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बुधवार, 9 जून 2010

हिन्दी टूल किट : आई एम ई को इंस्टाल करें --- संजीव तिवारी

हिन्दी टूल किट : आई एम ई को इंस्टाल करें एवं अपने कम्प्यूटर को हिन्दी सक्षम बनायें

>> मंगलवार, २२ सितम्बर २००९


कम्‍यूटर में हिन्‍दी सक्षम करने के विभिन्‍न औजार हैं एवं इन पर मेरे से पूर्व मेरे हिन्‍दी सेवी अग्रजों नें ढेरों लेख लिखे हैं। इन सबके बावजूद इधर छत्‍तीसगढ में प्रिंट मीडिया में एवं नेट पर आरंभ में कुछेक तकनीकी कलम घसीटी के बाद मेरे मित्र मुझे लगभग प्रत्‍येक दिन मेल से या फोन से मुझे इसके संबंध में पूछते हैं। प्रत्‍येक को इस संबंध में अलग अलग जानकारी देने के बजाए मैं जिस हिन्‍दी टूल का प्रयोग करता हूं उसके संबंध में अपने शब्‍दों में जानकारी प्रस्‍तुत कर रहा हूं। मैं कम्‍प्‍यूटर में हिन्‍दी टाईपिंग के लिए पहले डब्‍लू एस में अक्षर, पेजमेकर में श्री लिपि फिर वर्ड में कृतिदेव एवं क्‍वार्क में चाणक्‍य फोंट पर काम करता था। मेरी उंगलियां रेमिंगटन एवं गोदरेज कीबोर्ड के अनुसार काम करती हैं। आईएमई से मैंने वही यूनीकोड हिन्‍दी फोंट कीबोर्ड पाया जो मैं कम्‍प्‍यूटर पर डॉस के समय से लगभग पंद्रह-बीस वर्ष से प्रयोग कर रहा हूं। देखें क्रमबद्ध संस्‍थापना निर्देश (एक्‍सपी के लिए) -
नीचे दिये लिंक को क्लिक कर IME हिन्दी टूल किट डाउनलोड करें, यह लिंक श्रीश शर्मा जी द्वारा सहेजा गया है इसका आकार 1.23 एमबी है -
इसे क्लिक कर अपने कम्‍प्‍यूटर में इस टूल का ईएक्‍सई फाईल डाउनलोड कर लेवें.
फिर इस ईएक्‍सई फाईल को क्लिक करें व इंस्‍टाल प्रक्रिया आरंभ करें 'नेक्‍स्‍ट' 'नेक्‍स्‍ट' से आगे बढें.
जब पूर्ण रूप से यह टूल इंस्‍टाल हो जायेगा तब यह विंडो आयेगा जिसमें आपके कम्‍प्‍यूटर को रिस्‍टार्ट करने को पूछा जायेगा, यहां आप नो ....... विकल्‍प को चुने और फिनिश को क्लिक कर देवें.
अब स्‍टार्ट - सेटिंग - कन्‍ट्रोल पैनल में जायें. जब आप कन्‍ट्रोल पैनल को क्लिक करेंगें तो यह विंडो खुलेगा . इसमें आप डेट टाईम एण्‍ड रीजनल ऑप्‍शन को क्लिक करें-
अब यह विंडो खुलेगा इसमें रीजनल लैंग्‍वेज सैटिंग को क्लिक करें (एक्‍सपी के अन्‍य वर्जनों में यदि यह प्रक्रिया कुछ अलग हो फिर भी हमें रीजनल लैंग्‍वेज सैटिंग में आना है)-
रीजनल लैंग्‍वेज सैटिंग को क्लिक करने पर यह नया विंडो खुलेगा जिसमें आप लैंग्‍वेज टैब को क्लिक करें -
अब डिटेल को क्लिक करें -
इस विंडो में एड बटन को क्लिक करें -
फिर यह विंडो आयेगा । इसमें इनपुट लैंगवेज के डाउन एरो की को क्लिक करें - इससे विभिन्न भाषाओं की एक लंबी लिस्ट निकलेगी जिसमें से Hindi को सलेक्ट करें एवं ओके बटन क्लिक करें -
अब Hindi भाषा आपके कम्प्यूटर में संस्‍थापित हो गई, अब हमें अपने कम्प्यूटर में अपने पसंद का कीबोर्ड चयन करना है जो इस प्रोग्राम से प्राप्‍त होगा इसके लिये इस विंडो के हिन्‍दी ट्रेडीशनल के डाउन एरो को क्लिक करें - इससे विभिन्‍न भाषाओं के की बोर्ड की लिस्‍ट सामने आयेगी जिसमें से आईएमई की बोर्ड सलेक्‍ट करने के लिए सबसे नीचे जाईये यहां आईएमई को सलेक्‍ट करिये -
ओके बटन को क्लिक करें -
आपके सिस्‍टम में आईएमई इंस्‍टाल हो चुका । अब आपके कम्‍प्‍यूटर को ओके बटन दबाकर रिस्‍टार्ट करें -
रिस्‍टार्ट होने के बाद आपके कम्‍प्‍यूटर के बार में या उपर दाहिनी ओर EN लिखा हुआ दिखेगा । यह प्रदर्शित करता है कि आपके कम्‍प्‍यूटर में अंग्रेजी के अतिरिक्‍त कोई अन्‍य भाषा भी संस्‍थापित है. यदि यह उपर दाहिनी ओर नीचे दिये गये चित्र की तरह दिखाई देता है तो उसे मिनिमाईज कर लें -
आप अपने कम्‍प्‍यूटर के वर्ड, नोट पैड या कोई अन्‍य प्रोगरेम को चलाने के बाद इस टूल से वहां हिन्‍दी में ऑफलाईन होते हुए भी लिख सकेंगे एवं अपने पोस्‍ट की सामग्री को ऑनलाईन होने से पहले भी लिखकर सहेज सकते हैं. इससे आप इंटरनेट में हिन्‍दी सर्च करने एवं ब्‍लागर में पोस्‍ट करने के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं. आवश्‍यक यह है कि जब जहां पर हिन्‍दी लिखना हो उस प्रोग्राम को चालू करके; आपके कम्‍प्‍यूटर के निचले बार में दाहिनी ओर दिख रहे EN को क्लिक करें; वहां हिन्‍दी के लिए विकल्‍प मिलेगा, EN को क्लिक करने पर एक मिनी टैग खुलेगा जिसमें से Hindi को चयन करें -
हिन्‍दी को चयन करने पर साईडबार में कीबोर्ड का चित्र आ जायेगा, एवं EN की जगह HI दिखने लगेगा। अब यहां अपने पसंद के कीबोर्ड के चयन के लिये इस कीबोर्ड को क्लिक करना होगा -
यहां आठ प्रकार के कीबोर्ड विकल्‍प मौजूद हैं जिसमें फोनेटिक कीबोर्ड जिससे आप अंग्रेजी में टाइप करेंगें तो हिन्‍दी में लिखायेगा वह पहला विकल्‍प है एवं रेमिंगटन की बोर्ड दूसरा, जिसे आप अपनी सुविधा अनुसार चुन सकते हैं -
यह प्रकिया आप अपने वर्ल्ड प्रोसेसर या ब्लॉगर मे अपनाकर हिन्दी लिख सकते है ! हिन्‍दी में चैट कर सकते हैं, हिन्‍दी में आरकुट स्‍क्रैप लिख सकते हैं -
यह इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर, ओपेरा या फॉयर फॉक्‍स में भी काम करता है जैसे कि आपको इंटरनेट के सर्च आप्‍शन में कोई हिन्‍दी शब्‍द खोजना है तो आप EN को HI करें एवं अपने जाने पहचाने की बोर्ड से हिन्‍दी टाईप कर सर्च करें । यह किसी भी मेल, आरकुट, मैसेंजर में हिन्‍दी को सक्षम बनाता है और जब आप EN को HI करते है तब किसी भी प्रोग्राम में हिन्‍दी में लिखना संभव करता है । यहां यह बात ध्‍यान में रखने योग्‍य है कि जब आप कम्‍प्‍यूटर चालू करते है तो लैंग्वेज बार में EN लिखा रहता है जैसे ही आप कोई प्रोग्राम, जिसमें कि आप हिन्‍दी में लिखना चाहते हैं, खोलते हैं उसके बाद EN को HI करें तब यह आईएमई उस प्रोग्राम के लिए सक्षम हो पाता है जैसे ही आप उस प्रोग्राम को मिनिमाईज या बंद करते हैं लैंग्वेज बार पुन: EN दिखाने लगता है यानी तब अंग्रेजी सक्षम हो जाता है । प्रत्‍येक प्रोग्राम के लिए आपको प्रोग्रसम खोलने के बाद EN को HI करना है बस फिर जहां हिन्‍दी में टाईप करना है वहां क्लिक कर कर्सर लाईये और शुरू हो जाईये ।

(चित्रों को स्‍पष्‍ट देखने के लिए उसे क्लिक करें)

विशेष ध्‍यान रखें : जब आप अपने ई मेल खाते में, बैंकिंग खाते में अथवा अन्‍य किन्‍हीं खातों में लॉगिन करते हैं उस समय EN दिख रहा हो अन्‍यथा आप सोचेंगे कि वहां पर यूजर आई डी और पासवर्ड गलत क्‍यों आ रहा है या स्‍वीकार क्‍यों नहीं कर रहा है। कंप्‍यूटर स्‍टार्ट करते समय यदि पासवर्ड मांगता है और सही पासवर्ड देने में भी स्‍वीकार न कर रहा हो Alt+Shift कीज़ को इकट्ठा दबाकर छोड़ दें फिर पासवर्ड टाईप करें, तब कंप्‍यूटर उसे स्‍वीकार कर लेगा। बिना दिखाई दिए अथवा किसी भी अवस्‍था में इन दोनों कीज़ को इकट्ठा दबाकर भाषा EN या HI बदली जा सकती है। संजीव तिवारी

One liners in aviation - vijay kaushal



The difference between a duck and a co-pilot?
The duck can fly.  

A check sortie in an aircraft ought to be like a skirt.
Short enough to be interesting, but long enough to cover everything

Speed is life.  Altitude is life insurance.

It only takes two things to fly:
Airspeed, and money.



The three most dangerous things in aviation:
1. A Doctor or Dentist in a Cessna.
2. Two captains in a B-737

Aircraft Identification:
If it's ugly, it's British.
If it's weird, it's French.
If it's ugly and weird, it's Russian.


Without ammunition, the USAF would be just another very expensive flying club.

The similarity between air traffic controllers and pilots?
If a pilot screws up, the pilot dies.
If ATC screws up, the pilot dies.

New FAA & DGCA motto:
'We're not happy, till you're not happy.'

If something hasn't broken on your helicopter -- it's about to.

I give that landing a 9
.......on the Richter scale.

Basic Flying Rules:
1. Try to stay in the middle of the air.
2. Do not go near the edges of it.
3. The edges of the air can be recognized by the appearance of ground, buildings, sea, trees and interstellar space. It is much more difficult to fly in the edges.

Unknown landing signal officer (LSO) to carrier pilot after his 6th unsuccessful landing attempt:
"You've got to land here son. This is where the food is."

The three best things in life are:
A good landing, a good orgasm, and a good bowel movement.
A night carrier landing is one of the few opportunities to experience all three at the same time

***************

मंगलवार, 8 जून 2010

काव्य दोष या समझ का अंतर? ...

काव्य दोष या समझ का अंतर? ...

ई कविता पर एक प्रसंग में महाकवि तुलसी के काव्य को लेकर हुई चर्चा दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए प्रस्तुत है.
Tulsidas.jpg


आनंद कृष्ण: मैं आप सबके सामने गोस्वामी तुलसीदास का एक दोहा प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमें "क्रम-विपर्यय" का दोष है-
 
सचिव, बैद, गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भय आस.
राज, धर्म, तन तीनि कर होहि बेगही नास.
 
इसका अर्थ स्पष्ट है की यदि सचिव (मंत्री), वैद्य (चिकित्सक) और गुरु: ये तीन व्यक्ति किसी भय के कारण अप्रिय नहीं बोलते हैं तो राज्य, धर्म और शरीर इन तीनों का शीघ्रता से नाश होता है.
 
पहली पंक्ति में क्रम है- सचिव, बैद और गुरु........... अगली पंक्ति में इनसे सम्बंधित क्षेत्रों का क्रम गड़बड़ा गया है- सचिव के लिए राज, बैद के लिए "तन" होना था पर "धर्म" आया है और गुरु के लिए "धर्म होना था किन्तु "तन" आया है......... ये दोष है...
 
इस दोष का ज़िक्र करने का अर्थ गोस्वामी तुलसीदास की शान में गुस्ताखी करना  नहीं समझा जाए सादर -आनंदकृष्ण, जबलपुर , मोबाइल : ०९४२५८००८१८   http://hindi-nikash.blogspot.कॉम    ******
परमपूज्य आनंदकृष्ण जी ,
आपके जैसे विद्वान तुलसीदास के जमाने में भी थे , जिन्होंने तुलसीदास की पूरी कृति को ही निरस्त कर दिया था । लेकिन दुर्भाग्य से उन पंडितों में से किसी का नाम आज किसी को याद नहीं है । याद रह गए तो सिर्फ तुलसीदास । वैसे छंद विधान में शब्दों को इतना आगे-पीछे रखने की छूट कवि को दी जाती है । अन्यथा ये कहावत ही न बन पाती कि जहां न पहुंचे रवि , वहां पहुंचे कवि । - ओमप्रकाश तिवारी    *****

परम आदरणीय तिवारी जी,
आनंद जी ने स्वयं स्पष्ट किया है कि उनका इरादा तुलसी दास जी क़ी शान में गुस्ताखी करने का कतई नहीं था. उनकी रचना से उदहारण देकर उन्होंने कुछ बुरा भी नहीं किया. 'क्रम विपर्यय' दोष क़ी चर्चा छंद शास्त्रों मैं पहले से है, हम अपनी श्रद्धा के आगे इतना विवश क्यों हो जाते हैं कि सच्ची बात अखरने लगती है. अगर तुलसी दास जी को भूल कर उस दोष पर विचार करें जो उस रचना मैं किसी कारण वश रह गया, तो भविष्य की कविता और सुन्दर हो सकती है. आशा है मेरे निवेदन को अन्यथा न लेंगे.      कृपाकांक्षी,  मदन मोहन 'अरविन्द'   *****

सचिव, बैद, गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भय आस.
राज, धर्म, तन तीनि कर होहि बेगहि नास.
यहाँ ऊपरी तौर पर 'क्रम विपर्यय दोष' है किन्तु गहराई से सोचें तो नहीं भी है. बैद भय के कारण प्रिय बोलेगा तो स्वास्थ्य बिगड़ेगा और रोगी के लिए धार्मिक अनुष्ठान वर्जित होने से धर्म की हानि होगी. इसी तरह गुरु भयवश प्रिय कहेगा तो ज्ञान नहीं मिल सकेगा और अज्ञान के कारण शरीर नष्ट होगा.

ऐसा ही एक और प्रसंग है: 'शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन' में निरर्थक शब्द-प्रयोग का दोष दिखता है चूंकि 'सुवन' शब्द का कोई अर्थ समझ में नहीं आता, सामान्य शब्द कोशों और अरविन्द कुमार के हिन्दी थिसारस में 'सुवन' शब्द ही नहीं है. बिहार में पंडितों की एक सभा में इस पर चर्चा कर सर्व सम्मति से संशोधन किया गया 'शंकर स्वयं केसरी नंदन' चूंकि हनुमान रूद्र के अवतार मान्य हैं यह ठीक भी लगता है किन्तु वास्तव में इसकी आवश्यकता ही नहीं है. 'सुवन' =
सूर्य, चन्द्रमा, पुत्र, पुष्प, सुमन, देवता, पंडित, अच्छे मनवाला (पृष्ठ १२८२, बृहत् हिन्दी कोष, संपादक: कलिका प्रसाद, राजवल्लभ सहाय, मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव).

एक और; 'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी' का उल्लेख कर तुलसी को नारी निंदक कहनेवाले यह भूल जाते हैं कि 'जय-जय गिरिवर राज किशोरी, जय महेश मुख चन्द्र चकोरी, जय गजवदन षडानन माता, जगत जननि दामिनी दुति गाता' में तुलसी नारी को 'जगत जननि' कहकर उसकी मान वन्दना करते हैं. यहाँ 'पशु नारी' का अर्थ 'पशु और नारी' नहीं 'पशुवत नारी' अर्थात पशु की तरह अमर्यादित आचरण करनेवाली नारी है.

यह मेरी बाल बुद्धि की सोच है. यदि मैं गलत हूँ तो विद्वज्जन क्षमा करते हुए मार्दर्शन करेंगे. 
  --संजीव 'सलिल'   *********

काव्य में दायें और बायें की लयात्मक दृष्टी से छूट होती है यह केवल दोष दृष्टि है.   -- मृदुल कीर्ति  ********

यह बहस का मुद्दा ही नहीं है.... ब्लोग्ग पर सतही बहस करनेवाले और जल्दी उत्तेजित होनेवाले बहुत हैं... आप इससे दूर ही रहें...  आपके बताये अर्थ सही हैं.    ---पूर्णिमा वर्मन.    *****


आप पाठक भी अपनी बात कहें...


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सोमवार, 7 जून 2010

त्रिपदिक (जनक छंदी ) नवगीत : नवगीत : नेह नर्मदा तीर पर ---- संजीव 'सलिल'

: अभिनव सारस्वत प्रयोग :

त्रिपदिक (जनक छंदी ) नवगीत :
                                  नेह नर्मदा तीर पर
                                                - संजीव 'सलिल'

                     *
[ इस रचना में जनक छंद का प्रयोग हुआ है. संस्कृत के प्राचीन त्रिपदिक छंदों (गायत्री, ककुप आदि) की तरह जनक छंद में भी ३ पद (पंक्तियाँ) होती हैं. दोहा के विषम (प्रथम, तृतीय) पद की तीन आवृत्तियों से जनक छंद बनता है. प्रत्येक पद में १३ मात्राएँ तथा पदांत में लघु गुरु लघु या लघु लघु लघु लघु होना आवश्यक है. पदांत में सम तुकांतता से इसकी सरसता तथा गेयता में वृद्धि होती है. प्रत्येक पद दोहा या शे'र की तरह आपने आप में स्वतंत्र होता है किन्तु मैंने जनक छंद में गीत और अनुगीत (ग़ज़ल की तरह तुकांत, पदांत सहित) कहने के प्रयोग किये हैं. अंतर्जाल पर पहली बार इन्हें प्रस्तुत करते समय संकोच है कि न जाने क्या प्रतिक्रिया मिले. गुण ग्राहकों को रुचे तो आगे अन्य रचनाएँ और अन्य छंद सामने रखने का साहस जुटाऊँगा. इस क्रम में उर्दू का तसलीस आप के समक्ष आ ही चुका है.]












नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन कर धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?

          निष्क्रिय, मौन, हताश है.
          या दिलजला निराश है?
          जलती आग पलाश है.

जब पीड़ा बनती भँवर,
       खींचे तुझको केंद्र पर,
           रुक मत घेरा पार कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
सुन पंछी का मशविरा,
मेघदूत जाता फिरा-
'सलिल'-धार बनकर गिरा.

          शांति दग्ध उर को मिली.
          मुरझाई कलिका खिली.
          शिला दूरियों की हिली.

मन्दिर में गूँजा गजर,
       निष्ठां के सम्मिलित स्वर,
           'हे माँ! सब पर दया कर...
                   *
नेह नर्मदा तीर पर,
       अवगाहन का धीर धर,
           पल-पल उठ-गिरती लहर...
                   *
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.

          सिकता कण लख नाचते.
          कलकल ध्वनि सुन झूमते.
          पर्ण कथा नव बाँचते.

बम्बुलिया के स्वर मधुर,
       पग मादल की थाप पर,
           लिखें कथा नव थिरक कर...
                   *
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com

बाल कविता: गुड्डो-दादी संजीव 'सलिल'

बाल कविता :
तुहिना-दादी
संजीव 'सलिल'
*

तुहिना नन्हीं खेल कूदती.
खुशियाँ रोज लुटाती है.
मुस्काये तो फूल बरसते-
सबके मन को भाती है.
बात करे जब भी तुतलाकर
बोले कोयल सी बोली.
ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें
बाल परी कितनी भोली.

दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'

तुहिना आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.
*********************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
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रविवार, 6 जून 2010

कथा-गीत: मैं बूढा बरगद हूँ यारों... ---संजीव 'सलिल'

कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
संजीव 'सलिल'
*
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*
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...

है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.

धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.

मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया सुखी.

वानर आ करते कूद-फांद.
झकझोर डालियाँ मस्ताते.
बच्चे आकर झूला झूलें-
सावन में कजरी थे गाते.

रातों को लगती पंचायत.
उसमें आते थे बड़े-बड़े.
लेकिन वे मन के छोटे थे-
झगड़े ही करते सदा खड़े.

कोमल कंठी ललनाएँ आ
बन्ना-बन्नी गाया करतीं.
मागरमाटी पर कर प्रणाम-
माटी लेकर जाया करतीं.

मैं सबको देता आशीषें.
सबको दुलराया करता था.
सबके सुख-दुःख का साथी था-
सबके सँग जीता-मरता था.

है काल बली, सब बदल गया.
कुछ गाँव छोड़कर शहर गए.
कुछ राजनीति में डूब गए-
घोलते फिजां में ज़हर गए.

जंगल काटे, पर्वत खोदे.
सब ताल-तलैयाँ पूर दिए.
मेरे भी दुर्दिन आये हैं-
मानव मस्ती में चूर हुए.

अब टूट-गिर रहीं शाखाएँ.
गर्मी, जाड़ा, बरसातें भी.
जाने क्यों खुशी नहीं देते?
नव मौसम आते-जाते भी.

बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.

भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..
***********************

शुभ कामनाएं : हर्षवर्धन-अमृता परिणय

II  ॐ परात्पर परम्ब्रम्ह देवाधिदेव श्री चित्रगुप्त नमः II
-- :: पावन परिणय :: --

आयुष्मान हर्षवर्धन आत्मज श्रीमती रेवती-श्री रमेश कुमार श्रीवास्तव, सिवनी
संग
आयुष्मती अमृता आत्मजा श्रीमती-श्री अजय कुमार रायजादा, जबलपुर
परिणय पर्व : मंगलवार ८.६.२०१०, माढ़ोताल, जबलपुर
शुभाशीष समारोह : बुधवार, ९.६.२०१०, बारापत्थर, सिवनी
*****

नव दम्पति अभिनन्दन
I ऋद्धि-सिद्धि-विघ्नेश गणपति, चित्रगुप्त प्रभु शत वन्दन I
II मातु नंदिनी-माँ इरावती, अर्पित भाव-सुरभि चन्दन II
*
I विधि-हरि-हर संग शारद-लक्ष्मी-शक्ति पधारें, दें आशीष I
II भारत माता, मातु नर्मदा, हों प्रसन्न यह वर दें ईश II
*
I सुरपुर में भैंरोप्रसाद जी-बाल गोविन्द मुदित-मन हैं I
II मिले रायजादा-श्रीवास्तव, भुज भर सबका वंदन है II
*
I बाज रही अँगना शहनाई, बजी बधाई है द्वारे इ
II 'रामकुंवर, ऋतुराज' सहित, स्वागतरत नभ-रवि-शशि-तारे II
*
I संस्कार सोलह शुभ थाती, प्रथा सनातन-पावन है II
II प्रकृति-पुरुष को द्वैत न भाये, शुभ अद्वैत मन-भावन है II 
*
I मुकुलित-मुदित 'हर्षवर्धन' पर, हुई 'अमृता' आज निसार I
II मनहर रूप 'अमृता' का लख, गया 'हर्षवर्धन' दिल हार II
*
I हुए समर्पण पल के साक्षी, 'विजया' संग 'रूपेश-नरेश' I
II 'शक्तिबोध, अरुणिमा, अनुपमा, तुहिना, तोशु, दिनेश, सुरेश II
*
I 'आरुषि, सूफी, सारा, विशु, मधुरिमा शशांक' झूम नाचें I
II 'पुष्पा' तन, 'शोभना' मुदित मन, स्वागत गीत मौन बाँचें II
*
I बिम्ब 'अन्नपूर्णा' का देखें, 'सुधीर, सलिल, चातक, अवधेश' I
II स्नेह-'साधना' का 'अभिषेक' करें, सब मिल वर दें अमरेश II
*
I सप्तपदी पर सात वचन दे-लेकर, सात जन्म का साथ I
                                II विहँस निभाएं नव दम्पति, रख कदम साथ, हाथों में हाथ II                                          *
I राम-सिया, शिव-शिवा सदृश ही, साथ तुम्हारा अमर रहे I
II  चाँद-चाँदनी, सूर्य-रश्मि सम, नेह नर्मदा सतत बहे II
*
शब्द-सुमनांजलि : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल',
संपादक दिव्यनर्मदा नेट पत्रिका.
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम / दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
चलभाष: ०९४२५१८३२४४

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शनिवार, 5 जून 2010

मुक्तिका .....मुमकिन --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

.....मुमकिन

संजीव 'सलिल'
*

PR040CrowHouse.jpg

*
शीश पर अब पाँव मुमकिन.
धूप के घर छाँव मुमकिन..

बस्तियों में बहुत मुश्किल.
जंगलों में ठाँव मुमकिन..

नदी सूखी, घाट तपता.
तोड़ता दम गाँव मुमकिन..

सिखाता उस्ताद कुश्ती.
छिपाकर इक दाँव मुमकिन..

कोई पाहुन है अवैया?
'सलिल' के घर काँव मुमकिन..

***********************

मुक्तिका :: ....चाहता है.. --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :
....चाहता है.
संजीव 'सलिल'
*
1256547627dKt8N9.jpg
*
हौसले को परखना चाहता है.
परिंदा नभ से लड़ना चाहता है..
*
फूल को शूल से शिकवा नहीं है.
पीर पाकर महकना चाहता है..
*
उम्र बीती समूची सम्हलने में.
पैर अब खुद बहकना चाहता है..
*
शमा ने बहुत रोका पर न माना.
इश्क में शलभ जलना चाहता है..

दोष क्यों हुस्न को देता जमाना?
वाह सुनकर निखरना चाहता है..
*
लाख़ खोजा न पाया शख्स वह जो
अदा कर फ़र्ज़ हक ना चाहता है..
*
'सलिल' क्यों आँख खोले?, जगे क्यों कर?
ख्वाब आकर ठिठकना चाहता है..
*****
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

मुक्तिका: अक्षर उपासक हैं.............. --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
अक्षर उपासक हैं....
संजीव 'सलिल'
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
*
अक्षर उपासक हैं हम गर्व हमको, शब्दों के सँग- सँग सँवर जायेंगे हम.
गीतों में, मुक्तक में, ग़ज़लों में, लेखों में, मरकर भी जिंदा रहे आयेंगे हम..
*
बुजुर्गों से पाया खज़ाना अदब का, न इसको घटायें, बढ़ा जायेंगे हम.
चादर अगर ज्यों की त्यों रह सकी तो, आखर भी ढाई सुमिर गायेंगे हम..
*
लिखना तो हक है, लिखेंगे हमेशा, न आलोचनाओं से डर जायेंगे हम.
कमियाँ रहेंगी ये हम जानते हैं, दाना बतायें सुधर पायेंगे हम..
*
गम हो, खुशी हो, मुहब्बत-शहादत, न हो इसमें नफ़रत, न गुस्सा-अदावत.
महाकाल के हम उपासक हैं सच्चे, समय की चुनौती को शरमायेंगे हम..
*
'खलिश' हो तो रचना में आती है खूबी, नादां 'सलिल' में खूबी ही डूबी.
फिर भी है वादा, न हम मौन होंगे, कल-कल में धुन औ' बहर गायेंगे हम..
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Acharya Sanjiv Salil

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शुक्रवार, 4 जून 2010

गीत : एक टक तुमको निहारूँ.....

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        गीत :
        भाग्य निज पल-पल सराहूँ.....     
        संजीव 'सलिल'
             *
             भाग्य निज पल-पल सराहूँ,
              जीत तुमसे, मीत हारूँ.
              अंक में सर धर तुम्हारे,
              एक टक तुमको निहारूँ.....

नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,
 कहें अनकही गाथा.
 तप्त अधरों की छुअन ने,
 किया मन को सरगमाथा.
 दीप-शिख बन मैं प्रिये!
 नीराजना तेरी उतारूँ...
                          
                            हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,
                            मदिर महुआ मन हुआ है.
                            विदेहित है देह त्रिभुवन,
                            मन मुखर काकातुआ है.
                            अछूते  प्रतिबिम्ब की,
                            अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ...

 बाँह में ले बाँह, पूरी
 चाह कर ले, दाह तेरी.
 थाह पाकर भी न पाये,
 तपे शीतल छाँह तेरी.
 विरह का हर पल युगों सा,
 गुजारा, उसको बिसारूँ...
                      
                        बजे नूपुर, खनक कँगना,
                        कहे छूटा आज अँगना.
                        देहरी तज देह री! रँग जा,
                        पिया को आज रँग ना.
                        हुआ फागुन, सरस सावन,
                        पी कहाँ, पी कँह? पुकारूँ...

 पंचशर साधे निहत्थे पर,
 कुसुम आयुध चला, चल.
 थाम लूँ न फिसल जाए,
 हाथ से यह मनचला पल.
 चाँदनी अनुगामिनी बन.
 चाँद वसुधा पर उतारूँ...
                
                    *****

चिप्पियाँ: गीत, श्रृंगार, नयन, अधर, चाँद, आँगन, किंशुक, महुआ
Acharya Sanjiv Salil

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विश्व की खतरनाक हवाई पट्टियाँ: --विजय कौशल

विश्व की खतरनाक हवाई पट्टियाँ:

Dangerous Runways Around the World

हवाई यात्रा प्रायः महत्वपूर्ण नेता, अधिकारी या व्यवसायी करते हैं किन्तु कभी-कभी वैज्ञानिक, साहित्यकार या कलाकार भी इनकी दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं. भारत में परमाणु विज्ञानं आधारित परियोजनाओं की नींव रखनेवाले डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ऐसी ही दुर्घटना के शिकार हुए थे.  अनेक दुर्घटनाओं के बाद भी हवाई अड्डों पर खतरनाक हवाई पट्टियाँ उपयोग में लई जा रही हैं जिनसे कभी भयंकर दुर्घटना संभावित है. इनके चित्र हम प्रस्तुत कर रहे हैं अपने विशेष सहयोगी विजय कौशल के सौजन्य से- सं. 



 

गुरुवार, 3 जून 2010

शुभ-कामना : कपिल-क्षिप्रा परिणय

- : पावन-परिणय : - 

आयुष्मान कपिल आत्मज श्रीमती रजनी - प्रो. नरेन्द्र वर्मा, नागपुर

संग

आयुष्मती क्षिप्रा आत्मजा श्रीमती - श्री अतुल खरे, छतरपुर.

*
परिणय पर्व,शनिवार १९.६.२०१०, नागपुर.

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*
. सकल 'सृष्टि' के रचनाकर्ता, चित्रगुप्त भगवान .
.. मातु नन्दिनी-माँ इरावती, राग-विराग निधान..
*
. रिद्धि-सिद्धि विघ्नेश नमन,  'विधि'-हरि-हर महिमावान .
.. भारत-भारती मातु नर्मदा, 'रवि'-'शशि' दें वरदान ..
*
. रीति सनातन, नीति पुरातन, प्रकृति-पुरुष हों एक .
.. चंदा-'पूनम', 'सूरज'-'ऊषा', सदृश रहें सविवेक ..
*
. श्वास-हास का, आस-रास का, नैसर्गिक सम्बन्ध .
.. नीर-क्षीर सम एक प्राण हों, अजर-अमर अनुबंध ..
*
. 'जग-लीला' हित 'जगन्नाथ' ने, किया नागपुर-वास .
.. जबलपुर से 'लीला' ने आ, धन्य किया आवास ..
*
. सुत 'नरेंद्र-रजनी' ने पाया, 'कपिल' नेक-अभिराम .
.. 'प्रगति' संग 'पंकज', 'योगी-अभिलाषा', मिले ललाम ..
*
. 'क्षिप्रा'- 'नेहा कीर्ति शांति यश' नेह-नर्मदा धार .
.. आये 'पुष्पा-अतुल' हुआ आभारी सब परिवार ..
*
. 'क्षिप्रा-प्रभा अजय' उज्जवल, ले नव 'आशा' भूपेश .
.. 'कपिल'- 'कृष्ण' सम निपुण,  कुशल ज्यों 'शरद-शिशिर-राजेश'..
*
. 'नीना-सविता-रेणु-स्मृति', 'राहुल-मुकुल अनंत' .
.. 'तान्या-नव्या तुहिना' दिव्या, प्रमुदित दिशा-दिगंत ..
*
. 'रचित-ऋतिक' मुद-मग्न सुन रहे, बन्ना-बन्नी गीत .
.. महाराष्ट्र-बुन्देलखण्ड' का मिलन, प्रीत की जीत ..
*
. चुटकी भर सिन्दूर, रखेगा 'मन्वन्तर' तक साथ .
.. मंगल-सूत्र-मुद्रिका हर्षित, देख हाथ-में हाथ ..
*
. बेंदा घूँघट नथ करधन,  चूड़ी पायल लालित्य .
.. कंगन अचकन पटका पगड़ी, कलगी नव आदित्य ..
*
. लज्जा हर्ष हुलास रुदन, बिछुड़ें-मिल अपने आज .
.. स्वागत, गारी, गीत विदाई के, गूँजें सँग साज ..
*
 . नयन उठे मिल सँकुच झुके, उठ मिल होते खुद बंद .
.. नयन बोलते बिन बोले ही, कहे-अनकहे छंद ..
*
. 'सलिल-साधना' सतत स्नेह की, देती परमानंद .
.. है 'अशोक' शुभ 'संध्या', दें वर आकर आनंदकंद ..
*
दुनिया का हर सुख पाओ, बढ़ वंश-बेल दे नाम.
.. सदन 'कपिल-क्षिप्रा' का हो, स्वर्गोपम तीरथ-धाम ..

******************

 शब्द-सुमनांजलि : आचार्य  संजीव  'सलिल', सम्पादक दिव्यनर्मदा नेट पत्रिका.
salil.sanjiv@gmail.com, 09425183244

बुधवार, 2 जून 2010

मुक्तिका: मानव विषमय.......... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मानव विषमय...
संजीव 'सलिल'
*











*
मानव विषमय करे दंभ भी. 
देख करे विस्मय भुजंग भी..

अपनी कटती देख तंग पर.
काटे औरों की पतंग ही..

उड़ता रंग पोल खुलती तो
होली खेले विहँस रंग की..

सत्ता पर बैठी माया से
बेहतर लगते हैं मलंग जी.

होड़ लगी फैशन करने की
'ही' ज्यादा या अधिक नंग 'शी'..

महलों में तन उज्जवल देखे
लेकिन मन पर लगी जंग थी..

पानी खोकर पूजें उसको-
जिसने पल में 'सलिल' गंग पी..
*












**************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम  

मंगलवार, 1 जून 2010

नवगीत: माँ जी हैं बीमार.... --संजीव 'सलिल'

नवगीत :
माँ जी हैं बीमार...
संजीव 'सलिल'
*
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*
माँ जी हैं बीमार...
*
प्रभु! तुमने संसार बनाया.
संबंधों की है यह माया..
आज हुआ है वह हमको प्रिय
जो था कल तक दूर-पराया..

पायी उससे ममता हमने-
प्रति पल नेह दुलार..
बोलो कैसे हमें चैन हो?
माँ जी हैं बीमार...
*
लायीं बहू पर बेटी माना.
दिल में, घर में दिया ठिकाना..
सौंप दिया अपना सुत हमको-
छिपा न रक्खा कोई खज़ाना.

अब तो उनमें हमें हो रहे-
निज माँ के दीदार..
करूँ मनौती, कृपा करो प्रभु!
माँ जी हैं बीमार...
*
हाथ जोड़ कर करूँ वन्दना.
अब तक मुझको दिया रंज ना.
अब क्यों सुनते बात न मेरी?
पूछ रही है विकल रंजना..

चैन न लेने दूँगी, तुमको
जग के तारणहार.
स्वास्थ्य लाभ दो मैया को हरि!
हों न कभी बीमार..
****

मुक्तिका: जंगल काटे....... --संजीव 'सलिल'


मुक्तिका:

जंगल काटे...

संजीव 'सलिल'
*
जंगल काटे, पर्वत खोदे, बिना नदी के घाट रहे हैं.
अंतर में अंतर पाले वे अंतर्मन-सम्राट रहे हैं?.

जननायक जनगण के शोषक, लोकतंत्र के भाग्य-विधाता.
निज वेतन-भत्ता बढ़वाकर अर्थ-व्यवस्था चाट रहे हैं..

सत्य-सनातन मूल्य, पुरातन संस्कृति की अब बात मत करो.
नव विकास के प्रस्तोता मिल इसे बताए हाट रहे हैं..

मखमल के कालीन मिले या मलमल के कुरते दोनों में
अधुनातनता के अनुयायी बस पैबन्दी टाट रहे हैं..

पट्टी बाँधे गांधारी सी, न्याय-व्यवस्था निज आँखों पर.
धृतराष्ट्री हैं न्यायमूर्तियाँ, अधिवक्तागण भाट रहे हैं..

राजमार्ग निज-हित के चौड़े, जन-हित की पगडंडी सँकरी.
जात-पाँत के ढाबे-सम्मुख ऊँच-नीच के खाट रहे हैं..

'सेवा से मेवा' ठुकराकर 'मेवा हित सेवा' के पथ पर
पग रखनेवाले सेवक ही नेता-साहिब लाट रहे हैं..

मिथ्या मान-प्रतिष्ठा की दे रहे दुहाई बैठ खाप में
'सलिल' अत्त के सभी सयाने मिल अपनी जड़ काट रहे हैं..

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हाट = बाज़ार, भारत की न्याय व्यवस्था की प्रतीक मूर्ति की आँखों पर पट्टी चढी है, लाट साहिब = बड़े अफसर, खाप = पंचायत, जन न्यायालय, अत्त के सयाने = हद से अधिक होशियार = व्यंगार्थ वास्तव में मूर्ख. .

- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम