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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

तेवरी: हुए प्यास से सब बेहाल. --संजीव 'सलिल'

तेवरी:

संजीव 'सलिल'


हुए प्यास से सब बेहाल.
सूखे कुएँ नदी सर ताल..

गौ माता को दिया निकाल.
श्वान रहे गोदी में पाल..

चमक-दमक ही हुई वरेण्य.
त्याज्य सादगी की है चाल..

शंकाएँ लीलें विश्वास.
नचा रहे नातों के व्याल..

कमियाँ दूर करेगा कौन?
बने बहाने हैं जब ढाल..

सुन न सके मौन कभी आप.
बजा रहे आज व्यर्थ गाल..

उत्तर मिलते नहीं 'सलिल'.
अनसुलझे नित नए सवाल..

********************

तसलीस गीतिका: सूरज --संजीव 'सलिल'

तसलीस गीतिका:


सूरज


संजीव 'सलिल'



बिना नागा निकलता है सूरज.


कभी आलस नहीं करते देखा.


तभी पाता सफलता है सूरज.



सुबह खिड़की से झांकता सूरज.


कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं.


कम नहीं ख़ुद को आंकता सूरज.






उजाला सबको दे रहा सूरज.


कोई अपना न पराया कोई.


दुआएं सबकी ले रहा सूरज.






आँख रजनी से चुराता सूरज.


बांह में एक चाह में दूजी.


आँख ऊषा से लडाता सूरज.






जाल किरणों का बिछाता सूरज.


कोई अपना न पराया कोई.


सभी सोयों को जगाता सूरज.






भोर पूरब में सुहाता सूरज.


दोपहर देखना भी मुश्किल हो.


शाम पश्चिम को सजाता सूरज.






कम निष्काम हर करता सूरज.


मंजिलें नित नयी वरता सूरज.


भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज.






* * * * *

Acharya Sanjiv Salil

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बुधवार, 6 जनवरी 2010

सरस्वती वंदना : ४ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ४
संजीव 'सलिल'
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!
अम्ब विमल मति दे...
*
कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
कृपा करें नटवर-नटनागर.
पवन मुक्त प्रवहे...
*
विद्युत्छटा अलौकिक चमके.
चरणों में गतिमयता भर दे.
अंग-अंग से भाव-साधना-
चंचल चपल चारु चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके...
*
चित्र-गुप्त अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
सृजे 'सलिल' साहित्य सनातन-
शाश्वत मूल्यों का शुचि मंचन.
मन्वंतर चहके...
*

सरस्वती वंदना : ३ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : ३


संजीव 'सलिल'


*

हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!

अम्ब विमल मति दे...

*

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.

ताल-थापमय सृजन-साधना.

सरगम कंठ सजे...

*

रुनझुन-रुनझुन नूपुर बाजे.

नटवर-चित्रगुप्त उर साजे.

रास-लास उमगे...

*

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.

काव्य-छंद, रस-धार बहाये.

शुभ साहित्य सृजे...

*

सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.

सत-चित-आनंद भजन भागवत.

आत्म देव पुलके...

*

कंकर-कंकर प्रगटे शंकर.

निर्मल करें ह्रदय प्रयलंकर.

'सलिल' सतत महके...

*

Acharya Sanjiv Salil

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सरस्वती वंदना : २ संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : २


संजीव 'सलिल'

*

हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे...

*

जग सिरमौर बने माँ भारत.

सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.

नव बल-विक्रम दे...

*

साहस-शील ह्रदय में भर दे.

जीवन त्याग-तपोमय कर दे.

स्वाभिमान भर दे...

*

लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.

मानवता का त्रास-तम हरें.

स्वार्थ विहँस तज दें...

*

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा.

घर-घर हों, काटें हर बाधा.

सुख-समृद्धि सरसे...

*

नेह-प्रेम की सुरसरि पावन.

स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.

'सलिल' निरख हरषे...

***

दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

Acharya Sanjiv Salil

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दोहों की बहार: संजीव 'सलिल'

दोहों की बहार:

संजीव 'सलिल'

मन वृन्दावन में बसे, राधा-माधव नित्य.

श्वास-आस जग जानता, होती रास अनित्य..

प्यास रहे बाकी सदा, हास न बचता शेष.

तिनका-तिनका जोड़कर, जोड़ा नीड़ अशेष..

कौन किसी का है सगा?, और कौन है गैर?

'सलिल' मानते हैं सभी, अपनी-अपनी खैर..

आए हैं तो छोड़ दें, अपनी भी कुछ छाप.

समय पृष्ठ पर कर सकें, निज हस्ताक्षर आप..

धूप-छाँव सा शुभ-अशुभ, कभी न छोडे साथ.

जो दोनों को सह सके, जिए उठाकर माथ..

आत्म-दीप बालें 'सलिल', बन जाएँ विश्वात्म.

मानव बनने के लिए, आये खुद परमात्म..

सकल जगत से तिमिर हर, प्रसरित करें प्रकाश.

शब्द ब्रम्ह के उपासक, जीतें मन-आकाश..

'divynarmada@gmail.com'

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

नव वर्षी शुभकामना ----अम्बरीष श्रीवास्तव

नव वर्षी शुभकामना

--अम्बरीष श्रीवास्तव



नव वर्षी शुभकामना, दोहे दें साभार


हे ज्ञानी संजीव जी, मिले आपका प्यार

सादर,

अम्बरीष श्रीवास्तव
*

“स्वागत है नव वर्ष का”

ज्यों वृक्षों की डालियाँ, कोपल जनैं नवीन

आये ये नव वर्ष त्यों , जैसे मेघ कुलीन

उजियारा दीखे वहाँ, जहाँ जहाँ तक दृष्टि

सरस वृष्टि होती रहें, हरी भरी हो सृष्टि

सपने पूरे हों सभी, मन में हो उत्साह

अलंकार रस छंद का, अनुपम रहें प्रवाह

अभियंत्रण साहित्य संग, सबल होय तकनीक

मूल्य ह्रास अब तो रुके, छोड़ें अब हम लीक

गुरुजन गुरुतर ज्ञान दें, शिष्य गहें भरपूर

सरस्वती की हो कृपा, लक्ष्य रहें ना दूर

सबको सब सम्मान दें, जन जन में हो प्यार

मातु पिता से सब करें, सादर नेह दुलार

बड़े बड़े सब काज हों, फूले फले प्रदेश

दुनिया के रंगमंच पर, आये भारत देश

कार्य सफल होवें सभी, आये ऐसी शक्ति

शिक्षित सारे हों यहाँ, मुखरित हो अभिव्यक्ति

बैर भाव सब दूर हों, आतंकी हों नष्ट

शांति सुधा हो विश्व में , दूर रहें सब कष्ट

प्रेम सुधा रस से भरे, राजतन्त्र की नीति

दुःख से सब जन दूर हों, सुख की हो अनुभूति

सुरभित होवें जन सभी, अपनी ये आवाज़

स्वागत है नव वर्ष का, नित नव होवें काज

अंत में सभी के लिए संदेश...........

अनुपम आये वर्ष ये, अम्बरीष की आस

अब सब कुछ है आप पर, मिलकर करें प्रयास

--अम्बरीष श्रीवास्तव

मेघदूतम् पद्यानुवाद पूर्वमेघ श्लोक ६१ से ६७ ...


मेघदूतम् पद्यानुवाद पूर्वमेघ श्लोक ६१ से ६७ ...
पद्यानुवादक प्रो.सी बी श्रीवास्तव विदग्ध


गत्वा चोर्ध्वं दशमुखभुजोच्च्वासितप्रस्थसंधेः
कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथिः स्याः
शृङ्गोच्च्रायैः कुमुदविशदैर यो वितत्य स्थितः खं
राशीभूतः प्रतिदिनम इव त्र्यम्बकस्यट्टहासः॥१.६१॥
हिमवान गिरि के किनारे सभी रम्य
स्थान औ" तीर्थ के पार जाते
भृगुपति सुयश मार्ग को "क्रौंचरन्धम्"
या "हंसद्वारम्" जिसे सब बताते
से कुछ झुके विष्णु के श्याम पद सम
बलि दैत्य बन्धन लिये जो बढ़ा था
होकर प्रलंबित सुशोभित वहाँ से
दिशा उत्तरा ओर हे घन चढ़ा जा

शब्दार्थ क्रौंचरन्धम् व हंसद्वारम् ... स्थानो के नाम


उत्पश्यामि त्वयि तटगते स्निग्धभिन्नाञ्जनाभे
सद्यः कृत्तद्विरददशनच्चेदगौरस्य तस्य
शोभाम अद्रेः स्तिमितनयनप्रेक्षणीयां भवित्रीम
अंसन्यस्ते सति हलभृतो मेचके वाससीव॥१.६२॥
कुछ और उठकर शिखर तक पहुँचकर
कैलाश से मित्र आतिथ्य पाना
था जिसकी शिखर संधियों को किया
ध्वस्त , दशकंध की बाहुओं का हिलाना
कैलाश जिसकी धवलता बनी
स्वर्ग की युवतियों हित अमल आरसी है
जिसके कुमुद शुभ्र आकाश चुम्बी
शिखर हैं खुले ज्योंकि शिव की हँसी है


हित्वा तस्मिन भुजगवलयं शम्भुना दत्तहस्ता
क्रीडाशैले यदि च विचरेत पादचारेण गौरी
भङ्गीभक्त्या विरचितवपुः स्तम्भितान्तर्जलौघः
सोपानत्वं कुरु मणितटारोहणायाग्रयायी॥१.६३॥

होगी वहाँ , तीर पहुंचे तुम्हारी
कज्जल सृदश श्याम स्निग्ध शोभा
ताजे तराशे द्विरददंत सम गौर
गिरि वह वहाँ और अति रम्य होगा
तो कल्पना में बँधी टक नयन से
मधुर रम्य दृष्टव्य शोभा तुम्हारी
मुझे दीखती , ज्यों गहन नील रंग की
लिये स्कंध पर शाल बलराभ भारी


तत्रावश्यं वलयकुलिशोद्धट्टनोद्गीर्णतोयं
नेष्यन्ति त्वां सुरयुवतयो यन्त्रधारागृहत्वम
ताभ्यो मोक्षस तव यदि सखे घर्मलब्धस्य न स्यात
क्रीडालोलाः श्रवणपरुषैर गर्जितैर भाययेस ताः॥१.६४॥

यदि भुजंग कंकण रहित शिव सहित
शैलपर , नृत्य मुद्रा निरत हों भवानी
तो भावमय भक्ति से धर उचित वेश ,
सोपान हो "मणि" तटारूढ़ मानी


हेमाम्भोजप्रसवि सलिलं मानसस्याददानः
कुर्वन कामं क्षणमुखपटप्रीतिम ऐरावतस्य
धुन्वन कल्पद्रुमकिसलयान यंशुकानीव वातैर
नानाचेष्टैर जलदललितैर निर्विशेस तं नगेन्द्रम॥१.६५॥

वहाँ सुर युवतियां अचश ही तुम्हें छेद
कंगन कुलश से बना नीर धारा
लेंगी सखे घेर , आनन्ददायी
धवलधारवर्षी कि जैसे फुहारा
यदि त्रस्त तब , जो न हो मुक्ति उनसे
जो क्रीड़ानिरत नारि चंचलमना हों
तो तब भीतिप्रद कर्णकटु गर्जना से
डराकर भगाना सकल अङ्गना को

तस्योत्सङ्गे प्रणयिन इव स्रस्तगङ्गादुकूलां
न त्वं दृष्ट्वा न पुनर अलकां ज्ञास्यसे कामचारिन
या वः काले वहति सलिलोद्गारम उच्चैर विमाना
मुक्ताजालग्रथितम अलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम॥१.६६॥

जल पान कर , मान सर का जहाँ पर
कमल पुष्प वन , स्वर्ण से उगते हैं
या स्वेच्छगज इन्द्र के मुक पटल पर
छा जिस तरह झूल मुंह चूमते हैं
या झूमते कल्पद्रुम किसलयों को
कि ज्यों वस्त्र कंपित पवन मंद द्वारा
विविध भाँति क्रीड़ा निरत हो , जलद तुम
रहो प्रेम से शैल का ले सहारा


विधुन्वन्तं ललितवनिताः सेन्द्रचापं सचित्राः
संगीताय प्रहतमुरजाः स्निग्धगम्भीरघोषम
अन्तस्तोयं मणिमयभुवस तुङ्गम अभ्रंलिहाग्राः
प्रासादास त्वां तुलयितुम अलं यत्र तैस तैर विशेषैः॥१.६७॥

कैलाश के अंक में प्रियतमा सम
पड़ी स्त्रस्तगंगादुकूला वहाँ है
जिसे देखकर मित्र ! हे कामचारी
न होगा तुम्हें भ्रम कि अलका कहाँ है ?
उँचे भवन शीर्ष से शुभ्र शोभित
सजी घन जलद माल से उस समय जो
दिखेगी कि जैसे कोई कामिनी
मोतियों की लड़ी से गुंथाये अलक हो

इति मेघदूतम् पूर्वमेघः।

रविवार, 3 जनवरी 2010

भूकम्प की भविष्यवाणी : नये अध्ययन --इंजी . विवेक रंजन श्रीवास्तव

भूकम्प की भविष्यवाणी को लेकर नये अध्ययन
इंजी . विवेक रंजन श्रीवास्तव
लेखक फाउण्डेशन इंजीनियरिंग में पोस्टग्रेडुएट हैं .
ओ बी ११ ,विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर

भूकम्प सदियों से पृथ्वी पर विनाशलीला रचाते आए हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके आगे हम बेबस है, क्योंकि भूकम्प के पूर्वानुमान का कोई प्रभावी तरीका अब तक नहीं खोजा जा सका है। विश्वभर में वैज्ञानिक ऐसा कोई तरीका ढूँढने का प्रयास करते रहे हैं। इसी दिशा में नवीनतम अनुसंधान , निम्नानुसार धरती की सतह से कोई ४० कि.मी. नीचे होने वाले खामोश भूकम्पों के प्रभावो के अध्ययन तथा दूसरा प्रयोग समुद्र तटीय भूकम्पों की भविष्यवाणी हेतु समुद्र के पानी में क्लोरोफिल की मात्रा के सूक्ष्म अध्ययन पर आधारित है .
'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचाने
अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय तथा जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक दल ने 'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचानने के तरीके पर काम किया। 'खामोश भूकम्प' ऐसे कम्पन को कहते हैं, जो धरती की सतह से ४० किमी. नीचे तक होते हैं और कई सप्ताहों तक लगातार चलते रहते है। हालांकि ये कंपन कोई विशेष हानि नहीं करते लेकिन भूकम्प शास्त्रियों का मानना है कि ये सतह पर आने वाले बड़े भूकम्पों की पूर्व सूचना होते हैं। अर्थात् यदि खामोश भूकम्प आ रहा है तो इसके बाद सतह पर भी भूकम्प आएगा। समस्या यह है कि इन खामोश भूकम्पों को धरती की सतह पर तो महसूस किया नहीं जाता, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर भी इन्हें दर्ज होने में काफी समय लगता है। तो समय रहने इनका पता कैसे लगाया जाए ?
अब अमेरीकी व जापानी शोधकर्ताओं ने एक तरीका खोज निकालने का दावा किया है। उन्होंने पाया कि खामोश भूकम्प के फलस्वरुप गैर ज्वालामुखीय कम्पन शुरु हो जाता है। खामोश भूकम्प तो जाँच उपकरणों की पकड़ में नहीं आते लेकिन गैर ज्वालामुखीय कंपनों को संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। गैर ज्वालामुखीय कंपन उन हल्के कम्पनों को कहते हैं, जो सक्रिय 'फॉल्ट जोन' में काफी गहराई में उत्पन्न होते हैं। खामोश भूकम्प बड़े भूकम्प की चेतावनी देते हैं लेकिन खामोश भूकम्पों को हमारे यंत्र पकड़ नहीं पाते। खामोश भूकम्प गैर ज्वालामुखीय कम्पनों को जन्म देते हैं, जो हमारे संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। तो इन गैर ज्वालामुखीय कम्पनों का पता करके हम भूकम्प की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
उक्त शोध से जुड़े ग्रेगरी बेरोजा के अनुसार - 'फॉल्ट जोन में तापमान व दाब बढ़ने पर धरती की प्लेट में मौजूद खनिज अधिक घनत्व के साथ आपस में जुड़ जाते हैं और पानी छोड़ने लगते हैं। पानी छूटने से हल्के कंपन शुरु हो जाते हैं। साथ ही इससे प्लेटों के बीच कुछ चिकनाई उत्पन्न हो जाती है। इससे प्लेटों का आपस में रगड़ना सुगम हो जाता है और खामोश भूकम्प आने लगता है। फॉल्ट में पहले से मौजूद तनाव इन खामोश भूकम्पों के कारण बढ़ जाता है। जब यह तनाव एक सीमा से बढ़ जाता है, तो बड़ा भूकम्प आता है, जो धरती की सतह पर विनाशलीला कर जाता है।' इस अध्ययन से उम्मीद है कि निकट भविष्य में भूकम्प का सटीक पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो जाए और माल की न सही, जान की हिफाजत बड़े पैमाने पर की जा सकेगी ।
समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा का अध्ययन
भूकम्प पर ही एक अध्ययन भारतीय व अमेरिकी शोधकर्ताओं के दल ने किया है । इन्होंने पाया कि समुद्री किनारों पर पानी में क्लोरोफिल की मात्रा की वृद्धि पर नजर रखकर समुद्री किनारों पर आने वाले भूकम्प का अनुमान लगाया जा सकता है।समुद्र के धरातल में भूकम्पीय गतिविधियो या ज्वालामुखीय घटनाओ से समुद्र की सतह से पानी का वाष्पीकरण बढ़ जाता है। जब सतह पर वाष्पीकरण अधिक होता है, तो गहराई वाला ठंडा पानी उठकर सतह की ओर बढ़ता है। तापीय उर्जा के कारण वाष्पीकरण बढ़ने पर ,तथा समुद्र की तलहटी में ज्वालामुखीय घटनाओ से पानी का ऊपर की ओर उठने का सिलसिला भी बढ़ जाता है। यह ऊपर उठने वाला पानी ऐसे पोषक तत्व से भरपूर होता है, जिनसे फायटोफ्लैंक्टन (सुक्ष्म समुद्री पौधे) पोषण ग्रहण कर बढ़ते हैं। ये पौधे क्लोरोफिल द्वारा सूर्य से उर्जा ग्रहण कर अपना भोजन तैयार करते हैं।इस तरह समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा अचानक बढ़ जाती है . क्लोरोफिल की उपस्थिति उपग्रह से प्राप्त चित्रों में भी देखी जा सकती है , इस तरह समुद्री जल सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा की गणना के अध्ययन से भी भूकम्प , सुनामी की भविष्यवाणी करने की संभावना है.

गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'

गीतिका





तितलियाँ



संजीव 'सलिल'

*

यादों की बारात तितलियाँ.



कुदरत की सौगात तितलियाँ..



बिरले जिनके कद्रदान हैं.



दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..



नाच रहीं हैं ये बिटियों सी



शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..



बद से बदतर होते जाते.



जो, हैं वे हालात तितलियाँ..



कली-कली का रस लेती पर



करें न धोखा-घात तितलियाँ..



हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं



क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..



'सलिल' भरोसा कर ले इन पर



हुईं न आदम-जात तितलियाँ..



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Acharya Sanjiv Salil



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सरस्वती वंदना : 1 अम्ब विमल मति दे संजीव 'सलिल'

सरस्वती वंदना : 1




संजीव 'सलिल'



अम्ब विमल मति दे



हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!

अम्ब विमल मति दे.....



नन्दन कानन हो यह धरती।

पाप-ताप जीवन का हरती।

हरियाली विकसे.....



बहे नीर अमृत सा पावन।

मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।

अरुण निरख विहसे.....



कंकर से शंकर गढ़ पायें।

हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।

वह बल-विक्रम दे.....



हरा-भरा हो सावन-फागुन।

रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।

सुख-समृद्धि सरसे.....



नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।

स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।

' सलिल' विमल प्रवहे.....



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Acharya Sanjiv Salil



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शनिवार, 2 जनवरी 2010

गीतिका: तुमने कब चाहा दिल दरके? --संजीव वर्मा 'सलिल'

गीतिका

संजीव वर्मा 'सलिल'
*
तुमने कब चाहा दिल दरके?

हुए दिवाने जब दिल-दर के।

जिन पर हमने किया भरोसा

वे निकले सौदाई जर के..

राज अक्ल का नहीं यहाँ पर

ताज हुए हैं आशिक सर के।

नाम न चाहें काम करें चुप

वे ही जिंदा रहते मर के।

परवाजों को कौन नापता?

मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।

चाँद सी सूरत घूँघट बादल

तृप्ति मिले जब आँचल सरके.

'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर

सहन न होते अँसुआ ढरके।

**********************

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?














एक कविता:
नया वर्ष:
*
रस्म अदायगी के लिए
भेज देतें हैं लोग चंद एस एम एस
तुम्हारे आने की खुशियाँ इस लिए मनातें हैं क्योंकि
इस रस्म को निबाहना भी ज़रूरी है
किसी किसी की मज़बूरी है
किन्तु मैं  नए  वर्ष  तुम्हारा  स्वागत  क्यों करुँ ...?
अनावश्यक आभासी रस्मों में रंग क्यों भरूँ ?
पहले  तुम्हें आजमाऊंगा
कोई कसाबी-वृत्ति से विश्व को मुक्त करते हो तो
तो मैं हर इंसान से एक दूसरे को बधाई संदेशे भिजवाउंगा
खुद सबके बीच जाकर जश्न तुम्हारी कामयाबी का मनाऊँगा
तुम सियासत का चेहरा धो दोगे न  ?
तुम न्याय ज़ल्द दिला दोगे न ?
तुम मज़दूर मज़बूर के चेहरे पर मुस्कान सजा दोगे न ?
तुम विश्व बंधुत्व की अलख जगा दोगे  न ?
यदि ये सब करोगे तो शायद मैं आखरी दिन
31 /12 /2010 को रात अपनी बेटी के जन्म दिन के साथ
तुम्हें आभार कहूँगा....!
तुम्हारे लिए बिदाई गीत गढ़ूंगा !!
तुम विश्वास तो भरो
मेरी कृतज्ञता का इंतज़ार करो ?

********

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

काव्यांजलि : शुभकामनायें सभी को... संजीव वर्मा 'सलिल'

शुभकामनायें सभी को...

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की,

शुभ की करें सब साधना, चाहत समय खुशहाल की।


शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें,

शुभ प्राप्य तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें।


शुभ 'शिव' बना, हमको गरल के पान की सामर्थ्य दे,

शुभ सृजन कर, कंकर से शंकर, भारती को अर्घ्य दें।


शुभ वही 'सुन्दर' जो जनगण को मृदुल मुस्कान दे,

शुभ वही स्वर, कंठ हर अवरुद्ध को जो ज्ञान दे।


शुभ तंत्र 'जन' का तभी जब हर आँख को अपना मिले,

शुभ तंत्र 'गण' का तभी जब साकार हर सपना मिले।


शुभ तंत्र वह जिसमें, 'प्रजा' राजा बने, चाकर नहीं,

शुभ तंत्र रच दे 'लोक' नव, मिलकर- मदद पाकर नहीं।


शुभ चेतना की वंदना, दायित्व को पहचान लें,

शुभ जागृति की प्रार्थना, कर्त्तव्य को सम्मान दें।


शुभ अर्चना अधिकार की, होकर विनत दे प्यार लें,

शुभ भावना बलिदान की, दुश्मन को फिर ललकार दें।


शुभ वर्ष नव आओ! मिली निर्माण की आशा नयी,

शुभ काल की जयकार हो, पुष्पा सके भाषा नयी।


शुभ किरण की सुषमा, बने 'मावस भी पूनम अब 'सलिल',

शुभ वरण राजिव-चरण धर, क्षिप्रा बने जनमत विमल।


शुभ मंजुला आभा उषा, विधि भारती की आरती,

शुभ कीर्ति मोहिनी दीप्तिमय, संध्या-निशा उतारती।


शुभ नर्मदा है नेह की, अवगाह देह विदेह हो,

शुभ वर्मदा कर गेह की, किंचित नहीं संदेह हो।


शुभ 'सत-चित-आनंद' है, शुभ नाद लय स्वर छंद है,

शुभ साम-ऋग-यजु-अथर्वद, वैराग-राग अमंद है।


शुभ करें अंकित काल के इस पृष्ट पर, मिलकर सभी,

शुभ रहे वन्दित कल न कल, पर आज इस पल औ' अभी।


शुभ मन्त्र का गायन- अजर अक्षर अमर कविता करे,

शुभ यंत्र यह स्वाधीनता का, 'सलिल' जन-मंगल वरे।

*

प्रेषक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नव वर्ष पर नवगीत: महाकाल के महाग्रंथ का --संजीव 'सलिल'

नव वर्ष पर नवगीत

संजीव 'सलिल'
*

महाकाल के महाग्रंथ का

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....

*

वह काटोगे,

जो बोया है.

वह पाओगे,

जो खोया है.

सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर

कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....

*

खुद अपना

मूल्यांकन कर लो.

निज मन का

छायांकन कर लो.

तम-उजास को जोड़ सके जो

कहीं बनाया कोई पुल रहा?...

*

तुमने कितने

बाग़ लगाये?

श्रम-सीकर

कब-कहाँ बहाए?

स्नेह-सलिल कब सींचा?

बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...

*

स्नेह-साधना करी

'सलिल' कब.

दीन-हीन में

दिखे कभी रब?

चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर

खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...

*

खाली हाथ?

न रो-पछताओ.

कंकर से

शंकर बन जाओ.

ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.

देखोगे मन मलिन धुल रहा...

**********************

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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

नव गीत : ओढ़ कुहासे की चादर... --संजीव 'सलिल'

नव गीत : संजीव 'सलिल'




ओढ़ कुहासे की चादर,

धरती लगाती दादी.

ऊँघ रहा सतपुडा,

लपेटे मटमैली खादी...



सूर्य अँगारों की सिगडी है,

ठण्ड भगा ले भैया.

श्वास-आस संग उछल-कूदकर

नाचो ता-ता थैया.

तुहिन कणों को हरित दूब,

लगती कोमल गादी...



कुहरा छाया संबंधों पर,

रिश्तों की गरमी पर.

हुए कठोर आचरण अपने,

कुहरा है नरमी पर.

बेशरमी नेताओं ने,

पहनी-ओढी-लादी...



नैतिकता की गाय काँपती,

संयम छत टपके.

हार गया श्रम कोशिश कर,

कर बार-बार अबके.

मूल्यों की ठठरी मरघट तक,

ख़ुद ही पहुँचा दी...



भावनाओं को कामनाओं ने,

हरदम ही कुचला.

संयम-पंकज लालसाओं के

पंक-फँसा, फिसला.

अपने घर की अपने हाथों

कर दी बर्बादी...



बसते-बसते उजड़ी बस्ती,

फ़िर-फ़िर बसना है.

बस न रहा ख़ुद पर तो,

परबस 'सलिल' तरसना है.

रसना रस ना ले, लालच ने

लज्जा बिकवा दी...



हर 'मावस पश्चात्

पूर्णिमा लाती उजियारा.

मृतिका दीप काटता तम् की,

युग-युग से कारा.

तिमिर पिया, दीवाली ने

जीवन जय गुंजा दी...

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गीतिका: वक्त और हालात की बातें --संजीव 'सलिल'

गीतिका

संजीव 'सलिल'

वक्त और हालात की बातें
खालिस शह औ' मात की बातें..

दिलवर सुन ले दिल कहता है .
अनकहनी ज़ज्बात की बातें ..

मिलीं भरोसे को बदले में,
महज दगा-छल-घात की बातें..

दिन वह सुनने से भी डरता
होती हैं जो रात की बातें ..

क़द से बहार जब भी निकलो
मत भूलो औकात की बातें ..

खिदमत ख़ुद की कर लो पहले
तब सोचो खिदमात की बातें ..

'सलिल' मिले दीदार उसी को
जो करता है जात की बातें..
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लेख: भू गर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला -प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव


विशेष आलेख:


भू गर्भीय हलचल और भूकंपीय श्रंखला : एक दृष्टिकोण

प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव, अध्यक्ष, इन्डियन जिओटेक्निकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर

विश्व में कहीं न कहीं दो-चार दिनों के अंतराल में छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं किन्तु भारत के मध्यवर्ती क्षेत्र जिसे सुरक्षित क्षेत्र (शील्ड एरिया) मन जाता है, में भूकम्पों की आवृत्ति भू वैज्ञानिक दृष्टि से अजूबा होने के साथ-साथ चिंता का विषय है. दिनाँक २२ मई १९९७ को आये भीषण भूकंप के बाद १७ अक्टूबर को ५.२ शक्ति के भूकंप ने नर्मदा घाटी में जबलपुर के समीपवर्ती क्षेत्र को भूकंप संवेदी बना दिया है. गत वर्षों में आये ५ भूकम्पों से ऐसा प्रतीत होता है कि १९९७ के भूकंप को छोड़कर उत्तरोत्तर बढ़ती भूकंपीय आवृत्ति का पैटर्न भावी विनाशक भूकंप की पूर्व सूचना तो नहीं है?

विशव में अन्यत्र आ रहे भूकम्पों पर दृष्टिपात करें तो विदित होता है कि गत ४ वर्षों से भूकंपीय गतिविधियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया में केन्द्रित हैं. विश्व के अन्य बड़े महाद्वीपों यथा अफ्रीका, उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका तथा यूंरेशिया आदि में केवल १-२ बड़े भूक्न्म आये हैं जबकि भारत, चीन. जापान. ईराक, ईरान, तुर्की, ताइवान, फिल्लिपींस, न्यूजीलैंड्स, एवं इंडोनेशिया में प्रति २-३ दिनों के अन्तराल में कहीं न कहीं एक बड़ा भूकम्प आ जाता है या एक ज्वालामुखी फूट पड़ता है. यहाँ तक कि हिंद महासागर में एक नए द्वीप नव भी जन्म ले लिया है.

दक्षिणी-पूर्व एशिया की भू-गर्भीय हलचलें अब जापान, ताइवान एवं भारत में होनेवाली भूकंपीय गतिविधियों में केन्द्रित हैं. दक्षिण ताइवान में ४ अप्रैल को आये भूकंप (५.२) से प्रारंभ करें तो ५ अप्रैल को माउंट एटनाविध्वंसक विस्फोट के साथ सक्रिय हुआ. इसके साथ ही भारत में ७, ११ एवं २७ अप्रैल को क्रमशः महाराष्ट्र, त्रिपुरा एवं शिमला में तथा २ मई को छिंदवाड़ा में भूकंप के झटके महसूस किये गए. २५ मई को कोयना में झटके आये तथा २६ मई को नए द्वीप का जन्म हुआ. दिनांक ३.६.२०० को सुमात्रा में ७.९ तीव्रता का भूकंप आया. ५.६.२००० को तुर्की में ५.९ तीव्रता का, ७ व ८ जून को क्रमशः जापान (४.४), म्यांमार (६.५), अरुणांचल (५.८), सुमात्रा (६.२) तथा १०-११ जून को ताइवान(६.७) व (५.०) तीव्रता के भूकम्पों ने दिल दहला दिया.

इसके अतिरिक्त १६ से २० जून के बीच ७.५ से ४.९ तीव्रता के भूकम्पों की एक लम्बी श्रंखला कोकस आईलैंड्स, इंडोनेशिया, ताइवान, मनीला, लातूर, शोलापुर, उस्मानाबाद आदि स्थानों में रही. २३.६.२०० नागपुर एवं चंद्रपुर (२.८) २५.६.२००० जापान (५.६) के अतिरिक्त इम्फाल, शिलोंग, व म्यांमार (४.२) में भी भूकप का झटके कहर ढाते रहे.

५ जुलाई २००० को जापान में ४ झटके, ७ जुलाई को भारत में खरगौन तथा ८ जुलाई को जापान में ज्वालामुखीय उदगार, ११ जुलाई को जापान में बड़ा भूकंप, १३ जुलाई को जापान में बड़ा सक्रिय ज्वाला मुखी १८ से २४ जुलाई तक जापान में २, ताईवान में ३ एवं एवं इंडोनेशिया में १ भूकंप दर्ज हुआ जिसके साथ भारत में पंधाना, भावनगर एवं कराड में झटके महसूस किये गए. २ अगस्त को उत्तरी जापान में तीसरा ज्वालामुखी सक्रिय रहा. १ सितम्बर से १२ सितम्बर तक भारत में ४ भूकंप दर्ज हुए. १४ सितम्बर को जापान में ५.३ तीव्रता तीव्रता का भूकंप आया. ६ अक्तूबर को पश्चिमी जापान में ७.१, अंडमान में ५.४, सरगुजा में लंबी दरारें पड़ना, तथा अंबिकापुर में भूकंप के हलके झटके अनुभव किये गए. १२.१०.२००० को हिमाचल प्रदेश में तथा १७.१०.२००० को जबलपुर (५.२), १९.१०.२००० को भारत-पाक सीमा तथा कोयना क्षेत्र में भूकंप आया. २७.१०.२०० को जापान में चौथा ज्वालामुखी सक्रिय हुआ.

अद्यतन ये भूगर्भीय हलचलें जो गहरी ज्वालामुखीय घटनाओं को प्रेरित कर रही हैं, इनके कारण ही भूकम्पों की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रहे ऐसी मेरी मान्यता है.

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सोमवार, 28 दिसंबर 2009

सामयिक दोहे संजीव 'सलिल'

सामयिक दोहे

संजीव 'सलिल'

पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों.

मैं ढूंढ-ढूंढ हरा, घर एक नहीं मिलता..



रश्मि रथी की रश्मि के दर्शन कर जग धन्य.

तुम्हीं चन्द्र की ज्योत्सना, सचमुच दिव्य अनन्य..



राज सियारों का हुआ, सिंह का मिटा भविष्य.

लोकतंत्र के यज्ञ में, काबिल हुआ हविष्य..



कहता है इतिहास यह, राक्षस थे बलवान.

जिसने उनको मिटाया, वे सब थे इंसान..

इस राक्षस राठोड का होगा सत्यानाश.

साक्षी होंगे आप-हम, धरती जल आकाश..



नारायण के नाम पर, सचमुच लगा कलंक.

मैली चादर हो गयी, चुभा कुयश का डंक..



फंसे वासना पंक में, श्री नारायण दत्त.

जैसे मरने जा रहा, कीचड में गज मत्त.

कीचड में गज मत्त, लाज क्यों इन्हें न आयी.

कभी उठाई थी चप्पल. अब चप्पल खाई..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

रविवार, 27 दिसंबर 2009

: संस्था समाचार : इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर पुनर्गठित

संस्था समाचार:

इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर पुनर्गठित

जबलपुर, २७.१२.२००९. इंडियन जिओटेक्निकल सोसाइटी जबलपुर चैप्टर का पुनर्गठन सर्व सम्मति से संपन्न हुआ. तदनुसार अगले सत्र हेतु अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव अध्यक्ष, इंजी. आर.के.श्रीवास्तव तथा इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' सह अध्यक्ष, इंजी. संजय वर्मा मानद सचिव, प्रो. अनिल सिंघई कोषाध्यक्ष, इंजी. प्रवीण बोहर तथा प्रो. योगेश बाजपेई सह सचिव, प्रो. राजीव खत्री, प्रो. आर.के.यादव तथा इंजी. पी.के.सोनी सम्पादक मंडल सदस्य एवं इंजी. अजय मालवीय व इंजी. अलोक श्रीवास्तव मीडिया लायजन ऑफिसर मनोनीत किये गए. उक्त के अतिरिक्त हर तकनीकी विभाग तथा शिक्षण संस्था से एक-एक कार्यकारिणी सदस्य चुनने हेतु अध्यक्ष को अधिकृत किया गया.

सर्वसम्मति से इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा प्रस्तुत गत सत्र का लेखा-जोखा पारित किया गया. संपादक मंडल सदस्यों के सहयोग से संस्था का मुख पत्र प्रारम्भ करने हेतु इंजी. संजीव 'सलिल' को अधिकृत किया गया.

प्रो. विनय कुमार श्रीवास्तव ने अपने उद्बोधन में गत सत्र की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत करते हुए सदस्यों से तकनीक और समाज के बीच बने अंतर को पटाने हेतु प्राण-प्राण से समर्पित होने की अपेक्षा की.

संस्था के पूर्व सचिव प्रो. दिनेश कुमार खरे के आकस्मिक निधन पर इंजी. 'सलिल' द्वारा शोक-श्रृद्धांजलिपरक काव्यांजलि के पश्चात् सदस्यों के मौन रखकर श्रृद्धांजलि अर्पित की तथा भू-तकनीकी के क्षेत्र में उदित गंभीर समस्याओं के प्रति समाज में जाग्रति उत्पन्न करने व् उनके सम्यक समाधान के प्रति अपने हर संभव योगदान का संकल्प लिया. बैठक का कुशल सञ्चालन इंजी. संजय वर्मा ने किया.