४२५१ ८३२४४
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com

bundeli, muktika, sanjiv

बुन्देली मुक्तिका:
बखत बदल गओ
संजीव
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव  कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
*

सोमवार, 10 जून 2013

vinay: prabhu j! hamko den vardaan... sanjiv

भजन :
प्रभु जी! हमको दें वरदान
संजीव
*
प्रभु जी! हमको दें वरदान...
*
हम माटी के महज खिलौने,
प्रकृति मत के मृग-छौने.
कोशिश करें न जीवन में, नभ
छुए बिना रह जाएं बौने.
जड़ें जमा धरती वर विचरें
बनें धरा का मान...
*
हम किस्मत के बनें डिठौने,
करें न कोई काम घिनौने.
रंग भर सकें जग-जीवन में-
हों न अधूरे स्वप्न सलौने.
दॊए रहें दुर्गुण-दुःख हमसे
हों सद्गुण की खान...
*
स्वासों संग आसन के गौना,
प्यास हरे, रासों का दौना.
करे पूर्ण की प्राप्ति 'सलिल', पग
थामे नहीं पा औना-पौना.
समय-सत्य का कर पायें हम
समय-पूर्व अनुमान...
*

शनिवार, 8 जून 2013

bundeli muktika: sanjiv

बुन्देली मुक्तिका:
हमाये पास का है?...
 संजीव
*
हमाये पास का है जो तुमैं दें?
तुमाये हात रीते तुमसें का लें?
आन गिरवी बिदेसी बैंक मां है
चोर नेता भये जम्हूरियत में।।
रेत मां खे रए हैं नाव अपनी
तोड़ परवार अपने हात ही सें।।
करें गलती न मानें दोष फिर भी
जेल भेजत नें कोरट अफसरन खें।।
भौत है दूर दिल्ली जानते पै
हारियो नें 'सलिल मत बोलियों टें।।
***

शुक्रवार, 7 जून 2013

doha geet: jitanee aankhen... sanjiv

दोहा गीत:
जितनी आँखें...
संजीव
*
मूंदीं आँखें देखे सपने,
हुए पराये पल में अपने…
*
चाहे निष्क्रिय कर-कमल, तजकर सक्रिय हाथ।
शीश झुका अभिमान का, उठा विनय का माथ।।
प्राणप्रिया जिसको कहा, बना उसीका नाथ-
हरजाई हो चाहता, जनम-जनम का साथ।।
चुने बेतुके-बेढब नपने,
सोच लगी है टाँगें कंपने...
*
घड़ियाली आँसू बहा, किया आत्म-संतोष।
अश्रु न पोछे दर्द के, अनदेखा कर रोष।।
टोटा जिसमें टकों का, लेकर ऐसा कोष-
अपने मुँह से कर रहा, खुद अपना जयघोष।।
पैर लगे पापों में गपने,
साथ न देते भगने-छिपने...
*
येन-केन पद पा किया, जी भर भ्रष्टाचार।
मूल्यहीनता-नग्नता, ठगी हुई व्यापार।।
शत्रु  देश की धरा पर, भले करे अधिकार-
मात्र यही है कामना, बनी रहे सरकार।।
चल पद-मद की माला जपने
चन्दन लगा भले जल-तपने...
*


virasat: geet naman karoon.. som thakur

विरासत :
गीत -
सौ सौ नमन करूँ...
http://chakradhar.in/wp-content/uploads/2012/08/Som-Thakur.jpg
सोम  ठाकुर
*
सागर  पखारे गंगा शीश चढ़ाए नीर,
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
उत्तर  मन मोहे, दक्षिण में रामेश्वर,
पूरब पूरी बिराजे, पच्छिम धाम द्वारका सुन्दर।
जो न्हावै मथुरा जी-कासी छूटै लख चौरासी-
कान्हा  रास रचै  में जमुना के तीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
फूटें  रंग भोर के वन में, खोलें गंध किवरियाँ,
हरी झील में दिप-दिप तैरें मछली सी किन्नरियाँ।
लहर-लहर में झेलम झूलै,  गाये मीठी लोरी-
परबत के पीछे सोहे नित चंदा सो कश्मीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
चैत चाँदनी हँसे पूस में, पछुवा तन-मन परसै,
जेठ तपै झरती गिरिजा सी, सावन अमृत बरसै।
फागुन  फर-फर भावै ऐंसी के सैयां पिचकारी-
आँगन भीजै, तन-मन भीजै औ' पचरंगी चीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
फूटें-फरें मटर की घुटियाँ, धरने झरें झरबेरी,
मिले कलेऊ में बाजरा की रोटी, मठा-महेरी।
बेटा मांगे गुड की डेली,  बिटिया चना-चबेना-
भाभी मांगें खट्टी अमिया, भैया रस की खीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
रजा बिकें टका में भैया ऐसो देस  हमारो,
सबकें पालनहारो सुत पै खुद चलवावै आरो।
लछमन जागें सारी रैना, सिया तपाएं रसोई-
वल्कल तन पर बाँधे सोहें जटा-जूट रघुवीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
मंगल  भवन अमंगलहारी के जस तुलसी गावैं,
सूरदास  काउ स्याम रंगो मन अनत कहै सुख पावै।
हँस कें पिए गरल को प्यालो प्रेम-दीवानी मीरां-
ज्यों की त्यों धर दई चदरिया, कह गै दास कबीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
नित रसखान पठान गाये ब्रिज की लीला लासानी,
रौशन सिंह के संग देंय अशफाकुल्ला क़ुर्बानी।
चार हांथ धरती पुतर है शाह ज़फर की काया-
गाये कन्हैया को बालापन जनकवि मियाँ नजीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
लाली  अभी न छूटी भैया, अभी न मेद न भूले,
बियर  लाडले सीना ताने फांसी ऊपर झूले।
गोलाबर सी नंगी पीठें बंधी तोप के आगे-
आन्गारण में कौंधी सन सत्तावन की  शमशीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*
ऐसो कछू करौ मिल-जुल कें, ऐसो कछू बिचारो,
फहर-फहर फहराय तिरंगो पहियों चक्करबारो।
कहूं  न अचरा अटके याको कहूं न पिचै अंगुरिया
दूर करो या धरती मैया के माथे की पीर
मेरे भारत की माटी है  चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया सौ-सौ नमन करूँ...
*






  

मंगलवार, 4 जून 2013

doha salila: hindi par dohe Acharya Sanjiv Verma 'Salil"

हिंदी दोहा सलिला
हिंदी प्रातः श्लोक है.....
-- संजीव 'सलिल'
*
हिंदी भारत भूमि के, जनगण को वरदान.
हिंदी से ही हिंद का, संभव है उत्थान..
*
संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की प्रेमिल बहिन, हिंदी परम विशिष्ट..
*
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..
*
ईंट बनें सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिंदी बसी प्रणम्य..
*
संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिंदी उर्दू पाँच.
भाषा-बोली अन्य हैं, स्नेहिल बहने साँच..
*
सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
स्नेह् पले, साहित्य हो, सार्थक सरस अनूप..
*
भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबसे सबको स्नेह ही, हो जीवन का ध्येय..
*
उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ हैं अलग पर, पलता स्नेह-विवेक..
*
भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
दिल से दिल तक जा सके, बनकर प्रेम प्रबुद्ध..
*
मौसी-चाची ले नहीं, सकतीं माँ का स्थान.
सिर-आँखों पर बिठा पर, उनको माँ मत मान..
*
ज्ञान गगन में सोहाती, हिंदी बनकर सूर्य.
जनहित के संघर्ष में, है रणभेरी तूर्य..
*
हिंदी सजती भाल पे, भारत माँ के भव्य.
गौरव गाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..
*
हिंदी भाषा-व्याकरण, है सटीक अरु शुद्ध.
कर सटीक अभिव्यक्तियाँ, पुजते रहे प्रबुद्ध..
*
हिंदी सबके मन बसी, राजा प्रजा फकीर.
केशव देव रहीम घन, तुलसी सूर कबीर..
*

हिंदी प्रातः श्लोक है, दोपहरी में गीत.
संध्या वंदन-प्रार्थना, रात्रि प्रिया की प्रीत..
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gazal santosh bhauwala

ग़ज़ल:
चले आइए 
 संतोष भाऊवाला
 *


बज़्म-ए-उल्फ़त सजी है चले आइए
कैसी नाराज़गी है चले आइए
 
ख्वाब में ढूंढ़ती मैं रही आप को
ऐसी क्या बे रूखी है चले आइए
 
याद आकर सताती रही रात भर
आँसु ओं की झड़ी है चले आइए
 
ईद का चाँद भी मुन्तज़िर आपका
कैसी पर्दादरी है चले आइए
 
चाँदनी चाँद से होने को है जुदा
रात भी ढल चली है चले आइए

सोमवार, 3 जून 2013

muktika kya batyen achraya sanjiv verma 'salil'

मुक्तिका:
क्या बतायें?...
संजीव
*
फासले नजदीकियों के दरमियाँ हैं।
क्या बतायें हम कि क्या मजबूरियाँ है?

फूल तनहा शूल के घर महफिलें हैं,
तितलियाँ हैं या हसीं मगरूरियाँ हैं..

नुमाइंदे बोटियाँ खाकर परेशां.
वोटरों को चाँद दिखता रोटियाँ हैं..

फास्ट, रोजा, व्रत करो कब कहा उसने?
छलावा करते रहे पंडित-मियाँ हैं..

खेल मैदां पर न होता है तमाशा
खिलाड़ी छिप चला करते गोटियाँ हैं..

हाय गर्मी! प्यास है, पानी नहीं है.
प्रशासन मुस्तैद, मँहगी टोटियाँ हैं.. 


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