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शनिवार, 21 जुलाई 2012

THANK / आभार kenza / संजीव 'सलिल'

THANK TO ALL....

kenza.




आपकी




हिंदी अनुवाद:

आभार 



संजीव 'सलिल'
*
आपका आभार शत-शत मानता ...

आपकी नफरत से मजबूती मिली.
प्यार से सौगात में दरियादिली .

डराकर मेरा महत्त्व बता दिया.
फ़िक्र में थी कुशलता की कामना .

छोड़कर दी सीख शाश्वत कुछ नहीं.
संग रहकर ओद्स्ती तोहफे में दी.

ज़िंदगी में आप आये तभी तो
बन सका मैं देखते हैं आप जो.

आपका आभार शत-शत मानता...

*


शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

नवगीत: कागा हँसकर बोले काँव... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
कागा हँसकर बोले काँव...
संजीव 'सलिल'
*

*
चले श्वास-चौसर पर
आसों का शकुनी नित दाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
सम्बंधों को अनुबंधों ने
बना दिया बाज़ार.
प्रतिबंधों के धंधों के
आगे दुनिया लाचार.
कामनाओं ने भावनाओं को
करा दिया नीलाम.
बद को अच्छा माने दुनिया,
कहे बुरा बदनाम.



ठंडक देती धूप,
ताप देती है शीतल छाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
सद्भावों की सती तजी,
वर राजनीति रथ्या.
हरिश्चंद्र ने त्याग सत्य,
चुन लिया असत मिथ्या..
सत्ता-शूर्पनखा हित लड़ते
हाय! लक्ष्मण-राम.
खुद अपने दुश्मन बन बैठे
कहें- विधाता वाम..



मोह शहर का किया
उजाड़े अपने सुन्दर गाँव.
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...
*
'सलिल' समय पर न्याय न होता,
करे देर अंधेर.
मार-मारकर बाज खा रहे
कुर्सी बैठ बटेर..
बेच रहे निष्ठाएँ अपनी,
बिना मोल बेदाम.
और कह रहे बेहयाई से
'भला करेंगे राम'.



अपने हाथों तोड़ खोजते
कहाँ खो गया ठाँव?
मौन रो रही कोयल
कागा हँसकर बोले काँव...

***************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

अभिनव प्रयोग- गीत: कमल-कमलिनी विवाह --संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-
गीत:
कमल-कमलिनी विवाह
संजीव 'सलिल'
*

pond_pink_lity_lotus.jpg

* रक्त कमल 
अंबुज शतदल कमल
अब्ज हर्षाया रे!
कुई कमलिनी का कर
गहने आया रे!...
*









* हिमकमल 
अंभज शीतल उत्पल देख रहा सपने
बिसिनी उत्पलिनी अरविन्दिनी सँग हँसने
कुंद कुमुद क्षीरज अंभज नीरज के सँग-
नीलाम्बुज नीलोत्पल नीलोफर भी दंग.

कँवल जलज अंबोज नलिन पुहुकर पुष्कर
अर्कबन्धु जलरुह राजिव वारिज सुंदर
मृणालिनी अंबजा अनीकिनी वधु मनहर

यह उसके, वह भी
इसके मन भाया रे!...
*








* नील कमल 
बाबुल ताल, तलैया मैया हँस-रोयें
शशिप्रभ कुमुद्वती कैरविणी को खोयें.
निशापुष्प कौमुदी-करों मेंहदी सोहे.
शारंग पंकज पुण्डरीक मुकुलित मोहें.

बन्ना-बन्नी, गारी गायें विष्णुप्रिया.
पद्म पुंग पुन्नाग शीतलक लिये हिया.
रविप्रिय श्रीकर कैरव को बेचैन किया

अंभोजिनी अंबुजा
हृदय अकुलाया रे!... 
*







* श्वेत कमल 
चंद्रमुखी-रविमुखी हाथ में हाथ लिये
कर्णपूर सौगन्धिक श्रीपद साथ लिये.
इन्दीवर सरसिज सरोज फेरे लेते.
मौन अलोही अलिप्रिय सात वचन देते.

असिताम्बुज असितोत्पल-शोभा कौन कहे?
सोमभगिनी शशिकांति-कंत सँग मौन रहे.
'सलिल'ज हँसते नयन मगर जलधार बहे

श्रीपद ने हरिकर को
पूर्ण बनाया रे!...
***************






* ब्रम्ह कमल
टिप्पणी:
* कमल, कुमुद, व कमलिनी का प्रयोग कहीं-कहीं भिन्न पुष्प प्रजातियों के रूप में है, कहीं-कहीं एक ही प्रजाति के पुष्प के पर्याय के रूप में. कमल के रक्तकमल, नीलकमल  तथा श्वेतकमल तीन प्रकार रंग के आधार पर वर्णित हैं. कमल-कमलिनी का विभाजन बड़े-छोटे आकार के आधार पर प्रतीत होता है. कुमुद को कहीं कमल, कहीं कमलिनी कहा गया है. कुमद के साथ कुमुदिनी का भी प्रयोग हुआ है. कमल सूर्य के साथ उदित होता है, उसे सूर्यमुखी, सूर्यकान्ति, रविप्रिया आदि कहा गया है. रात में खिलनेवाली कमलिनी को शशिमुखी, चन्द्रकान्ति, रजनीकांत,  कहा गया है. रक्तकमल के लाल रंग की श्री तथा हरि के कर-पद पल्लवों से समानता के कारण हरिपद, श्रीकर जैसे पर्याय बने हैं, सूर्य, चन्द्र, विष्णु, लक्ष्मी, जल, नदी, समुद्र, सरोवर आदि  से जन्म के आधार पर बने पर्यायों के साथ जोड़ने पर कमल के अनेक और पर्यायी शब्द बनते हैं. मुझसे अनुरोध था कि कमल के सभी पर्यायों को गूँथकर रचना करूँ. माँ शारदा के श्री चरणों में यह कमल-माल अर्पित कर आभारी हूँ. सभी पर्यायों को गूंथने पर रचना अत्यधिक लंबी होगी. पाठकों की प्रतिक्रिया ही बताएगी कि गीतकार निकष पर खरा उतर सका या नहीं?

* कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं.

*

हिम कमल

विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से

चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष 2004 से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।
* दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in

गीत: रचना और रचयिता --संजीव 'सलिल'

गीत:
रचना और रचयिता:



संजीव 'सलिल'
*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*



*

बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*




*

कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण  है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*



*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...




****************************

prayer

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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

A heart Touching Poem...... AN OBEDIENT BOY --Narayanan Kutty





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I went to a party Mom,
I remembered what you said.
You told me not to drink, Mom,
So I drank soda instead.

I really felt proud inside, Mom,
The way you said I would.
I didn't drink and drive, Mom,
Even though the others said I should.

I know I did the right thing, Mom,
I know you are always right.
Now the party is finally ending, Mom,
As everyone is driving out of sight.

As I got into my car, Mom,
I knew I'd get home in one piece.
Because of the way you raised me,
So responsible and sweet..

I started to drive away, Mom,
But as I pulled out into the road,
The other car didn't see me, Mom,
And hit me like a load.

As I lay there on the pavement, Mom,
I hear the policeman say,
"The other guy is drunk," Mom,
And now I'm the one who will pay.

I'm lying here dying, Mom....
I wish you'd get here soon.
How could this happen to me, Mom?
My life just burst like a balloon..

There is blood all around me, Mom,
And most of it is mine.
I hear the medic say, Mom,
I'll die in a short time.

I just wanted to tell you, Mom,
I swear I didn't drink.
It was the others, Mom.
The others didn't think.

He was probably at the same party as I.
The only difference is, he drank
And I will die.

Why do people drink, Mom?
It can ruin your whole life.
I'm feeling sharp pains now.
Pains just like a knife.

The guy who hit me is walking, Mom,
And I don't think it's fair.
I'm lying here dying
And all he can do is stare.

Tell my brother not to cry, Mom.
Tell Daddy to be brave.
And when I go to heaven, Mom,
Put "GOOD BOY " on my grave.

Someone should have told him, Mom,
Not to drink and drive.
If only they had told him, Mom,
I would still be alive.

My breath is getting shorter, Mom.
I'm becoming very scared.
Please don't cry for me, Mom.
When I needed you, you were always there.

I have one last question, Mom.
Before I say good bye.
I didn't drink and drive,
So why am I the one to die?

Someone took the effort to write this poem. So please, forward this to as many people as you can. And see if we can get a chain going around the world that will make people understand that don't mix drinking and driving.
PLEASE DO THE FAVOR !!!!

आज का विचार thought of the day:

आज का विचार thought of the day:

मनुज बनाया गया प्यार कर प्यार पा सके.

रची गयी जड़ वस्तु काम कुछ कभी आ सके.

है अशांति का मूल, प्यार जड़ वस्तु के लिये-

करते हम उपयोग मनुज का, स्वार्थ के लिये.



बुधवार, 18 जुलाई 2012

मुक्तिका : "अम्मा" -- प्रो. योगेश छिब्बर


  मुक्तिका :
 
 "अम्मा"

 

  प्रो. योगेश छिब्बर
 
*
लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा ।
 
दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।
 
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई अम्मा ।
 
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा ।
 
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा ।
 
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।
 
बाबूजी थे छड़ी बेंत की
माखन और मलाई अम्मा।
 
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।
 
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, अम्मा।
 
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।
 
अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा ।
 
घर में चूल्हे मत बाँटो रे  
देती रही दुहाई अम्मा ।
 
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा ।
 
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा ।
 
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।
 
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा।
 
अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई अम्मा ।
 
बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई अम्मा ।
 
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई अम्मा।
 
घर के शगुन सभी अम्मा से,
है घर की शहनाई अम्मा ।
 
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई अम्मा ।
 

Fun with Mathematics


 Fun with Mathematics

1 x 8 + 1 = 9

12 x 8 + 2 = 98 

123 x 8 + 3 = 987

1234 x 8 + 4 = 9876

12345 x 8 + 5 = 98765 

123456 x 8 + 6 = 987654

1234567 x 8 + 7 = 9876543

12345678 x 8 + 8 = 98765432 

 123456789 x 8 + 9 = 987654321

1 x 9 + 2 = 11 

12 x 9 + 3 = 111

123 x 9 + 4 = 1111 

1234 x 9 + 5 = 11111 

12345x 9 + 6 = 111111

123456 x 9 + 7 = 1111111

1234567 x 9 + 8 = 11111111 

1234 5678x 9 + 9 = 111111111

1234 56789x 9 + 10 = 1111111111

brilliant, is in't it?

9 x 9 + 7 = 88 

98 x 9 + 6 = 888
 
987 x 9 + 5 = 8888

9876 x 9 + 4 = 88888

98765 x 9 + 3 = 888888

987654 x 9 + 2 = 8888888

9876543 x 9 +1 = 88888888

98765432 x 9 + 0 = 888888888

now look at this:

1 x 1 = 1

11 x 11 = 121

111 x 111 = 12321

1111 x 1111 = 1234321

11111 x 11111 = 123454321

111111 x 111111 = 12345654321

1111111 x 1111111 = 1234567654321 

11111111 x 11111111 = 123456787654321 

111111111 x 111111111 = 12345678987654321 

how funny?

now take a look at this...

many people say they are giving more than 100% .

Is it possible?

From mathematical point of view:

If A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z  is represented in numbers as

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10  11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 = 351 = 9 not 10.

Let us evaluate ingeridients of success:

Hardwork = 8 + 1 + 18 + 4 + 23 + 15 + 18 + 11 = 98%

Knowledge = 11 + 14 + 15 + 23 + 12 + 5 + 4 + 7 + 5 = 96%

Attitude = 1 + 20 + 20 + 9 + 20 + 21 + 4 + 5 = 100% 

Oh! How to get more than 100%? It is beyond human capacity, 

In crises we love GOD.

love of god = 12 + 15 + 22 + 5 + 15 + 6 + 7 + 15 + 4 = 101%

It's clear that hard work & knowledge put you very close to success, attitude bring 

success but love of god put you over the top or makes impossible possible. In Hindi 

we say 'Ram bharose jo rahen te parvat pe hariyaany.'  

*****

poetry: friendship:

Golden Rules for Life --Liez Jaq


View profile  Liez Jaq




Golden Rules for Life



Be what you want to be not what others want to see. 
 
– Never try to impress others. If you start trying impressing others, you will act (you’re cheating not only yourself but also the persons whom you’re trying to impress). 
 
Life is to live, not to act.

To be happy in life, you must learn the difference between what you want vs need.

If a drop of water falls in lake there is no identity. But if it falls on a leaf of lotus it shines like a pearl. So choose the best place where you would shine.

When you are successful, your well wishers know who you are. 
 
When you are unsuccessful, you know who your well wishers are.

Life is not measured by the breaths we take but by the moments that take our breath away.

It is great confidence in a friend to tell him your faults; greater to tell his/her

Most courageous person is the one who accepts his/her mistakes & weakness.

Effort is important, but knowing where to make an effort in your life makes all the difference.

Never take some one for granted, Hold every person Close to your Heart because you might wake up one day and realize that you have lost a diamond while you were too busy collecting stones." Remember this always in life.

Some people think that to be strong is to never feel pain. In Reality the strong people are the ones who feel it, understand it, and accept it.
My pain may be the reason for somebody’s laugh. But my laugh should never be the reason for somebody’s pain.

Never expect things to happen. Struggle and make them happen. Never expect yourself to be given a good value. Create a value of your own.
Don’t handicap your children by making their lives easy. 
 
*************

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

मुक्तिका: अम्मी --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

अम्मी

संजीव 'सलिल'
*
माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे आँगन में, हरदम पडीं दिखाई अम्मी.

बसा सासरे केवल तन है. मन तो तेरे साथ रह गया.
इत्मीनान हमेशा रखना- बिटिया नहीं पराई अम्मी.

भावज जी भर गले लगाती, पर तेरी कुछ बात और थी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.

कौन बताये कहाँ गयी तू ? अब्बा की सूनी आँखों में,
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाँई अम्मी.

अब्बा में तुझको देखा है, तू ही बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी.

तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान दिवाली होली.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही मिली समाई अम्मी.

तू कुरआन, तू ही अजान है, तू आँसू, मुस्कान, मौन है.
जब भी मैंने नजर उठाई, लगा अभी मुस्काई अम्मी.

*********

कविता "आखिर क्यों? " --कुसुम वीर

कविता


"आखिर क्यों? "
 
कुसुम वीर 
*
कुछ वहशी दरिन्दे, निरीह बाला को
सरेबाज़ार पीट रहे थे, नोच रहे थे
और आसपास खड़े लोग
अबला की अस्मत को तार -तार होता देख
तमाशबीन बने मौन खड़े थे
आखिर क्यों ?

दर्द से, पीड़ा से छटपटाती
गुंडों से सरेआम पिटती
असहाय बाला की पुकार,चीत्कार भी
नहीं झकझोर पाई थी
निर्जीव खड़े उन लोगों की चेतना को
आखिर क्यों ?

कहीं भी, कोई भी
घटित होता पाप, अत्याचार
नहीं कचोटता आज हमारी आत्मा को
नहीं खौलता खून
नहीं फड़कती हमारी भुजाएं
 दानवों के दमन को
आखिर क्यों ?

गिर चुके हैं हम,
अपने संस्कारों से, सिद्धांतों से
उसूलों से, मर्यादाओं से
या मार डाला है हमें,हमारी कायरता ने
जिसकी बर्फ तले दुबके,
बेजान, बेअसर,निष्चेत पड़े हैं हम
आखिर क्यों ?

कहने को व्याप्त है, हरतरफ सुरसा सम
शासन - प्रशासन और न्याय
फिर भी,
इन बेगैरत, बेशर्म,बेख़ौफ़ चंद गुंडों से
हम इतने खौफ ज़दा हैं
आखिर क्यों ?

आखिर किस लाचारी और भय के चाबुक से
आदमी इस कदर असहाय हो गया है
कि, सरेआम लूटते -खसोटते, काटते -मारते
दरिंदों की दरिंदगी को देखकर भी
नपुंसकों की भांति, आज वह निष्चेत खड़ा है
आखिर क्यों ?

आज किसी द्रुपदा का चीरहरण
नहीं ललकारता हमारे पौरुष को
क्रूरता और वीभत्सता का तांडव
नहीं झकझोरता हमारे अंतर्मन को
आखिर क्यों ?

गौरवमय भारत के लौहपुरुष
कल क्या थे,आज क्या हो गए
कभी सोचा है तुमने ?
हमारा ये बेबस मौन
किस गर्त में डुबोयेगा हमें, हमारे समाज को
क्या इसपर चिंतन करोगे तुम ?
************
kusumvir@gmail.com

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : ब्रह्मपुत्र रो रही है !!! विजय कुमार सपत्ति

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : 

ब्रह्मपुत्र रो रही है  !!!

 

विजय कुमार सपत्ति
*

भाग एक :

हे बाला [श्री भूपेन हजारिका अक्सर उत्तर-पश्चिम  की लडकियों को बाला कहते थे]; तो हे बाला! हमें माफ़ करना, क्योंकि इस बार हम तुम्हारे लिये किसी कृष्ण को इस बार  धरती पर अवतरित नहीं कर सके.असच यह है कि कृष्ण भी हम से डर गए है. उनका कहना है कि वो दैत्य से लड़ सकते है, देवताओं से लड़ सकते है;जानवरों से लड़ सकते है; लेकिन इस आदमी का क्या करें......!!! वे जान गये हैं कि हम आदमी इस जगत के सबसे बुरी कौम है. न हमारा नाश होंगा और न ही हम आदमियों का नाश होने देंगे. कृष्ण चाहते थे कि वहाँ कोई आदमी कृष्ण बन जाए. लेकिन वे भूल गये, धोखे में आ गये. वहाँ हर कोई सिर्फ और सिर्फ आदमी ही था सिर्फ दु:शासन ही बनना चाहता था. कोई भी कृष्ण नहीं बनना चाहता था. सच यह है कि  अब कृष्ण कालबाह्य हो गये है. वहाँ उन लडको में सिर्फ आदमी ही था. वहाँ जो भीड़ खड़ी होकर तमाशा देख रही थी, वो भी आदमियों से ही भरी हुई थी. हे बाला! हमें माफ़ करना. क्योंकि  हम आदमी बस गोश्त को ही देखते है, हमें उस गोश्त में हमारी बेटी, बहन या हमारी कोई अपनी ही सगी औरत नज़र नहीं आती है.

भाग दो :

दोष किसका है? मीडिया का... जो आये दिन अपने चैनेल्स पर दुनिया की गंदगी परोसकर युवा-मन को उकसाती  है  या इस सूचना क्रांति का जिसका दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकते रहता हैं या हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे  या हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं  दे पा रहे हैं  या युवाओं का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक  भोग की वस्तु ही समझ रहे हैं.  टी.वी. में आये दिन वो सारे विज्ञापन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते होंगे? फिल्मों में औरतों का चरित्र जिन तरीकों से, जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है क्या वह इस युवा पीढ़ी को  इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे? कहाँ गलत हो रहा है? किस बात की कुंठा है? तन का महत्व कैसे हमारे युवाओं के मन में गलत जगह बना रहा है?  माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम नहीं? क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है. कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में. अब  हम सभी को एक मज़बूत सोच और पुनर्विचार की जरुरत है.

भाग तीन :

तो बाला, हमें इससे क्या लेना-देना कि अब सारा जीवन तुम्हारे मन में हम आदमियों को लेकर किस तरह की सोच उभरे, कि तुम सोचो कि आदमी से बेहतर तो जानवर ही होते होंगे. हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारे घरवालों  पर इस बात का क्या असर होगा? हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारी माँ कितने आंसू रोयेंगी? हमें इससे भी क्या लेना- देना कि तुम्हारे पिता या भाई  को हम आदमी और हम आदमियों की कुछ  औरतें पीठ पीछे कहा करेंगी कि ये उस लड़की के पिता या भाई हैं. हमें इस बात से क्या लेना-देना  कि अगर तुम्हारी कोई छोटी  बहन हो तो हम आदमी उसे भी सहज उपलब्ध समझेंगे. इससे भी क्या लेना-देना कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बन गयी है और जीवन भर अपने मरने तक तुम इस घटना को नहीं भुला पाओगी और कि अब इस ज़िन्दगी में कोई भी पुरुष अगर तुम्हे प्रेम से भी छुए तो तुम सिहर-सिहर जाओगी और अंत यह भी कि तुम यह सब कुछ सहन नहीं कर पाओ और आत्महत्या ही कर लो. हमें क्या करना है बेटी? हम आदमी हैं. ये हमारा ही समाज है.

भाग चार :
 
चंद आदमी कहेंगे कि उस लड़की को इतनी रात को उस पब में क्या करना था? क्या यह उस लड़की की गलती नहीं है?, कि आजकल लडकियां  भी तो कम नहीं है, कि उस लड़की ने उत्तेजक पोषाक पहन रखी थी. लडकियाँ अपने वस्त्रों और बातों से लडकों/आदमियों [?] को उकसाती हैं . चंद आदमी यह भी कहेंगे कि उस लड़की के माँ-बाप को समझ नहीं है क्या जो इतनी रात को उसे पब भेज रहे हैं, वह भी ११ वीं पढनेवाली लड़की को. चंद आदमी यह  भी कहेंगे कि उस लड़की का चरित्र ठीक नहीं होगा या कि देश सिर्फ ऐसी लडकियों और औरतो की वजह से ही ख़राब हो रहा है. मतलब यह कि ये चंद आदमी पूरी तरह से सारा दोष उस लड़की पर ही डाल देंगे. ये चंद आदमी यह भी नहीं सोचेंगे कि उत्तर-पश्चिम हमारे देश का सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य है और वहाँ ज्यादा लिंग पूर्वाग्रह   की घटनाएं नहीं होती हैं. [सिवाय इसके जब हमारी तथाकथित सेना के चंद जवान वहाँ की औरतों का जब-तब  दोहन करते रहते हैं] और अब ये चंद आदमी इस देश में तय करेंगे कि औरतें ख़राब होती  हैं.

भाग पाँच  :

हे बाला! हम सब का क्या? हम थोड़ा लिखना-पढना जानते हैं  इसीलिए हम थोड़ा लिख/ पढ़/ बोलकर अपना गुस्सा जाहिर करते हैं. उस तरह के लिखने-पढने-बोलनेवाले अब नहीं रह गये है जिनके कहे से क्रान्ति आ जाती थी... और न ही उनकी बातों को सुनकर जोश में कुछ करनेवाले बन्दे रह गये हैं. तुम समझ लो कि हम सबका खून ठंडा हो चला है. और... और... हम एक तरह से नपुंसक ही हैं. हाँ, हमें दुःख है कि तुम्हारे साथ यह हुआ. ये तुम्हारे साथ तो क्या, किसी के भी साथ नहीं होना था. हमें दुःख है कि आदमी नाम से तुम्हारा परिचय इस तरह से हुआ है. लेकिन हम यह भी कहना चाहते हैं कि सारे आदमी ख़राब भी नहीं होते, जिस पत्रकार  ने हम तक यह खबर पहुंचाई वह भी एक भला आदमी ही है. बेटी! तुम इतनी सी बात याद रखो  कि ये बातें भी एक आदमी ही लिख  रहा है. ईश्वर तुम्हे मन की शान्ति दे.  हाँ, एक बात और मुझे नहीं पता कि यह समाज कब बदलेंगा लेकिन मैं एक बात तुमसे और सारी औरतों से कहना चाहता हूँ कि " अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और  आँखों में पानी" वाली स्त्रियों का ज़माना नहीं रहा. समाज ऐसे ही घृणित जानवरों से भरा पड़ा है. इनसे तुन्हें और सभी स्त्रियों को खुद ही लड़ना होंगा... खुद को तैयार करो और इतनी सक्षम बनो कि हर मुसीबत का सामना कर सको. ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हें जीवन में कोई ऐसा आदमी जरूर दे जो तुम्हारे मन से आदमी के नाम पर बैठ गए डर को ख़त्म कर सके, उसे जड़ से निकाल दे.  आमीन !!

भाग छह :

ब्रह्मपुत्र की लहरों को सबसे ज्यादा गुस्सैल और उफनती कहा गया है. आज ब्रम्हपुत्र जरूर रो रही होगी कि वह एक नदी है और उसीकी धरती पर उसीकी एक बच्ची के साथ  ऐसा घृणित कार्य हुआ. हे ब्रम्हपुत्र! मैं सारे आदमियों की तरफ से तुमसे माफ़ी माँगता हूँ.  इतना ही मेरे बस में है और यह भी कि मैं एक कोशिश करूँ कि  अपने आसपास के समाज को दोबारा ऐसा करने से रोकूँ और अपने दूसरे सारे बच्चो को बताऊँ कि औरत एक माँ होती है और उन्हें जन्म देनेवाली भी एक औरत ही है यह भी कि मैं उन सभी को  औरत की इज्जत  करना सिखाऊँ (और यह कि मैं ऐसी दुर्घटना का शिकार हुई किसी लडकी को अपनी पुत्रवधू बनाने से मन ना करूँ). हे ब्रम्हपुत्र! मुझे इतनी शक्ति जरूर देना कि मैं यह कर सकूँ.

भाग सात :  एक कविता

:
दुनिया की उन  तमाम औरतो के नाम, उन आदमियों  कि तरफ से जो ये सोचते हैं कि  औरतों का  बदन उनके जिस्म से ज्यादा नहीं होता है:
 
जानवर

अक्सर शहर के जंगलों में;
मुझे जानवर नज़र आतें है!
आदमी की शक्ल में,
घूमते हुए;
शिकार को ढूंढते हुए;
और झपटते हुए...
फिर नोचते हुए...
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ,
जो जंगल के जानवर है;वे परेशान है!
हैरान है!!
आदमी की भूख को देखकर!!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों  से तो 
हम जानवर अच्छे !
हम कभी, किसीसे 
बलात्कार नहीं करते!!

उन जानवरों के सामने;
मैं निशब्द था,
क्योंकि;
मैं भी एक आदमी  था!!!

*****
 - vksappatti@gmail.com 

बाल गीत चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना --संजीव 'सलिल'

बाल गीत
चूँ चूँ चिड़िया चुन दाना
संजीव 'सलिल'
*

*
चूँ-चूँ चिड़िया चुन दाना.
मुझे सुना मीठा गाना..

तुझको मित्र  बनाऊँगा
मैंने मन में है ठाना..

कौन-कौन तेरे घर में
मम्मी, पापा या नाना?

क्या तुझको भी पड़ता है
पढ़ने को शाला जाना?

दाल-भात है गरम-गरम
जितना मन-मर्जी खाना..

मुझे पूछना एक सवाल
जल्दी उत्तर बतलाना..

एक सरीखी चिड़ियों में
माँ को कैसे पहचाना?

सावधान रह इंसां से.
बातों में मत आ जाना..

जब हो तेरा जन्मदिवस
मुझे निमंत्रण भिजवाना..

अपनी गर्ल फ्रेंड से भी
मेरा परिचय करवाना..

बातें हमने बहुत करीं
चल अब तो चुग ले दाना..
****

आज का विचार today's thought: मित्र TRUE FRIEND

आज का विचार today's thought: 
मित्र TRUE FRIEND
संजीव 'सलिल'
*
मित्र मेरे!
किया जीवन धनी तुमने
हम मिले 
यह ईश्वर की चाह थी.
दोस्ती की राह 
बेहद खुशनुमा है.
मित्र के संग टहलना 
कितना मधुर है.
हाथ को छूकर ह्रदय तक 
पहुँचता है मित्र सच्चा.
 
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रही मीलों तक हमारी मित्रता 
प्रिय मुझे बेहद.
भावनाओं से भरे सन्देश पाकर 
तृप्त, लगता ही नहीं देखूं तुम्हें मैं.
आत्मा तेरी धड़कती 
हृद-पटल पर-
भेजते हो जब 
मुझे सन्देश कोई.

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ख्याल तेरा गर्मजोशी, 
मित्रता का भाव लाया.
काश, मिल सकते अभी हम 
किन्तु तुम हो दूर बेहद.
दूरियों को मिटाती हैं 
बात तेरी याद आकर.

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सोमवार, 16 जुलाई 2012

मौसमी कविता: झम झम बरसै पानी - एस. एन. शर्मा 'कमल'

मौसमी कविता: 
 
 
झम झम बरसै पानी
 




- एस. एन. शर्मा 'कमल'

बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
दामिनि दमकै हियरा दरकै झम झम बरसै  पानी
                                  
हाय,  झम झम बरसै पानी

धरती की छाती गदराई लखि पावस की तरुणाई

पात पात डोलै पुरवाई डार डार कोयल बौराई
बुलबुल चहकै बेला महकै नाचै मुदित मोर अभिमानी
                                    हाय , झम झम बरसै पानी

कलियन पर अलियन की गुन गुन सरगम छाये बगियन में
झूम झूम कजरी गाने की होड़ मचि रही सखियन में
उनके  अल्हड़पन  पर  चुपके आई  उतर  जवानी
                                  हाय झम झम बरसै पानी

बाग़ बगीचे हुए पल्लवित वन उपवन हरियाली छाई
ताल तलैयाँ उफनाये सब बाँस बाँस नदिया गहराई
दादुर मोर पपीहा बोलै  कोयल कूकै बनी दीवानी                                 
                               हाय, झम झम बरसै पानी

ठौर ठौर पर आल्हा जमते बजते ढोल नगाड़े
रस फुहार में नाच नाच रसिया गाते मतवारे
खनक उठी गगरी पनघट पर बोलैं बोल सयानी
                                हाय, झम झम बरसै पानी

पायल बिछिया कंगना बिंदिया कब से कहा था लाने
पर तुम टस से मस न हुए बस करते रहे बहाने
मैं मर गई निहोरे कर कर तुमने एक न मानी
                             हाय झम झम बरसै पानी

कनखी मारै लाज न आवै मटकै सांझ सबेरे
दैय्या रे दैय्या हाय रे मैय्या कागा बैठ मुंडेरे 
बार बार चितवै हरजाई बोलै बानि  अजानी
                           हाय, झम झम बरसै पानी

           बदरा आये वर्षा लाये चलै पवन मस्तानी
           दामिनि दमकै हियरा दरकै  झमझम बरसै पानी


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- sn Sharma  ahutee@gmail.com