सरस्वती वंदना : 1
संजीव 'सलिल'
अम्ब विमल मति दे
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....
नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....
बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....
कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....
हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
' सलिल' विमल प्रवहे.....
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
7 टिप्पणियां:
आ.आचार्य जी ,
बहुत कल्याणकारी और सुन्दर कामना है. सबसे बड़ी वस्तु 'निर्मल मति' ,वह मिल जाये तो मानव जीवन सँवर जाए .
इस कामना में हम भी आपके साथ हैं .
सादर ,
प्रतिभा सक्सेना.
बिन प्रतिभा निर्मल मति, दिखा न पाती राह.
सलिल-साधना सफल हो, पा प्रतिभा की छाँह..
आदरणीय आचार्य जी
अति सुन्दर !
निराला जी याद आ गये - वर दे वीणा वादिनी.... वर दे !
सादर
प्रताप
आचार्य जी
यह गीत वन बन्धु परिषद की प्रार्थना से कफी मेल खाता हुआ है।
मैने उनकी सभाओं मे कई बार सुना है।
Kuldip Gupta
BLOGS AT: http://kuldipgupta.blogspot.com/
and at : http://kuldipgupta.rediffiland.com/iland/kuldipgupta.html
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9337102459
Fax 091 0674 2586332
''कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
वह बल-विक्रम दे.....
हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।''
Excellent thoughts & lines
Regards,
Jitendra
आ० आचार्य जी,
आशीर्वाद के लिये आभारी हूँ |
कमल
kuldipgupta@hotmail.com की छवियां हमेशा प्रदर्शित करें
आ आचार्य जी
मैने आपको एक मेल भेजी थी कि शायद यह गीत आपका स्वरचित नहीं है।
कम से कम कुछ पंक्तियां तो शब्दशः नकल हैं।
उत्तर की अपेक्षा थी।
Kuldip Gupta
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